क्रिकेट बेशक देश का नंबर एक खेल माना जाता है लेकिन प्रो कबड्डी लीग (पीकेएल) ने मात्र चार वर्षों में इतनी लोकप्रियता हासिल कर ली है कि वह क्रिकेट को ही चुनौती देने के लिये तैयार हो गया है.
वीवो प्रो कबड्डी लीग का पांचवां संस्करण जुलाई में बड़े और भव्य पैमाने पर शुरू होने जा रहा है. इसके आयोजकों ने पांचवें संस्करण की तैयारी के लिये आयोजित एक सम्मेलन में विस्तृत रूप से जानकारी ली. इस दौरान लीग से जुड़े हुये अंशधारक और अनुभवी तथा युवा खिलाड़ी भी मौजूद थें.
लीग कमिश्नर अनुपम गोस्वामी ने बताया कि इस बार टूर्नामेंट जुलाई से अक्टूबर तक 13 सप्ताह चलेगा जिसमें 12 टीमें 130 से ज्यादा मैच खेलेंगी. पिछले चौथे सत्र में आठ टीमें थीं और पांच सप्ताह तक 65 मैच खेले गये थे.
जानें पूरा कार्यक्रम
पीकेएल के पांचवें सीजन के कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई है. कबड्डी लीग सीजन-5 की शुरुआत 28 जुलाई से हैदराबाद में होगी. इस बार कबड्डी लीग में 12 टीमों को दो जोन में विभाजित किया गया है. प्रत्येक जोन में छह टीमों को रखा गया है.
लीग के पिछले सीजन में दूसरे और तीसरे स्थान पर रही टीमों को जोन-ए में शामिल किया गया है, वहीं जोन-बी में विजेता और चौथे स्थान पर रही टीम को जगह मिली है. इसके अलावा, चार नई टीमों गुजरात, हरियाणा, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश को भी दो अलग-अलग जोन में रखा गया है.
सीजन-5 के कार्यक्रम के तहत प्रत्येक जोन की टीमें अपने-अपने जोन की अन्य टीमों के साथ तीन-तीन मैच खेलेंगी. इस तरह प्रत्येक जोन के अंदर हर टीम कुल 15 मैच खेलेगी. इसके अलावा, दोनों जोन की टीमें एक-दूसरे के साथ एक-एक मैच खेलेंगी. इसके अलावा हर टीम को ड्रॉ के तहत एक मैच खेलना होगा. ऐसे में प्रतियोगिता में शामिल हर टीम को कुल 22 मैच खेलने हैं.
ये सभी मैच हैदराबाद, बेंगलुरू, अहमदाबाद, लखनऊ, मुंबई, कोलकाता, हरियाणा, रांची, दिल्ली, चेन्नई, जयपुर और पुणे में खेले जाएंगे. इस बार पटना के स्थान पर रांची को नए आयोजन स्थल के रूप में चुना गया है. इस लीग में प्रत्येक जोन की शीर्ष तीन टीमें नॉकआउट दौर में खेलेंगी.
क्वालीफायर-1 में जोन-ए की दूसरे स्थान पर रहने वाली टीम का सामना जोन-बी की तीसरे स्थान वाली टीम से होगा, वहीं दूसरे क्वालीफायर में जोन-ए में तीसरे स्थान पर रहने वाली टीम जोन-बी की दूसरे स्थान पर काबिज टीम से भिड़ेगी.
लीग का तीसरा क्वालीफायर दोनों जोन की शीर्ष स्थान पर रहने वाली टीमों के बीच खेला जाएगा. इसमें जीतने वाली टीम सीधे पाइनल में प्रवेश करेगी. इसके अलावा, पहले और दूसरे क्वालीफायर में जीतने वाली टीमें इलिमिनेटर-1 में एक-दूसरे के आमने-सामने होंगी. इसमें इलिमिनटेर की विजेता टीम का सामना तीसरे क्वालीफायर में हारने वाली टीम से होगा.
टूर्नामेंट के क्वालीफायर और इलिमिनेटर-1 मैच मुंबई में खेले जाएंगे. इसके अलावा, इलिमिनेटर-2 और फाइनल मैच चेन्नई में खेला जाएगा. 28 अक्टूबर को लीग का खिताबी मुकाबला होगा.
देश में दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल बना कबड्डी
आयोजकों ने सम्मेलन के दौरान कई दिलचस्प आंकड़े दिये जिससे यह साबित होता है कि यह खेल क्रिकेट के बाद देश में टीवी पर देखा जाने वाला दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल बन गया है. यह भी दिलचस्प है कि प्रो कबड्डी लीग के अगले पांच साल का टाइटल प्रायोजक चीनी मोबाइल निर्माता कंपनी वीवो है और इसी वीवो कंपनी ने इंडियन प्रीमियर लीग(आईपीएल) के अगले पांच साल के लिये टाइटल अधिकार खरीदे हैं. क्रिकेट और कबड्डी के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाये तो आईपीएल में आठ टीमें अपने 10 सत्र में लगभग 60 मैच खेले जबकि प्रो कबड्डी के पिछले सत्र में आठ टीमों ने 65 मैच खेले थे.
आईपीएल की बराबरी करती है प्रायोजकों की संख्या
प्रो कबड्डी के पांचवें सत्र में जहां टीमों की संख्या बढ़कर 12 पहुंच गयी है वहां देखना दिलचस्प होगा कि आईपीएल के अगले सत्र में जब चेन्नई, राजस्थान की निलंबित टीमें वापिस लौटेंगीं तो टीमों की संख्या कितनी रखी जाएगी और उनके मैच कितने होंगे. प्रो कबड्डी लीग के आयोजकों ने दर्शक क्षमता और प्रायोजकों को लेकर कुछ आंकड़े भी जारी किये हैं.
टूर्नामेंट के दूसरे सत्र में जहां लीग के पास नौ प्रायोजक थे वहीं पांचवें सत्र में उसके प्रायोजकों की संख्या बढ़कर 24 पहुंच गयी है जो आईपीएल की बराबरी करती है. पिछले साल हुई महिला कबड्डी लीग की टीवी पर दर्शक क्षमता 2016 के यूरो कप फुटबॉल से कहीं अधिक थी. इसके अलावा गत वर्ष अहमदाबाद में हुये कबड्डी विश्वकप को 11 करोड़ 40 लाख लोगों ने टीवी पर देखा था जिससे यह देश का दूसरा सबसे बड़ा खेल बन गया है.
उत्तर प्रदेश में भाजपा मुसलिम नीति को लेकर दोराहे पर है. एक तरफ भाजपा यह साबित करना चाहती है कि तीन तलाक को लेकर मुसलिम समुदाय में उसकी पैठ बढ़ी है, दूसरी तरफ वह यह भी दिखाना चाहती है कि मुसलिम बिरादरी से उसकी दूरी कायम है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ईद के मौके पर मुख्यमंत्री आवास पर ईद से जुड़ा कोई कार्यक्रम नहीं किया. इससे यह संदेश गया कि भाजपा ऐसे आयोजनों के खिलाफ है. दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने राजभवन में ईद से जुड़ा आयोजन किया.
ईद के दिन मुख्यमंत्री लखनऊ की ईदगाह जाकर ईद की शुभकामना देते लोगों से गले मिलते हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ईदगाह भले नहीं गये पर उप मुख्यमंत्री डाक्टर दिनेश शर्मा और राज्यपाल राम नाइक दोनों ही ईदगाह गये लोगों से मिले. मुसलिम नीति को लेकर भाजपा का उहापोह विधानसभा चुनावों के समय से चल रहा है. विधानसभा चुनावों में भाजपा ने एक भी मुसलिम को चुनाव लड़ने का टिकट नहीं दिया. जब सरकार बनाने का नम्बर आया तो भाजपा ने मोहसिन रजा को मंत्री बना दिया.
राजनीति के जानकारों का कहना है कि भाजपा मुसलिम नीति को लेकर दोराहे पर खड़ी है, वह मुसलिम से दूरी बनाकर अपने परंपरागत वोट बैंक हिन्दुओं को खुश रखना चाहती है. दूसरी तरफ समाज को यह संदेश देना चाहती है कि वह सबका साथ सबका विकास की नीति पर चल रही है. ऐसे में एक तरफ योगी आदित्यनाथ के जरीये ईदगाह न जाकर एक संदेश देती है तो दूसरी ओर राज्यपाल राम नाइक और उप मुख्यमंत्री और डाक्टर दिनेश शर्मा ईदगाह जाकर लखनऊ की गंगा जमुनी सभ्यता की बात करते हैं.
भाजपा सीधे तौर पर अपने हिन्दु वोट बैंक और मुसलिम वर्ग के बीच संतुलन साधने का काम कर रही है. ऐसे में वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जरीये हिन्दूवर्ग को खुश करने की कोशिश में है और डाक्टर दिनेश शर्मा के जरीये वह मुसलिम बिरादरी को खुश करना चाहती है. यह बातें धीरे धीरे सबकी समझ में आने लगी हैं. ऐसे में अब भाजपा की दोहरी नीति खुल कर सामने आ रही है. जिसका प्रभाव प्रदेश की विकास और कानून व्यवस्था पर पड़ रहा है.
जिस समय प्रदेश सरकार अपने 100 दिन पूरे होने का जश्न मना रही थी उस समय ही रायबरेली में चुनावी संघर्ष में 5 लोगों को जला कर मार दिया गया. राजधानी लखनऊ में लडकी से सरेराह बलात्कार की कोशिश असफल रहने के बाद उसकी हत्या कर दी गई. छोटी बच्ची के साथ हत्या की घटना ने पूरे प्रदेश को शर्मसार कर दिया. बरेली में हिन्दू युवावहिनी के कार्यकर्ता थाने में घुस कर बवाल करने लगे. पुलिस पर हमला किया. जिस दिन सरकार के 100 दिन पूरे हुये उस दिन की यह घटनाये हैं. प्रदेश में बहुत सारे दावों के बाद भी कानून व्यवस्था के हालात नहीं सुधरे हैं. भाजपा अपना कोई प्रभाव छोड़ नहीं पा रही है. केवल धर्म के नाम पर वोटबैंक के सहारे जीत हासिल करना संभव नहीं है.
महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप का आयोजन इंग्लैंड में किया जा रहा है. महिला वर्ल्ड कप होने के कारण इसे इतनी प्रसिद्धि नहीं मिल पा रही जितनी की पुरुष क्रिकेट टूर्नामेंट को मिलती है. हम यह भी जानते हैं कि क्रिकेट (पुरुष टूर्नामेंट) में जब भी कुछ रोचक होता है तो वह खासा सुर्खियां बटोरता है लेकिन महिला क्रिकेट के साथ ऐसा होना मुश्किल है.
इंग्लैंड में हो रहे विश्व कप में कुछ ऐसा हुआ जिस पर यकीन कर पाना मुश्किल है. यह कुछ ऐसी घटना थी जिसके बारे में जान आप भी हैरान हो जाएंगे. विस्तार से जानें पूरा वाक्या.
ऑस्ट्रेलिया ने महिला विश्व कप-2017 में निकोल बोल्टन (नाबाद 107) और बेथ मूनी (70) की बदौलत महिला क्रिकेट विश्व कप के चौथे मैच में वेस्टइंडीज को आठ विकेट से मात दे दी. मगर इस मैच में एक ऐसा शर्मनाक वाकया हुआ, जिसे शायद क्रिकेट इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकता.
दरअसल हुआ यूं कि इस मैच में मैदानी अंपायर के अलावा कोई भी थर्ड अंपायर नहीं था. जब 14वें ओवर में वेस्टइंडीज की बल्लेबाज चेडिन नेशन ने गेंद को स्केवयर लेग की तरफ मारकर 2 रन लेने की कोशिश की तो उस दौरान फील्डर ने बॉल सीधे विकेटकीपर के दस्तानों में फेंकी और विकेटकीपर ने बिना देरी किए स्टंप्स भी बिखेर दिए.
मगर मैदानी अंपायर कैथी क्रॉस ने बल्लेबाज को नॉट आउट करार दिया. क्योंकि थर्ड अंपायर की गैरमौजूदगी के चलते डिसीजन रैफर नहीं किया जा सकता था, जबकि बल्लेबाज साफ तौर पर आउट था.
बता दें कि पहली पारी खेलने उतरी कैरेबियाई महिला टीम पूरे 50 ओवर नहीं खेल सकी और 47.5 ओवरों में 204 के कुल योग पर पवेलियन लौट गई. वेस्टइंडीज के लिए सलामी बल्लेबाज हेली मैथ्यूज (46), कप्तान टेलर (45), चेडियान नेशन (39) ने उपयोगी पारियां खेलीं.
वेस्टइंडीज की छह बल्लेबाजी दहाई तक भी नहीं पहुंच सकीं. ऑस्ट्रेलिया के लिए एलिस पेरी ने सर्वाधिक तीन विकेट चटकाए, जबकि जेस जोनासेन और क्रिस्टेन बीम्स को दो-दो विकेट मिले. वेस्टइंडीज की दो बल्लेबाज रन आउट हो पवेलियन लौटीं.
इसके जवाब में ऑस्ट्रेलियाई टीम ने 38.1 ओवरों में दो विकेट खोकर 205 रन बनाते हुए आसान जीत हासिल की. ऑस्ट्रेलिया को उसकी सलामी बल्लेबाजों मूनी और बोल्टन ने शानदार शुरुआत दिलाई. दोनों ने 171 रनों की बेहतरीन साझेदारी कर टीम की जीत पक्की कर दी. 85 गेंदों में सात चौके और एक छक्का लगाकर बेहतरीन अंदाज में खेल रहीं मूनी 31वें ओवरी की पहली गेंद पर कैरेबियाई कप्तान टेलर का शिकार हुईं.
जीत हासिल करने से पहले ऑस्ट्रेलियाई टीम ने इसके बाद कप्तान मेग लैनिंग (12) के रूप में एकमात्र विकेट और गंवाया. टेलर ने ही लैनिंग का विकेट भी लिया. अंत तक नाबाद रहते हुए टीम को जीत दिलाने वाली बोल्टन ने अपनी नायाब शतकीय पारी में 116 गेंदों का सामना कर 14 चौके लगाए.
‘मैरी कौम’, ‘एनएच 10’, ‘सरबजीत’, ‘मिर्जा जूलिएट’ जैसी फिल्मों में अलग अलग किरदार निभा चुके दर्शन कुमार की ऐक्टिंग की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान है. उन्होंने तकरीबन 15 सालों तक थिएटर से जुड़े रह कर काफी नाम कमाया है. मजेदार बात यह है कि गैरफिल्मी और गैरकला परिवार से संबंध रखने वाले दर्शन कुमार जब 5वीं क्लास में पढ़ते थे, तब से उन्होंने कविताएं लिखना और अपनी लिखी हुई कविताओं पर नाटक बना कर उन्हें पेश करना शुरू कर दिया था. दर्शन कुमार ने बताया, ‘‘मैं जब 5वीं जमात में पढ़ता था, तब से कविताएं लिखता आ रहा हूं. मैं अपनी लिखी कविताओं को नाटक के तौर पेश किया करता था. इस के लिए मुझे काफी अवार्ड भी मिले. मुझ से कहा गया था कि तुम इसे गंभीरता से लो, तभी तो मैं ने ‘ऐक्ट वन’ ग्रुप जौइन किया था.
‘‘थिएटर का मेरा अनुभव यह है कि मैं ने सब से पहले दिल्ली में एनके शर्मा का ‘ऐक्ट वन’ ग्रुप जौइन किया था, जो बहुत ही कठिन टास्क मास्टर माने जाते हैं. ‘ऐक्ट वन’ का रिकौर्ड है कि एक महीने के अंदर किसी भी कलाकार को लीड किरदार निभाने का मौका नहीं मिला. मगर मुझे एक महीने के अंदर ही नाटक में लीड किरदार निभाने का मौका मिल गया था.
‘‘एनके शर्मा बहुत ही खतरनाक ट्रेनिंग कराते हैं. पूरी तरह से संतुष्ट होने पर ही वे किसी कलाकार को लीड किरदार के लिए चुनते हैं.’’
आप किस तरह से कविताएं लिखते और पेश करते थे इस सवाल के जवाब में दर्शन कुमार ने कहा, ‘‘मैं कविताएं लिखता था, फिर उन्हें नाटक के रूप में पेश करता था. मैं कभी पंछी तो कभी किताब बनता था. यह मेरे लिए एक अनूठी कोशिश थी.
‘‘12वीं क्लास तक मैं इस तरह से करता रहा और कालेज पहुंचने के बाद मैं थिएटर से जुड़ गया.’’
कालेज पहुंचने के बाद से दर्शन कुमार थिएटर में मसरूफ हो गए. अब वे कविताएं भले ही न लिख रहे हों, पर उन्होंने लिखना बंद नहीं किया है. दर्शन कुमार कहते हैं, ‘‘देखिए, कविताएं लिखने का मतलब यह था कि मैं अपने मन के भावों को शब्दों में कैद कर दूं. उस वक्त मैं बच्चा था, तो कहानी वगैरह कुछ बड़ा लिख नहीं पाता था, पर अब मेरे मन में जो विचार, जो कहानी आती है, उसे मैं जरूर लिखता रहता हूं.
‘‘मैं ने एक फिल्म की पटकथा भी लिख डाली है और इन दिनों मैं एक दूसरी फिल्म की पटकथा भी लिख रहा हूं. अब मेरी कविताओं के बजाय फिल्म पटकथा लेखन में दिलचस्पी हो गई है.’’
लेखन करने वाले लोगों में पढ़ने की भी दिलचस्पी होती है. आप क्या पढ़ना पसंद करते हैं इस पर दर्शन कुमार ने कहा, ‘‘मैं कहानियां बहुत पढ़ता हूं. मुझे ‘इस्मिता चुगताई’ की कहानियां पढ़ना बहुत पसंद है. मंटो की कहानियां भी बहुत पसंद हैं. इस के अलावा मैं कई नए लेखकों की कहानियां भी पढ़ता रहता हूं.’’
बिग बॉस-10 की सबसे चर्चित कंटेस्टेंट रहीं मोनालिसा एक भोजपुरी एक्ट्रेस हैं. जब से मोना ने बिग बॉस में एंट्री की थी तब से उनके नए-नए वीडियो सामने आते रहते हैं. इस बार भी उनका एक वीडियो सामने आया है जिसमे वह कपड़े उतारती नजर आ रही हैं. यह वीडियो इन दिनों चर्चा का विषय बन गया है.
इस वीडियो को इंटरनेट पर बहुत बार देखा जा चुका है. बताया जा रहा है यह सीन मोनालिसा की किसी फिल्म में फिल्माया गया है. इस बार वह इस वीडियो की वजह से सोशल मीडिया पर छा रही हैं. इस वीडियो में मोनालिसा कपड़े उतार कर आईने में देख रही हैं. वीडियो को अब तक 34 लाख लोग देख चुके हैं.
आप भी देखिए ये वीडियो…
सरकार चिकित्सा को सुलभ व सस्ता करने के लिए कानून बनाने जा रही है कि डाक्टर मरीजों को नुसखा या प्रिस्क्रिप्शन देते समय दवाओं के ब्रैंड नाम न लिख कर कैमिकल नाम लिखें ताकि मरीज वे दवाएं किसी भी कंपनी की खरीद सकें. ब्रैंडेड दवाइयां देने के चलन के कारण मैडिकल उद्योग में बहुत बेईमानी फैली हुई है और सरकार की सोच है कि इस से यह रुकेगी और इलाज सस्ता हो जाएगा. आरोप है कि ब्रैंडेड दवाइयां बहुत महंगी होती हैं, क्योंकि दवा कंपनियां डाक्टरों को घूस दे कर उन्हें महंगी ब्रैंडेड दवाइयां लिखने को प्रेरित करती हैं. इस के लिए डाक्टरों को महंगे उपहार भी दिए जाते हैं, नकद कमीशन भी दिया जाता है और निशुल्क विदेश यात्राएं भी कराई जाती हैं.
इंडियन जर्नल औफ फार्माकोलौजी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐंटी ऐलर्जी की दवा एलेरिड टैबलेट की 10 गोलियों का पत्ता 35 में बिकता है, तो अच्छी कंपनी के जैनेरिक नाम से यह 2.50 में थोक बाजार में मिल सकता है. महंगी दवाओं में यह अंतर और ज्यादा है और चाहे नए उपचार आ गए हों, देश की गरीब जनता को अभी भी बेइलाज मरना पड़ता है. पर इस का हल फार्मा कंपनियों को निचोड़ना नहीं है. फार्मा कंपनियां बहुत ही प्रतियोगी वातावरण में काम करती हैं और एक ब्रैंडेड दवा के कई पर्याय मिलते हैं. कई बार कई कंपनियां मिल कर कार्टेल बना लेती हैं पर इस के बावजूद जमीनी हकीकत में उन्हें डिस्काउंट, उधारी, उपहारों पर निर्भर रहना ही पड़ता है. मोटा मुनाफा वे जरूर कमा रही हैं पर उस के पीछे दवा उद्योग का चरित्र है, लालच ही नहीं.
दवाओं को विकसित करने व उन्हें बीमारियों से बचाने योग्य बनाने में लाखों नहीं, अरबों रुपए खर्च करने पड़ते हैं. अगर संतोषजनक दवा बन भी जाए तो हर मरीज के लायक है या नहीं, यह पक्का नहीं होता. डाक्टरों को टे्रनिंग देने का भी काम मुश्किल होता है, क्योंकि डाक्टर तो सारे देश में फैले हैं. एक अच्छीभली दवा कब बेकार हो जाए या प्रतियोगी की बेहतर दवा आ जाए, इस का भरोसा नहीं होता. यह जोखिम अंतत: तो मरीज को ही झेलना पड़ेगा. दवाओं को सस्ती करने के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि दवा उद्योग उत्साह ही खो बैठे और दवाएं मिलना ही दूभर हो जाए और तब लोगों को मंदिरों, मसजिदों में दुआओं के सहारे इलाज खोजना पड़े
सरकार का छिपा उद्देश्य कहीं यही तो नहीं कि जिस मंदिर के नाम पर वह सत्ता में आई, वे फलतेफूलते रहें.
‘‘मिल गया. 15 रुपए की एक बता रहा था. 20 रुपए में 2 दे दी. यानी 10 रुपए की एक फूलगोभी,’’ कहते हुए बेनी बाबू जंग जीतने वाले सेनापति के अंदाज में खुश हो गए.
आलू, बैगन, अदरक, बंदगोभी वगैरह सब्जियों से भरे झोले को संभालते हुए वे जल्दीजल्दी घर लौट रहे थे.
सड़क पर दोनों तरफ सब्जी वाले बैठे थे. कोई हांक लगा रहा था, ‘‘20 में डेढ़, टमाटर ढेर.’’ फल वाला नारा बुलंद कर रहा था, ‘‘बहुत हो गया सस्ता, अमरूद ले भर बस्ता.’’
बिजली के तार पर बैठे बंदर सोच रहे थे, ‘मौका मिले, तो झपट कर अमरूद उठा लें. सौ फीसदी मुफ्त में.’ वैसे, भाषा विज्ञान का एक सवाल है कि पेड़ की शाखा पर चलने के कारण अगर बंदरों का नाम ‘शाखामृग’ पड़ा, तो आजकल के टैलीफोन और बिजली के तारों पर चलने के कारण उन का नाम ‘तारमृग’ भी क्यों न हो
उधर बेनी बाबू ने यह खयाल नहीं किया था कि भीड़ में कोई उन के पीछेपीछे चल रहा है. वह था एक भारीभरकम काला सांड़, जो शायद सोच रहा था, ‘बच्चू, तू अकेलेअकेले सब खाएगा हजम नहीं होगा बे. एक फूलगोभी तो मुझे देता जा.’ पीछे से आती आवाज से चौंक कर बेनी बाबू ने पीछे मुड़ कर देखा और उन के मुंह से निकला, ‘‘अरे, सत्यानाश हो.’’
वे सिर पर पैर रख कर भागे. कुछकुछ उड़ते हुए. ‘अबे भाग कहां रहा है सरकार का टैक्स है. पुलिसगुंडे सब का टैक्स है. हमारा टैक्स नहीं देगा क्या चल, फूलगोभी निकाल,’ मानो सांड़ यह सोच कर उन के पीछे दौड़ने लगा. बेनी बाबू मानो यह सोचते हुए आगे भागे, ‘न मानूं, न मानूं, न मानूं रे. दगाबाज, तेरी बतिया न मानूं रे.’
‘अबे तुझे हजम नहीं होगा. तेरे पेट से निकलेगी गंगा. तेरा खानदान न रहेगा चंगा,’ सांड़ को जैसे गुस्सा आ गया.
एक राही ने जोरदार आवाज में कहा, ‘‘भाई साहब, जल्दीजल्दी भागिए.’’ दूसरे आदमी ने यूएनओ स्टाइल में समझौता कराना चाहा, ‘‘एक फूलगोभी उस के आगे फेंक कर घर जाइए.’’ ‘जाऊं तो जाऊं कहां ऐ दिल, कहां है तेरी मंजिल ’ यह सोचते हुए तड़पने लगे बेनी बाबू. तभी ध्यान आया कि दाहिने हाथ की गली के ठीक सामने पुलिस चौकी है. और कोई न बचाए, खाकी, अपनी रख लो लाज. बचा लो मुसीबत से आज.
दौड़तेहांफते हुए हाथ में थैला लटकाए बेनी बाबू थाने में दाखिल हुए. बेनी बाबू को भीतर आता देख दारोगा बलीराम चिल्लाए, ‘‘अरे, यह क्या हो रहा है तुम… आप कौन हैं ऐ गिरधारी, यह कौन अंदर दाखिल हो गया देख तो…’’
‘‘एक सांड़ मेरे पीछे पड़ा है,’’ बेनी बाबू ने अपनी समस्या बताई.
‘‘सांड़ पीछा कर रहा है कोई गुंडाबदमाश होता तो कोई बात होती,’’ दारोगा बलीराम ने कहा.
‘‘अरे साहब, यह सांड़ तो गुंडेबदमाश से भी दो कदम आगे है.’’
बाहर से गिरधारी ने मुनादी कर दी, ‘‘लीजिए, वे भी पधार चुके हैं.’’ इसी बीच थाने के अंदर काले पहाड़ जैसे सांड़ की ऐंट्री. दारोगा बलीराम चौंक गए और बोले, ‘‘सुबहसुबह यह क्या बला आ गई ’’ इतने में सांड़ झपटा बेनी बाबू की ओर. वे छिप गए दारोगा बलीराम के पीछे. शुरू हो गई म्यूजिकल चेयर रेस. टेबिल के चारों ओर चक्कर लगा रहे थे तीनों. सब से पहले बेनी, उन के पीछे दारोगा बलीराम और उन दोनों को खदेड़ता हुआ काला पहाड़ जैसा वह सांड़…
‘‘अरे गिरधारी, इस को भगाओ, नहीं तो तुम सब को लाइन हाजिर कराऊंगा,’’ फौजी स्टाइल में दारोगा बलीराम चिल्लाए.
‘‘साहब, हम क्या करें मामूली चोरउचक्के तो हाथ से छूट जाते हैं, ये तो बौखलाए सांड़ हैं. कैसे संभालें ’’ गिरधारी ने सच कहा.
उधर झूमझूम कर, घूमघूम कर चल रहा था तीनों का चक्कर. बीच में टेबिल को घेर कर.
दारोगा बलीराम ने आदेश दिया, ‘‘हवालात का दरवाजा खोल कर इसे अंदर करो.’’
‘‘हम लोग दरवाजा खोल रहे हैं हुजूर. आप अंदर से उसे बाहर हांकिए,’’ गिरधारी ने जोरदार आवाज में कहा.
‘‘यह तो मुझे दौड़ा रहा है. मैं कैसे हांकूंगा इस आदमी को यहां से निकाल बाहर करो.’’
‘‘आप ही लोग जनता की हिफाजत नहीं करेंगे, तो कौन हमें बचाएगा ’’ बेनी बाबू बोले.
‘‘निकलते हो कि नहीं…’’
दारोगा बलीराम बेनी बाबू पर यों झपटे कि झोला समेत उसे निकाल बाहर करें. सांड़ उन पर लपका. बेनी बाबू ने तुरंत टेबिल के नीचे हाथ में झोला संभालते हुए आसन जमा लिया.
सांड़ हैरान रह गया. गोभी वाला बाबू गया कहां उसे दारोगा पर गुस्सा आ गया कि कहीं इसी ने तो गोभी नहीं खा ली वह सांड़ दारोगा बलीराम के पीछे दौड़ता हुआ मानो बोला, ‘छुप गए तारे नजारे सारे, ओए क्या बात हो गई. तू ने गोभी चुराई तो दिन में रात हो गई.’ हवालात का दरवाजा खुला था. बलीराम पहुंचे अंदर और चिल्लाए, ‘‘अरे गिरधारी, हवालात का दरवाजा बंद कर… जल्दी से.’’ गिरधारी ने तभी आदेश का पालन किया.
सांड़ बंद हवालात के सामने फुफकारने लगा और मानो बोला, ‘हुजूर, अब खोलो दरवाजा. मैं प्रजा हूं, तुम हो राजा. भूखे की गोभी मत छीनो. सुना नहीं क्या अरे कमीनो ’ इस के बाद क्या हुआ, मत पूछिए. दूसरे दिन अखबार में इस सीन की फोटो समेत खबर छपी थी.
हां, इतना बता सकता हूं कि मिसेज बेनी को दोनों फूलगोभी मिल गई थीं. सहीसलामत.
आज हम आधुनिक तकनीक के युग में हैं. जहां एक बटन दबाते ही हम अपने सारे कार्य पूरे कर लेते हैं. आज हम घर बैठे-बैठे शॉपिंग कर लेते हैं और हमारा मार्किट में व्यर्थ जाने वाला समय बच जाता है. जहां सुविधाएं बढ़ी हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाओं के साथ अपराध भी बढ़ें हैं. कई बार किया गया मजाक खुद पर ही भारी पड़ जाता है, खासतौर से अंजान व्यक्ति से किया गया मजाक. आइये देखें पूरी घटना. ऐसा ही एक वीडियो बड़ी ही तेजी से वायरल हो रहा है.
कई बार देखा गया है कि डिलीवरी बॉय लड़की को अकेला पाकर ऐसा कुछ करने लगते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए. एक डिलीवरी बॉय पिज्जा डिलीवरी के लिए लड़की के घर आता है. पिज्जा बॉय को देखकर जाने लड़की को न जानें क्या सूझता है और वह उससे छेड़खानी करने लगती है और उसे खेल का नाम देती है.
लड़की उसे खेल में छेड़ती है, फिर लड़की पैसे लेने के लिए अन्दर जाती है तभी अचानक लड़के का न जाने ऐसा क्या सूझता हैं कि वह लड़की के पीछे सीधे उसके कमरे मे चला जाता है और वह कुछ ऐसा कर देता है जो उसे नही करना चाहिए या कहें तो जो सरासर गलत हैं.
आइये देखें क्या है इस वीडियो में…
पाकिस्तान के सलामी बल्लेबाज फखर जमान ने चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में जबरदस्त शतक लगाकर टीम की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने 114 रनों की पारी खेलकर गत विजेता भारत का लगातार दूसरी बार खिताब पर कब्जा करने का सपना तोड़ दिया.
इस पारी की सराहना पूरे विश्व के क्रिकेट प्रशंसकों ने की लेकिन फखर इस बात से काफी निराश हैं कि धोनी ने शतक बनाने के बाद उनकी सराहना नहीं की.
पाकिस्तानी मीडिया को फखर ने बताया, "मैं इस बात से थोड़ा निराश हुआ कि मेरा शतक पूरा होने पर धोनी ने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी".
भारतीय कप्तान विराट कोहली द्वारा उनकी पारी को सराहे जाने पर फखर को आश्चर्य हुआ. इस बारे में फखर ने कहा कि जब मैं शुरुआत में बल्लेबाजी कर रहा था तब कोहली और अन्य खिलाड़ी मुझे कुछ-कुछ बोल रहे थें. उसके बाद जब मैंने अपना शतक पूरा किया तो मुझे लगा कि कोई प्रतिक्रिया नहीं देगा लेकिन जब मैंने कोहली की तरफ देखा तो उनका सिर नीचे की तरफ था पर वो ताली बजा रहे थें.
फाइनल मैच ने जब फखर 3 रन के निजी स्कोर पर थे तभी जसप्रीत बुमराह का शिकार हो गये थे लेकिन किस्मत ने फखर का साथ दिया और अंपायर ने उस गेंद को नो-बॉल करार दे दिया. फखर ने कहा, "जब मैं आउट हो गया, तो मेरा दिल टूट गया. मैं धीरे-धीरे पवेलियन की तरफ वापस लौटने लगा. मैं बस यही सोच रहा था कि मैंने कैसे अपना विकेट फेंक दिया लेकिन जब अंपायर ने मुझे रुकने को कहा तो मेरे जान में जान आ गयी और मैंने सोचा अगर यह नो-बॉल निकला तो आज मेरा दिन होगा".
फखर ने यह भी बताया इंग्लैंड और भारत के खिलाड़ियों ने उनके साथ स्लेजिंग करने की कोशिश की लेकिन भाषा ना समझने की वजह से उनको कोई फर्क नहीं पड़ा. इंग्लैंड के खिलाफ हुए सेमीफाइनल मैच में भी फखर ने 57 रनों की पारी खेली थी और अजहर अली के साथ पहले विकेट के लिए शतकीय साझेदारी निभाई थी.
आपको बता दें कि फखर जमान की 114 रनों की पारी ही भारत-पाकिस्तान के इस मैच में निर्णायक साबित हुई और टीम इंडिया ये मैच 180 रनों से हार गई.