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मीडिया पर भारी मोदी के अंदाज

देश कहने को ही कृषि प्रधान रह गया है, नहीं तो है यह दरअसल में चुनाव प्रधान जिसमें आए दिन सरपंची से लेकर राष्ट्रपति पद तक के चुनाव होते रहते हैं. चुनाव कोई भी हो बड़ा दिलचस्प होता है इसका रोमांच सट्टे के नंबरों और घुड़दौड़ सरीखा होता है. अंदाजा सही निकला तो चेहरे पे यह गुरूर कि देखा हमने तो पहले ही कह दिया था कि फलां ही जीतेगा, फिर ढिकाना चाहे कितना ही ज़ोर लगा ले, अंदाजा गलत निकले तो भी रेडीमेड खीझ मिटाऊ वक्तव्य पान की पीक की तरह रिसते रहते हैं, मसलन अरे वो तो बाल बाल चूक गए, राजनीति हो गई, नहीं तो जीतता तो फलाना ही.

चुनावी अंदाजों का अपना अलग महत्व है जिसमे बुद्धिमान वही माना जाता है जिसका अंदाजा सटीक या फिर नतीजे के सबसे नजदीक होता है. चुनाव पूर्व सर्वे जो अक्सर गलत निकलने लगे हैं एक तरह से अंदाजा ही होते हैं, बिलकुल तीर और तुक्के की तरह. कुछ चुनावों मे सर्वे या अंदाजों की कोई अहमियत नहीं होती, इसलिए वहां बुद्धि का दांव उम्मीदवारों पर लगाया जाता है. राष्ट्रपति पद के चुनाव में यही हुआ था किसी को खासतौर से अंदाजों को सुर्खियां बनाकर पेश करने बाले मीडिया और उसमें भी न्यूज़ चेनल्स को इल्म तक नहीं था कि रामनाथ कोविंद को भी एनडीए उम्मीदवार बना सकती है, इसलिए उसने सुषमा स्वराज या सुमित्रा महाजन को अगली महामहिम मानते उनकी जीवनियां तक दिखानी शुरू कर दी थीं.

जाहिर है नरेंद्र मोदी ने अंदाजवीरों से यह कहने का मौका छीन लिया कि देखा…. . अब इस बात पर खेद व्यक्त करने की हिम्मत तो कोई करता नहीं कि हमारा यह या वह अनुमान गलत निकला, आगे से हम और ज्यादा अनुमान विशेषज्ञों की सेवाएं लेकर ही आपको अंदाजे परोसेंगे, तब तक आप हमारे साथ बने रहिए. अपनी खिसियाहट को खूबसूरत मोड देते मीडिया आदतन विश्लेषण करने पर उतारू हो गया कि इन इन और उन उन वजहों के चलते कोविन्द को उम्मीदवार बनाया गया. इधर वोटों के हिसाब किताब से साफ हो गया कि कोई बड़ी अनहोनी भी यूपीए की मीरा कुमार को नहीं जिता सकती तो कैमरे और कलमें बिहार की संभावित टूट फूट और गुजरात का रुख करने लगीं कि वहां किसकी क्या हैसियत है.

अंदाजों के कारोबार पर अल्प विराम लगा ही था कि चुनाव आयोग ने उप राष्ट्रपति पद के चुनाव का एलान कर दिया. एलान के महज दो घंटे बाद ही दो संभावित उप राष्ट्रपति भी मार्केट में आ गए, पहली थीं नज़मा हेपतुल्ला और दूसरे हैं वेंकैया नायडू. ये लोग क्यों और किस कोटे से जाति, क्षेत्र आदि के लिहाज से उप राष्ट्रपति हो सकते हैं ये दलीलें मीडिया को अंदाजे के अखाड़े में पटखनी देने वाले नरेंद्र मोदी अगर एक बार गौर से पढ़ लें तो सब कुछ भूल भाल कर इन्हीं में से किसी को उप महामहिम बनाने मजबूर हो जाएंगे. यह वही मीडिया है जो उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ को बनाए जाने की बात आखिरी विकल्प के रूप में भी नहीं कर रहा था.

अंदाजा मारने की लागी या लत अभी भी नहीं छूट रही है, हफ्ते भर में सात आठ नाम और उपराष्ट्रपति पद के आना तय हैं.  चूंकि वोटों के हिसाब से स्पष्ट है कि वह जो भी हो एनडीए या भाजपा का ही होगा, इसलिए कांग्रेसी या विपक्षी खेमे के नाम नहीं गिनाए जा रहे हैं. मौजूदा 785 सांसदों में से एनडीए के 444 हैं, इसलिए उपराष्ट्रपति भी उसी का होगा पर वह कौन होगा यह खुद की तरफ से वक्त यानि घोषणा से पहले बताने की बैचेनी शबाब पर है.

लगता ऐसा है कि मीडिया और मोदी के बीच एक अघोषित युद्ध सा चल रहा है, जिसमें मीडिया इस जिद पर अड़ा है कि हम जितने नाम गिनाएंगे, उप राष्ट्रपति उन्हीं में से बनाना पड़ेगा, उधर अधरों पर रहस्यमय मुस्कुराहट लिए मोदी कह रहे हैं, खूब गिनाओ लेकिन यह नाम भी ऐसा लाऊंगा कि फिर चौंक पड़ोगे. इस गासिप से परे यह कोई नहीं कह या पूछ पा रहा कि आखिर उप राष्ट्रपति की जरूरत या उपयोगिता क्या है,  मोहम्मद हामिद अंसारी ने दस साल में ऐसा क्या किया जिसके लिए उन्हें याद किया जाए.

लड़की की इज्जत लुटने का वीडियो बनाकर डाल दिया इंटरनेट पर

कहते हैं आबरू किसी नारी का अ​स्तित्व होता है. लेकिन आज का समाज ऐसा हो गया है जहां सबसे ज्यादा इज्जत म​हिलाओं की ही लूटी जा रही है. आज महिलाएं हर रोज, हर पल रेप का शिकार हो रही हैं. हम आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं जिसमें इस महिला ने अपने रेप का वीडियो खुद ही बना डाला. जाहिर सी बात है इस खबर को सुनकर आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन इसमें सच्चाई है.

आप को जानकारी के लिए बता दें कि ऑस्ट्रेलिया की एक 31 साल की वीडियो आर्टिस्ट सोफिया इन दिनों एक नए प्रोजक्ट डिसमेंटल मेल पावर पर काम कर रही हैं. इस महिला को काम करने का इतना जुनूनू सवार हुआ ​कि उसने अपने ही रेप का वीडियो बना दिया.

इस वीडियो में आप सोफिया को साफ देख सकते हैं, क्योंकि इस महिला अपना चेहरा सामने की ओर करके रखा लेकिन रेपिस्ट का चेहरा नहीं दिखाई दे रहा है. इस वीडियो में रेप करने वाले शख्स का केवल हाथ ही दिखाई दे रहा है. ये वीडियो कुल तीन मिनट का है.

रेप का ये वीडियो सोफिया ने अपने न्यूर्याक स्थित फ्लैट पर बनाया है. हालांकि रेप करने वाला सख्श सोफिया से बिल्कुल ही अनजान है. इस तीन मिनट के वीडियो में रेप की जो घटना दिखाई गई वो पूर्णतया सच्ची है. इस रेप वीडियो के बारे में सोफिया का कहना है कि ये मेरे प्रोजेक्ट का ही एक हिस्सा है. इस वीडियो को अगले सप्ताह मेलबोर्न गैलरी में प्रदर्शित किया जाएगा.

आपको बतादें कि सोफिया महिला प्रधान मुद्दों कई काम कर चुकी है. और इन्होंने अब तक जो भी वीडियो बनाएं वो इसी विषय पर आधारित होते हैं. सोफिया ने अपने वीडियो के बारे में बताते हुए कहा इस वीडियो से गंदी मानसिकता वाले लोगों को सबक मिलेगा.

समसामयिक फिल्म है मौम : श्रीदेवी

बौलीवुड में अभिनेत्री के तौर पर जो मुकाम, जो सुपर स्टारडम श्रीदेवी को मिला है वह किसी अन्य अभिनेत्री को नहीं मिल पाया. सर्वाधिक अवार्ड भी उन्हीं की झोली में गए. अभिनय करते हुए उन्होंने 50 वर्ष पूरे कर लिए हैं. उन के कैरियर की 300वीं फिल्म ‘मौम’ 7 जुलाई को रिलीज होगी. श्रीदेवी ने इस मिथ को भी तोड़ा है कि शादी के बाद हीरोइन का कैरियर खत्म हो जाता है. 2 बेटियों की मां बनने के कारण पूरे 15 वर्ष तक अभिनय से दूर रहने के बाद जब गौरी शिंदे के निर्देशन में बनी फिल्म ‘इंग्लिशविंग्लिश’ से उन्होंने अभिनय में वापसी की, तो उम्मीद से कहीं अधिक उन्हें और उन की इस फिल्म को पसंद किया गया. फिर उन्होंने तमिल फिल्म ‘पुली’ की और फिर हिंदी फिल्म ‘मौम’ जिसे तमिल, मलयालम व तेलुगू में डब किया गया है.

हाल ही में श्रीदेवी से हुई बातचीत के कुछ खास अंश:

पिछली फिल्म ‘इंग्लिशविंग्लिश’ को जबरदस्त सफलता मिली. उस के 4 वर्ष बाद ‘मौम’ आ रही है?

शादी और बच्चों के होने के बाद ‘इंग्लिशविंग्लिश’ करने में मुझे 15 साल का वक्त लगा. पर इस के बाद ‘मौम’ करने में 4 वर्ष लगे. एक तरह से यह इंप्रूवमैंट है. वैसे मैं ने ‘इंग्लिशविंग्लिश’ और ‘मौम’ के बीच एक तमिल फिल्म ‘पुली’ भी की थी. ऐसा नहीं है कि मेरे पास फिल्मों के औफर नहीं आए हैं. ‘इंग्लिशविंग्लिश’ से पहले भी मेरे पास फिल्मों के औफर आ रहे थे. ‘इंग्लिशविंग्लिश’ और ‘मौम’ के बीच भी कई दूसरी फिल्मों के औफर आए. लेकिन मैं फिल्में सिर्फ संख्या बढ़ाने के लिए नहीं करना चाहती. मैं ने हमेशा उन फिल्मों का हिस्सा बनना पसंद किया, जो मुझे पसंद आईं. यदि घरपरिवार को छोड़ कर स्टूडियों में जा कर काम करना है, तो कुछ तो अर्थपूर्ण काम होना चाहिए. फिल्म में ऐसी कोई बात जरूर होनी चाहिए, जो मुझे इतना प्रेरित करें कि मैं घरपरिवार से कुछ समय के लिए निकल कर स्टूडियो में जा कर काम करूं.

300वीं फिल्म के रूप में ‘मौम’ को चुनने की खास वजह?

मैं ने यह फिल्म किसी योजना के तहत नहीं की. अब तक मेरी जिंदगी या कैरियर में जो कुछ होता रहा है वह किसी योजना के तहत नहीं, बल्कि डैस्टिनी के चलते होता आ रहा है. मैं ने कभी योजना नहीं बनाई कि कब कौन सी फिल्म करूंगी. मैं ने तो यह भी नहीं सोचा कि मैं 300 फिल्मों में अभिनय कर लूंगी और 300वीं फिल्म के रूप में मैं ‘मौम’ करूंगी. यह महज इत्तफाक है कि 300वीं फिल्म के रूप में मैं ने ‘मौम’ में अभिनय किया है, जो बहुत ही बेहतरीन और समसामयिक फिल्म है. इस फिल्म को ले कर मैं बहुत खुश हूं. यह हमारे होम प्रोडक्शन की फिल्म है.

फिल्म ‘मौम’ में आप का किरदार क्या है?

यह एक पारिवारिक इमोशनल फिल्म है. इस में पिता व बेटी का रिश्ता है. मां और बेटी की रिलेशनशिप है. पति और पत्नी का भी इमोशनल रिलेशन है. इन तीनों रिलेशन के इर्दगिर्द यह एक इमोशनल कहानी है. आज की तारीख में मौडर्न परिवारों के अंदर जो समस्याएं चल रही हैं, वही हमारी फिल्म का हिस्सा हैं यानी आज के संदर्भ में हमारी फिल्म प्रासंगिक फिल्म है. एक परिवार के अंदर रिश्तों को ले कर क्या होता है, यह सब आप को इस में नजर आएगा.

आप की पिछली फिल्म ‘इंग्लिशविंग्लिश’ में भी आप का मां का किरदार था. अब फिल्म ‘मौम’ में भी आप का किरदार एक मां का है. इन दोनों किरदारों में क्या अंतर है?

दोनों किरदार बहुत अलग हैं. ‘इंग्लिशविंग्लिश’ की मां बहुत इमोशनल है. पढ़ीलिखी नहीं है. उसे अंगरेजी बोलना नहीं आता. उस के बच्चे और पति हमेशा उस का मजाक उड़ाते हैं. वह बाहर कभी खुल कर बात नहीं कर पाती. हमेशा दबीसहमी सी रहती है यानी कि एक अलग तरह का किरदार है. जबकि फिल्म ‘मौम’ में जो मां है, वह अंदर से सशक्त और गहराई वाली नारी है. बच्चों से बहुत प्यार करती है. लेकिन मां होते हुए भी उसे बदले में उतना प्यार नहीं मिलता. उसे उस प्यार की तलाश रहती है.

फिल्म ‘मौम’ का जो परिवार है, वह मौडर्न है या दकियानूसी?

यह फिल्म अति समसामयिक है यानी फिल्म का परिवार मौडर्न है. बच्चे भी मौडर्न हैं. जिस तरह से बड़े शहरों के आज के बच्चे होते हैं, उसी तरह के बच्चे इस फिल्म में हैं. जिस तरह से मौडर्न परिवारों में डाइनिंगटेबल पर बैठ कर मातापिता और बच्चे बातें करते हैं वे सब इस फिल्म का हिस्सा हैं. इस फिल्म में इमोशन के साथसाथ ड्रामा और रोमांच भी है. फिल्म का विषय ऐसा है, जिस की चर्चा हर दर्शक करना चाहेगा.

जब आप ने अभिनय कैरियर की शुरुआत की थी, उन दिनों हीरोइन बनना आसान था या आज के माहौल में?

हीरोइन बनना आसान उस वक्त भी नहीं था और आज भी नहीं है. बिना परिश्रम के कभी कुछ नहीं मिलता. आज की हीरोइन भी बहुत मेहनत करती है. वर्तमान समय के कलाकार तो कमाल की मेहनत करते हैं. वे डांस, ऐक्टिंग, फाइटिंग, मार्शल आर्ट सहित बहुत कुछ सीखते हैं.

जब आप सुपरस्टारडम पर सवार थीं, तब आप सभी कलाकार 2-3 शिफ्टों में काम करते थे, पर आज का कलाकार तो एक समय में एक ही फिल्म करता है?

यह भी सच है. आज जिस ढंग से काम होता है, उस तरह का काम करने में ऐंजौयमैंट ज्यादा है. अब परफैक्शन पर जोर दिया जाता है. परफैक्शन की जो भूख है, उस से कलाकार को भी काम करने में मजा आता है. जब मैं फिल्म ‘नगीना’ कर रही थी, उस वक्त मैं ने एकसाथ 3 नहीं बल्कि 4 शिफ्टों में काम किया था. आज कोई कलाकार ऐसा काम नहीं कर सकता. यह अच्छी बात है. मैं ने ‘नगीना’ के साथसाथ ‘मिस्टर इंडिया’ के अलावा 2 और फिल्में भी की थीं. सभी सुपरहिट रही थीं.

आप ऐसी भारतीय अदाकारा हैं, जिन्हें सुपरस्टार का दर्जा मिला. दूसरों के साथ ऐसा अब तक नहीं हुआ है?

मुझे ये सब नहीं पता, पर आप जो कुछ कह रहे हैं, उस के लिए मैं आप की शुक्रगुजार हूं. मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि हर इनसान मेहनत कर रहा है. सब को शोहरत मिल रही है. हर कलाकार या फिल्मकार अपनी डैस्टिनी के अनुसार आगे बढ़ रहा है. फिल्म इंडस्ट्री में एक अभिनेत्री के तौर पर मुझे जो शोहरत मिली, जो मुकाम मिला, उस में सिर्फ मेरा ही योगदान नहीं है, बल्कि मेरे निर्देशकों का भी रहा है. मैं इन सब की शुक्रगुजार हूं. आज जो मैं आप के सामने बैठ कर आप से बातें कर रही हूं, ये सब उन निर्देशकों की वजह से ही संभव हो पाया है, जिन्होंने मेरी प्रतिभा पर यकीन कर अब तक मुझे फिल्मों में  अभिनय करने का अवसर प्रदान किया.

अब तक मिथ रहा है कि शादी के बाद हीरोइन का कैरियर खत्म हो जाता है. इस मिथ को तोड़ने में आप की मदद किस ने की?

इस मिथ को तोड़ने में मेरा अपना कोई योगदान नहीं है. यह कंट्रीब्यूशन उन निर्देशकों का है, जिन्होंने शादी के बाद भी मेरी प्रतिभा पर यकीन किया. उन्हें मुझ पर और मेरी प्रतिभा पर यकीन है. इसीलिए वे आज भी मुझे ले कर फिल्में बना रहे हैं.

जब आप ने फिल्म ‘इंग्लिशविंग्लिश’ या ‘मौम’ चुनी उस वक्त आप को एक अलग तरह की पटकथा मिली या आप को ध्यान में रख कर किरदार लिखे गए?

ऐसा तो हो नहीं सकता कि 15 साल के बाद जब अचानक गौरी शिंदे मेरे पास ‘इंग्लिशविंग्लिश’ की स्क्रिप्ट ले कर आईं, तो मैं ने दौड़ कर लपक ली. मैं ने पहले ही कहा कि मैं ने आज तक महज गिनाने के लिए कोई फिल्म नहीं की. मैं टाइमपास करने के लिए कोई फिल्म नहीं कर सकती. जब मैं ने ‘इंग्लिशविंग्लिश’ की पटकथा सुनी, तो उस ने मेरे दिल को छू लिया. मुझे लगा कि मुझे इस फिल्म को करना चाहिए. उस वक्त मुझे या गौर शिंदे को पता नहीं था कि यह फिल्म कमर्शियली इतनी अधिक सफल हो जाएगी. मैं ने तो सिर्फ एक अच्छी फिल्म करने के मकसद से यह फिल्म की थी. अब ‘मौम’ को ले कर भी मेरी यही सोच है. पर मैं यह मानती हूं कि ‘इंग्लिशविंग्लिश’ में मैं ने जिस तरह का किरदार निभाया, उसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया.

आप की बेटी जाह्नवी की फिल्मों से जुड़ने की काफी चर्चा है?

यह सच है कि जब मेरी बेटी ने कहा कि उसे फिल्मों में हीरोइन बनना है, तो मैं थोड़ी घबराई थी. उसे इजाजत देने को ले कर मेरे अंदर हिचक थी, जबकि मैं समझती हूं कि आज मैं जो कुछ हूं, वह फिल्म इंडस्ट्री की वजह से ही हूं. फिल्म इंडस्ट्री की वजह से ही मैं ने नाम कमाया है. लेकिन समय का अंतराल बहुत माने रखता है.

मेरी मां मुझे बहुत प्रोटैक्ट करती थीं. उसी तरह मैं भी अपनी बेटियों को बहुत प्रोटैक्ट करती हूं. आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन हकीकत यह है कि मैं ने 300 फिल्मों में अभिनय कर लिया, मगर मैं ने अपनी बेटियों को बहुत कम फिल्में दिखाई हैं. छह साल की उम्र तक तो उन्हें यह भी पता नहीं चला कि मैं अभिनेत्री हूं. 6 साल की उम्र के बाद जब वे मेरे साथ एअरपोर्ट पहुंची और लोगों ने मुझ से औटोग्राफ मांगे तब मुझे उन्हें बताना पड़ा कि मैं फिल्मों में अभिनय करती हूं. लेकिन मैं ने उन से कह दिया था कि मैं उन्हें अपनी कोई फिल्म नहीं दिखाऊंगी.

क्या आप को लगता है कि हर किरदार के साथ कोई न कोई प्रयोग किया जाना चाहिए?

ऐक्सपैरीमैंट जरूर करना चाहिए. असली चुनौती तो नए ऐक्सपैरीमैंट करने में ही है. यदि हम बारबार घिसेपिटे किरदार निभाते रहेंगे, तो उन में क्या चुनौती होगी?

हौलीवुड की फिल्में भारतीय भाषाओं में डब हो कर भारत में प्रदर्शित हो रही हैं और भारतीय फिल्मों से ज्यादा कमा रही हैं. इसे कैसे देखती हैं?

यह तो ग्लोबलाइजेशन का परिणाम है. सिर्फ हौलीवुड की फिल्में ही सफल नहीं हो रही हैं, हमारी फिल्में भी सफल हो रही हैं. आमिर खान, सलमान खान, शाहरुख खान, अक्षय कुमार, इन की फिल्में भी सफहो रही हैं. इस के अलावा हौलीवुड फिल्में भी असफल हो रही हैं. ‘जंगल बुक’ ने पूरे विश्व में बहुत कमाई की, पर उस ने भारत में क्या कमाया यह मुझ से ज्यादा बेहतर आप जानते हैं. आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ ने तो चीन में 1200 करोड़ रुपए कमा लिए.

रिऐलिटी शो में जिस तरह से बच्चे काम कर रहे हैं, उस से क्या उन का भविष्य बनता है? आप उन के पेरैंट्स को क्या सलाह देना चाहेंगी?

मैं बच्चों और उन के पेरैंट्स को सलाम करती हूं. मुझे याद है जब मैं छोटी थी और शूटिंग के लिए सैट पर जाती थी, तो मेरी मां बहुत काम करती थीं. वे सब कुछ छोड़ कर मेरे लिए मेहनत करती थीं. जबकि हम लोग फिल्मी माहौल से नहीं थे. मैं ने एक भी दिन नहीं सुना कि आज यह काम नहीं हो पाया या आज मेरी मम्मी सैट पर नहीं हैं. वे हमेशा मेरा हौसला बढ़ाने के लिए मौजूद रहती थीं. मैं आज जो कुछ भी हूं, वह अपनी मां की वजह से हूं. आज टीवी पर जो बच्चे काम कर रहे हैं, जो अच्छी परफौर्मैंस दे रही हैं, उस का सारा श्रेय मैं उन के पेरैंट्स को देती हूं.

लेकिन यदि वे टीवी रिऐलिटी शो का हिस्सा न बनते, तो डाक्टर या इंजीनियर बन सकते थे?

आप की बात सही है. मगर यदि बच्चे की रुचि संगीत या नृत्य या फिर अभिनय में है, तो आप क्या करेंगे? यदि बच्चे अभिनय, नृत्य या संगीत में रुचि दिखा रहे हैं, उस में नाम कमा रहे हैं, तो हमें उन्हें सपोर्ट करना चाहिए. मैं भी एक मां हूं. मैं ने भी अपनी बेटियों को पढ़ाने के बारे में सोचा. डाक्टर, इंजीनियर बनाने के बारे में सोचा. पर अंतत: मुझे भी उन की रुचि के आगे झुकना पड़ा.

बचपन या टीनएज का वह सपना जो अब तक पूरा नहीं हुआ और क्या उसे पूरा करना चाहेंगी?

पेंटिंग मेरा पैशन रहा है. लेकिन कुछ वजहों से मैं ने पेंटिंग्स करना छोड़ दिया था. लेकिन शादी के बाद जब मैं ने अपने बच्चों का होमवर्क करवाना शुरू किया, तो उन के लिए ड्राइंग मैं तब बनाती थी. मेरी बेटियों ने कहा कि मम्मा आप तो बहुत अच्छी ड्राइंग बना लेती हैं. आप को तो पेंटिंग्स बनानी चाहिए. तब मैं ने फिर से पेंटिंग्स बनानी शुरू कीं. मेरी एक पेंटिंग अमेरिका के न्यूयौर्क की एक आर्ट गैलरी में खरीद कर रखी गई है.

निर्माता के तौर पर आप को अपने पति की कौन सी फिल्म पसंद है?

आप बौनी कपूर को अच्छी तरह से जानते हैं. उन्होंने अब तक सब बेहतरीन फिल्में बनाई हैं. मुझे ‘मिस्टर इंडिया’ सब से ज्यादा पसंद है. ‘वो सात दिन’ भी. लेकिन मेरी व मेरे बच्चों की फेवरेट फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ है. ‘नो ऐंट्री’ भी बहुत पसंद है, क्योंकि मेरी कौमेडी में भी बहुत रुचि है.

अनोखा सबक

सिपाही टीकाचंद बड़ी बेचैनी से दारोगाजी का इंतजार कर रहा था. वह कभी अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी की तरफ देखता, तो कभी थाने से बाहर आ कर दूर तक नजर दौड़ाता, लेकिन दारोगाजी का कहीं कोई अतापता न था. वे शाम के 6 बजे वापस आने की कह कर शहर में किसी सेठ की दावत में गए थे, लेकिन 7 बजने के बाद भी वापस नहीं आए थे.

‘शायद कहीं और बैठे अपना रंग जमा रहे होंगे,’ ऐसा सोच कर सिपाही टीकाचंद दारोगाजी की तरफ से निश्चिंत हो कर कुरसी पर आराम से बैठ गया.

आज टीकाचंद बहुत खुश था, क्योंकि उस के हाथ एक बहुत अच्छा ‘माल’ लगा था. उस दिन के मुकाबले आज उस की आमदनी यानी वसूली भी बहुत अच्छी हो गई थी.

आज उस ने सारा दिन रेहड़ी वालों, ट्रक वालों और खटारा बस वालों से हफ्ता वसूला था, जिस से उस के पास अच्छीखासी रकम जमा हो गई थी. उन पैसों में से टीकाचंद आधे पैसे दारोगाजी को देता था और आधे खुद रखता था.

सिपाही टीकाचंद का रोज का यही काम था. ड्यूटी कम करना और वसूली करना… जनता की सेवा कम, जनता को परेशान ज्यादा करना.

सिपाही टीकाचंद सोच रहा था कि इस आमदनी में से वह दारोगाजी को आधा हिस्सा नहीं देगा, क्योंकि आज उस ने दारोगाजी को खुश करने के लिए अलग से शबाब का इंतजाम कर लिया है.

जिस दिन वह दारोगाजी के लिए शबाब का इंतजाम करता था, उस दिन दारोगाजी खुश हो कर उस से अपना आधा हिस्सा नहीं लेते थे, बल्कि उस दिन का पूरा हिस्सा उसे ही दे देते थे.

रात के तकरीबन 8 बजे तेज आवाज करती जीप थाने के बाहर आ कर रुकी. सिपाही टीकाचंद फौरन कुरसी छोड़ कर खड़ा हो गया और बाहर की तरफ भागा.

नशे में चूर दारोगाजी जीप से उतरे. उन के कदम लड़खड़ा रहे थे. आंखें नशे से बुझीबुझी सी थीं. उन की हालत से तो ऐसा लग रहा था, जैसे उन्होंने शराब पी रखी हो, क्योंकि चलते समय उन के पैर बुरी तरह लड़खड़ा रहे थे. उन के होंठों पर पुरानी फिल्म का एक गाना था, जिसे वे बड़े रोमांटिक अंदाज में गुनगुना रहे थे.

दारोगाजी गुनगुनाते हुए अंदर आ कर कुरसी पर ऐसे धंसे, जैसे पता नहीं वे कितना लंबा सफर तय कर के आए हों.

सिपाही टीकाचंद ने चापलूसी करते हुए दारोगाजी के जूते उतारे. दारोगाजी ने सामने रखी मेज पर अपने दोनों पैर रख दिए और फिर पैरों को ऐसे अंदाज में हिलाने लगे, जैसे वे थाने में नहीं, बल्कि अपने घर के ड्राइंगरूम में बैठे हों.

दारोगाजी ने अपनी पैंट की जेब में से एक महंगी सिगरेट का पैकेट निकाला और फिल्मी अंदाज में सिगरेट को अपने होंठों के बीच दबाया, तो सिपाही टीकाचंद ने अपने लाइटर से दारोगाजी की सिगरेट जला दी.

‘‘साहबजी, आज आप ने बड़ी देर लगा दी?’’ सिपाही टीकाचंद अपनी जेब में लाइटर रखते हुए बोला.

दारोगाजी सिगरेट का लंबा कश खींच कर धुआं बाहर छोड़ते हुए बोले, ‘‘टीकाचंद, आज माहेश्वरी सेठ की दावत में मजा आ गया. दावत में शहर के बड़ेबड़े लोग आए थे. मेरा तो वहां से उठने का मन ही नहीं कर रहा था, लेकिन मजबूरी में आना पड़ा.

‘‘अच्छा, यह बता टीकाचंद, आज का काम कैसा रहा?’’ दारोगाजी ने बात का रुख बदलते हुए पूछा.

‘‘आज का काम तो बस ठीक ही रहा, लेकिन आज मैं ने आप को खुश करने का बहुत अच्छा इंतजाम किया है,’’ सिपाही टीकाचंद ने धीरे से मुसकराते हुए कहा, तो दारोगाजी के कान खड़े हो गए.

‘‘कैसा इंतजाम किया है आज?’’ दारोगाजी बोले.

‘‘साहबजी, आज मेरे हाथ बहुत अच्छा माल लगा है. माल का मतलब छोकरी से है साहबजी, छोकरी क्या है, बस ये समझ लीजिए एकदम पटाखा है, पटाखा. आप उसे देखोगे, तो बस देखते ही रह जाओगे. मुझे तो वह छोकरी बिगड़ी हुई अमीरजादी लगती है,’’ सिपाही टीकाचंद ने कहा.

उस की बात सुन कर दारोगाजी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

‘‘टीकाचंद, तुम्हारे हाथ वह कहां से लग गई?’’ दारोगाजी अपनी मूंछों पर ताव देते हुए बोले.

दारोगाजी के पूछने पर सिपाही टीकाचंद ने बताया, ‘‘साहबजी, आज मैं दुर्गा चौक से गुजर रहा था. वहां मैं ने एक लड़की को अकेले खड़े देखा, तो मुझे उस पर कुछ शक हुआ.

‘‘जिस बस स्टैंड पर वह खड़ी थी, वहां कोई भला आदमी खड़ा होना भी पसंद नहीं करता है. वह पूरा इलाका चोरबदमाशों से भरा हुआ है.

‘‘उस को देख कर मैं फौरन समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है. उस के आसपास 2-4 लफंगे किस्म के गुंडे भी मंडरा रहे थे.

‘‘मैं ने सोचा कि क्यों न आज आप को खुश करने के लिए उस को थाने ले चलूं. ऐसा सोच कर मैं फौरन उस के पास जा पहुंचा.

‘‘मुझे देख कर वहां मौजूद आवारा लड़के फौरन वहां से भाग लिए. मैं ने उस लड़की का गौर से मुआयना किया.

‘‘फिर मैं ने पुलिसिया अंदाज में कहा, ‘कौन हो तुम? और यहां अकेली खड़ी क्या कर रही हो?’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह मुझे घूरते हुए बोली, ‘यहां अकेले खड़ा होना क्या जुर्म है?’

‘‘उस का यह जवाब सुन कर मैं समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है और आसानी से कब्जे में आने वाली नहीं.

‘‘मैं ने नाम पूछा, तो वह कहने लगी, ‘मेरे नाम वारंट है क्या?’

‘‘वह बड़ी निडर छोकरी है साहब. मैं जो भी बात कहता, उसे फौरन काट देती थी.

‘‘मैं ने उसे अपने जाल में फंसाना चाहा, लेकिन वह फंसने को तैयार ही नहीं थी.

‘‘आसानी से बात न बनते देख उस पर मैं ने अपना पुलिसिया रोब झाड़ना शुरू कर दिया. बड़ी मुश्किल से उस पर मेरे रोब का असर हुआ. मैं ने उस पर

2-4 उलटेसीधे आरोप लगा दिए और थाने चलने को कहा, लेकिन थाने चलने को वह तैयार ही नहीं हुई.

‘‘मैं ने कहा, ‘थाने तो तुम्हें जरूर चलना पड़ेगा. वहां तुम से पूछताछ की जाएगी. हो सकता है कि तुम अपने दोस्त के साथ घर से भाग कर यहां आई हो.’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह बौखला गई और मुझे धमकी देते हुए कहने लगी, ‘‘मुझे थाने ले जा कर तुम बहुत पछताओगे, मेरी पहुंच ऊपर तक है.’

‘‘छोकरी की इस धमकी का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ. ऐसी धमकी सुनने की हमें आदत सी पड़ गई है…

‘‘पता नहीं, आजकल जनता पुलिस को क्या समझती है? हर कोई पुलिस को अपनी ऊंची पहुंच की धमकी दे देता है, जबकि असल में उस की पहुंच एक चपरासी तक भी नहीं होती.

‘‘मैं धमकियों की परवाह किए बिना उसे थाने ले आया और यह कह कर लौकअप में बंद कर दिया कि थोड़ी देर में दारोगाजी आएंगे. पूछताछ के बाद तुम्हें छोड़ दिया जाएगा.

‘‘जाइए, उस से पूछताछ कीजिए, बेचारी बहुत देर से आप का इंतजार कर रही है,’’ सिपाही टीकाचंद ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा.

दारोगाजी के होंठों पर मुसकान तैर गई. उन की मुसकराहट में खोट भरा था. उन्होंने टीकाचंद को इशारा किया, तो वह तुरंत अलमारी से विदेशी शराब की बोतल निकाल लाया और पैग बना कर दारोगाजी को दे दिया.

दारोगाजी ने कई पैग अपने हलक से नीचे उतार दिए. ज्यादा शराब पीने से उन का चेहरा खूंख्वार हो गया था. उन की आंखें अंगारे की तरह लाल हो गईं.

वह लुंगीबनियान पहन लड़खड़ाते कदमों से लौकअप में चले गए. सिपाही टीकाचंद ने फुरती से दरवाजा बंद कर दिया और वह बैठ कर बोतल में बची हुई शराब खुद पीने लगा.

दारोगाजी को कमरे में घुसे अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि उन के चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं.

सिपाही टीकाचंद ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोला, तो दारोगाजी उस के ऊपर गिर पड़े. उन का हुलिया बिगड़ा हुआ था.

थोड़ी देर पहले तक सहीसलामत दारोगाजी से अब अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. उन का सारा मुंह सूजा हुआ था. इस से पहले कि सिपाही टीकाचंद कुछ समझ पाता, उस के सामने वही लड़की आ कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘देख ली अपने दारोगाजी की हालत?’’

‘‘शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को. सरकार तुम्हें यह वरदी जनता की हिफाजत करने के लिए देती है, लेकिन तुम लोग इस वरदी का नाजायज फायदा उठाते हो,’’ लड़की चिल्लाते हुए बोली.

लड़की एक पल के लिए रुकी और सिपाही टीकाचंद को घूरते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी बदतमीजी का मजा मैं तुम्हें वहीं चखा सकती थी, लेकिन उस समय तुम ने वरदी पहन रखी थी और मैं तुम पर हाथ उठा कर वरदी का अपमान नहीं करना चाहती थी, क्योंकि यह वरदी हमारे देश की शान है और हमें इस का अपमान करने का कोई हक नहीं. पता नहीं, क्यों सरकार तुम जैसों को यह वरदी पहना देती है?’’

लड़की की इस बात से सिपाही टीकाचंद कांप उठा.

‘‘जातेजाते मैं तुम्हें अपनी पहुंच के बारे में बता दूं, मैं यहां के विधायक की बेटी हूं,’’ कह कर लड़की तुरंत थाने से बाहर निकल गई.

सिपाही टीकाचंद आंखें फाड़े खड़ा लड़की को जाते हुए देखता रहा.

दारोगाजी जमीन पर बैठे दर्द से कराह रहे थे. उन्होंने लड़की को परखने में भूल की थी, क्योंकि वह जूडोकराटे में माहिर थी. उस ने दारोगाजी की जो धुनाई की थी, वह सबक दारोगाजी के लिए अनोखा था.                   

सवालों के घेरे में मोटिव, मर्डर, वेपन और चश्मदीद

19 मार्च, 2017 की सुबह एक औटोचालक गुरुद्वारा के सामने खड़ी पीसीआर वैन के पास पहुंचा तो काफी बदहवास था. औटोचालक औटो चलाता हुआ आया था, जिस से उस के चेहरे पर हवा भी लगी होगी, पर उस हाल में भी उस के माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा रही थीं.

औटो से लगभग कूदता हुआ वह पीसीआर वैन के पास पहुंचा और वैन में बैठे सिपाहियों से बोला, ‘‘साहब, उधर एक कोठी में 2 औरतें एक बीएमडब्ल्यू कार में बड़े साइज का सूटकेस रख रही थीं. सूटकेस भारी था, इसलिए उन्होंने मेरा औटो रुकवा कर मुझ से मदद मांगी.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ वैन में बैठे एक सिपाही ने पूछा.

‘‘मैं सूटकेस गाड़ी में रखवाने लगा तो देखा उस में से खून रिस रहा था. जब मैं ने उन से खून के बारे में पूछा तो एक औरत ने अपना खून सना हाथ दिखाते हुए कहा कि सूटकेस नीचे उतारते वक्त उस के हाथ में चोट लग गई थी, यह उसी का खून है.’’

‘‘वहां हुआ क्या है, तुम यह क्यों नहीं बताते?’’ सिपाही ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मुझे लग रहा है कि किसी की हत्या कर के वे औरतें लाश को उस सूटकेस में रख कर कहीं फेंकने ले जा रही हैं. आप लोग वहां जल्दी पहुंचें वरना वे लाश ले कर निकल जाएंगी.’’ औटोचालक ने कहा.

जैसे ही औटोचालक ने लाश की बात कही, पीसीआर में बैठे सिपाहियों ने औटोचालक को गाड़ी में बिठाया और उसे ले कर मोहाली के फेज-3 बी-1 की कोठी नंबर 116 के सामने पहुंच गए. कोठी के सामने सिल्वर कलर की बीएमडब्ल्यू कार खड़ी थी, जिस का नंबर था सीएच04एफ 0027 था. उस समय वहां कार के अलावा कोई नहीं था. कोई औरत भी वहां नजर नहीं आई.

औटोचालक के कहने पर पीसीआर वैन से आए सिपाहियों ने बीएमडब्ल्यू का पिछला दरवाजा खोला तो उस में गहरे रंग का एक बड़ा सूटकेस रखा था, जिस से खून रिस कर बाहर आ रहा था.

पीसीआर वैन के इंचार्ज ने तुरंत इस बात की सूचना संबंधित थाना मटौर को दे दी. थोड़ी ही देर में थाना मटौर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर बलजिंदर सिंह पन्नू पुलिस टीम के साथ वहां आ पहुंचे.

पुलिस को देख भीड़ जुटने लगी. उस भीड़ में से एक आदमी ने आगे आ कर अपना नाम दर्शन सिंह ढिल्लो बताते हुए कहा, ‘‘सर, अभीअभी मुझे किसी ने बताया है कि मेरे बड़े भाई एकम सिंह किसी हादसे का शिकार हो गए हैं. प्लीज, बताइए न मेरे भाई को क्या हुआ है?’’

बलजिंदर सिंह पन्नू अभी कुछ देर पहले ही वहां आए थे. वहां की स्थिति देख कर उन्होंने कोई काररवाई करने से पहले अपने अधिकारियों को सूचित करना उचित समझा. अधिकारियों को सूचना दे कर वह उन के आने का इंतजार कर रहे थे. इसलिए दर्शन को वह कुछ नहीं बता सके.

थोड़ी देर में डीएसपी (सिटी-1) आलम विजय सिंह के अलावा कुछ अन्य पुलिस अधिकारी भी वहां आ पहुंचे. इंसपेक्टर अतुल सोनी के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच की विशेष टीम भी आ गई थी. डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीमों को भी बुला लिया गया था.

पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में मौके का नक्शा बना कर बीएमडब्ल्यू कार से सूटकेस निकलवा कर खोला गया तो उस में एक लंबेतगड़े आदमी की लाश निकली, जिसे इस तरह तोड़मोड़ कर ठूंसा गया था कि उस के घुटने उस की ठुड्डी को छू रहे थे. उसे देखते ही दर्शन सिंह ढिल्लो ने कहा कि यह लाश उस के बड़े भाई एकम सिंह ढिल्लो की है. उस ने बताया कि उस के भाई का कद सवा 6 फुट से ज्यादा लंबा और उन का वजन 90-95 किलोग्राम था. चौंकाने वाली बात यह थी कि जिस सूटकेस में लाश ठूंसी गई थी, उस का आकार 2 बाई ढाई फुट था.

पुलिस लाश का निरीक्षण कर रही थी कि मृतक एकम सिंह के पिता जसपाल सिंह भी आ गए. शायद उन्हें दर्शन ने फोन कर के बुला लिया था.

लाश का पंचनामा तैयार कर उसे कब्जे में लेने के बाद पुलिस ने वहां मौजूद कुछ लोगों के बयान लेने के साथ दर्शन सिंह ढिल्लो और उस के पिता जसपाल सिंह से भी काफी विस्तार से पूछताछ की. ये बापबेटे मोहाली के फेज-6 में रहते थे. दोनों से हुई बातचीत में मृतक के बारे में जो पता चला, वह इस तरह से था.

सरदार जसपाल सिंह अपना कारोबार तो करते ही थे, साथसाथ पंजाब के जानेमाने मानवाधिकार कार्यकर्ता भी थे. दरअसल, खालिस्तान मूवमेंट के फाउंडर संत जरनैल सिंह भिंडरावाला से उन की अच्छी जानपहचान थी. उन के प्रति वह काफी हमदर्दी भी रखते थे. औपरेशन ब्लूस्टार के बाद जसपाल सिंह पूरी तरह ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट बन गए थे. 1990 में कुछ हार्डलाइनर्स सिखों से संबंध रखने के आरोप में वह पंजाब पुलिस द्वारा गिरफ्तार भी किए गए थे. समाज में उन का अच्छाखासा रुतबा था.

जसपाल सिंह ने 3 शादियां की थीं. इन दिनों वह अपनी तीसरी पत्नी और छोटे बेटे दर्शन सिंह के साथ रह रहे थे. दर्शन सिंह ढिल्लो की शादी कुछ दिनों पहले ही हुई थी, लेकिन जल्दी ही उस का पत्नी से तलाक हो गया था. बडे़ बेटे एकम सिंह ने सन 2005 में सीरत कौर से प्रेम विवाह किया था, जिस से उसे 2 बच्चे बेटा गुरनवाज सिंह और बेटी हुमायरा कौर हुई थी.

शादी के 6 महीने बाद ही 40 वर्षीय एकम सिंह पत्नी को ले कर अपने परिवार से अलग हो गया था. कुछ समय तक उस ने असम में नौकरी की. उस के बाद वहां से लौट कर वह चंडीगढ़ के एक बड़े होटल में काम करने लगा था. कुछ दिनों बाद उस ने यह नौकरी भी छोड़ दी थी. इस समय वह स्टोन क्रैशर व कंस्ट्रक्शन का कारोबार कर रहा था. मोहाली के कस्बा नयागांव में उस का अच्छा काम चल रहा था.

इस समय उस का बेटा 11 साल का था तो बेटी 6 साल की. दोनों चंडीगढ़ के प्रतिष्ठित स्कूलों में पढ़ रहे थे.

एकम की अपने छोटे भाई और पिता से बोलचाल नहीं थी. फिर भी उन्हें कहीं न कहीं से एकम के बारे में जानकारी मिलती रहती थी. बेटा बातचीत नहीं करना चाहता था तो वे क्या कर सकते थे. फिर भी जसपाल सिंह को यह जान कर खुशी थी कि एकम तरक्की कर रहा है. उन का सोचना था कि एकम अपने परिवार के साथ बहुत खुश है.

लेकिन लंबे अरसे बाद 8 मार्च की रात एकम सिंह अचानक पिता के पास जा पहुंचा. उस समय वह काफी दुखी और परेशान था. रोते हुए उस ने पिता को बताया था कि वह अपनी जिंदगी से काफी परेशान है. उस की पत्नी और सास उसे परेशान कर रही हैं. उस ने यह भी बताया था कि कल उस के साथ बड़ा धोखा हो सकता है. इस के अलावा भी उस ने कई और चौंकाने वाली बातें बताई थीं.

जसपाल सिंह ने उसे आश्वस्त किया था कि वह जल्दी ही उस के घर आ कर इस मामले में उस की पत्नी और सास से बात कर के उस की समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगे. इस के बाद उन्होंने एकम से खाना खा कर जाने को कहा, लेकिन वह भूख न होने की बात कह कर चला गया था.

अगले दिन सवेरे ही दर्शन सिंह ढिल्लो को उस के किसी दोस्त ने फोन कर के एकम के साथ कोई हादसा होने की बात बताई थी. फोन सुनते ही वह उस के घर की ओर चल पड़ा था. एकम पहले चंडीगढ़ के सैक्टर-35 में किराए के मकान में रहता था, जहां वह 80 हजार रुपए महीना किराया देता था. करीब 20 दिनों पहले ही वह मोहाली में एक कनाल की इस कोठी की पहली मंजिल किराए पर ले कर बीवीबच्चों के साथ रहने आया था.

भाई के घर आने पर दर्शन सिंह को भाई के कत्ल के बारे में पता चला था तो उस ने फोन कर के पिता को भी बुला लिया था.

पुलिस ने लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए मोहाली के सिविल अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम का काम निपटाया गया. पुलिस ने दर्शन सिंह ढिल्लो की तहरीर पर भादंवि की धाराओं 302, 201 व 34 के तहत थाना मटौर में मुकदमा दर्ज कर के आगे की काररवाई शुरू कर दी.

चूंकि मृतक के सिर में गोली लगने का घाव साफ दिखाई दे रहा था, इसलिए पहली ही नजर में यह मामला गोली मार कर हत्या करने का लग रहा था. इसलिए मुकदमे में शस्त्र अधिनियम की धाराओं 25/54 एवं 59 का भी समावेश किया गया था.

दर्शन सिंह ने अपनी तहरीर में जिन लोगों को नामजद किया था, उस में सीरत कौर ढिल्लो, विनय सिंह बराड़ और जसविंदर कौर बराड़ थीं. इन में विनय एकम सिंह का साला था तो जसविंदर कौर सास. इन तीनों को मुख्यरूप से आरोपी बनाने के अलावा शिकायत में यह भी आशंका व्यक्त की गई थी कि वारदात के समय इन के साथ कुछ और लोग भी रहे होंगे.

इस की वजह मजबूत कदकाठी के लंबेतगड़े आदमी के साथ मारपीट करने और गोली मार कर हत्या करने के बाद उस की लाश को सूटकेस में ठूंस कर भरने का काम 2 महिलाएं और एक आदमी के वश की बात नहीं थी. फिर महिलाओं में भी एक औरत दुबलीपतली और बूढ़ी थी.

मौके पर ही दर्शन सिंह ढिल्लो एक बात चीखचीख कर कह रहा था कि सीरत कौर पंजाब के एक बड़े कांग्रेसी नेता की सगी भांजी है, इसलिए पुलिस इस मामले को कतई गंभीरता से नहीं लेगी.

नामजद अभियुक्त फरार हो चुके थे. उन की तलाश में पुलिस ने भागदौड़ शुरू की. पुलिस को इस मामले में कोई सफलता मिलती, उस के पहले ही उसी दिन शाम को एक आदमी बड़ी सी गाड़ी में आया और नामजद मुख्य अभियुक्ता सीरत कौर को थाना मटौर में छोड़ गया. सीरत ने थानाप्रभारी के सामने जा कर आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर औपचारिक पूछताछ शुरू की.

इस पूछताछ में पता चला कि सीरत की दोस्ती अपने भाई विनय प्रताप सिंह बराड़ के एक दोस्त से थी. इसी दोस्ती की वजह से उस ने भाई और उस के उस दोस्त के साथ मिल कर अपने पति को मौत के घाट उतार दिया था. इस बात की जानकारी उस की मां जसविंदर कौर को भी थी. सीरत के दोस्त ने एकम सिंह पर 2 गोलियां चलाई थीं. उन में से एक उस की खोपड़ी में लगी थी और दूसरी पिस्टल में ही फंस कर रह गई थी.

एकम को खत्म करने की योजना बना कर सभी शनिवार की रात घर आ गए थे. देर रात एकम घर आया तो पहले उस से मारपीट की गई. उस के बाद उसे जबरदस्ती बाथरूम में ले जाया गया और गोली मार दी गई. जब वह मर गया तो वहां पड़े खून के धब्बों को साफ कर के एकम की लाश को ठिकाने लगाने के लिए सूटकेस में ठूंस दिया गया.

सुबह सीरत अकेली सूटकेस को खींचती हुई नीचे ले आई. सूटकेस उतारते समय सीढि़यों में जहांतहां भी खून टपका, उस ने उसे साफ कर दिया. इस से पहले वह नीचे जा कर गाड़ी का गेट खोल कर इस बात का अंदाजा लगा आई थी कि सूटकेस को कहां रखना चाहिए.

इसी चक्कर में गाड़ी की चाबी डिक्की में गिर गई थी और इस बात से बेखबर सीरत ने डिक्की बंद कर दी थी. कार के दरवाजे खुले ही थे. सूटकेस नीचे ला कर जब वह सूटकेस गाड़ी में नहीं रख पाई तो वहां सवारी छोड़ने आए औटोचालक को रोक कर उस से मदद मांगी. सूटकेस रखवा कर वह चला तो गया, लेकिन सीरत को उस की बातों से लगा कि उसे उस पर शक हो गया है.

थोड़ी ही देर में सीरत कौर को पुलिस वैन आती दिखाई दी तो वह वहां से भाग गई. उस के बताए अनुसार, उस के साथ कोई अन्य औरत नहीं थी. औटोचालक ने पता नहीं क्यों झूठ बोला था.

पुलिस की तो जैसे लौटरी निकल आई थी. जरा सी देर में बिना खास प्रयास के एक हाईप्रोफाइल मर्डर केस का खुलासा हो गया था. सीरत ने आत्मसमर्पण कर दिया था. अब अन्य अभियुक्तों को भी आसानी से पकड़ा जा सकता था.

परंतु रात में ही पुलिस की आशा निराशा में बदल गई. सीरत की गिरफ्तारी की सूचना पा कर रात में जब पुलिस के बड़े अधिकारी उस से पूछताछ करने थाने पहुंचे तो वह पिछले बयानों से मुकर गई. अब वह कहने लगी थी कि पति के अत्याचारों से तंग आ कर उस ने अकेले ही उस की हत्या की थी. एकम उस के चरित्र पर शक करते हुए उस से मारपीट करता था. पिछली रात भी वह शराब पी कर आया और उस से मारपीट करते हुए उस ने उस पर अपना रिवौल्वर तान दिया. मौका पा कर रिवौल्वर छीन कर उस ने उसी पर गोली चला दी.

रिवौल्वर के बारे में उस ने बताया कि वह घर की अलमारी में पड़ी है. लेकिन इस कांड में उस के साथ कोई और नहीं था. उस ने अकेले अपनी सुरक्षा को ध्यान में रख कर यह कत्ल किया है और वह अपना अपराध स्वीकार कर रही है.

हद तो तब हो गई, जब सीरत का कस्टडी रिमांड हासिल करने के लिए उसे सुबह अदालत में पेश किया गया. वहां माननीय जज से उस ने सीधे कहा कि एकम ने अपने लाइसैंसी रिवौल्वर से आत्महत्या की थी. डर जाने की वजह से वह उस की लाश को ठिकाने लगाने की भूल कर बैठी. अब पुलिस उसे एकम के कत्ल के झूठे केस में फंसा रही है.

माननीय जज ने सीरत को 2 दिनों के कस्टडी रिमांड में रखने का आदेश देते हुए पुलिस से कहा था कि मामला हाईप्रोफाइल है, जांच में कहीं कोई कमी नहीं होनी चाहिए. उसी दिन मोहाली के फेज-6 स्थित सिविल अस्पताल के 3 डाक्टरों मनहर सिंह, हिम्मत मोहन सिंह और कुलदीप सिंह ने एकम के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी और स्टिल फोटोग्राफी भी कराई गई. अपनी रिपोर्ट में डाक्टरों ने लिखा कि गोली एकम के सिर में कान के पास से होते हुए दिमाग को चीर कर दूसरी तरफ निकल गई थी. लेकिन रिपोर्ट में एकम के जिस्म पर किसी चोट का कोई उल्लेख नहीं था. मृतक का विसरा ले कर रासायनिक परीक्षण के लिए खरड़ स्थित फोरैंसिक लैब में भिजवा दिया गया था.

एकम के भाई और पिता को पहले से ही मोहाली पुलिस पर भरोसा नहीं था. उन का आरोप था कि एसपी पंधेर आरोपियों को बचा रहे हैं. इस बात की शिकायत करने के लिए वे 20 मार्च को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिले.

मुख्यमंत्री के आदेश पर एसपी पंधेर को इस केस से अलग कर मोहाली के युवा एसएसपी कुलदीप सिंह चाहल की अगुवाई में स्पैशल इनवैस्टीगेटिव टीम (एसआईटी) का गठन कर दिया गया, साथ ही यह आदेश भी पारित किया गया कि इस केस की छानबीन के संबंध में एसएसपी अपनी रिपोर्ट तैयार कर रोजाना मुख्यमंत्री को भेजा करेंगे. ऐसा ही किया भी जाने लगा था, लेकिन पूछताछ में समस्या यह आ रही थी कि जब सीरत से पूछताछ की जाने लगी तो वह कभी अपने कपड़े फाड़ने लगती तो कभी चीखचीख कर थाना सिर पर उठा लेती. वह अपने बच्चों से मिलवाने की जिद भी कर रही थी.

उस की हरकतों से परेशान हो कर पुलिस वाले थाने से बाहर निकल कर अधिकारियों को फोन करने लगते थे. सीरत के इसी नाटक में 2 दिन का कस्टडी रिमांड खत्म हो गया. अब उस का लाई डिटेक्टर टेस्ट करवाने की कवायद शुरू की गई. उस की रिमांड अवधि भी 6 दिनों की करवा ली गई. लेकिन सीरत ने लाई डिटेक्टर टेस्ट करवाने से मना कर दिया. इस बीच सीसीटीवी कैमरे की एक ऐसी फुटेज पुलिस के हाथ लग गई, जिस में सीरत अकेली सीढि़यों से सूटकेस घसीटते हुए नीचे ला रही थी और बारबार खून के धब्बे साफ कर रही थी.

इस से लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वाकई उस ने अकेले ही इस हत्याकांड को अंजाम दिया हो और अब जानबूझ कर अन्य लोगों को फंसाने का प्रयास कर रही हो. जबकि उस की अपने भाई से पिछले लंबे अरसे से बोलचाल नहीं थी.

6 दिनों का कस्टडी रिमांड भी निकल गया. लेकिन पुलिस सीरत से जरूरी पूछताछ नहीं कर सकी. 27 मार्च को उसे अदालत में पेश कर के रिमांड अवधि बढ़ाने की मांग की गई तो सक्षम जज ने मना करते हुए सीरत को न्यायिक हिरासत में नाभा की हाई सिक्योरिटी जेल भेज दिया. अब पुलिस बिना अदालत की अनुमति के उस से एक भी सवाल नहीं पूछ सकती थी. जबकि एकम परिवार के सदस्य न्याय की खातिर बारबार पुलिस के बड़े अधिकारियों से गुहार लगा रहे थे.

 

3 अप्रैल, 2017 को सीरत के भाई विनय प्रताप सिंह बराड़ उर्फ विन्नी ने एसएसपी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई, जिस में वह बेकसूर पाया गया. उसे रिहा करने के अलावा पुलिस के पास कोई उपाय नहीं था.

इसी तरह 10 अप्रैल को सीरत की मां जसविंदर कौर ने भी अपने वकील के साथ एसएसपी कुलदीप सिंह चाहल के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. उस से भी पुलिस ने पूछताछ की. वह भी पूछताछ में बेकसूर पाई गई तो उसे भी छोड़ दिया गया.

यह एक निहायत उलझा हुआ हाईप्रोफाइल केस था. सीरत के पिता का तभी देहांत हो गया था, जब वह काफी छोटी थी. उस का लालनपालन उस के मामा अजीत सिंह मोफर ने किया था, जो बाद में पंजाब की सरदूलगढ़ सीट से कांग्रेसी विधायक चुने गए थे. सीरत की मरजी के अनुसार एकम से शादी करवाने में भी उस के इस मामा ने अपना पूरा सहयोग दिया था. सीरत की अपने भाई से नहीं बनती थी. वह उस की शादी में भी शामिल नहीं हुआ था.

कहते हैं कि सीरत आधुनिक विचारों की खुले हाथों खर्च करने वाली औरत थी. सन 2011 में जिन दिनों एकम पंजाब एग्रो विभाग में मैनेजर के पद पर कार्यरत था, वहां करोड़ों रुपए का घोटाला हुआ था. इस बारे में आपराधिक केस भी दर्ज हुआ था, जिस में कुछ अन्य लोगों के अलावा एकम और सीरत भी आरोपी थे.

यह केस अभी भी मोहाली की एक अदालत में चल रहा है. एकम हत्याकांड में तभी कुछ सामने आ सकेगा, जब कड़ी से कड़ी जोड़ कर व्यापक छानबीन की जाएगी. पुलिस भी खुल कर सामने नहीं आ रही है. केस को ले कर उस के पास शायद कुछ ऐसे पत्ते हैं, जिन्हें वह अभी खोलना नहीं चाहती. वक्त आने पर ही शायद खोल कर केस को मजबूत करे.

अभी तक तो मर्डर का न मोटिव सामने आया है, न मर्डर वेपन ही विश्वसनीय लग रहा है और न ही इस कांड का कोई चश्मदीद गवाह है. फिलहाल औटोचालक का रोल भी परदे के पीछे कर दिया गया है.

एकम के उस रात शराब न पीने की पुष्टि हो चुकी है. कहा जाता है कि वह एक महीने पहले ही शराब पीना छोड़ चुका था. उस का लाइसैंसी रिवौल्वर भी तब से थाने में जमा था, जब पंजाब में विधानसभा के चुनाव हुए थे. ऐसे में वह पिस्तौल किस की थी, जिस से गोली चलने की बात मान कर मौके से कब्जे में लिया गया.

फिलहाल, केस की ताजा स्थिति यह है कि न्यायिक हिरासत की अवधि समाप्त होने पर सीरत जब मोहाली की अदालत में पेश हुई तो उस की हिरासत अवधि बढ़ाते हुए माननीय जज ने आदेश दिया कि आगे उस की पेशी वीडियो कौन्फ्रैंसिंग से हुआ करेगी.

मतलब सीरत को निजी रूप से अदालत में पेश नहीं होना पड़ेगा. सीरत ने अपने बच्चों की कस्टडी हासिल करने की बात भी जज से कही थी, जिस के लिए उसे संबंधित अदालत में अर्जी लगाने को कहा गया.

पुलिस का कहना है कि इस केस में अभी भी जांच जारी है. फिलहाल इस में किसी को क्लीनचिट नहीं दी गई है. जिन्हें छोड़ा गया है, उन्हें पूछताछ के लिए कभी भी फिर से बुलाया जा सकता है.         

अपनी अपनी हदें

राकेश खाकी वरदी को बड़े ध्यान से पहन रहा था. यही वह समय है, जब उसे वरदी में एक भी सिलवट पसंद नहीं. ड्यूटी खत्म होतेहोते न जाने कितनी सिलवटें और गर्द इस में जम जाती हैं, पर तब उसे इस की परवाह नहीं होती. जब वरदी बदन से उतरती है, तब शरीर अखरोट की गिरी सा बाहर निकल आता है… नरम और कागजी सा.

दूसरा धुला जोड़ा अलमारी में हैंगर से लटका था, अगली सुबह के लिए. पहनते वक्त साफधुली और प्रैस की हुई वरदी से जो लगाव होता है, उसे दिन ढलने तक कायम रखने में बड़ी मुश्किल होती है. पुलिस इंस्पैक्टर होने के नाते दिनभर झगड़ेफसाद सुनना, चोरगिरहकटों के पीछे लगना, हत्या, बलात्कार और लूटपाट की तहकीकात करना और थक कर घर लौटना… रोज यही होता है.

राकेश चमचमाती लाल बैल्ट पैंट की लुप्पी में खोंसने लगा था, तभी उस की बेटी विभा की आवाज कानों में पड़ी, ‘‘पापा, आज हमारे कालेज का सालाना जलसा है. मुझे शाम 7 बजे तक कालेज पहुंचना है. मम्मी को साथ ले जाऊं?’’

‘‘मम्मी… क्यों?’’ उस ने पूछा.

‘‘7 बजे अंधेरा हो जाता है पापा, मुझे डर लगता है,’’ विभा बोली.

‘‘हां, आजकल देश में कई घटनाएं घट चुकी हैं. अकेले निकलना ठीक नहीं,’’ राकेश ने गरदन हिला कर सहमति जताई. उस का चेहरा गंभीर हो गया, जिस में घबराहट के भाव थे. अमूमन ऐसा नहीं होता था. जब वह थाने में होता, उस वक्त घबराहट और चिंता उस के रोब और रुतबे के नीचे पड़ी रहती.

‘‘क्यों टैंशन करते हो पापा, मम्मी साथ जाएंगी न,’’ विभा फिर बोली.

‘‘मम्मी बौडीगार्ड हैं क्या? एक कौकरोच देख कर उन की चीख निकल जाती है,’’ कह कर राकेश मुसकराया, फिर बोला, ‘‘थाने से किसी को भेज दूंगा… मम्मी के साथ ही जाना.’’

यहां दूसरे की बेटी का सवाल होता, तो राकेश कहता, ‘डरती हो, इतनी भी हिम्मत नहीं, क्या करोगी जिंदगी में.’

एक अपराधबोध आ कर राकेश के मन को बींध गया. एक पुलिस अफसर हो कर भी वह आम आदमी से अलग तो नहीं है. वरदी ही उस के स्वभाव को बदलती है. वरदी और सर्विस रिवाल्वर जब घर की अलमारी के भीतर दाखिल हो जाते हैं, तब वह एक आम आदमी होता है.

राकेश 2 बेटियों का पिता है. उस के भीतर भी कहीं न कहीं असुरक्षा और अपनेपन का भाव है. वह हर जगह बच्चों के आगेपीछे साए की तरह नहीं घूम सकता. बड़ा आदमी भी अपने बच्चे के लिए सिक्योरिटी रखता है, फिर भी कहता फिरता है, ‘जमाना खराब है, मुझे भी लड़कियों की फिक्र रहती है.’

खाल चाहे कितनी भी मोटी क्यों न हो, अंदर से नरम ही होती है. विचारों ने साथ छोड़ा कि राकेश का दाहिना हाथ अनचाहे ही सर्विस रिवाल्वर की ओर चला गया, फिर उस ने पिछली जेब को टटोला. कंधे के बैज को दुरुस्त किया. एक रुतबे का एहसास होते ही पुलिसिया रोब राकेश के चेहरे पर टिक गया. थोड़ी ही देर बाद बूटों की आवाज भी उस के साथ कहीं गुम हो गई.

राकेश थाने पहुंच चुका था. फिर वही रोजनामचा. किसी की कार चोरी हो गई, तो किसी की सोने की चेन. सुलहसफाई, मारपीट और फिर एफआईआर. दोपहर हो गई थी, दिमाग थक रहा था. तभी एक औरत आई. कोई 30-32 साल की उम्र रही होगी. राकेश ने सिर उठाया. होंठों पर ताजा लिपस्टिक, आंखों में काजल की तीखी धार, बालों में खोंसा लाल गुलाब और साधारण सा चेहरा. राकेश की पारखी नजर में वह एक दोयम दर्जे की औरत लगी. उस का काम ही कुछ ऐसा है, शक को पुख्ता करने की कोशिश करना… वह करता भी रहा.

उस औरत ने करीब आते ही अपना परिचय दिया, ‘‘मैं दया बस्ती में रहती हूं साहब… मेरा नाम गुलाबी है.’’ ‘‘आगे बोल,’’ राकेश ने कड़क आवाज में कहा और फिर मेज पर खुली फाइल को देखने लगा.

‘‘साहब, मेरी मौसी का घर पास में ही है. मैं तकरीबन हर रोज वहां आतीजाती हूं, इधर से…’’

‘‘अच्छा तो…’’

‘‘आतेजाते सामने नुक्कड़ की दुकान वाला मुझे देख कर गंदी जबान बोलता है साहब,’’ गुलाबी ने झिझक भरी आवाज में कहा.

राकेश ने नजर उठाई, फिर गुलाबी को घूर कर देखा, ‘‘नाम क्या है उस आदमी का?’’

‘‘राम सिंह…’’

‘‘कब बोला वह?’’

‘‘रोज बोलता है साहब.’’

‘‘तो अब शिकायत करने आई है, क्यों…? वैसे, तू करती क्या है?’’ उस ने लहजा सख्त किया.

गुलाबी सकपका गई. वह अब अच्छी तरह समझ गई कि उस ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी दे मारी है. इस के बावजूद गुलाबी ने हिम्मत जुटाई और फिर मोटेमोटे आंसू गिराते हुए धीमी आवाज में बोली, ‘‘मैं गलत काम नहीं करती साहब, पर आज उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला कि मेरे साथ चल.’’ राकेश ने थोड़ी नरमी से कहा, ‘‘मैं ने कब बोला कि तू गलत काम करती है. तू कहती है, तो उसे भी देख लेते हैं… क्या नाम बताया था उस का?’’

‘‘राम सिंह,’’ गुलाबी बोली.

‘‘तुझे कैसे पता कि उस का नाम राम सिंह है?’’

गुलाबी को बताते न बना. राकेश गुलाबी को ताड़ गया कि कहीं दाल में कुछ काला है, फिर भी उस ने सिपाहियों को भेज कर राम सिंह को थाने में बुलवा लिया. राम सिंह बेहद घबराया हुआ था. राकेश अपनी कुरसी को छोड़ कर उठ खड़ा हुआ. सामने कोई बड़ा अफसर नहीं, बल्कि मुलजिम मुखातिब था. उस ने डंडा मेज पर फटकारा और गुलाबी से घूर कर पूछा, ‘‘यही है वह राम सिंह, जो तुझे छेड़ता है?’’

‘‘जी हां..’’

‘‘क्यों बे… यह सही कह रही है?’’ राकेश ने डंडे से राम सिंह की ठोड़ी ऊपर उठाई.

‘‘नहीं साहब… यह झूठ बोलती है, मैं ने कुछ नहीं किया,’’ राम सिंह गिड़गिड़ाया.

‘‘यह तो बोलती है कि तू इसे छेड़ता है? देख, अब कानून इतना सख्त है कि इस की शिकायत पर तू एक बार अंदर गया, तो तेरी जमानत भी नहीं होगी, समझा?’’ राम सिंह का डर के मारे गले का थूक सूख गया. उस ने मुड़ कर एक नफरत भरी नजर से उस औरत को देखा. जी किया कि अभी इस का जिस्म चिंदीचिंदी कर दे, लेकिन उसे अपने ही जिस्म की सलामती पर विश्वास नहीं रहा. राम सिंह घबराया, फिर हिम्मत जुटाने लगा. कुछ देर बाद राम सिंह राकेश के करीब आ कर फुसफुसाया, ‘‘साहब, यह चालू लगती है… मुझे फंसाना चाहती है.’’

राकेश के चेहरे की सख्ती पलभर में हट गई, वह ठठा कर हंस दिया, ‘‘सलमान खान समझता है अपनेआप को, चेहरा देखा है कभी आईने में.’’ ‘‘सच कह रहा हूं साहब… मेरा यकीन मानिए. इसी ने मुझ पर डोरे डाले थे. मैं ही बेवकूफ था, जो इस के झांसे में आ गया. यह पहले ही मेरे 5 हजार रुपए हजम कर चुकी है, अब देने में तकरार करती है,’’ राम सिंह बोला. राकेश वापस आ कर अपनी कुरसी पर बैठ गया और गुलाबी की तरफ डंडा हिलाते हुए पूछा, ‘‘तू ने इस से पैसे लिए थे? सच बता, वरना मैं सख्ती कर के उगलवाना भी जानता हूं.’’ गुलाबी की आंखों में खौफ के बादल तैरते जा रहे थे. ठीक सामने जेल का लौकअप आंखों में घूमने लगा था. वह जल्दी ही टूट गई.

‘‘हां, लिए थे साहब, लेकिन इस ने कीमत वसूल कर ली. अब मेरा इस से कोई लेनदेन नहीं है.’’ ‘‘फिर किस बात की शिकायत ले कर आई है… अंदर कर दूं दोनों को,’’ राकेश ने दोनों की ओर तीखी नजर डालते हुए कहा.

‘इस बार माफ कर दो साहब, आइंदा गलती नहीं होगी,’ दोनों के मुंह से एकसाथ निकला. राकेश सोचने लगा था. एक औरत जात इज्जतआबरू के लिए समाज के वहशी दरिंदों से डर खाती है. अंधेरे में बेखौफ नहीं निकल सकती. दूसरी वे हैं, जो अपने जिस्मानी संबंधों को सामाजिक लैवल पर उजागर कर देती हैं. एक अपनी हद पहचानती है, तो दूसरी हद के बाहर बेखौफ जीती है. उस के लिए दिनरात का फर्क नहीं रहता.

तीर्थाटन की आड़ में

जयपुर के आमेर किले को बड़े कौतूहल से निहारने के बाद मार्था जंतरमंतर के 2 चक्कर लगा चुकी थी. उसे सब कुछ अच्छा तो लगा था, लेकिन कालचक्र की गणना करने वाले यंत्रों में उस की कोई दिलचस्पी नहीं थी. हालांकि उस के दूसरे साथी, पुछल्ले की तरह चिपके हुए गाइड की बातें बड़े गौर से सुन रहे थे. अलबत्ता अखरती धूप अब चुभने लगी थी, जिसे वे लोग हथेलियों से ढांपने की असफल कोशिश कर रहे थे.

मार्था ने उन्हें लौट चलने को कहा भी, लेकिन उन का ध्यान मार्था की तरफ नहीं था. नतीजतन वह गुस्से में पांव पटकती हुई जलेब चौक जाने वाले उस रास्ते की तरफ चली गई, जिस के दोनों ओर दूरदूर तक एंटीक की दुकानों की लंबी कतार थी. मार्था को उधर से गुजरते देख राजस्थानी पोशाक में फंसे हुए से दिखने वाले ‘लपका’ किस्म के लड़के, टूटीफूटी अंगरेजी में दुकानों की तरफ ध्यान बंटाने के लिए उस की तरफ दौड़े भी, लेकिन मार्था ने जब उन्हें आंखें तरेरते हुए उपेक्षित भाव से देखा तो वे वहीं थम गए.

मार्था लगभग एक हफ्ते पहले अपने साथियों के साथ आस्ट्रेलिया से यहां पहुंची थी. दिल्ली होते हुए पहले वे जयपुर आए थे. इस दौरान इस टोली ने जयपुर के तकरीबन सभी टूरिस्ट प्लेसेज देख लिए थे. मार्था की कल्पनाओं में जयपुर राजारानियों का शहर था. पिछले 3 दिनों में उस ने इतिहासकालीन वैभव को जी भर कर देखा. राजस्थानी पोशाक पर उस का मन इतना मचला कि जयपुर पहुंचने के बाद उस ने कई जोड़ी पोशाकें खरीद ली थीं और बदलबदल कर उन्हीं को पहन रही थी. उस समय भी उस ने कांचली और घाघरा पहन रखा था. पोनीटेल की तरह उस के बाल पीठ पीछे बंधे थे.

जलेब चौक का रास्ता आगे जा कर इतिहासकालीन इमारतों से घिरे एक बड़े से चौगान में खत्म होता था. उस ने पीछे मुड़ कर दूरदूर तक नजर दौड़ाई, लेकिन उस के साथी काफी पीछे छूट गए थे. उस ने टूटीफूटी अंगरेजी में राहगीरों से पूछताछ की तो पता चला कि आगे जा कर पोल सरीखा रास्ता गोविंददेवजी के मंदिर की तरफ मुड़ता है. वहां तक घंटेघडि़याल की आवाज भी सुनाई दे रही थी. उसी समय उसे कई लोग अपनी तरफ लपकते नजर आए. मार्था को होटल का रास्ता मालूम था, लेकिन होटल लौटने से पहले वह किसी ट्रैवल एजेंसी से पुष्कर के बारे में कुछ जानकारियां लेना चाहती थी.

त्रिपोलिया की तरफ लौटते हुए उसे थोड़ेथोड़े फासले पर ट्रैवल एजेंसियों के बोर्ड लटकते नजर आए. इस से पहले कि वह कुछ तय कर पाती, पास की ट्रैवल एजेंसी की दहलीज पर उसे एक खूबसूरत सा नौजवान खड़ा नजर आया. आसमानी सूट वाला वह युवक काफी स्मार्ट था. उस के गले में सोने की मोटी चेन लटक रही थी और हाथों में सोने का ब्रेसलेट था.

मार्था को असमंजस में एजेंसियों के बोर्ड की तरफ ताकते देख युवक की नजरें उस पर टिक गईं. उस ने बड़ी शालीनता से अंगरेजी में पूछा, ‘‘आप किस से मिलना चाहती हैं?’’

‘‘आई एम मार्था…मार्था जोंस फ्रौम आस्ट्रेलिया.’’ युवक की तरफ गौर से देखते हुए उस ने अपनी बात पूरी की, ‘‘दरअसल, मैं पुष्कर जाना चाहती हूं, इसी सिलसिले में किसी ट्रैवल एजेंट से मिलना चाहती थी.’’ मार्था उस युवक से काफी प्रभावित लगी.

‘‘लेकिन आप ने यहां आने का वक्त गलत चुना.’’ युवक ने अपना नाम नीरज बताते हुए बोर्ड पर लिखी इबारत की तरफ इशारा किया, जिस पर लिखा था, ‘‘मिलने का समय सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम को 5 बजे से 9 बजे तक.’’

‘‘ओह!’’ अपनी रिस्टवाच की तरफ देखते हुए मार्था थोड़ी मायूस नजर आई. फिर सहज होते हुए बोली, ‘‘कोई बात नहीं, मैं फिर किसी वक्त मिल लूंगी.’’

‘‘आई कांट सी ए डेमसेल इन डिस्टै्रस (मैं किसी सुंदरी को मुश्किल में नहीं देख सकता). आप का इस तरह मायूस होना मुझे अच्छा नहीं लगा.’’ नीरज ने मार्था को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘आप हमारे शहर की मेहमान हैं. इस नाते आप की मदद करना मेरा फर्ज है.’’

‘‘लेकिन…’’ मार्था ने अचकचाते हुए कहा, ‘‘तो फिर बुकिंग अभी कैसे हो पाएगी?’’

‘‘हर समस्या का हल होता है, इस का भी है. आप सिर्फ डिटेल्स दे कर अपने होटल का नाम बता दीजिए और इत्मीनान से लौट जाइए…टिकट आप को आप के होटल में मिल जाएगा.’’

‘‘लेकिन इस के लिए डिपाजिट..?’’ मार्था ने अपना पर्स टटोलते हुए कहा, ‘‘मुझे कंपलीट पैकेज चाहिए. इस के लिए कितना अमाउंट देना होगा?’’

‘‘मैडम! मैं ने आप से कहा न कि आप इत्मीनान से होटल लौट जाइए. पैकेज अमाउंट की बात छोडि़ए. हिसाबकिताब बाद में होता रहेगा.’’ इस से पहले कि मार्था कुछ कह पाती, वह युवक मुसकरा कर हाथ हिलाता हुआ शौप की दहलीज से उतर कर आगे बढ़ गया.

मार्था एक गहरी कसक लिए उसे जाता देखती रह गई.

बेगाने देश में मददगार की सूरत में रूबरू हुए उस शख्स के जादुई सम्मोहन और लच्छेदार बातों में आ कर आस्ट्रेलियाई मूल की मार्था जोंस ने बाद में कितनी जलालत भुगती, उसे उस ने कांपतीलरजती जुबान में एक ही लफ्ज में समेट दिया, ‘‘वह किसी दरिंदे से भी बदतर था.’’

दरअसल, नीरज ने मार्था को प्रभावित करने के लिए अपनी शराफत को बड़े सलीके से सजासंवार कर उस के सामने पेश किया था. मार्था के साथी इतनी जल्दबाजी में पुष्कर जाने को तैयार नहीं थे. बहरहाल, जिस वक्त नीरज उस के होटल पहुंचा, मार्था अपने कमरे में अकेली थी. वह उस के लिए पैकेज के टिकट ले कर आया था.

मार्था की बारबार मनुहार के बावजूद नीरज पुष्कर पैकेज की रकम लेने को तैयार नहीं हुआ. अलबत्ता उस ने यह कह कर उसे चौंकाया, ‘‘पुष्कर जाने का मन तो मेरा भी है. लेकिन कोई मनचाहा संगीसाथी नहीं मिला, अब तुम मिल गईं तो भला मैं यह मौका क्यों छोड़ता. मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा.’’

मार्था नीरज के हावभाव से पहले ही बुरी तरह प्रभावित थी. उस की इस बात ने उस की खुशी को दोगुना कर दिया. अब वह सफर में अकेली नहीं थी, उसे मनचाहा साथी मिल गया था.

मार्था पर क्या गुजरी, पुलिस में दर्ज उस की रिपोर्ट रोंगटे खड़े कर देती है. पुष्कर पहुंचने के बाद वह और नीरज सरोवर में बोटिंग, ब्रह्मा मंदिर दर्शन और कैमल सफारी का आनंद लेते हुए वीडियो रिकौर्डिंग करते रहे. शाम को होटल पहुंचे तो दोनों बुरी तरह थके हुए थे. थकान मिटाने के लिए दोनों ने जम कर व्हिस्की पी.

मार्था ने पुलिस को बताया, ‘‘नीरज होशोहवास में लग रहा था, लेकिन मेरी आंखें मुंदी जा रही थीं. मुझे जानबूझ कर उस ने ज्यादा पिलाई थी. वह मुझ पर हावी होता जा रहा था, जबकि मैं अपने आप को काबू में नहीं रख पा रही थी.

जलालत की हद तब हुई जब उस ने यह कहते हुए मेरे साथ जबरन अप्राकृतिक संबंध बनाए कि तुम फारनर्स तो इस तरह के संबंधों के आदी होते हो. मुझ पर बेहोशी तारी होती जा रही थी. दर्द की लहर मेरे पूरे जिस्म के पोरपोर में भर गई थी. जब होश आया तो नीरज कहीं नहीं था. मेरा सामान और भारीभरकम रकम सब गायब थे. मेरे पहनने के कपड़ों के अलावा मेरे पास कुछ नहीं बचा था. अलबत्ता मार्था को बिलखते देखने के लिए वहां कोई था तो केवल होटल का स्टाफ.

केस भले ही दर्ज हो गया, लेकिन नीरज का पकड़ा जाना इतना आसान नहीं था. कौन जाने उस का नाम नीरज ही था या कुछ और, वह था कहां का. बहरहाल, केस के चक्कर में मार्था भारत में ज्यादा नहीं रुक सकती थी. उस के पास पैसे भी नहीं थे. फलस्वरूप वह एंबेसी से मदद ले कर अपने देश लौट गई.

टर्किश युवती टेसर सेजी की कहानी कुछ अलग है. ओस से भीगी सुबह भले ही हलकीफुलकी ठिठुरन पैदा कर रही थी, लेकिन पुष्कर के रेतीले धोरों पर मतवाली हवाओं में लहराती सी टर्किश बाला टेसर सेजी अपनी कामुक काया से आसपास के लोगों को करंट जैसा झटका दे रही थी. आकर्षक चेहरा, बारीक भौंह, उम्र तकरीबन 22-23 साल. लंबी, छरहरी, गौरांग टेरिस सेजी नशे के सुरूर में ठुमक रही थी. यह भी कह सकते हैं कि अपने यौवन के खुमार में उत्पात मचा रही थी.

जो भी हो, नशे की तमतमाहट ने उस की जवानी की रौनक को दोगुना कर दिया था. वह चलती थी तो उस का लंबा जिस्म बांस की तरह लचकता था. मदहोशी में उस के झूमने का क्या सबब था, कौन जाने. अलबत्ता उस की उन्मुक्तता और गोरी चमड़ी पर लट्टू होने वालों की भीड़ उस के इर्दगिर्द जुटती जा रही थी. परमानंद की अवस्था में पहुंचने की बेचैनी में वह ‘शिवा…शिवा…’ की रट लगाती हुई टूटीफूटी अंगरेजी में ‘आई वांट टू बी फेमस…’ का प्रलाप करते हुए बताने की कोशिश कर रही थी कि वह यहां क्यों आई है.

केसरिया रंग के झीने ब्लाउज में से उस के अंग झांकते से लग रहे थे, साथ ही वह बैंगनी रंग की छाप वाला लोअर पहने थी. टेसर तमाशबीनों को सरकस जैसा मजा दे रही थी. कामकिलोल की मादक भंगिमाओं के साथ शरीर का भड़काऊ प्रदर्शन तमाशबीनों को बेकाबू करता, इस से पहले ही वहां पुलिस आ गई.

उसे काबू करने के लिए एएसआई श्रवण कुमार को काफी मशक्कत करनी पड़ी. अस्पताल पहुंचने तक उस ने कितनी कलाबाजियां खाईं, उस की गिनती न भी करें तो कपालेश्वर तिराहे  पर दरख्तों से बंधे कैमल सफारी वाले ऊंटों के साथ उस का गलबहियां करना तो पूरी पुलिस टीम के लिए काफी भारी पड़ा.

तुलसी गेस्टहाउस में उस के साथ ठहरी उस की महिला मित्र जैकलीन ने जो सूरतेहाल बयान किया, वह चौंकाने वाला था. सेजी के सिर हशीश का नशा चढ़ गया था. बड़े तड़के ही सेजी केरला गोल्ड (शुद्ध हशीश) में अपना पसंदीदा फ्लेवर मिला कर गाढ़े धुएं के नशे में रम गई थी. तभी से वह बेहाल थी. अस्पताल लाने के बाद उसे नींद का इंजेक्शन दिया गया, लेकिन नशे के जबरदस्त डोज के कारण वह भी बेअसर रहा और उस का प्रलाप चलता रहा, ‘आई वांट काम एंड पीस…आई वांट टू बी फेमस.’

तीर्थराज के नाम से देश भर में प्रख्यात पुष्कर का आध्यात्मिक पहलू समझें तो पुष्कर झील में स्नान किए बगैर चारधाम की यात्रा को भी अधूरा माना जाता है. छोटेछोटे मंदिरों और घाटों की वजह से पुष्कर को छोटा बनारस भी कहते हैं.

यहां के पारंपरिक पुष्कर मेले की तो विदेशों में भी खूब धूम है. ऊंटों के झुंडों की गहमागहमी के साथ पुष्कर के सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य तो भुलाए नहीं भूलते. उस समय तो पुष्कर में उच्छृंखलता की घटाटोप घटाएं उमड़ रही थीं, जब शहर में कुछ अरसा पहले ही पर्यटन के नए सवेरे के रूप में पुष्कर मेले में ‘सेक्रेड म्युजिकल फेस्टिवल’ हुआ था.

हकीकत में पर्यटन के रुपहले परदे के पीछे एक भरीपूरी काली दुनिया भी उसांसें भरती है. यह वो पुष्कर नहीं है जिस की आध्यात्मिक छवि लोगों के जेहन में बसती है, बल्कि यह विदेशी सैलानियों की निर्लज्जता और मौजमस्ती का ऐसा घिनौना और दागदार चेहरा भी है, जिसे कोई नहीं देखना चाहता, फिर भी देखना उन की मजबूरी है. यहां शहर की सड़कों, रेत के धोरों, होटलों की छतों, झील के घाटों और पर्वतों की तलहटी में विदेशी पर्यटक हाथ थाम कर प्यार का इजहार ही नहीं करते, बल्कि पूरी लंपटता के साथ मिथुन भंगिमाओं को मूर्तरूप देते हुए भी नजर आ जाते हैं.

कच्ची फैनी की गंध बिखेरती तंग लिबास में बलखाती अर्द्धनग्न विदेशी बालाएं कब आप के करीब से तूफानी अंदाज में गुजर जाएं, पता भी नहीं चलेगा. झील के किनारे नंगधडंग पसर कर धूप सेंकने का इनका अंदाज ही निराला है. कभी धूपछांव तो कभी बारिश की बूंदों सी मचलती इन विदेशी बलाओं के माध्यम से प्यार, दोस्ती, फरेब और लंपटता की छोटीछोटी कहानियां सिलसिलेवार आगे बढ़ती हैं.

कभीकभी एस्टेसी और हशीश की खुराक से परमानंद में आने की बेचैनी इन में बलात संसर्ग की कामना भी जगा देती है. सैक्स रैकेटों की कहानियों की भी यहां कोई कमी नहीं है. पुष्कर एक कश में ‘निर्वाण’ के तलबगारों के लिए ही स्वर्ग नहीं है, बल्कि यहां वहशत का लुच्चा बाजार भी है जो रेव पार्टियों और ट्रांस पार्टियों की शक्ल में फलफूल रहा है.

टर्किश युवती टेसर सेजी क्या बुरी तरह डिप्रेशन में थी? आखिर उस की मनोदशा इस तरह पगलाई हुई युवती जैसी क्यों थी? क्यों वह फेमस होने और सुकून की तलाश का राग अलाप रही थी?

सूत्रों के हवाले से बात करें तो टूटीफूटी अंगरेजी में उस की सहेली जैकलीन ने जो बताया, उस का निचोड़ चौंकाने वाला था. बीते कुछ सालों की मानसिक त्रासदी ने टेसर की जिंदगी के पन्नों को कुछ इस तरह जलाया कि वह अपना चैनसुकून खो बैठी. उसे अपने वर्तमान में कुछ नजर नहीं आता था. यहां तक कि उसे अपना भविष्य और भी ज्यादा स्याह दिखने लगा था.

हशीश और एस्टेसी तो उस के लाइफस्टाइल का हिस्सा बन चुके थे. यह कडि़यल नशा बाबाओं की सोहबत का नतीजा था, जिस में गोते लगाना भारत की आध्यात्मिक परंपराओं का हिस्सा रहा है. जैकलीन ने अपनी फ्रैंड टेसर की व्यथाकथा के मूल कारणों की गिरह खोली.

पिछली बार जब टेसर भारत आई थी तो किसी नागा बाबा के संपर्क में आ गई थी. बाबा ने उसे अपनी शागिर्द भी बना लिया था. लेकिन कुछ दिन बाद नागा बाबा एकाएक कहीं चले गए और लाख कोशिश के बावजूद भी उसे नहीं मिले.

उस ने सुबकते हुए बताया, ‘‘बस, तभी से टेसर बुरी तरह डिप्रेशन में है. उस की बेकाबू मदहोशी की भी यही वजह है.’’

पुष्कर की यह कोई एक कहानी नहीं है. पुष्कर में ऐसी हजारों कहानियां बिखरी पड़ी हैं. आए दिन अपने आप से निर्लिप्त हो कर नशे की मदहोशी में कभी अर्द्धनग्न तो कभी बेलिबास घूमना, सरेआम सैक्स के लिए आमादा हो जाना या फिर नंगधड़ंग हो कर शहर की सड़कों पर दौड़ लगाना, यहां के लोगों के लिए अचंभित करने वाले दृश्य नहीं हैं.

यह सिलसिला भले ही थोड़ा रुकता हो, लेकिन थमता बिलकुल नहीं. नशा तो पुष्कर की नसनस में समा गया है. हर दूसरा पर्यटक जेब में चिलम और रोलिंग पेपर लिए घूमता है. इस के असर से पुष्कर के पुरातनपंथी इलाके भी नहीं बचे हैं.

दबेछिपे तरीके से नशा हर जगह मुहैया है. चरस और गांजा तो यहां चिप्स और कोल्डड्रिंक्स की तरह मिल जाते हैं. हशीश से जुड़ा सामान तलाशने के लिए भी ज्यादा जहमत उठाने की जरूरत नहीं पड़ती.

नशे का जुगाड़ कराने वाले दलाल इटली की चिलम से ले कर अमेरिकी आर्किड की खुशबू वाला पेपर तक मुहैया करा देते हैं. पर्यटकों को और क्या चाहिए? ऐसे नशे में मदहोश और उन्मत्त हो कर विदेशी सैलानी जिस लंपटता पर उतारू हो जाते हैं, उसे देख कर वहशत होने लगती है.

पिछले दिनों एक विदेशी युवती तान्या ने होली बाथ के नाम पर बदकारी का ऐसा नजारा पेश किया कि पूरा शहर शर्मिंदगी में डूब गया था. फिनलैंड की एरिका नामक युवती ने भी ऐसा ही कुछ किया कि देखने वालों के होश फाख्ता हो गए. पहले तो उस ने पूरे कपड़े उतार कर पुष्कर सरोवर के वराह घाट में छलांग लगाई. फिर पानी की सतह पर तैराकी की मुद्रा में चित्त लेट कर लोगों को सैक्स के लिए आमंत्रित करते हुए पूरे सरोवर का चक्कर लगा दिया.

उस की बेशरमी पर कोहराम मचा तो उस ने घाट पर पहुंच कर नंगधड़ंग ही अपने होटल की ओर दौड़ लगा दी. यह संभवत: पहला दृश्य था, जब पुष्कर के लोगों ने नंगी युवती को सड़कों पर दौड़ते देखा.

लोग इसे अभी भूले भी नहीं थे कि एक होटल की छत पर एक विदेशी युवती निर्वस्त्र हो कर अपने पुरुष मित्र के साथ सहवास करते देखी गई. बाद में सनक के चलते वह तेजी से सीढि़यां उतरी और उस ताल में छलांग लगा बैठी, जहां देव प्रतिमाएं बताई जाती हैं. आश्चर्य की बात यह कि इन दृश्यों पर अंगुलियों तो अनेक उठीं लेकिन उसे लताड़ा किसी ने नहीं.

समाजशास्त्रियों का कहना है कि सार्वजनिक स्थलों पर लोगों को आपत्तिजनक स्थितियों में देख कर कोहराम मचाने वाले सांस्कृतिक वालंटियर पुष्कर में क्यों सक्रिय नजर नहीं आते? आखिर यह स्वच्छंदता है या पर्यटन के नाम पर लंपटता का प्रदर्शन?

जापानी युवती मिशेल के लिए पुष्कर एक सपना था, लेकिन सपनों का शहर नहीं. उस के कुछ दोस्त जो पुष्कर हो कर आए थे, उन्होंने उसे पुष्कर के बारे में बढ़चढ़ कर बताया था. फलस्वरूप उस की उत्कंठा प्रबल हो उठी थी. लेकिन पुष्कर का सफर उस की जिंदगी की एक कड़वी याद बन कर रह गया.

मिशेल पुष्कर के जिस गेस्टहाउस में रुकी, वही उस के सपनों की कब्रगाह बन गया. इस से बड़ा विश्वासघात क्या होगा कि जिस गेस्टहाउस के मैनेजर को उस ने अपनी सुरक्षा के लिए 50 हजार रुपए की बड़ी रकम अदा की, वही उस का बलात्कारी बन गया. इतना ही नहीं, उस के रुपएपैसे भी चुरा लिए गए.

बड़ी मुश्किल से वह वहां से बच कर निकली और किसी तरह आगरा पहुंची, जहां उस ने कुछ जानकार लोगों की मदद से रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस ने गेस्टहाउस मैनेजर और उस के कुछ सहयोगियों को गिरफ्तार भी कर लिया. लेकिन इस मामले की छानबीन की गई तो पुलिस यह जान कर अचरज में पड़ गई कि मिशेल के संबंध अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया से थे.

ताज्जुब है कि औनलाइन मैगजीन ‘स्मार्ट ट्रैवल एशिया’ की ओर से किए गए सर्वेक्षण में  पूरे एशिया में राजस्थान को बेस्ट होलीडे डेस्टिनेशन के रूप में छठा स्थान मिला है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कहती हैं, ‘‘कोशिश करेंगे, हम और आगे जाएं.’’ आगे जाना गौरव की बात होगी, लेकिन क्या भदेस रंगों के साथ आगे जाना ठीक होगा?

बकौल मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ‘हम ने राजस्थान में अंतरराष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नया ग्लोबल प्रचार अभियान शुरू किया है. इस अभियान का उद्देश्य राज्य में विदेशी पर्यटकों की संख्या दोगुनी कर के 30 लाख तक पहुंचानी है. बिलकुल नए अंदाज के इस अभियान से पर्यटकों को राजस्थान आने के लिए प्रेरित करना है.’

लेकिन पर्यटन के लिए आने वाली विदेशी युवतियों की बेहयाई का क्या होगा जो तमाम सीमाएं तोड़ देती हैं. कुछ दिन पहले पुष्कर की सावित्री पहाड़ी की तलहटी में बेशरमी का नंगा नाच हुआ. कथित रूप से भारतइजरायल का यह मिलाजुला सांस्कृतिक उत्सव था.

इजरायली बालाओं ने पहले अश्लील चुटकुले सुनाए, फिर शराब के नशे में संगीत की धुन पर स्ट्रिप्टीज की तर्ज में थिरकते हुए न केवल अपने कपड़े उतार फेंके, बल्कि अपने पुरुष साथी के कपड़े उतारने का भी दुस्साहस किया.

कितनी ही विदेशी युवतियों ने पर्यटन की आड़ में यहां स्वच्छंदता, मौजमस्ती और उन्मुक्त यौनाचरण के कीर्तिमान रचे हैं. विदेशी युवतियों की स्वच्छंदता ने धर्मस्थलों के पंडितपुजारियों को भी इतना पथभ्रष्ट कर दिया कि वे नैतिकता के तमाम तकाजे भूल कर कामावेश में आ गए.

पिछले दिनों चौंकाने वाली एक घटना तब घटी जब पूजा करते हुए पुजारी ने मंदिर में आई 2 जापानी बालाओं को अंजुरी में पानी भर कर पति का नाम लेने को कहा. उन युवतियों ने अपने आप को अविवाहित बताया तो उन पर बुरी तरह आसक्त पुजारी ने उन्हें गंधर्व विवाह के लिए आमंत्रित कर के खुद को अपना पति मान लेने को कहा. युवतियों ने जब ऐसा करने से इनकार कर दिया तो पुजारी छेड़छाड़ और अश्लील हरकतों पर उतर आया.

नतीजतन दोनों युवतियों वहां से भागीं और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस के बाद तो पुजारी को पुलिस गिरफ्त में आना ही था. बहरहाल इस में कोई संदेह नहीं है कि पुष्कर समेत राजस्थान के जोधपुर, उदयपुर सरीखे रमणीक ऐतिहासिक शहरों में झीलों और नहरों के किनारे अकसर ट्रांस पार्टियां होती रहती हैं, जिन में नशे में धुत युवकयुवतियों को आपत्तिजनक स्थितियों में फैलेपसरे देखा जाना सामान्य सी बात है.

बेशक राजस्थान विदेशी पर्यटकों की पसंदीदा जगह बन गया है, लेकिन क्या पर्यटन की आड़ में सांस्कृतिक मूल्यों का सर्वनाश करने और सैक्स अपराधों को बढ़ावा देने की इजाजत देना ठीक होगा?

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भले ही लोक देवताओं का खूबसूरत पैनोरमा बना कर धार्मिक और घरेलू पर्यटकों को बढ़ावा देने की कोशिश में हैं. लेकिन क्या इस बेहयाई की कीमत पर? उधर इन घटनाओं को ले कर अजमेर संभाग की पुलिस महानिरीक्षक मालिनी अग्रवाल का कहना है, ‘पर्यटन को अपराध का खोल पहनाने वाले तत्वों पर लगाम कसने के लिए पुलिस पूरी तरह मुस्तैद है.’        

कंपनी की पीठ में छुरा न घोंपें

आजकल नौकरी या जौब बड़ी मुश्किल से मिलती है और यदि वह मिलने के बाद छूट जाए तो आप सड़क पर आ जाते हैं, खासतौर पर तब जब कंपनी से आप को निकाला या बरखास्त किया जाता है. ऐसी स्थिति में कुछ लोग कई बार आत्महत्या तक कर बैठते हैं. पहले तो यह जानना जरूरी है कि आप को नौकरी से क्यों निकाला या बरखास्त किया गया? आमतौर पर नियोक्ता अपने यहां कार्यरत व्यक्ति को तब तक नौकरी से नहीं निकालता, जब तक उस के पास इस की कोई ठोस वजह न हो. प्राय: इस में दोष कर्मचारी का ही होता है. विभिन्न कारणों से आप को नौकरी से हाथ धोना पड़ता है.

यदि आप कंपनी या संस्थान की पीठ में छुरा घोंपने वाला कोई भी कार्य कर रहे हैं यानी व्यक्तिगत लाभ की खातिर कंपनी को चूना लगा रहे हैं अथवा उस के समानांतर अपना व्यवसाय चला रहे हैं तो इसे कंपनी भला कैसे बरदाश्त करेगी?

कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कार्य तो अपनी कंपनी में करते हैं, तनख्वाह भी कंपनी से पाते हैं, लेकिन उन का संबंध किसी अन्य कंपनी से भी होता है. ऐसे में वे अपनी कंपनी की गोपनीय बातें, जैसे कच्चा माल कहां से खरीदते हैं, तैयार माल कहां बेचते हैं, उत्पादन की प्रक्रिया, कंपनी की फाइनैंशियल पोजिशन आदि की जानकारी वहां देते हैं और बदले में मोटी राशि प्राप्त करते हैं. लेकिन आप की इस काली करतूत का कंपनी को कभी न कभी पता लग ही जाता है. ऐसे में भला वह ऐसे दोगले कर्मचारी को क्यों अपने यहां रखेगी?

कुछ ऐसे भी कर्मचारी हैं जो अधिकतर भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं. भ्रष्टाचार सरकारी क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि प्राइवेट सैक्टर भी इस से अछूता नहीं है. बड़ीबड़ी कंपनियां सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दे कर अपना काम निकलवाती हैं. इस के लिए कंपनी के किसी व्यक्ति को भेज कर रिश्वत की पेशकश की जाती है. ऐसे कर्मचारी भी हैं जो कंपनी से रिश्वत के नाम पर 10 लाख रुपए ले जाते हैं, लेकिन देते हैं 5 लाख और 5 लाख रुपए अपनी जेब में रख लेते हैं. रिश्वत की कोई रसीद तो होती नहीं. नियोक्ता तो यही सोचता है कि 10 लाख रुपए ही रिश्वत दी होगी, लेकिन कई बार जब यह पोल खुलती है तो कंपनी द्वारा कर्मचारी को नौकरी से निकाला जाना तय है.

ऐसे कर्मचारियों की भी कमी नहीं है, जिन्हें खरीदबिक्री का जिम्मा मिला होता है. इन में भी कुछ कर्मचारी बेईमान होते हैं, वे खरीदते तो कम मूल्य पर हैं, लेकिन अधिक मूल्य का बिल बनवा लेते हैं और इस तरह से अपने फायदे के लिए कंपनी को आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं.

कुछ कर्मचारी कंपनी में चोरी करते या करवाते हैं या फिर अनधिकृत रूप से माल की निकासी करते हैं. कंपनी के गोदाम में माल के हिसाब में हेराफेरी करते हैं. इस से कंपनी को बड़ा नुकसान होता है. कई बार पुलिस जब तहकीकात करती है तो इस में कंपनी का ही कोई व्यक्ति शामिल पाया जाता है.

ऐसे भी कर्मचारी हैं जो अकाउंट में हेराफेरी करते हैं या कंपनी के पैसों का गबन करते हैं. ऐसे लोग चाहे जितने भी शातिर क्यों न हों, एक न एक दिन पकड़े अवश्य जाते हैं. 

हर कर्मचारी को अपनी कंपनी के प्रति वफादार होना चाहिए. कोई भी कंपनी किसी भी व्यक्ति को जबरदस्ती अपने यहां काम पर नहीं रखती. व्यक्ति द्वारा आवेदन करने पर ही उसे रखा जाता है, यह सोच कर कि वह व्यक्ति ईमानदार और निष्ठावान होगा. अब यदि कोई कर्मचारी अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को साधने की खातिर कंपनी को नुकसान पहुंचाता है तो यह कंपनी की पीठ में छुरा घोंपना ही होगा.              

खरीदारी में जरूरी है समझदारी

शौ पिंग का शौक भला किसे नहीं होता. बस, यह बात अलग है कि किसी को कपड़े खरीदने का शौक होता है तो किसी को ज्वैलरी का. अच्छा ग्राहक वही है जो शौपिंग तो करे, लेकिन अपनी पौकेट का भी ध्यान रखे ताकि शौपिंग के बाद टैंशन न हो. यह बात टीनएजर्स पर तो और भी ज्यादा लागू होती है, क्योंकि उन्हें गिनीगिनाई पौकेटमनी जो मिलती है और उसे ही उन्हें इस तरह खर्च करना होता है जिस से गर्लफ्रैंड भी खुश हो सके और अपने ऐंजौयमैंट पर भी वे पूरा खर्च कर सकें. आइए जानें, कैसे करें शौपिंग :

इंटरनैट का इस्तेमाल करें : आप जो भी सामान खरीदना चाहते हैं उस की जानकारी के लिए एक बार इंटरनैट का इस्तेमाल जरूर करें. इस से आप को अलगअलग ब्रैंड्स के प्रोडक्ट की कीमत का पता चल जाएगा. इसे तुलनात्मक खरीदारी कहा जाता है. आमतौर पर हम एक मल्टीब्रैंडेड स्टोर पर चले जाते हैं और वहां एक ही प्रोडक्ट के विकल्प तलाशते हैं ऐसे में स्टोर के पास पूरा मौका होता है कि वह आप की जेब टटोल कर ब्रैंडेड प्रोडक्ट्स की अलगअलग कीमत बताए. इसलिए इंटरनैट पर कीमत की जानकारी लेना आप की जेब को हलका नहीं होने देगा.

शौपिंग की जगह तय करें : शौपिंग से पहले हम अकसर यह नहीं सोचते कि हमें कहां से क्या खरीदना है. शौपिंग वाले दिन हम पर्स ले कर घर से चल देते हैं मौल्स और स्टोर्स में जगहजगह चक्कर लगाने लगते हैं. आखिर में जो दिखाई दे जाता है उसे खरीद लेते हैं. इस से न सिर्फ समय बल्कि पैसा भी बरबाद होता है इसलिए पहले यह तय कर लें कि आप को कहां से सामान खरीदना है. इस से आप को अच्छी चीजें खरीदने में भी आसानी होगी.

सूची तैयार करें : आप उन जगहों की सूची बना लें जहां आप की पसंद का सामान सही दाम में मिलता है, इस से समय और पैसे दोनों की बचत होती है और सामान भी अच्छी क्वालिटी का मिल जाता है.

बजट 20 फीसदी कम करें : शौपिंग पर निकलने से पहले आराम से बैठ कर बजट तैयार करें कि आप को किस के लिए क्या और कितना खरीदना है. सूची तैयार करते समय ध्यान रखें कि चीजों को प्राथमिकता देते हुए लिखें, ताकि सही समय पर सही चीज खरीदी जा सके. चीजों पर कितना खर्च होगा, उसे जोड़ें और अब 20 फीसदी कम कर दें. खयाल रखें कि अब जो खर्च आया है, उसी पर टिके रहें. सीजन में जहां भी सेल लगी हो उस का ध्यान रखें और अपने बजट व पसंद के मुताबिक खरीदारी करें. खरीदारी के दौरान अपने बजट पर बारबार ध्यान दें ताकि आप बजट से ज्यादा न खर्च दें.

रिटर्न पौलिसी भी जानें : अगर घर जाने पर कोई सामान पसंद नहीं आया तो वह कितने दिन में वापस किया जा सकता है, इस के बारे में भी बात करें. वापस करने पर पैसे मिलेंगे या फिर कोई पर्ची आदि मिलेगी यह भी पूछें.

लेटैस्ट ट्रैंड क्या है पता करें : शौपिंग पर जाने से पहले अखबारों में आने वाले विज्ञापन, इंटरनैट पर सर्च कर लें कि मार्केट में लेटैस्ट क्या चल रहा है ताकि आप कोई आउट औफ फैशन चीज न खरीद लाएं.

सेल में करें समझदारी से शौपिंग : सेल के सीजन में ग्राहकों को लुभाने के लिए कई लुभावने औफर होते हैं. जैसे 2 शर्ट खरीदने पर 1 शर्ट फ्री आदि. 2 शर्ट की जरूरत न होने पर भी हम लालच में खरीद लेते हैं और अपना बजट बिगाड़ लेते हैं इसलिए इस तरह के प्रलोभन में न आएं और उतना ही खरीदें जितनी आप को जरूरत हो.

कौपीराइट मार्क देखें : वैबसाइट के होमपेज पर कौपीराइट मार्क भी जरूर देखें. कौपीराइट साल, मौजूदा साल या एक साल से ज्यादा पुराना न हो. साथ ही वैबसाइट पर कस्टमर केयर का नंबर दिया है या नहीं, यह भी देखना जरूरी है.

शिपिंग औफर : कई साइट्स आप को प्रोडक्ट लेने पर फ्री शिपिंग चार्ज की सुविधा देती हैं जिस से प्रोडक्ट की कीमत और भी कम हो जाती है. अगर फ्री शिपिंग नहीं है तो हमेशा प्रोडक्ट की कीमत शिपिंग चार्ज को जोड़ कर ही देखें, क्योंकि शिपिंग का खर्च भी आप की जेब पर ही पड़ रहा है.

औनलाइन रिव्यू पढ़ें : किसी भी औनलाइन शौपिंग वैबसाइट पर अपने क्रैडिट कार्ड की जानकारी देने से पहले उस के बारे में लोगों के रिव्यू जरूर पढ़ लें.

कंपनी की शर्तों पर भी ध्यान दें : शौपिंग वैबसाइट्स 500 रुपए से अधिक की खरीदारी पर ज्यादातर डिलीवरी फ्री रखती हैं जिसे कस्टमर एक बड़ी सुविधा के रूप में देखता है, लेकिन कभीकभार फ्री डिलीवरी के साथ शर्तें भी लिखी होती हैं, जिन को कस्टमर तवज्जो नहीं देते और देख कर भी नहीं पढ़ते, जिस के कारण कस्टमर को अनजाने में अतिरिक्त पैसे चुकाने पड़ते हैं.

पेटीएम से करें शौपिंग और बनें स्मार्ट ग्राहक : पेटीएम एक प्रकार का औनलाइन बटुआ है, जिस में आप पैसे रख सकते हैं और फिर इस पैसे के जरिए औनलाइन खरीदारी कर सकते हैं. हालांकि इस बटुए में पैसे डालने के लिए आप को डैबिट कार्ड, क्रैडिट कार्ड या फिर औनलाइन बैंकिंग का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन एक बार आप इस में पैसे डाल दें तो फिर आप सिर्फ पेटीएम के जरिए ही उसे खर्च कर सकते हैं.

इस में पैसे रखने की सीमा करीब 10 हजार रुपए है जिसे कुछ कागजी कार्यवाही करने के बाद बढ़ाया जा सकता है. पेटीएम के जरिए आप अपने रोजमर्रा के काम बिना समय गवाए कर सकते हैं. जैसे कि मोबाइल रिचार्ज कराना, बिल भरना, औनलाइन शौपिंग करना, सिनेमा के टिकट बुक कराना और अब तो चाय वाले से ले कर किराना स्टोर तक पेटीएम से भुगतान ले रहे हैं

भ्रामक सेल का सच

जब डिस्काउंट इतना धांसू हो तो कोई भी इंप्रैस हुए बिना कैसे रह पाएगा, तभी तो अखबार में आए पंपलैट से सेल की बात पढ़ कर सुचिता खुद को रोक नहीं पाई और तुरंत अपनी फ्रैंड्स को फोन मिला कर इस बंपर सेल का फायदा उठाने का प्लान बना डाला.

सुचिता की यह बात सुन कर उस की सभी फ्रैंड्स फूली नहीं समाईं, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इस के कारण वे कम बजट में ज्यादा चीजें जो खरीद पाएंगी. इस बात को ले कर वे इतनी ऐक्साइटिड थीं कि दिन में 12 बजे से पहले ही सेल वाली जगह पहुंच गईं. इतनी हड़बड़ाहट थी कि उन्होंने बिना सोचेसमझे ढेरों चीजें खरीद लीं और यह भी नहीं सोचा कि इस की उन्हें जरूरत है भी या नहीं.

खरीदारी कर जब घर आ कर देखा तो अधिकांश कपड़े डिफैक्टिड थे और कई चीजें ऐक्सपायरी हो चुकी थीं, जिसे देखना वे भूल गई थीं, लेकिन अब पछतावे के सिवा उन के पास कुछ नहीं था, क्योंकि ऐक्सचैंज का कोई औप्शन नहीं था.

सभी सुचिता को कोस रही थीं, लेकिन कहते हैं न कि अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत. ऐसे में उन्होंने सबक लिया कि आगे से कभी सस्ते के चक्कर में डिस्काउंट देने वाली ऐसी भ्रामक सेल के जाल में नहीं फंसेंगी.

आप के साथ भी ऐसा कुछ न हो, इसलिए चाहे टीवी पर डिस्काउंट के नाम पर आप को फंसाने की कितनी भी कोशिश की जाए, आप उस में न फंसें.

क्यों है डिस्काउंट का लालच भ्रामक

खराब चीजें मिलती हैं

अकसर सेल में वही चीजें बेची जाती हैं जो बिक नहीं रही होतीं, ऐसी चीजें या तो औफ फैशन होती हैं या फिर उन में कोई न कोई डिफैक्ट होता है, लेकिन इस बात से आप अनजान रहते हैं.

ऐसा ही सोहिका के साथ हुआ. वह एक शू शौप में बाहर सेल का बैनर देख कर बड़ी खुशीखुशी अंदर घुसी.

अंदर जा कर देखा तो एक से बढ़ कर एक सैंडिल, चप्पलें थीं जिन्हें देख कर वह खुद को रोक न पाई और एकसाथ 3 जोड़ी चप्पलें खरीद लीं, लेकिन जब उन्हें यूज किया तो पता चला कि वह बहुत स्लिप हो रही थी जिसे 2 बार भी बड़ी मुश्किल से पहना गया, ऐसे में खुद पर गुस्सा उतारने के सिवा उस के पास कोई रास्ता नहीं था, लेकिन एक बार को तो वह सेल के नाम पर लुट ही गई थी.

डिस्काउंट के नाम पर फूल बनाने की कोशिश

डिस्काउंट के नाम पर फंसा कर आप को अकसर फूल बनाया जाता है, क्योंकि तब आप यह भूल जाते हैं कि कोई भी दुकानदार अपना नुकसान कर के आप को कोई चीज नहीं बेचेगा. अकसर होता यह है कि पहले से ही चीजों के प्राइज बढ़ा दिए जाते हैं, लेकिन आप को लगता है कि एक के साथ एक फ्री मिल रहा है तो इस का मतलब हमें काफी फायदा हो रहा है.

अगर आप त्योहारों के समय लगने वाली सेल पर गौर करें तो आप को पता चल जाएगा कि चीजों के जो रेट फैस्टिवल सेल में लगे होते हैं वे पहले की तुलना में डबल होते हैं, जिस का नुकसान सिर्फ और सिर्फ ग्राहक को होता है. इसलिए समझदार बन कर शौपिंग करें न कि फूल बन कर आ जाएं.

जरूरत से ज्यादा खरीदारी

अकसर आप बड़ेबड़े डिस्काउंट देख कर उन के जाल में बड़ी आसानी से फंस जाते हैं और ऐसी चीजें भी खरीद लेते हैं जो आप के लिए यूजलैस होती हैं. जैसे अगर आप को पैक्ड फूड पर 50त्न डिस्काउंट मिल रहा होता है तो आप सोचते हैं कि एक के बजाय 5-6 पैकेट एकसाथ खरीद लूं, लेकिन जब घर आ कर सोचते हैं कि इस का तो कोई यूज नहीं है क्योंकि हमारे यहां इसे खाने वाला जो नहीं है, जिस से सिर्फ आप के पैसे ही बरबाद होते हैं.

ऐक्सपायरी प्रौडक्ट खरीदने से सेहत को नुकसान

अकसर आप देखते होंगे कि जब भी कोई प्रौडक्ट ऐक्सपायरी होने वाला होता है तो उसे क्लीयरैंस सेल में 50, 60, 70त्न तक के डिस्काउंट पर शौपिंग मौल्स में बेचा जाता है. इतने भारी डिस्काउंट के चक्कर में आप ढेरों खानपान की चीजें खरीद डालते हैं.

खरीदते समय आप यह नहीं सोचते कि इतनी चीजें जो आप ने खरीदी हैं उन्हें आप को ऐक्सपायरी खत्म होने से पहलेपहले खाना भी पड़ेगा. जल्दीजल्दी खत्म करने के चक्कर में आप अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ ही करते हैं. इसलिए सस्ते के चक्कर में ऐसी बेवकूफी न करें.

नो रिफंड, नो ऐक्सचेंज

चाहे सेल औफलाइन हो या फिर औनलाइन, एक बात तो तय है कि एक बार खरीदी गई चीज न तो रिफंड होती है, न ही ऐक्सचेंज और न ही आप बारगेनिंग कर पाते हैं. ऐसे में जब आप घर आ कर देखते हैं कि पीस में डिफैक्ट है या फिर साइज में प्रौब्लम है, तब भी आप उसे ऐक्सचेंज नहीं कर पाते, जिस से पैसे भी लग जाते हैं और चीज भी पसंद की नहीं मिल पाती.

क्वालिटी से समझौता

डिस्काउंट में जरूरी नहीं कि आप को ब्रैंडेड चीजें ही मिलें. सेल में मिक्स सामान बेचा जाता है, जिस से आप को डिस्काउंट के चक्कर में हर हाल में क्वालिटी से समझौता करना ही पड़ता है, जिस से जो कुछ आप ने खरीदा है उस का कोई खास फायदा नहीं मिल पाता.

बेची जाती हैं यूज्ड चीजें

कई बार तो यह भी देखने में आता है कि डिस्काउंट में यूज्ड कपड़े वगैरा ज्यादा बेचे जाते हैं. बस, उन्हें इतनी अच्छी तरह प्रैजेंट किया जाता है कि कोई भी यह अंदाजा नहीं लगा पाता कि कपड़े पुराने हैं या नए. इस से सिर्फ आप ही लुटते हैं.

हड़बड़ी में खरीदते हैं

जब भी हम सेल की बात सुनते हैं तो हमारा मन खुशी के मारे फूला नहीं समाता. हमें लगता है कि हम जल्दी से वहां पहुंच जाएं और सभी चीजें खरीद डालें. इस चक्कर में हम हड़बड़ी में शौपिंग कर के न कलर चैक करते हैं, न साइज और न यह देखते हैं कि इस में कोई डिफैक्ट तो नहीं है, जिस से हम अपना बजट तो बिगाड़ते ही हैं साथ ही नुकसान भी उठा बैठते हैं.

इस तरह डिस्काउंट का लालच आप के लिए नुकसानदायक ही साबित होता है.                        

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