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मैं 21 वर्षीय विवाहिता हूं. सहवास के बाद मैं तुरंत खड़ी हो जाती हूं. क्या इसीलिए मैं गर्भधारण नहीं कर पा रही.

सवाल

मैं 21 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 1 साल हो चुका है. अभी तक मुझे मातृत्व सुख नहीं प्राप्त हुआ है. सहवास में निवृत्त होने के बाद मैं तुरंत खड़ी हो जाती हूं. क्या इसीलिए मैं गर्भधारण नहीं कर पा रही? गर्भधारण करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? क्या मुझे किसी तरह की जांच करानी चाहिए?

जवाब

अभी आप की उम्र बहुत कम है और शादी में भी सिर्फ 1 वर्ष ही हुआ है, इसलिए मातृत्व को ले कर आप को अभी चिंतित होने की जरूरत नहीं है. अभी कुछ वर्ष आप वैवाहिक जीवन का आनंद लें. शारीरिक और मानसिक तौर पर जब आप मातृत्व वहन करने के योग्य हो जाएंगी तब इस विषय में सोचें. जहां तक सहवास के बाद खड़े हो जाने की बात है तो इस से गर्भधारण करने में कोई व्यवधान नहीं पड़ता.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

मैंने कितना अच्छा काम किया है, यह दर्शक तय करेंगे: आर्ट मलिक

1979 में फिल्म ‘‘मोंक’’ में एक बिजनेसमैन, 1982 में ब्रिटिश सीरियल ‘‘ज्वेल इन द क्राउन’’ में हरी कुमार, 1984 में ‘‘पैसेज टू इंडिया’’ में महमूद अली, 1992 में फिल्म ‘‘सिटी आफ ज्वाय’’ में अशोका, हाल ही में ब्रिटेन के चैनल फोर पर प्रसारित सीरियल ‘‘इंडियन समर’’ में भारतीय महाराजा अमृतपुर, फिल्म ‘ट्यू लाइज’ में इस्लामिक आतंकवादी, भारतीय फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ में मिल्खा सिंह के पिता संपूरण सिंह के किरदार लोगों के दिलों दिमाग में बसे हुए हैं. इन किरदारों को निभाने वाले अभिनेता आर्ट मलिक भी लोगों के दिलो दिमाग में छाए हुए हैं. 62 वर्षीय अभिनेता आर्ट मलिक लंदन में रहते हैं. अब वह सात अक्टूबर को प्रदर्शित हो रही राकेश ओमप्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में राजस्थानी किरदार में नजर आने वाले हैं.

62 वर्षीय ब्रिटिश अभिनेता आर्ट मलिक ने 1979 में ब्रिटिश सीरियल व फिल्म में अभिनय करना शुरू किया था और 1980 में ही उन्हे बतौर अभिनेता अंतरराष्ट्रीय शोहरत मिल गयी थी. आर्ट मलिक के अभिनय करियर पर गौर किया जाए, तो एक बात स्पष्ट रूप से उभरती है कि आर्ट मलिक ने कई ब्रिटिश व अमरीकन फिल्म व सीरियलों में न सिर्फ भारतीय पृष्ठभूमि के किरदार निभाए, बल्कि 1982 से अब तक वह कई बार भारत शूटिंग के लिए आ चुके हैं. आर्ट मलिक ने पहली बार राकेश ओमप्रकाश मेहरा निर्देशित हिंदी फिल्म ‘‘भाग मिल्खा भाग’’ में अभिनय किया था और अब उनकी दूसरी हिंदी फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ है, जिसके निर्देशक भी राकेश ओमप्रकाश मेहरा ही हैं.

आर्ट मलिक ने फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में अभिनेत्री सैयामी खेर के राजस्थानी लड़की शुचि के पिता का किरदार निभाया है. इस फिल्म के लिए आर्ट मलिक ने सैयामी खेर, हर्षवर्धन कपूर, के के रैना व अनुज कपूर के साथ शूटिंग की. इस फिल्म में वह अतिशुद्ध हिंदी बोलते हुए नजर आएंगे. जबकि आर्ट मलिक ठहरे ब्रिटिश नागरिक. उपर से 37 वर्षों से ब्रिटिश व अमरीकन लहजे वाली अंग्रेजी भाषा ही बोलते आए हैं. ऐसे में वह शुद्ध हिंदी भाषा कैसे बोल पाए?

जब हमने आर्ट मलिक यही सवाल किया, तो आर्ट मलिक ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से एक्सक्लूसिव बात करते हुए कहा-‘‘आपने बहुत अच्छा सवाल किया. मैंने अब तक ब्रिटेन व अमरीका में बने अंग्रेजी भाषा की ही फिल्में व सीरियल किए हैं. मगर यदि मैं हिंदी में कोई फिल्म करने जा रहा हूं, तो मेरी अंग्रेजी फिल्मों की पहचान रखने वाले कह सकें कि मैंने हिंदी में भी अच्छा काम किया है. मैं चाहता था कि सभी हिंदी भाषी और हिंदी भाषा की फिल्में देखने वाले कह सकें कि मैं अच्छी हिंदी बोल सकता हूं. अच्छी हिंदी फिल्म कर सकता हूं. इसलिए मैंने अपनी तरफ से हिंदी भाषा पर काम किया. फिल्म में अच्छी हिंदी बोली है. पर मैने हिंदी में कितना अच्छा काम किया है, यह दर्शक ही तय करेंगे.’’

आर्ट मलिक ने आगे कहा-‘‘हम राजस्थान में शूटिंग कर रहे थे. मैं अपने आस पास के सभी कलाकारों, ड्रायवर, स्पाट ब्वाय व दूसरे अन्य लोगों से हिंदी में ही बात करता था. मेरे लिए हर दिन एक नई चुनौती भरा दिन हुआ करता था. मैं अपने ड्रायवर से कह देता था कि मुझे यह संवाद पढ़कर सुनाए और उस वक्त मैं उसके उच्चारण को बड़े ध्यान से सुनता था. सेट पर अनुज चैधरी या हर्षवर्धन कपूर या सैयामी से भी मैं संवाद पढ़वाता था. मसलन-मैं कहूंगा कि ‘बहोत हो गया’. पर हिंदी में यह होगा ‘बहुत हो गया.’ इस तरह से सभी अल्फाज सही बोलने थे. मेरा किरदार राजस्थान का है. वैसे राकेश ने मेरी हिंदी के उच्चारण को सही बताने के लिए अलका अमीन को मेरे साथ किया था. अलका अमीन अभिनेत्री हैं और मुंबई में ही रहती हैं. वह भी राजस्थान आयी हुई थी. मैंने जो कुछ सही किया है, उसका श्रेय अलका अमीन को  जाता है.’’

उन्होंने आगे कहा-‘‘मैं काम तो सैयामी खेर, अनुज चैधरी व हर्षवर्धन कपूर के साथ कर रहा था. सेट पर मैं अक्सर सैयामी खेर या अनुज से पूछता था कि मैं इस शब्द का सही उच्चारण कर रहा हूं. यदि कहीं समस्या होती, तो वह कह देते थे कि इसे इस तरह से कर सकते हैं. के के रैना भी मेरी मदद करते थे.’’

जब हमने आर्ट मलिक से राजस्थान को लेकर सवाल किया, तो आर्ट मलिक ने कहा-‘‘मैं आज से चौंतीस वर्ष पहले 1982 में टीवी सीरियल ‘ज्वेल इन द क्राउन’ की शूटिंग के लिए पहली बार ब्रिटेन से भारत पहुंचा था. हमने इस सीरियल की शूटिंग राजस्थान में की थी. मुझे राजस्थान बहुत पसंद आया था. अब चौंतीस वर्ष बाद जब फिर से राजस्थान पहुंचा, तो इस बार भी मुझे राजस्थान बहुत पसंद आया. पर अब काफी बदलाव आ गया है. अब तो पूरा भारत बदल चुका है. अब भारत तो वैश्विक शक्ति बन चुका है. अर्थ यानी कि इकानोमी को लेकर भी भारत विश्व पटल पर अपनी हैसियत रखता है. फिल्मों के निर्माण में भारत अब किसी से पीछे नहीं है. हौलीवुड की ही तरह भारत में भी आधुनिक तकनीक के साथ फिल्में बन रही हैं. लोग माने या न माने, मगर भारतीय फिल्में हौलीवुड फिल्मों को जबरदस्त टक्कर दे रही हैं.’’

पिछले 34 वर्षों के अंतराल में भारत में आए बदलाव को आप किस तरह से देखते हैं? इस सवाल पर आर्ट मलिक ने कहा-‘‘बहुत बड़ा बदलाव है. मैंने पहले ही कहा कि भारत की आर्थिक स्थिति बहुत बेहतर है. जिंदगी बदल चुकी है. हालात यह हो गए हैं कि कल तक भारत के लोग दूसरे देशों की तरफ भाग रहे थे, पर अब लोग भारत की तरफ भाग रहे हैं. सच कहूं तो भारत के लोग खुद अपने देश की क्षमता व ताकत को नही समझ पा रहे हैं.’’

जब हमने आर्ट मलिक से पूछा कि ब्रिटेन में रहते हुए उन्होंने ब्रिटिश व अमरीकन फिल्मों व सीरियलों में जो किरदार निभाए, उससे भारत के प्रति उनका एक पैशन नजर आता है. यह पैशन क्या है? इस सवाल पर आर्ट मलिक पहले तो जोर से हंसे, फिर कहा-‘‘मुझे नही मालूम….पर भारत को लेकर मैं हमेशा पैशनेट रहा हूं. यह एक अति खूबसूरत देश है. सच कह रहा हूं भारत में रहने लोग खुद ब खुद भारत को नहीं समझते. हम हजारों किलोमीटर दूर बैठे देखते हैं कि कैसे इस देश ने तरक्की की है. विविध धर्म व विविध भाषा के लोग कैसे एक साथ रहते हैं. आखिर यह देश किस तरह से चलता है? पहले ब्रिटिश राज्य में पुर्तगाल व ब्रिटेन सहित कई देशों के लोग भारत गए थे. मगर भारत की आजादी के बाद हम देख रहे थे कि भारतीय रोजगार या अन्य वजहों से भारत छोड़कर दूसरे देशों की तरफ भाग रहे हैं. मगर अब हालात ऐसे हो गए हैं कि यूरोप व पश्चिमी देशों के लोग भारत जाना चाहते हैं. भारत जाकर काम करना चाहते हैं. भारत में व्यापार करना चाहते हैं. लोग देखना व समझना चाहते हैं कि भारत की कार्यशैली क्या है, वह किस तरह तरक्की कर रहा है. अब लोग भारतीयों से मिलना चाहते हैं. मेरी राय में भारत के लिए यह खुशनुमा, बहुत प्यारा और अच्छा समय है. मेरे दोस्त अक्सर आकर हमसे कहते हैं कि वह भारत गए थे. वह हमारे पास आकर भारत का गुणगान करते हैं.’’

जब हमने उनसे पूछा कि 37 साल के अभिनय करियर में वह सिनेमा मे आए बदलाव को किस तरह से देखते हैं? तो आर्ट मलिक ने कहा-‘‘परिवर्तन प्रकृति का नियम है. पहले लोग अपनी कहानियों पर फिल्म बनाते थे. उस वक्त ब्रिटिश या हौलीवुड की फिल्मों व सीरियलों में लीड किरदार उनके अपने ही होते थे. पर अब ऐसा नही रहा. अब तो कई फिल्म व सीरियल में लीड किरदार भारतीय कलाकार निभा रहे हैं. यह असाधारण बदलाव है. अब ब्रिटेन या अमरीका का फिल्मकार कहता है कि हम अपने बारे में तो जानते हैं, पर हमें दूसरों के बारे में जानने की जरुरत है. इस वजह से भी अब भारत में हौलीवुड फिल्मकार शूटिंग करने पहुंच रहे हैं. यही वजह है कि भारतीय फिल्मों के दर्शक दूसरे देशों में तेजी से बढ़े हैं. मैं दावे के साथ यह बात कह रहा हूं कि भारतीय फिल्में भारतीय डायसफोरा के बियांड पसंद की जा रही हैं. आपको पता ही होगा कि राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ का यूरोपीय प्रीमियर अगले सप्ताह हमारे यहां लंदन में ‘लंदन फिल्म फेस्टिवल’ में हो रहा है. यह बहुत अच्छी बात है.’’

फुटबाल देखने के शौकीन आर्ट मलिक से जब हमने उनके अन्य शौक को लेकर सवाल किया, तो आर्ट मलिक ने कहा-‘‘अब 62 वर्ष का हो गया हूं. मेरा अपना परिवार है. मेरे घर में बहुत बड़ी लायब्रेरी है. जिसमें हजारों किताबें हैं. गार्डनिंग करने का भी शौक है. जब मैं घर पर रहता हूं तो मुझे बागवानी करना अच्छा लगता है. मेरी लायब्रेरी में हर तरह की किताबें हैं .इनमें फिक्शन , नान फिक्शन व आटो बायोग्राफी का भी समावेश है. मेरी अपनी आदत रही है कि जब किसी ने मुझसे कहा कि यह किताब पढ़ी जानी चाहिए, तो मैंने उस किताब को खरीदा और पढ़ा. फिर वह किताब मेरी लायब्रेरी का हिस्सा बन गई. मैने ‘अनादर डे’, ‘कराची’, ‘राइज किंग्सटन एंड एक्स्प्लेन’ जैसी कुछ लघु कहानियां भी लिखी हैं.’’ 

‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से लौटा आत्मविश्वास

उडी हमले में सेना के 18 जवानों के शहीद होने के बाद से केन्द्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी बैकफुट पर चली गई थी. लोकसभा चुनाव के समय उस समय प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान को लेकर जिस तरह के बयान दिये थे. अब वही उस पर भारी पड़ने लगे थे. इनमें 2 तरह के बयान सबसे ज्यादा चर्चा में रहे. पहला 56 इंच का सीना और दूसरा 1 सिर के बदले 10 सिर काट के लाने वाले बयान प्रमुख रहे. उडी हमले के बाद पूरे देश में सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक में नरेन्द्र मोदी के लोकसभा चुनाव वाले बयान चर्चा में आ गये. केवल प्रधानमंत्री ही नहीं, पूरी भाजपा पार्टी बैकफुट पर दिखने लगी. देश भर से लोगों का सरकार और पार्टी पर दबाव बढ़ गया.

उडी हमले के एक सप्ताह के बाद केरल में भाजपा नेशनल कांउसलिंग की मीटिंग में पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से उडी हमले पर सार्वजनिक रूप से बयान दिया. इस बयान में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के विकास और पाकिस्तान की बदहाली की चर्चा की. इसके साथ ही साथ केन्द्र सरकार ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में पाकिस्तान की आलोचना, सिन्धू जल समझौता और सार्क सम्मेलन के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने का शुरुआत कर दी. भारत पाकिस्तान से मोस्ट फेवरेट नेशन का दर्जा वापस लिये जाने पर भी विचार करने लगा.

केन्द्र सरकार के इतने सारे प्रयासों के बाद भी देश के लोगों में सरकार के प्रति भरोसा नहीं बन पा रहा था. देश का आम जनमानस इस बात के लिये तैयार नहीं था कि पाकिस्तान को केवल कूटनीति के मुद्दे पर जबाव दिया जाये. देश की जनभावना यह थी कि पाकिस्तान को उसकी भाषा में ही जवाब दिया जाये. जिस तरह से उसने देश की सेना के सोते हुये जवानों पर कायराना हमला किया है, उसी तरह से भारत को पाकिस्तान में घुस कर जवाब देना चाहिये.

केन्द्र सरकार पर इस बात का दबाव था. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष में रहते ऐसे ही जबाव देने की बात करते थे. अब बारी खुद कुछ कर दिखाने की थी. 29 सितम्बर की रात भारत ने पीओके में ‘सर्जिकल स्ट्राइक‘ करके 40 आतंकवादियों को मार गिराया, उसके बाद से देश में केन्द्र सरकार के प्रति भरोसा बढ़ गया है. जिससे केन्द्र सरकार का खुद आत्मविश्वास वापस आ गया है. पूरी घटना को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सफल रणनीति और साहसिक कदम को सफलता का श्रेय दिया जा रहा है. इससे भाजपा और केंद्र सरकार जनता के बीच साख बचाने में सफल हो गई है.

अभी जनता भले ही खुश हो और केन्द्र सरकार अपने आत्मविश्वास को बढ़ा हुआ महसूस कर रही हो, पर यह मसला इतना सरल नहीं है. पाकिस्तान की तरफ से सीमा पर उत्पात मचाने की संभावना बनी हुई है. जिसका असर न केवल भारत-पाकिस्तान के आपसी रिश्तों पर पड़ेगा, बल्कि पूरा दक्षिण एशिया तनाव के माहौल में है. इसका असर भारत के विकास और शांति पर पड़ेगा. भारत और पाकिस्तान दोनो ही परमाणु सम्पन्न देश हैं. ऐसे में आपसी संबंधों को सहज करने की कोशिश होनी चाहिये. देशहित में है कि भारत-पाक के रिश्तों को लेकर राजनीतिक फायदे का प्रयास नहीं होना चाहिये. जिससे यह संबंध जल्द सहज हो सकेंगे.

                   

बेहतर है रिलायंस जियोचैट, जानें खासियत

विदेशी ऐप्लीकेशन भारत में काफी ज्यादा संख्या में इस्तेमाल की जाती हैं. व्हाट्सऐप, फेसबुक जैसी ऐप्स पहले भी भारत में काफी फेमस हैं. लाखों, करोड़ों यूजर्स व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करते हैं.

लेकिन लगता है भारत की एक चैट ऐप अब इन सभी ऐप्स को टक्कर दे सकती है. हम बात कर रहे हैं रिलायंस के जियोचैट की. यह ऐप व्हाट्सऐप और हाइक जितनी ही मजेदार है साथ ही कई नए और आकर्षक फीचर्स के साथ आती है. इस ऐप को गूगल प्ले और आईट्यून्स स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है.

जियोचैट के काफी सारे फीचर्स आपको व्हाट्सऐप, फेसबुक मैसेंजर जैसे लगेंगे, लेकिन इस ऐप में काफी कुछ खास और अलग है. अब सबसे बड़ा सवाल है कि व्हाट्सऐप की इतनी लोकप्रियता होने के बाद क्या यह ऐप अपनी जगह बना पाएगी?

इसीलिए यहां हम बात कर रहे हैं उन खास फीचर्स की जो इसे अन्य से बेहतर साबित करते हैं.

नॉर्मल मैसेजिंग

जियोचैट ऐप में आप अपने नंबर से साइन अप कर मैसेज भेजना शुरू कर सकते हैं. यह बेहद सिम्पल है. तीनों ही ऐप हमेशा के लिए फ्री हैं. आप अपने दोस्तों को बिना इंटरनेट के भी मैसेज कर सकते हैं, आप जैसे ही इंटरनेट से कनेक्ट होंगे आपके मैसेज डिलीवर हो जाएंगे.

ग्रुप चैट

जियो चैट की सबसे अच्छी बात है कि इस ऐप में आप 500 सदस्यों तक का ग्रुप बना सकते हैं. जबकि व्हाट्सऐप में इसकी लिमिट 256 तक है.

इमेज और फाइल

आप तीनों ही ऐप में पीडीएफ, डॉक्स, एमपी3 और इमेज आदि भेज सकते हैं. जबकि जियो चैट में आप इमेज को भेजते हुए उस पर डूडल कर सकते हैं जो कि व्हाट्सऐप पर फिलहाल तो नहीं है.

वॉइस कॉल

तीनों ही ऐप में वॉइस कॉल सपोर्ट दिया गया है. आप अपने दोस्तों को कभी भी कॉल कर सकते हैं वो भी एक दम फ्री.

वीडियो कॉलिंग

जियो चैट में वीडियो कॉल का सपोर्ट है. इससे भी मजेदार बात यह है कि आप इसमें ग्रुप वीडियो कॉल भी कर सकते हैं. जबकि मैसेंजर में आप एक के साथ ही वीडियो कॉल कर सकते हैं.

फॉलो करें चैनल्स

जियो चैट यूजर्स को पॉपुलर ब्रांड और कंपनियां चैनल के जरिए फॉलो करने की सुविधा देती हैं. जिससे यूजर्स लेटेस्ट ट्रेंड्स और प्रमोशनल ऑफर को जान पाएं.

घर पहुंचते ही खुद हट जाएगा फोन का पासवर्ड

कई लोग फोन को सुरक्षित रखने के लिए पासवर्ड या पैटर्न लॉक का इस्तेमाल करते हैं. अगर आप चाहते हैं कि घर पर या किसी भरोसेमंद जगह पर बार-बार पासवर्ड डालने की जरूरत न पड़े तो एंड्रॉयड में इससे बचने का भी विकल्प है.

इसके लिए ‘सेटिंग्स’ में जाएं और वहां दिए गए ‘स्मार्ट लॉक’ के फीचर पर टैप करें. फिर ‘ट्रस्टेड प्लेसेस’ पर जाएं और यहां उन स्थानों की लोकेशन दें जहां पहुंचने पर फोन का पासवर्ड अपने आप हट जाए.

फोन का यह फीचर जीपीएस सेंसर का इस्तेमाल करता है. हालांकि यह सुविधा एंड्रॉयड 5.0 लॉलीपॉप या उसके ऊपर के वर्जन के स्मार्टफोन यूजर ही इस्तेमाल कर सकते हैं.

इससे नीचे के एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करने वाले यूजर फोन में ‘स्मार्ट लॉक स्क्रीन’ एप्लीकेशन इंस्टॉल कर सकते हैं.

गलती से डिलीट हुए नोटिफिकेशन वापस पाएं

कई बार यूजर गलती से नोटिफिकेशन पैनल पर दिखने वाली सभी नोटिफिकेशन डिलीट कर देते हैं. अगर उन्हें कुछ समय बाद यह लगे कि कोई नोटिफिकेशन जरूरी थी तो उसे वापस पाया जा सकता है.

इसके लिए अपने स्क्रीन के किसी खाली हिस्से पर लंबे टाइम तक प्रेस करें. फिर विजेट्स पर जाएं. इसे स्वाइप करने पर सेटिंग शॉर्टकट का विकल्प दिखेगा.

इसके बाद एक मेन्यू खुलेगा जहां पर आप नोटिफिकेशन लॉग पर टैप करें. इसके बाद डिस्प्ले या होमस्क्रीन पर नोटिफिकेशन लॉग का शॉर्टकट आ जाएगा. इस पर क्लिक करने से यूजर नोटिफिकेशन हिस्ट्री चेक कर सकते हैं.

भारत में जल्द लागू होगा DRS: कोहली

भारतीय टेस्ट कप्तान विराट कोहली ने कहा कि उनकी टीम ने DRS (डिसीजन रिव्यू सिस्टम) पर चर्चा की है और निश्चित रूप से भविष्य में इसे शामिल किया जाएगा. कोहली ने कहा, 'हम कड़ा फैसला नहीं करेंगे क्योंकि हमने ही पहले कहा था कि हम DRS का इस्तेमाल नहीं करेंगे.'

उन्होंने कहा, 'हमारे लिए यह कहना कि अंपायरों ने गलती की और यह हमारे खिलाफ गए, यह तार्किक नहीं है. बहाने बनाने की कोई जगह नहीं है. एक बार यह DRS शुरु हो जाए और चलने लगे तो हम इसकी कमियों के बारे में सोच सकते हैं.'

जब इस युवा कप्तान से हाल में संदेहास्पद फैसलों के बारे में पूछा गया जो DRS की अनुपस्थिति में भारत के खिलाफ गए तो उन्होंने कहा, 'उन चीजों के बारे में मैं यहां बैठकर हां या नहीं कह सकता हूं. हमने चर्चा की थी. हमने इस बारे में बैठकें की हैं. ऐसे कुछ क्षेत्र हैं, जिनके बारे में बहस की जा सकती है, विशेषकर हॉक आई पर गेंद की दिशा मालूम करना. इस पर चर्चा या बहस हो सकती है. हमें निश्चित रुप से इसके बारे में सोचने की जरुरत है. लेकिन मैं यहां बैठकर फैसला नहीं ले सकता हूं.'

बता दें कि कानपुर टेस्ट में न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियमसन ने रविंद्र जडेजा की बाहर जाती गेंद को खेलने की कोशिश में इस पर हल्का सा बल्ला लगा दिया, जो विकेटकीपर रिद्धिमान साहा के पास पहुंचा लेकिन अंपायर ने बल्ले के गेंद को छूने की आवाज नहीं सुनी और उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

उल्लेखनीय है कि बीसीसीआई हमेशा ही DRS पर क्रिकेट की पूरी दुनिया के खिलाफ रहा है और दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड हमेशा अपने शुरुआती पक्ष के साथ अडिग रहा है कि वह इस तकनीक का विरोध जारी रखेगा क्योंकि यह 'फुलप्रूफ' नहीं है. बोर्ड अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने हालांकि पिछले महीने कहा था कि वह 'हॉक आई' के बिना DRS को स्वीकार कर सकते हैं.

सस्ते स्मार्टफोन हैं खतरनाक

बाजार में कम कीमत के स्मार्टफोन की बाढ़ आई हुई है. लेकिन आईटी मंत्रालय का कहना है कि ये सस्ते फोन साइबर सुरक्षा के लिए लिहाज से सुरक्षित नहीं हैं. ऐसे फोन से बैंक के लेनदेन, क्रेडिट कार्ड के लेनदेन या किसी अन्य योजना का सत्यापन करना खतरनाक हो सकता है. साइबर चोर इनमें आसानी से सेंध लगा सकते हैं. मंत्रालय इस बारे में जल्द एक परामर्श जारी करने की तैयारी में हैं.

इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्यौगिकी विभाग की एक आंतरिक रिपोर्ट में कहा गया है कि मोबाइल फोन के जरिये ऑनलाइन लेनदेन तेजी से बढ़ रहा है. मोबाइल फोन तमाम योजनाओं में ओटीपी सत्यापन का जरिया बन रहे हैं. लेकिन यह साइबर सुरक्षा के लिहाज से चिंताजनक है. इसकी दो वजहें हैं. एक, मोबाइल में साइबर सुरक्षा के इंतजामों को लेकर कोई ठोस मानक या नीति नहीं बनी है. दूसरे, लोगों के हाथ में तेजी से सस्ते स्मार्टफोन आ गए हैं, जिनमें साइबर सुरक्षा को लेकर न तो पहले से प्रावधान है, न ही कर पाना संभव है.

आईटी मंत्रालय के विशेषज्ञों के अनुसार, साढ़े पांच हजार रुपये से कम कीमत वाले स्मार्टफोन साइबर हमले के हिसाब से सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं. इन फोन के एंड्रायड प्लेटफार्म में साइबर सुरक्षा उपायों की कमी है.

विशेषज्ञों का कहना है कि साइबर चोरी के हमले के अलावा ऐसे फोन में मौजूद अन्य किस्म के डाटा चोरी की संभावना भी ज्यादा है. विशेषज्ञों के अनुसार, महंगे फोन में सुरक्षा इंतजाम होते हैं, इसलिए उन्हें यह खतरा कम है. लेकिन यह कहना सही नहीं है कि वे पूरी तरह सुरक्षित हैं.

क्यों असुरक्षित हैं कम कीमत के मोबाइल

– एंड्राइड में कई किस्म के हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर होते हैं. सस्ते फोन में इन्हें ओपन सोर्स से तैयार किया जाता है, जिसमें सॉफ्टवेयर कोड सीक्रेट नहीं होता.

– फोन में इनबिल्ड साइबर सुरक्षा एप होने चाहिए. लेकिन सस्ते फोन में इन बिल्ड साइबर सुरक्षा एप या तकनीक नहीं होती.

– सस्ते स्मार्टफोन में मेमोरी कम होती है. ऐसे में उसमें सुरक्षा से जुड़े सॉफ्टवेयर डालना मुश्किल है, क्योंकि उन्हें लोड करने के लिए फोन में खाली मेमोरी होनी चाहिए.

– इसलिए जिन लोगों को स्मार्टफोन से बैंक और क्रेडिट कार्ड संबंधी कार्य करने हों वे फोन खरीदते समय उपरोक्त फीचर्स की जानकारी अवश्य ले लें.

मुलायम-अखिलेश मनमुटाव

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के बीच पिता पुत्र की अनबन अब छनछन कर बाहर आने लगी है और अकबर व सलीम की अनारकली को ले कर लिखी गई कहानी की तरह ये दोनों आमनेसामने हैं. यह कोई अचरज की बात नहीं है. घर हो, व्यापार हो या राजनीति, विचारों की विभिन्नता तो रहेगी ही और इसीलिए  शशि थरूर और उन की सुंदरस्मार्ट पत्नी सुनंदा पुष्कर या उमर अब्दुल्ला और उन की पत्नी पायल का विवाद बाहर आ ही जाता है. पितापुत्र विवाद भी पतिपत्नी विवाद से अलग नहीं है और यह घर व दफ्तर के मैदान में लड़ा जाए या राजनीति के जंगे मंत्रिमंडल में, फर्क नहीं पड़ता.

अखिलेश के अपने चाचा शिवपाल यादव से संबंध मधुर नहीं हैं जबकि मुलायम सिंह यादव अपने भाई शिवपाल यादव को छोड़ने को तैयार नहीं हैं. इस चक्कर में नौकरशाही भी पिस रही है और इन दोनों नेताओं से काम कराने वाले भी. कई मंत्री और सचिव इस पारिवारिक जंग के क्रौसफायर में फंस चुके हैं. वैसे, इस तरह के मतभेदों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए. यह प्रकृति का नियम है. पारिवारिक विवाद पार्टनरशिप विवादों की तरह होते ही रहते हैं और अदालतों में इन की भी भरमार रहती है. राजनीति में उलझे परिवारों में झगड़ा होना थोड़ा गंभीर हो जाता है. जब इंदिरा गांधी का संजय गांधी की मृत्यु के बाद मेनका गांधी से विवाद हुआ था तो बहुत ड्रामे हुए थे. इंदिरा गांधी ने तो मेनका गांधी को संजय गांधी की पूरी संपत्ति भी नहीं लेने दी थी. मेनका गांधी ने एकचौथाई हिस्सा अदालतों से ही पाया था. यह बात दूसरी थी कि इंदिरा ने संजय का हिस्सा मेनका के ही बेटे वरुण गांधी के नाम कर दिया था.

इंदिरा गांधी की अपने पति फिरोज गांधी से भी अनबन हुई थी. महात्मा गांधी ने ही जवाहरलाल नेहरू पर दबाव डाल कर इंदिरा और फिरोज का विवाह करवाया था. यही महात्मा गांधी अपने बच्चों से आमतौर पर रुष्ट रहे थे. हां, मुकदमेबाजी नहीं हुई, यह उन के लिए तसल्ली की बात रही. मुलायम सिंह यादव पुरानी पीढ़ी के हैं और अखिलेश असल में 2 पीढ़ी बाद के माहौल में पलेबढ़े हैं. वे दोनों एकतरह से सोचें, हर बात पर सहमत हों और उन की असहमति सार्वजनिक न हो, यह नहीं हो सकता. यह सोचना कि हर पतिपत्नी, पितापुत्र, भाईभाई सिर्फ इसलिए गोंद से चिपके रहेंगे कि उन पर हर समय मीडिया की रोशनी रहती है, कुछ ज्यादा ही अपेक्षा करना है.

मुलायम-अखिलेश मनमुटाव को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए, न ही इसे सुर्खियां बनाना चाहिए. पारिवारिक प्राइवेसी हरेक की होनी चाहिए. इसे मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाना चाहिए. मतभेद दूर हो जाएंगे और न भी हों तो भी फर्क नहीं पड़ता क्योंकि राजनीति के सफर में साथी तो बदलते रहते हैं चाहे पितापुत्र हों या भाईभाई.

कनाडा का भारतीय रुपए वाला मसाला बौंड

कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत की सरकार ने भारतीय रुपए में मसाला बौंड जारी किया है. 3 साल की अवधि वाले मसाला बौंड के जरिए ब्रिटिश कोलंबिया सरकार करीब 670 करोड़ रुपए जुटाएगी. इस बौंड के जानकार दुनिया में तेजी से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति कनाडा के विश्वास के रूप में देख रहे हैं. उन का मानना है कि यह बौंड जारी कर के कनाडा ने यह संकेत भी दिया है कि आने वाले समय में वह भारत के विनिर्माण क्षेत्र में अहम भूमिका निभाएगा. यह बौंड लंदन स्टौक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया गया है.

ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत की सरकार ने कहा है कि इस बौंड को जारी करने का मकसद आर्थिक स्तर पर विश्वास को बढ़ाना है तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था एवं रुपए में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना है. इस के साथ ब्रिटिश कोलंबिया रुपए में बौंड जारी करने वाली दुनिया की पहली सरकार बन गई है.

ब्रिटिश कोलंबिया की सरकार इस से पहले 2013 में चीनी मुद्रा में भी बौंड जारी कर चुकी है. इस बौंड से साबित हो गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति वैश्विक स्तर पर विश्वास बढ़ रहा है. दुनिया के प्रमुख देश भारत के ढांचागत विकास में पूरे आत्मविश्वास के साथ निवेश करने के लिए तैयार हो रहे हैं. इस बौंड का नाम सोचीसमझी रणनीति के तहत ‘मसाला’ रखा गया है. इस से जहां भारतीय निवेशकों को आकर्षित किया जा सकेगा वहीं भारत के प्रति अन्य निवेशकों के झुकाव का भी आकलन किया जा सकता है. कनाडा की प्रांतीय सरकार का यह बौंड एचडीएफसी बैंक के मसाला बौंड में पुनर्निवेश है. एचडीएफसी बैंक ने हाल ही में लंदन स्टौक एक्सचेंज में इंडियन मसाला बौंड जारी किया था.

बेलगाम औनलाइन कारोबार पर कसेगी लगाम

ग्राहक सुरक्षा यानी उपभोक्ता अधिकार के लिए जागरूकता पैदा करने वाले विज्ञापनों को पढ़ कर और सुन कर मन हर्षित होता है. लगता है कि बाजार में हमारे लिए व्यापक सुरक्षा तंत्र तैयार किया गया है लेकिन जब जमीन पर पांव रखते हैं तो हकीकत विपरीत होती है.

उपभोक्ता संरक्षण केंद्र हों या ग्राहक सेवा केंद्र, सब के एक ही हाल हैं. औनलाइन की वर्तमान व्यवस्था में तो कोई सुनने वाला ही नहीं है. आएदिन मोबाइल फोन सेवा का ग्राहक सेवा केंद्र के कर्मचारी से लड़ताझगड़ता नजर आता है. यह स्थिति तब है जब कंपनी ईमानदार कस्टमर केयर सैंटर चला रही है वरना कई कंपनियों ने ग्राहक सेवा केंद्र को रिकौर्डेड लाइन से जोड़ा हुआ है और उन के उपभोक्ता को सेवाप्रतिनिधि खोज कर भी नहीं मिलते हैं. जिन कंपनियों के सेवा प्रतिनिधि मिलते हैं वे आप की कुछ सेवा नहीं कर सकते हैं. इसी तरह से औनलाइन खरीदारी के नए प्रचलन की नई समस्या है. सामान बुक कराए तो वह समय पर नहीं मिलेगा. कई वस्तुएं खराब निकलती हैं. इस की शिकायत कीजिए तो कोई सुनने वाला नहीं है. ईमेल कीजिए, उस का जवाब नहीं मिलता.

सरकार को उपभोक्ताओं के इस दर्द की खबर है इसलिए सरकार ने ई-कौमर्स कारोबार को ग्राहकों के हितार्थ करने के लिए इस के नियम और सख्त बनाने का निर्णय लिया है ताकि ग्राहकों की शिकायतों का आसानी से निदान हो सके. सरकार के पास फ्लिपकार्ट, माईऔफर जैसी करीब 4 दर्जन कंपनियों की शिकायतें आई हैं. ये ग्राहकों की शिकायत का जवाब नहीं देती हैं. वाणिज्य उद्योग मंत्री सीतारमण ने इस मामले को उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान के समक्ष रखा है और उन्होंने स्पष्ट किया है कि उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए उन कंपनियों की मनमानी पर नकेल कसी जाएगी. पर काम कब तक होगा,यह अनिश्चित है. लेकिन सरकार ई-कौमर्स उपभोक्ताओं की शिकायत दूर करने की योजना बना रही है, यह तय है.

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