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14वीं सदी के मैथिली कवि विद्यापति से प्रेरित भोजपुरी फिल्म ‘डमरू’

14 वीं सदी में मधुबनी, बिहार में मैथिली कवि विद्यापति हुए थे, जो कि भगवान शंकर के इतने बड़े भक्त थे कि भगवान शंकर को उनके घर में अवतरित होना पड़ा था. विद्यापति की इसी कहानी से प्रेरित होकर निर्माता प्रदीप शर्मा और लेखक व निर्देशक रजनीश मिश्रा एक भोजपुरी फिल्म ‘डमरू’ लेकर आ रहे हैं, जो कि छह अप्रैल को प्रदर्शित होगी.

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जी हां! फिल्म ‘डमरू’,विद्यापति की ही कहानी है. विद्यापति मधुबनी बिहार के लेखक थे, जिनकी वजह से भगवान शंकर को वहां अवतरित होना पड़ा था. विद्यापति की कहानी से प्रेरित होकर ‘डमरू’ की कहानी लिखी गयी है. इस फिल्म की कहानी का सार यही है कि यदि इंसान की ईश्वर में गहरी आस्था हो, तो उसकी मदद के लिए ईश्वर को धरती पर अवतरित होना पड़ता है.

भोजपुरी फिल्म ‘‘डमरू’’ के निर्माता प्रदीप शर्मा इससे पहले ‘डायरेक्ट इश्क’ और ‘एक तेरा साथ’ जैसी दो हिंदी फिल्में बना चुके हैं. अब भोजपुरी फिल्म ‘डमरू’ बनाने की वजह पूछे जाने पर कहते हैं- ‘‘मैं एक फिल्म के प्रीमियर पर गया था, वहीं पर सुपरहिट भोजपुरी फिल्म ‘मेंहदी लगा के रखना’ के निर्देशक रजनीश मिश्रा से मुलाकात हुई थी. उसके बाद हम दोनों का एक दूसरे के आफिस आना जाना शुरू हो गया. इसी बीच कुछ लोगो ने मुझसे कहा कि मुझे भोजपुरी में भी अच्छी फिल्म बनानी चाहिए. मुझे एक पटकथा सुनायी गयी, पर वह आम भोजपुरी फिल्म थी, जिसे मैंने बनाने से इंकार कर दिया. फिर मेरे पास ‘डमरू’ की पटकथा आयी. इसे पढ़कर मुझे लगा कि यह सामाजिक संदेश देने वाली फिल्म है, इसे बनाया जाना चाहिए. यह एकदम साफ सुथरी फिल्म है.

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दूसरी आम भोजपुरी फिल्मों से अपनी फिल्म ‘डमरू’ को अलग बताते हुए प्रदीप शर्मा कहते हैं- ‘‘एकदम अलग तरह की फिल्म है. पिछले दस पंद्रह वर्षो में ‘डमरू’ जैसी भोजपुरी में एक भी फिल्म नहीं बनी. इन दिनों जिस तरह की भोजपुरी फिल्में बन रही हैं, उन्हें देखने के लिए बुजुर्गो के अलावा महिलाएं सिनेमाघरों में नहीं जाती हैं. मगर हमारी फिल्म ‘डमरू’ देखने के लिए पूरा परिवार एक साथ जाएगा. मेरा पूरा ध्यान इस बात पर रहा कि ऐसी साफ सुथरी सामाजिक फिल्म बने, जिसे देखने के लिए बच्चे, बूढ़े व घर की हर महिला एक साथ सिनेमा घर में जाए.’’

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विद्यापति की कहानी से प्रेरणा लेकर ‘डमरू’ बनाने के मायने स्पष्ट करने के साथ ही अपनी फिल्म ‘डमरू’ की कहानी के बारे में प्रदीप शर्मा कहते हैं- ‘‘विद्यापति की जो कहानी है, उस पर हमारी फिल्म नहीं है, बल्कि उनकी कहानी से प्रेरित है हमारी फिल्म ‘डमरू’. यह कहानी है गांव के एक सीधे सादे लड़के की है, जो कि बचपन से ही भगवान शंकर का भक्त है. उसके पिता नही है. गांव के मंदिर का पुजारी व उसकी मां ने ही उसे पाला पोसा है. पंडित हमेशा कहते हैं कि संसार में जो कुछ अच्छा या बुरा होता है, वह भगवान शंकर ही करते हैं. वह बचपन से ही शंकर की भक्ति में इस कदर लीन रहता है कि वह हर छोटी बड़ी समस्या आने पर भगवान शंकर से बात करता है. जब वह बड़ा होता है और इलाके के गुंडे व असामाजिक तत्व जब उसके पीछे पड़ जाते हैं, तब भगवान शंकर को अवतरित होकर उसके घर में रहना पड़ता है. पर यह बात यह बालक नहीं जानता. उसे लगता है कि यह जो मेरे घर में रहने आए हैं, इनके पास कोई काम काज नहीं है. तो वह उनसे गोबर उठवाने से लेकर झाड़ू तक लगवाने लगता है कि इसे काम सिखाया जाए. इसी में पूरी कौमेडी है. हिंदू मुस्लिम धर्म को लेकर बात की है. हमने दिखाया है कि हर धर्म एक ही है.’’

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फिल्म ‘डमरू’ में भ्रष्टाचार, सामाजिक विद्वेष, लालच व कुरीतियों से लड़कर ऊपर आने की कथा है. फिल्म में समाज में फैले हुए अंधविश्वास को भी व्यंग व हास्य के साथ पेश किया गया है. हमारी फिल्म हर इंसान को अंधविश्वासों से ऊपर उठने का संदेश देती है.

बनारस, सारनाथ व चौबेपुर में फिल्मायी गयी फिल्म‘‘डमरू’’में एक भक्ति गीत, दो कव्वाली, एक भगवान शंकर पर गाना और तीन प्रेम गीत सहित कुल सात गाने हैं.

हिंदी फिल्म की तरह फिल्मायी गयी फिल्म ‘डमरू’ में मुख्य किरदार खेसारीलाल यादव का है. उनकी प्रेमिका के किरदार में याशिका कपूर तथा भगवान शंकर के किरदार में अवधेश मिश्रा है. फिल्म के अन्य कलाकार हैं- आनंद मोहन, पद्म सिंह, किरण यादव, तेज सिंह, रोहित सिंह व अन्य.

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फिल्म ‘डमरू’ के लेखक व निर्देशक रजनीश मिश्रा कहते हैं- ‘फिल्म ‘डमरू’ की कहानी का सारा ताना बाना सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वास, भ्रष्टाचार, लालच, सत्ता का दुरूपयोग आदि के इर्द गिर्द मनोरंजक तरीके से बुना गया है. हमारी फिल्म बताती है कि किस तरह सामाजिक कुरीतियों से ऊपर उठा जा सकता है. इसी के साथ हमारी फिल्म धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठने का संदेश भी देती है.’’

प्रदीप शर्मा आगे कहते हैं- ‘‘हमारी फिल्म ‘डमरू’ नारी को सबल करने की बात करती है. जब राजनेता सत्ता का दुरूपयोग करते हैं, तब किस तरह के सामाजिक दुष्प्रभाव पड़ते हैं, उसकी भी बात हमारी फिल्म करती है.’’

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‘परमाणु’ के लिए जौन अब्राहम दोषी हैं या वे खुद फंस चुके हैं..??

फिल्म ‘‘परमाणु : द स्टोरी आफ पोखरण’’ को लेकर अभिनेता व निर्माता जौन अब्राहम तथा क्रियाज इंटरटेनमेंट के बीच तलवारे खिंच चुकी हैं. दोनों ने एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए हैं. जौन अब्राहम ने ट्रेड पत्रिकाओं में नोटिस छापकर क्रियाज इंटरटेनमेंट पर कई तरह के आरोप लगाते हुए खुद को फंसा हुआ और शोषित बताया है. जिस पर पलटवार करते हुए ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ की प्रेरणा अरोड़ा ने जौन अब्राहम पर आरोप लगाते हुए उन्हे ही दोषी बताते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया है. यह मामला अब और अधिक बिगड़ेगा, ऐसा लग रहा है.

वास्तव में 1998 में पोखरण में हुए सफल न्यूकलियर बम टेस्ट पर जौन अब्राहम ने जब फिल्म ‘‘परमाणु : द स्टोरी आफ पोखरण’’ का निर्माण शुरू किया था, तो इस फिल्म के निर्माण में सह निर्माता के रूप में प्रेरणा अरोड़ा की कंपनी ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ को जोड़ा था. जौन अब्राहम की प्रोडक्शन कंपनी ‘‘जा इंटरटेनमेंट’’ ने ‘‘क्रियाज इंटरटेनमेट’’ के साथ एक अनुबंध किया था.

फिल्म ‘‘परमाणु’’ को 8 दिसंबर 2017 को प्रदर्शित होना था. सूत्र बताते हैं कि फिल्म पूरी हो चुकी है, मगर इसका प्रदर्शन 8 दिसंबर 2017 की बजाय टालकर फरवरी 2018 और फिर 2 मार्च 2018 किया गया. 2 मार्च 2018 को ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ और अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘परी’ प्रदर्शित हुई, इसलिए ‘परमाणु’ के प्रदर्शन की तारीख 6 अप्रैल की गयी थी. मगर अब यह फिल्म 6 अप्रैल को भी प्रदर्शित नहीं होगी. अब इसे ग्यारह मई को प्रदर्शित करने की बात कही जा रही है.

Parmanu The Story of Pokhran

जब से फिल्म ‘‘परमाणु’’ के प्रदर्शन की तारीखें बदलना शुरू हुई थीं, तभी से बौलीवुड में चर्चाएं गर्म हो गयी थी कि जौन अब्राहम और प्रेरणा अरोड़ा के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है. पर दोनों इन अफवाहों को गलत बताते रहे. लेकिन अब जौन अब्राहम ने अपनी तरफ से पहल करते हुए ट्रेड पत्रिकाओं में नोटिस छपवाकर ऐलान कर दिया है कि फिल्म ‘‘परमाणु’’ से अब ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ का कोई लेना देना नहीं है. अब इस फिल्म पर सारा अधिकार उनकी प्रोडक्शन कंपनी ‘जा इंटरटेनमेंट’ का है. अब उनकी कंपनी ही इस फिल्म के प्रदर्शन वगैरह को लेकर सारे निर्णय लेगी.

अपने इस नोटिस में जौन अब्राहम ने ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ पर वादा खिलाफी के कई आरोप लगाए हैं. जौन अब्राहम का आरोप है कि ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ ने फिल्म निर्माण के लिए दिया जाने वाला धन भी नहीं दिया है. दोनों के बीच रचनात्मक मतभेद काफी रहे. यहां तक दोनों के बीच इस बात पर सहमति नहीं हो पा रही है कि फिल्म के प्रदर्शन से पहले इसका प्रमोशन किस तरह से किया जाए..वगैरह वगैरह.

जौन अब्राहम की तरफ से ट्रेड पत्रिकाओं में नोटिस छपवाए जाते ही प्रेरणा अरोड़ा आग बबूला हो उठी हैं. अब तक प्रेरणा अरोड़ा ने किसी अभिनेता के खिलाफ कोई कटु बयान नहीं दिया था. फिल्म ‘केदारनाथ’ के विवाद के वक्त भी प्रेरणा अरोड़ा की तरफ से फिल्म के कलाकारों पर कोई आरोप नहीं लगाए गए. प्रेरणा ने फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर पर ही आरोप लगाए थे. मगर इस बार प्रेरणा अरोड़ा की कंपनी ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ की तरफ से सीधे जौन अब्राहम पर हमला बोला गया है.

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क्रियाज इंटरटेनमेंट की तरफ से कहा गया है कि जौन अब्राहम उनकी कंपनी के साथ कानूनी अनुबंध में बंधे हुए हैं और वह किसी भी सूरत में फिल्म ‘परमाणु’ को ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ से अलग नहीं कर सकते.

‘‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’’ कंपनी से जुड़े अधिकारी ने एक वेब साइट से बात करते हुए कहा हैं-‘‘ट्रेड पत्रिकाओं में जौन अब्राहम ने जो नोटिस छापा है, वह बेमानी है. फिल्म के साथ संयुक्त निर्माता/प्रस्तुत कर्ता सहित हमारे सारे अधिकार सुरक्षित हैं. हमने अपने सारे वादे समय से पूरे किए हैं. ‘जा इंटरटेनमेंट’ को शुरू से ही पता था कि ‘क्रियाज इंटरटेनमेंट’ और ‘जी स्टूडियो’ फिल्म के सह निर्माता हैं. फिल्म को विदेश में वितरण के अधिकार के साथ ही सारे सेटेलाइट, डिजिटल व संगीत के अधिकार हमारे पास हैं.

‘जा इंटरटेनमेंट’ ने अब तक अपने एक भी वायदे पूरे नहीं किए. उन्होंने अब तक हमें नहीं बताया कि फिल्म पूरी हो चुकी है. इतना ही नहीं वह अवैध तरीके से बार बार फिल्म के प्रदर्शन की तारीखें बदलते जा रहे हैं. परिणामतः हमें काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है और हमारी अपनी इज्जत पर भी धब्बा लगा है. फिल्म को बड़े स्तर पर प्रमोट करने के लिए हमने योजना बनायी है, उस पर भी हम काफी धन खर्च कर चुके हैं. हम उन्हे अपेक्षित पैसा दे चुके हैं, फिर भी वह हमसे धन की मांग कर रहे हैं, जो कि अनुबंध के अनुसार भी हमें उन्हें नहीं देना चाहिए. सच यह है कि ‘जा इंटरटेनमेट’ हमें अवैध तरीके से दबाने के साथ साथ हमें आर्थिक नुकसान पहुंचाती आ रही है. पर हम फिल्म की बेहतरी के लिए चुप हैं, किंतु अब उन्होंने गलत नोटिस छपवाकर और अधिक गलत कदम उठाया है.’’

जौन अब्राहम और प्रेरणा अरोड़ा में से कौन कितना सच बोल रहा है, यह तो यही दोनों जानते होंगे. इनके बीच किस तरह के अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर किए गए हैं, यह भी फिलहाल इन्हे ही पता है. मगर बौलीवुड में चर्चा हो रही है कि प्रेरणा अरोड़ा जिस तरह से फिल्मकारों के साथ पेश आ रही हैं, उसे देखते हुए हर फिल्मकार व कलाकार को उनके साथ हाथ मिलाने से पहले दस बार सोचना चाहिए.

ज्ञातब्य है कि कुछ समय पहले फिल्म ‘केदारनाथ’ को लेकर भी प्रेरणा अरोड़ा की अभिषेक कपूर के साथ अनबन हुई थी, पर अंत में अनुबंध पत्र की ही वजह से अभिषेक कपूर को प्रेरणा अरोड़ा के सामने घुटने टेकने पडे़.

अब देखना यह है कि जौन अब्राहम अैर प्रेरणा अरोड़ा के बीच फिल्म ‘‘परमाणु’’ को लेकर जो विवाद छिड़ा है, उसका परिणाम क्या सामने आता है? कौन दोषी और कौन शोषित साबित होता है? पर इस तरह के विवादों के ही चलते भारतीय सिनेमा में स्टूडियो सिस्टम पर से लोगों का विश्वास डगमगा रहा है.

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जानें प्रेमिका की सैक्सुअल चाहतें

प्रेमी प्रेमिका के संबंध सिर्फ सैक्स तक ही सीमित नहीं होने चाहिए. सैक्स के अलावा भी दुनिया में बहुतकुछ ऐंजौय करने को है. संबंधों में प्रगाढ़ता और केयरिंग होना भी जरूरी है. प्रेमिका द्वारा नई डै्रस पहन कर आने पर उस की प्रशंसा करना, उसे सराहते हुए उस के हाथों को चूम लेना, बात करने के तरीके को सराहना आदि बातें मन को गहराई तक छू जाने वाली हैं. रिश्तों में मजबूती के लिए ये बातें बेहद जरूरी हैं. प्रेमिका को जताएं कि आप उसे सिर्फ सैक्स के लिए ही नहीं चाहते बल्कि सैक्स से भी अहम है आप का उस के प्रति प्रेम और लगाव.

आज प्रेम के मापदंड तेजी से बदल रहे हैं. युवावस्था में विपरीतलिंग के प्रति आकर्षण युवकयुवती को एकदूसरे के प्रति प्रेम के बंधन में बांधता है और फिर बातें, मुलाकातें और एकदूसरे के प्रति समर्पित होने तक का रिश्ता बनता है. प्रेमसंबंधों के चलते युवकयुवतियां एकांत मिलते ही संबंध बनाने से भी गुरेज नहीं करते. प्रेमी जहां सैक्स के लिए जल्दी तैयार हो जाते हैं और सैक्स करने को तत्पर रहते हैं वहीं प्रेमिका का रुझान सिर्फ दैहिक सुख तक नहीं रहता बल्कि उन पलों के रोमांच को समेट लेने का भी करता है.

ऐसे में जहां प्रेमी सिर्फ संबंध बना कर अपने प्यार के इजहार की इतिश्री समझ लेते हैं वहीं प्रेमिका दिलोजान से एकदूसरे को चाहने, मीठी बातें, छेड़छाड़ और सैक्स के बाद भी प्रेमी की बांहों में खुद को महफूज समझने जैसी भावनाओं को प्यार की अभिव्यक्ति समझती है. साथ ही यह भी चाहती है कि उस का प्रेमी उस की सैक्सुअली इच्छाओं को खुद ब खुद समझे व जाने.

ऐसा ही कुछ रूपम के साथ हुआ. कालेज में साथ पढ़ते रूपम को रोहन से कब प्यार हो गया पता ही न चला. मिलनेमिलाने का सिलसिला चला तो वे एकांत भी तलाशने लगे. ऐसे में जब भी रोहन एकांत पाता तो बस रूपम को बांहों में जकड़ लेता और सैक्स को उन्मुख होता. ऐसे में उन के बीच सैक्स संबंध भी बन गए पर रूपम इस से संतुष्ट न थी. उसे अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति कैसे करनी है, अच्छी तरह पता था, लेकिन रोहन से बेइंतहा प्यार के बावजूद उन की सैक्स लाइफ में जरा भी रोमांच न था. इस बारे में वह रोहन से बात भी न कर पाती. दरअसल, वह समझ नहीं पा रही थी कि रोहन से किस तरह बात करे कि उसे बुरा न लगे.

रूपम की तरह ज्यादातर युवतियां चाहती हैं कि उन की कुछ सैक्सुअल चाहतें उन के प्रेमियों को खुद समझनी चाहिए. नौर्थवैस्टर्न यूनिवर्सिटी इलिनौयस की सैक्सुअलिटी प्रोग्राम की थेरैपिस्ट पामेला श्रौफ कहती हैं कि ज्यादातर प्रेमी अपनी प्रेमिका की सैक्सुअल चाहतों और प्राथमिकताओं को नहीं समझते. पामेला ने इस विषय पर प्रेमिकाओं के मन की बात जानी तो उन्हें कुछ ऐसी सैक्स प्राथमिकताएं पता चलीं जिन्हें प्रेमिका अपने प्रेमी से कहना तो चाहती थी, पर कह नहीं पाई.

मजेदार सैक्स नहीं रोमांटिक अंदाज चाहिए

युवतियों को आनंददायक सैक्स के लिए सिर्फ इंटरकोर्स की नहीं बल्कि अपने प्रेमी के साथ बिताए हर क्षण में अच्छी फीलिंग और अनुभव की जरूरत होती है. प्रेमिका को यह बात कतई अच्छी नहीं लगती कि प्रेमी जब भी उन से मिले सिर्फ पढ़ाई, कैरियर के बारे में बात करे या फिर एकांत मिलते ही उसे दबोच ले.

इस से प्रेमिका के मन में ऐसी भावना आती है कि वह एक भोग की वस्तु है. ऐसे में वह अपने प्रेमी को बेहद स्वार्थी और खुद को भोग की वस्तु समझने लगती है. हर प्रेमिका चाहती है कि उस का प्रेमी उसे केवल सैक्स के लिए ही नहीं बल्कि मन से भी उतना ही प्यार करे, उस पर ध्यान दे, उस के साथ अपनी बातें शेयर करे, प्रेमपूर्वक बातें करे, उस की भावनाओं को जाननेसमझने की कोशिश करे.

कुछ समाजशास्त्रियों का कहना है कि युवतियां अपनी जिंदगी के हर पहलू को एकदूसरे से जोड़ कर देखती हैं, जबकि युवक समझते हैं कि स्ट्रैस और झगड़े को सैक्स के वक्त एकतरफ रख देना चाहिए. इन चीजों या अन्य समस्याओं को सैक्स से नहीं जोड़ना चाहिए.

सच यह है कि सैक्स का असली मजा अफैक्शन के कारण ही आता है. मानसिक रूप से अपनापन, प्यार और नजदीकियां होती हैं तभी सैक्स संबंध सही माने में उत्तेजनापूर्ण होते हैं.

जब कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को समयसमय पर छोटेमोटे उपहार देता है, उसे कौफी हाउस ले जाना, लंचडिनर करवाना और सिनेमा दिखाना आदि ऐसी बातें हैं जो दर्शाती हैं कि प्रेमी अपनी प्रेमिका को महत्त्व देता है और अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा मानता है. ऐसे में सैक्स का मजा भी कई गुणा बढ़ जाता है.

प्रेमिका में भी पूर्ण समर्पण की चाह

कई अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि सिर्फ 60% प्रेमिकाएं ही ऐसी हैं जिन्होंने जितनी बार अपने प्रेमी से संभोग किया, उस से कम से कम आधी बार ही चरम आनंद का अनुभव किया. लेकिन उन्हें प्रेमी की खुशी के लिए सैक्स के दौरान चरम आनंद का दिखावा करना पड़ा. ऐसे में कई बार तो उन के मन में अपराधबोध आ जाता है कि कहीं उन्हीं में तो कोई कमी नहीं.

दरअसल, युवतियों में भी अपने अंगों की बनावट, आकार और साफसफाई को ले कर तुलनात्मक हीनता की भावना होती है, इसीलिए वे अंधेरे में ही निर्वस्त्र होना चाहती हैं. ऐसे में वे अपने प्रेमी से अपने अंगों और सौंदर्य की प्रशंसा की अपेक्षा रखती हैं. कई प्रेमी अपनी प्रेमिका को मोटी, काली जैसे संबोधनों से नवाजते हैं. ऐसे में प्रेमिका का तनावग्रस्त होना स्वाभाविक है. ऐसी प्रेमिकाएं अपने प्रेमी के साथ सैक्स संबंध बनाने से भी कतराती हैं. जाहिर है, उन का यौन जीवन नीरस और आनंदविहीन हो जाता है.

झूठी प्रशंसा की जरूरत नहीं

समझदार प्रेमी वही है जो अपनी प्रेमिका की त्वचा की कोमलता, आंखों की खूबसूरती, होंठों, लंबे घने बालों, उस की मांसल टांगों, वक्ष, नितंब आदि की खूबसूरती व सैक्सुअली अट्रैक्शन की प्रशंसा कर प्रेमिका का आत्मविश्वास बढ़ाए और हंसीठिठोली करे ताकि प्रेमिका पूर्ण समर्पण व सहयोग करे.

सैक्स के बाद भी चाहिए अटैंशन

कई बार प्रेमी प्रेमिका के साथ एकांत पाते ही अंतरंग क्षणों का जम कर आनंद उठाते हैं और फिर चरम पर पहुंच कर स्खलित होते ही मुंह फेर कर प्रेमिका को घरहोस्टल छोड़ने या फिर जाने को कहते हैं, मानो उन्हें अब प्रेमिका से कोई मतलब ही नहीं. उन्हें मतलब तो उस से सिर्फ सैक्स की दरकार थी.

ऐसे में प्रेमिका खुद को बेहद अकेली, उपेक्षित और यूज ऐंड थ्रो वाली वस्तु समझती है. उसे लगता है कि बस सैक्स प्रेमी का अंतिम उद्देश्य था. प्रेमिका चाहती है कि सैक्स और स्खलन के बाद भी प्रेमी उसे चूमे, उस के अंगों को सहलाए ऐसा करतेकरते प्रेमिका को बांहों में भरते हुए उसे वापसी के लिए कहे या छोड़ कर आए. इस से प्रेमिका को आत्मसंतोष महसूस होता है.

चाहिए नौन सैक्सुअल टच

युवतियों को यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगती कि मिलने पर उन का प्रेमी उन्हें एक बार भी छुए या चूमे नहीं और बस एकांत पा कर फोरप्ले के लिए ही बढ़े बल्कि प्रेमिका चाहती है कि जब प्रेमी उस से मिले तो उसे छुए, चूमे लेकिन यह टच नौन सैक्सुअल हो. वह छेड़छाड़ या हंसीमजाक के लिए या अपनापन जताने के लिए छुए. कभी उस के बालों को सहलाए, उस की पीठ पर हाथ फेरे, उस के गालों को चूमे, थपथपाए, होंठों को चूमे.

अत: रिश्ते में मजबूती के लिए ये बातें बेहद जरूरी हैं. प्रेमिका को जताएं कि आप उसे सिर्फ सैक्स के लिए नहीं चाहते बल्कि सैक्स से भी अहम है आप का उस के प्रति प्रेम व लगाव.

उत्तेजना के लिए रोमांटिक बातें जरूरी

एकांत पाते ही प्रेमिका को जकड़ लेना और उत्तेजित हुए बिना ही सैक्स करना प्रेमिका को बिलकुल नहीं भाता. इस के विपरीत वह अपने प्रेमी से एकांत के समय मीठी छेड़छाड़, रोमांटिक बातें और गुदगुदाने वाले सैक्सी किस्से सुनना पसंद करती है जो उसे भीतर तक भनभना दें. इस से उस का मूड बनता है.

इसी प्रकार सैक्स के दौरान प्रेमिका की प्रशंसा, उस के साथ प्यार का इजहार और उस का नाम ले कर आहें भरना, गरम सांसें लेना प्रेमिका को उत्तेजना से भर देता है. सैक्स थेरैपिस्ट लिन एटवाटर का कहना है, ‘‘युवतियों को शारीरिक संबंधों से ज्यादा दिलचस्पी मानसिक उत्तेजना और मानसिक संबंधों में नजर आती है.’’

यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया मैडिकल स्कूल की साइकोलौजिस्ट लोनी बारबच कहती हैं, ‘‘अकसर पढ़ाई और अगर जौब है तो औफिस वर्क के दबाव के बीच किसी युवती को सब से ज्यादा जरूरत सहानुभूति और प्रेमपूर्ण बातों की ही होती है. उसे शरीर सहलाने से जितना मजा मिलता है उस से कई गुणा ज्यादा मजा उस का मन सहलाने से मिलता है. हर प्रेमिका चाहती है कि उस का प्रेमी उस के साथ रोमांटिक बातें करे

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सैक्स : प्रचार से व्यापार तक

सैक्स शुरू से ही मनुष्य की कमजोरी रहा है. इस से बच पाना किसी के वश की बात नहीं है. आज विज्ञापन का जमाना है. बिना विज्ञापन या प्रचार के किसी भी प्रोडक्ट को मार्केट में लौंच करना या उस की बिक्री कर पाना संभव नहीं है. इसलिए प्रतिस्पर्धा के इस युग में विज्ञापन एजेंसियां प्रचार के नएनए तरीके ईजाद करती हैं ताकि बायर्स को अट्रैक्ट किया जा सके.

हकीकत तो यह है कि सुंदर व सैक्सी मौडलों का इस्तेमाल किसी प्रोडक्ट के प्रचार के लिए लौंचिंग पैड की तरह किया जा रहा है. इस में कोई हर्ज भी नहीं है. अगर युवतियों को सुंदर और सैक्सी काया मिली है तो उस का फायदा उन्हें उठाना भी चाहिए. आज युवतियों के सामने कैरियर के अनेक विकल्प हैं, पर छरहरी और सैक्सी लुक वाली युवतियों को विज्ञापन व मौडलिंग का क्षेत्र रास आ रहा है और वे इस में अच्छी कमाई भी कर रही हैं. प्रचार में सैक्सी मौडलों का इस्तेमाल इतना अधिक बढ़ गया है कि कभीकभी तो विज्ञापन, चाहे वे टीवी पर हों या पत्रपत्रिकाओं में, देख कर हैरत होती है कि आखिर ऐसी क्या वजह थी कि फलां विज्ञापन में सैक्सी मौडल को दिखाया गया, लेकिन यह आज की मार्केटिंग का फंडा है, क्योंकि प्रचार में सैक्सी मौडल पर हर किसी की नजर फोकस हो जाती है और वह प्रोडक्ट हिट हो जाता है. पिछले दिनों शेविंग ब्लेड के एक विज्ञापन में एक अट्रैक्टिव युवती को एक युवक की शेव बनाते हुए दिखाया गया था. लाजिमी है कि नजर इस विज्ञापन पर टिकेगी ही, क्योंकि यह विज्ञापन हट कर था और एक सैक्सी युवती को इस में दिखाया गया था.

यह विज्ञापन एक स्ट्रैटिजी के तहत था. मर्द की कमजोरी होती है कि वह सैक्सी लुक वाली युवतियों की ओर आसानी से अट्रैक्ट हो जाता है. 90 के दशक में मशहूर मौडल मिलिंद सोमण और मधुस्प्रे को एक जूते के विज्ञापन में निर्वस्त्र एकदूसरे से लिपटे दिखाया गया था. उन के शरीर पर सिर्फ एक अजगर रेंग रहा था. दोनों मौडलों के पैरों में सिर्फ जूते थे, क्योंकि यह एक जूते का विज्ञापन था. इस विज्ञापन ने तहलका मचा दिया था. न्यूडिटी दिखाने के चक्कर में भले ही विज्ञापन एजेंसी व मौडल्स को कानून द्वारा अदालतों में हैरेस किया गया पर विज्ञापन तो हिट हो गया. यह भी सैक्स परोसने का ही कमाल था.

वर्जिन मोबाइल कंपनी के एक विज्ञापन में भी सैक्स को हथियार बनाया गया. इस विज्ञापन में एक युवक अस्पताल के बैड पर लेटा है. वह घंटी बजा कर नर्स को बुलाता है. नर्स के आने पर वह उसे कहता है कि पेट में दर्द है. नर्स उस की चादर के अंदर हाथ डाल देती है. इस तरह उसे शारीरिक सुख मिलता है. इसी तरह आइडिया 3जी का भी एक विज्ञापन जोरशोर से प्रचारित हुआ, जिस में पतिपत्नी के संबंधों और उन से बढ़ने वाली जनसंख्या का कारण लाइट जाने से मनोरंजन न हो पाना बताया गया. इस में पतिपत्नी को लाइट जाने के बाद एकदूसरे से लिपटेचिपटे दिखाया गया है.

लैक्मे फैशन वीक के दौरान ऐक्टर अक्षय कुमार ने अपनी पत्नी ट्विंकल खन्ना से अपनी जींस का बटन खुलवाया तो मीडिया में हंगामा खड़ा हो गया. अक्षय ने ऐसा प्रचार के लिए ही किया था, पर लोगों ने उन की इस हरकत पर अश्लीलता का लेबल चस्पां कर इसे खूब हवा दी, लेकिन अक्षय का मकसद तो पूरा हो ही गया. विज्ञापनों व प्रचार में सैक्सी मौडलों को दिखाने में कोई हर्ज नहीं है. सैक्स का इस्तेमाल तो शुरू से ही होता रहा है पर छिप कर. राजघरानों, महलों और हरमों में तो सैक्स जम कर परोसा जाता रहा है, पर बात ऊंची दीवारों के अंदर ही रह जाती थी. आज जमाना बदल गया है. बाजारवाद बढ़ रहा है. ऐसे में सैक्स को हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. इस में कोई हर्ज नहीं है. हां, चंद दकियानूसी लोग और धर्म के ठेकेदार ही सैक्स को ले कर बखेड़ा करते हैं, धर्म की दुहाई देते हैं. सच तो यह है कि अगर उन्हें कोई सौंदर्यबाला मिल जाए तो उन की जबान उस के रसास्वादन के लिए लपलपाने लगेगी. किस धर्म में लिखा है कि प्रचार में सैक्सी व सुंदर स्त्रियों का इस्तेमाल न किया जाए?

आजकल सैक्स की ताकत बढ़ाने वाली दवाएं भी धड़ल्ले से बिक रही हैं, जिन में गोलियां भी हैं और तेल भी. अखबार व पत्रपत्रिकाओं में इन विज्ञापनों की भरमार होती है. हर विज्ञापन में कम वस्त्रों में खूबसूरत व सैक्सी युवती दिखाई जाती है जो किसी पुरुष के सीने से चिपकी होती है. क्या केवल पुरुष दिखाने से काम नहीं चल सकता था? प्रोडक्ट्स के प्रचार में तो सैक्स का बोलबाला है ही, लेकिन अब मार्केटिंग के क्षेत्र में भी सैक्स को तरजीह दी जाने लगी है. कंपनियां अपनी मार्केटिंग टीम में युवकों के बजाय ग्लैमरस लुक और इंगलिश स्पीकिंग युवतियों को प्रिफर कर रही हैं. गर्ल्स में कूवत होती है कि वे अपनी सैक्सी अदाओं से क्लाइंट्स को अपने वश में कर लेती हैं. उन की शोख अदाएं और मिठास भरी जबान सामने वाले को तुरंत अपने शीशे में उतार लेती है. चंद मिनट में ही वे लाखों की डील फाइनल कर लेती हैं.

इस के लिए कभीकभी उन्हें अपने क्लाइंट्स के साथ इंटिमेट भी होना पड़े या लेटनाइट पार्टी में जाना पड़े तो वे हिचकती नहीं हैं. उन का मुख्य उद्देश्य बिजनैस लाना होता है. वैसे भी युवतियां बहुत जागरूक हो चुकी हैं. उन्हें मालूम है कि यदि अपना बिजनैस टारगेट पूरा करना है और तरक्की की मंजिल फतेह करनी है तो उन्हें अपने क्लाइंट्स की हर जायज और नाजायज मांग पूरी करनी पड़ेगी. बस, सेफ्टी प्रिकौशंस का खयाल रखना पड़ेगा, जिस की वे हर समय पूरी तैयारी रखती हैं.

मोनिका ने एयर होस्टेस का कोर्स किया था. वह एक एयरलाइंस कंपनी में एयर होस्टेस थी. छरहरे बदन की मोनिका फर्राटेदार अंगरेजी बोलती थी. उस में ऐसी सैक्स अपील थी कि पैसेंजर्स उस के मुरीद हो जाते थे. इसीलिए उस की ड्यूटी तब लगाई जाती थी जब प्लेन में कोई वीआईपी ट्रैवल कर रहा होता था. मोनिका को अपनी खूबसूरती पर नाज था. उस में गजब का कौन्फिडैंस था. यही वजह थी कि वह बहुत जल्दी बुलंदियों पर पहुंच गई. उस का वेतन भी तेजी से बढ़ा.

सैक्स तो व्यापार बन गया है. सफल व्यापारी वही है जिस ने इस बात को समझ लिया है. एक निजी कंपनी चलाने वाले मोहित का कहना है कि बिजनैस में गर्ल्स की प्रैजेंस से व्यापार बढ़ता है. इसीलिए मेरी कंपनी में रिसैप्शनिस्ट से ले कर एचआर और मार्केटिंग हैड तक सभी युवतियां हैं. जो भी मेरे औफिस में आता है वह मुझ से कहता है कि मोहित आप युवकों को नौकरी पर नहीं रखते क्या? मैं उन से यही कहता हूं कि यदि व्यापार बढ़ाना है तो गर्ल्स को रखना ही पड़ेगा, क्योंकि इन में गजब की सैक्स अपील होती है जो क्लाइंट्स को अपनी तरफ अट्रैक्ट करती है. हां, कभीकभी युवतियों को ले कर समस्याएं भी खड़ी हो जाती हैं, पर रिस्क तो लेना ही पड़ता है.

इसी तरह की सोच ललित भी रखते हैं. उन का कहना है कि मैं ने अपने बिजनैस की शुरुआत रेडिमेड कपड़ों से की. मेरी दुकान पर सब युवक ही थे. एक साल तक दुकान चलाने के बावजूद मेरी दुकान पर ग्राहक नहीं आते थे. चूंकि मेरा जैंट्स रैडिमेड का काम था इसलिए मैं युवतियों को सेल्स गर्ल के रूप में नहीं रखना चाहता था. पर मेरे एक मित्र ने मुझे सलाह दी कि युवतियों को रख कर देखो, शायद तुम्हारे बिजनैस पर फर्क पड़े. मैं ने उस की बात मान कर युवतियों को रख लिया. कुछ ही दिन में हमारा बिजनैस चल पड़ा. दुकान पर ग्राहकों की भीड़ लगने लगी. सब खूबसूरत युवतियों की वजह से ही संभव हो सका.

मिताली एक कंपनी में मार्केटिंग ऐग्जिक्यूटिव है. उस का कहना है कि जो काम युवक नहीं कर सकते वह हम युवतियां आसानी से कर लेती हैं. जब मैं इस कंपनी में आई थी, उस समय कंपनी का टर्नओवर बहुत कम था, लेकिन मैं ने बहुत कम समय में ही टर्नओवर बढ़ा दिया, जिस से हमारे डायरैक्टर बहुत खुश हुए. उन्होंने मेरा वेतन तो बढ़ाया ही साथ ही प्रमोशन भी कर दिया.

मिताली ने बताया कि यह सीधा सा फंडा है कि युवतियों में वाक्पटुता तो होती ही है साथ ही उन्हें सामने वाले को अट्रैक्ट करना भी आता है. युवतियों में गजब की कन्वेसिंग पावर भी होती है साथ ही लटकेझटके दिखाने में भी वे निपुण होती हैं. मेरा मानना है कि अपनी खूबसूरती का फायदा उठाने में हर्ज भी नहीं है. अगर काम इस तरह बन जाता है तो अच्छा ही है. पर कभीकभी औक्वर्ड स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है जब कलाइंट हद से गुजर जाने का प्रपोजल सामने रख देता है. एक तरफ बिजनैस चैलेंज होता है तो दूसरी ओर आबरू की हिफाजत. युवतियों को ऐसे में कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए, क्योंकि बिजनैस तो जरूरी है, जिस के लिए आप को रखा गया है.

आज के युवा इसी तरह के विचार रखते हैं. वे तो सैक्स को भी तैयार हो जाते हैं, क्योंकि आज सेफ्टी प्रिकौशंस के ढेरों विकल्प बाजार में मौजूद हैं. बस, परदा पड़ा रहने की जरूरत है.

आज के प्रतिस्पर्धी युग में सैक्स प्रचार से व्यापार तक अपने पांव पसारे हुए है. इस के बिना तरक्की की मंजिल फतेह करना मुश्किल नहीं है.

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जब धोनी के फैसले ने बदल दिया इस क्रिकेटर का करियर

वनडे क्रिकेट में भारत के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाजों में से एक रोहित शर्मा का मानना है कि सीमित ओवरों की कप्तानी छोड़ने वाले महेंद्र सिंह धोनी का 50 ओवर के प्रारूप में उनसे पारी शुरू कराने का फैसला उनके लिए करियर बदलने वाला था.

रोहित ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि वनडे में पारी शुरू करने के फैसले ने मेरा करियर बदल दिया और यह फैसला महेंद्र सिंह धोनी ने किया था. इसके बाद मैं बेहतर बल्लेबाज बन गया. इससे मुझे अपना खेल बेहतर तरीके से समझने में मदद मिली और मैं स्थिति के अनुसार बेहतर प्रतिक्रिया दे पाया.’’

रोहित ने पहली बार 2013 की शुरूआत में इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज के दौरान ओपनिंग बल्लेबाज की भूमिका निभाई. उन्होंने इस सीरीज में करीब 80 रन बनाए और फिर चैम्पियन्स ट्रॉफी में ठोस प्रदर्शन किया.

धोनी के पारी की शुरूआत के लिए कहने के संदर्भ में रोहित ने कहा, ‘‘वह (धोनी) मेरे पास आया और कहा कि ‘मैं चाहता हूं कि तुम पारी की शुरूआत करो क्योंकि मुझे भरोसा है कि तुम अच्छा करोगे.’ तुम कट और पुल शॉट दोनों अच्छा खेल सकते हो इसलिए तुम्हारे अंदर ओपनिंग बल्लेबाज के रूप में सफल होने का गुण है.’’

आगे रेदित ने कहा कि ‘‘उन्होंने मुझे कहा कि विफलताओं से हम डरें और आलोचनाओं से निराश नहीं हो. वह बड़ी तस्वीर देख रहे थे क्योंकि उस साल इंग्लैंड में चैम्पियन्स ट्रॉफी होनी थी.’’ रोहित के अनुसार धोनी की खिलाड़ी की क्षमताओं को परखने की क्षमता बेजोड़ है.

रोहित ने कहा, ‘‘इंग्लैंड में चैम्पियन्स ट्रॉफी ने मेरा भरोसा बढ़ाया कि मैं पारी की शुरूआत कर सकता हूं और मैं सुबह इंग्लैंड के हालात में सफेद गेंद से खेलने की चुनौती का सामना करने को तैयार था.’’

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बुरका बनाम बुरकिनी

किसी भी औरत को अपनी मरजी के कपड़े पहनने का मौलिक अधिकार है. समाज ने कपड़े पहनना लगभग अनिवार्य कर दिया. इसे सभ्यता का विकास कहें या शरीर की मूलभूत आवश्यकता पर न पहनने का अधिकार पूरी तरह छिन जाए, यह भी गलत है. हरेक के साथ कुछ सामान्य व्यावहारिक नियम बंधे होते हैं और इसीलिए दफ्तर में बिकिनी पहन कर जाना गलत होगा और स्विमिंग पूल में साड़ी पहन कर कूद जाना भी गलत होगा. यूरोप में इस बात पर जंग छिड़ी है कि मुसलिम औरतों को समुद्री तटों पर बुरका और बिकिनी का सम्मिश्रण बुरकिनी पहनना, जिस में पूरा बदन स्किन टाइट ड्रैस से ढका होता है, उन के निजी अधिकारों में आता है या नहीं. फ्रांस के कई शहरों के मेयरों ने इस पर पाबंदी लगाई है और एक अदालत ने इसे अवैध भी कहा है. फिर भी पूरे यूरोप में बुरके को ले कर विवाद छिड़ा है.

बुरका पहनना अगर निजी अधिकार की बात होती तो शायद किसी को आपत्ति नहीं होती. बुरका इसलिए नहीं पहना जा रहा कि औरतों को लगता है कि वे उस में सुंदर लगती हैं या यह फैशन स्टेटमैंट है. बुरका तो इसलिए पहना जाता है, क्योंकि यह धार्मिक कानून है और मुसलिम औरतें आजाद फ्रांस में भी रह कर मुसलिम कानून को वरीयता देती हैं. बुरकिनी बिकिनी का पर्याय हो पर है यह औरतों पर धार्मिक बंदिश ही. इसे किसी भी तरह से औरतों के निजी अधिकारों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. इसे न पहनने पर परिवार और समाज जम कर आपत्ति करता है जैसे भारत में आज भी परदा न करने पर औरतों को बुराभला कहा जाता है. एक युग था जब भारत के अनेक इलाकों में औरतों को जबरन ऊपरी वस्त्र पहनने से मनाही थी.  केरल में इसे ले कर आंदोलन हुए. आज ऊपरी वस्त्र न पहन कर स्तन खुले दिखाने के हक पर पश्चिम में भी लड़ाई लड़ी जाती है.

सवाल यह है कि इस तरह की बंदिशें औरतों पर ही ज्यादा क्यों? आदमियों पर तो बहुत थोड़ी सी रोकें लगती हैं. वे सिर्फ कच्छा पहने बाजार में बैठे रहें और औरतें बुरके में रहें. इस का क्या प्राकृतिक, व्यावहारिक, शारीरिक कारण हो सकता है?

औरतों पर बंदिशें इसलिए होती हैं कि उन्हें रैजिमैंटेशन की लत डाली जा सके. वे वही करें जो दूसरे कहें. फिर चाहे पिता हो, पति हो, बेटा हो, समाज हो, पंडा हो, पादरी हो या शहर का मेयर किसी को हक नहीं कि औरतों को अव्यावहारिक पोशाक पहनने को मजबूर करे. बुरकिनी बैन या बुरका बैन महिलाओं को आजादी दिलाने का एक कदम है. इस में कुछ कानूनी अति भी हो तो भी इस का समर्थन करा जाना चाहिए, क्योंकि यह औरतों की इच्छा नहीं कि वे बुरका पहनें, यह उन के धर्म के कठमुल्ले उन पर लादते हैं जैसे भारत में ससुर के सामने बहू का परदा लादा जाता रहा है.

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फेल होने पर न मानें हार

आप किसी परीक्षा में शामिल हुए और उस का परिणाम आप के पक्ष में नहीं आया अर्थात आप फेल हो गए, तो इस से निराश न हों और न ही आगे पढ़ने का विचार छोड़ें, क्योंकि ऐसा करना बुद्धिमानी नहीं है. फेल होने पर हार नहीं माननी चाहिए. कुछ विद्यार्थी फेल होने का सदमा बरदाश्त नहीं कर पाते और उन के मन में असफलता के कारण बारबार आत्महत्या के विचार आने लगते हैं. कुछ कायर किस्म के परीक्षार्थी इस छोटी सी असफलता की वजह से सुसाइड तक कर लेते हैं, जोकि निंदनीय  है. माना कि अच्छा परीक्षा परिणाम न आने पर आप टूट जाते हैं. ऐसे में आप या तो खुद को कोसते हैं या फिर मूल्यांकनकर्ता को, लेकिन ऐसा करने से कुछ हासिल नहीं होता. परीक्षा में अंक उसी के मिलते हैं जो आप ने कौपी में लिखा है. अत: मूल्यांकनकर्ता को कोसने से कुछ नहीं होगा.

फेल होने पर क्या करें

हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती. दुनिया का सब से छोटा जीव है चींटी. वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति की खातिर दीवार पर बारबार चढ़ती है, गिरती है, फिर चढ़ती है. उस का यह सिलसिला तब तक अनवरत जारी रहता है, जब तक वह अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लेती. जब चींटी जैसा छोटा सा जीव कभी हिम्मत नहीं हारता, तो फिर आप तो इंसान हैं. एकदो बार की असफलता मात्र से हार कैसे मान सकते हैं? ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो विज्ञान विषय ले कर परीक्षा देते हैं लेकिन पास नहीं हो पाते. इस के बाद वे वाणिज्य विषय का विकल्प चुनते हैं, लेकिन उस में भी सफल नहीं हो पाते. फिर कला या सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में कोशिश करते हैं लेकिन यहां भी उन्हें सफलता नहीं मिलती. अंतत: वे हार मान लेते हैं. काश, वे एक ही मैदान में यानी एक विषय से परीक्षा देते और एकदो बार की विफलता से विचलित न होते तो अवश्य सफल हो सकते थे.

असफलता को बनाएं सफलता की सीढ़ी

यदि आप किसी परीक्षा में असफल हुए हैं तो उसी असफलता को अपनी सफलता की सीढ़ी बनाएं. जी हां, सफलता की राह असफलता से ही निकलती है. आवश्यकता केवल अपनी कमजोरी को पहचानने और उस के अनुसार अपनी पढ़ाई में बदलाव लाने की है.  कुछ छात्र फेल हो जाने पर सोचते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता, लेकिन फेल होने से दुनिया खत्म नहीं हो जाती, इसलिए आंखों के सामने अंधियारा न लाएं. हर रात के बाद सुबह होती है, जो आशा की एक नई किरण ले कर आती है. आप सुबह होने का इंतजार कीजिए. प्रयास निरंतर जारी रखिए. आप के प्रयास जरूर एक दिन सफल होंगे. ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जो बच्चे शुरुआत में पढ़ाई में बहुत कमजोर यानी फिसड्डी थे, लेकिन जब उन्होंने मन पढ़ने में लगाया तथा पढ़ाई को गंभीरता से लिया और उस के बाद वे न केवल उत्तीर्ण हुए बल्कि फर्स्ट भी आने लगे, यदि एकदो बार फेल होने से वे अपनी पढ़ाई छोड़ देते तो उन का भविष्य या कैरियर चौपट हो जाता. सफलता के लिए एक बार नहीं, बारबार कोशिश करनी पड़ती है.

कारण व समाधान ढूंढ़ें

क्या आप जानते हैं कि हम फेल क्यों होते हैं? इस का सब से बड़ा कारण विषयों का गलत चयन है. कई बार आप पेरैंट्स या अन्य किसी के दबाव में आ कर या किसी की देखादेखी ऐसे विषयों का चुनाव कर लेते हैं जिन में या तो आप की रुचि नहीं है या फिर वे इतने कठिन हैं कि उन्हें समझ पाना आप के सामर्थ्य के बाहर है. ऐसे में आप का फेल होना तय है. इसलिए समझदारी इसी में है कि विषयों का चयन बिना किसी दबाव के अपनी रुचि और सामर्थ्य के अनुसार करें. अपने मन मुताबिक विषयों को यदि आप चुनते हैं तो आप को सफलता अवश्य मिलेगी और आगे चल कर आप अच्छा कैरियर बना सकते हैं. एकदो बार की विफलता से हताश हो कर अपने उत्साह में कमी नहीं आने देनी चाहिए. यदि आप में आगे बढ़ने का उत्साह बरकरार है, तो आप फेल होने पर भी हार नहीं मानेंगे और पास हो कर ही दम लेंगे.

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भाजपा की मायावती हैं सावित्री बाई फूले

सावित्री बाई फूले भी रूढिवादी सोच से पीड़ित रही हैं. समाज की इन वजहों से ऊब कर उन्होंने सन्यास लिया. सावित्री बाई फूले जो भगवा पहनती हैं, उसे वह धर्म से न जोड कर बौद्व से जोड़ती हैं. सावित्री बाई फूले बसपा प्रमुख मायावती को अपना रोल मौडल मानती हैं.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में नमो बुद्वाय जन सेवा समिति के तत्वाधान में आयोजित ‘भारतीय संविधान और आरक्षण बचाओं महारैली’ में सावित्री बाई फूले शामिल हुईं, तो ऐसा लगा जैसे वह केन्द्र सरकार के खिलाफ कुछ बोलेंगी. सावित्री बाई फूले ने भाजपा या केन्द्र सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला. आरक्षण और दूसरे कई मुद्दों को लेकर भाजपा में एक राय नहीं है.

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को आगे करके पिछड़ा वोट बैंक पर निशाना साधा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अब संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अम्बेडकर को सामने रखा है. भाजपा ने उनके नाम को लेकर उत्तर प्रदेश में राजनीति शुरू कर दी है. 14 अप्रैल को भाजपा ज्यादा भव्य तरीके से डाक्टर अम्बेडकर की जंयती मनाने जा रही है. जिस तरह से उसने कांग्रेस से वल्लभ भाई पटेल को छीन लिया था, उसी तरह से भाजपा अब बसपा को अम्बेडकर से दूर करना चाहती है.

सवित्री बाई फूले भाजपा के साथ रहें या अलग, वह डाक्टर अम्बेडकर के बहाने दलित वर्ग को अपने साथ करने में जितना सफल होंगी, बसपा का नुकसान होगा. भाजपा की पहली रणनीति यही है कि सपा-बसपा के गठबंधन में दलित वोटों को जितना भी तोड़ा जा सके बेहतर होगा. सावित्री बाई फूले दलित हैं, महिला हैं, दलित मुद्दों को लेकर मुखर हैं, उनको जानकारी है, अच्छा भाषण दे लेती हैं. भाजपा के लिये सबसे अहम खासियत यह है कि वह भी गेरूआ वस्त्र पहनती हैं. सावित्री बाई फूले का अपना अलग संगठन है. वह जिला पंचायत सदस्य से लेकर विधायक और सांसद का चुनाव जीत चुकी हैं.

सवित्री बाई फूले मनुवाद पर हमला कर रही हैं पर भाजपा पर चुप हैं. भाजपा के ही टिकट से वह पहले विधायक बाद में सांसद चुनी गईं. 2012 से लेकर अब तक वह विधानसभा और लोकसभा की सदस्य रही हैं. इस दौरान उनकी ओर से मनुवाद की बात सामने नहीं रखी गई. 2019 के लोकसभा चुनाव और सपा-बसपा गठबंधन की आहट के बाद जिस तरह  से सवित्री बाई फूले ने मनुवाद के खिलाफ बोलना शुरू किया, उससे साफ हो गया कि दलित वोट को ध्यान में रखकर कोई योजना पर काम हो रहा है.

सावित्री बाई फूले दलित वोट को भाजपा के पक्ष में भले ही न लायें, पर अगर वह बसपा के वोट काटने में सफल रही तो भाजपा की योजना सफल हो जायेगी. भाजपा सावित्री बाई फूले को लेकर चुप है. इससे साफ है कि भाजपा जल्द कोई बड़ा फैसला लेगी.

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सिर्फ 6 सेकंड और आपका क्रेडिट-डेबिट कार्ड हैक

आज का समय ऑनलाइन बैकिंग का है.  हम कोशिश करते है कि हर पेमेंट  कार्ड से ही हो जाएं.  जब से पीएम मोदी ने 500 और 1000 के पुराने नोट बंद किया है.  तब से कुछ ज्यादा ही हर पेमेंट कार्ड के द्वारा ही कर रहे है.  इस समय बैंक और एटीएम में लंबी कतारे लगी हुई है. जिसके कारण यही एक रास्ता है. लेकिन आपको एक बात नहीं पता होगी कि आपकी एक गलती आपको कंगाल कर सकती है. जी हां! सिर्फ 6 सेंकड में आपका क्रेडिट या डेबिट कार्ट की संख्या, कोड सहित हर चीज हैक हो सकती है.

हैकिंग की कई सारी घटनाएं सामने आने पर कुछ साइंटिस्‍ट ने अपना मत रखा और कहा कि इस प्रक्रिया में हैकर्स को मात्र 6 सेकेंड का समय लगता है जिसमें वह कस्‍टमर के कार्ड की संख्‍या, सीवी संख्‍या और अन्‍य जानकारियों को हासिल कर लेता है.  इतने ही समय में उसे सिक्‍योरिटी कोड का पता भी चल जाता है.

स्वचालित रूप से और प्रणाली के जरिये कार्ड की सुरक्षा से जुड़ी विभिन्न तरह की जानकारी इकटठा करके और विभिन्न वेबसाइटों पर इन जानकारियों को डालकर कुछ सेकेण्ड के भीतर ही हैकर सुरक्षा संबंधी सभी आवश्यक आंकड़े जुटा सकते हैं.

अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि अनुमान लगाकर हमला करने के इस तरीके का उपयोग हाल ही के टेस्को साइबर हमले में किया गया.  न्यूकासल की टीम का मानना है कि अगर आपके पास एक लैपटॉप और इंटरनेट कनेक्शन है तो यह काम बहुत ही आसान है.

न्यूकासल विश्वविद्यालय के पीएचडी के छात्र मोहम्मद अली ने कहा, इस तरह के हमले से दो कमजोरियों का पता लगता है जो अपने आप में बहुत गंभीर नहीं हैं लेकिन दोनों का इस्तेमाल अगर एकसाथ किया जाए तो वे पूरे भुगतान प्रणाली के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं.

अली ने कहा, वर्तमान भुगतान प्रणाली विभिन्न वेबसाइटों के जरिये किये जाने वाले भुगतान के कई अमान्य अनुरोधों का पता नहीं लगा पाती है.

एक अध्ययन के मुताबिक चूंकि वर्तमान ऑनलाइन प्रणाली में विभिन्न वेबसाइटों के जरिये एक ही कार्ड के लिए कई अमान्य भुगतान अनुरोध को समझने की क्षमता नहीं है इसलिए कई वेबसाइटों के जरिये अनगिनत अनुरोध किये जा सकते हैं.  हालांकि दल ने यह पाया कि केवल वीजा नेटवर्क ही संवेदनशील है.

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