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क्या वास्तव में सफल हो गयी ‘‘सरबजीत’’…?

मुंबई के पांच सितारा होटल ‘‘जेडब्ल्यू मेरिएट’’ के ‘‘इंगिमा’’ में फिल्म ‘‘सरबजीत’’ के निर्माताओं की तरफ से फिल्म को बाक्स आफिस पर मिली सफलता का जश्न मनाने के लिए पार्टी का आयोजन किया गया. यह एक अलग बात है कि फिल्म इंडस्ट्री में लोग आज भी ही सवाल पूछ रहे हैं कि क्या वास्तव में बाक्स आफिस पर ‘‘सरबजीत’’ को सफलता मिल गयी? इस सवाल के पूछे जाने के पीछे कई वजहें हैं.

जब फिल्म को बाक्स आफिस पर सफलता मिलती है, तो फिल्म से जुड़े हर तकनीशियन व कलाकार के चेहरे पर खुशी के भाव छिपाए नहीं छिपते. लेकिन ‘सरबजीत’ के संग जुड़े लोगों के चेहरे पर यह भाव बनावटी ही नजर आई. इस सफलता की पार्टी में अभिनेत्री रिचा चड्ढा बहुत देर से पहुंची. सूत्रों की माने तो रिचा चड्ढा पार्टी में तब पहुंची थी, जब सभी फोटोग्राफर  व मीडिया वाले अपने घर वापस जा चुके थे. अब इसकी वजह क्या रही, पता नहीं.

दूसरी बात यदि फिल्म ‘‘सरबजीत’’ हिट है, तो फिर वितरकों के नुकसान की भरपाई की बात कहां से आ गयी? जी हॉ! फिल्म के सह निर्माता वासु भगनानी ने ‘‘सरबजीत’’ के फिल्म के भारतीय वितरण अधिकार 18 करोड़ रूपए में ‘बाय बैक’ किए थे और देश के सभी वितरकों को इस फिल्म के वितरण अधिकार काफी ऊंची कीमत पर बेचे थे. सूत्र बताते है कि बाक्स आफिस पर फिल्म के घटिया प्रदर्शन को देखते हुए वासु भगनानी ने सभी वितरकों को एक आधिकारिक ईमेल भेजकर उनके नुकसान की आधी भरपाई करने की बात लिखी.

सूत्रों की माने तो इस ईमेल में वासु भगनानी ने लिखा है कि फिल्म के रिलीज की तारीख से एक माह बाद सभी वितरकों के साथ बैठकर बैंलेंस सीट बनायी जाएगी और जिसका जितना नुकसान हुआ होगा, उसका आधा हिस्सा वह नगद लौटा देंगे. इसके बावजूद डंके की चोट पर फिल्म की सफलता की पार्टी का आयोजन के मायने…?

LGBT समुदाय के फिल्म फेस्टिवल ‘कशिश’ का उद्घाटन

एलजीबीटी समुदाय के 7वें फिल्म फेस्टिवल ‘कशिश” का उद्घाटन मुम्बई में किया गया. इसका उद्देश्श्य यह रहा कि एलजीबीटी समुदाय के लोग इस विषय पर बिना झिझक बड़े परदे पर आम लोगो के साथ बैठकर एलजीबीटी पर बनी फिल्मों को देख सकें. इसके अलावा आम लोगो में इस समुदाय को लेकर गलत अवधारणा है, उसका समाधान हो. लोगों मे इस समुदाय को अपनाने की जागरूकता बढ़े. इस बारे में समारोह के आयोजक श्रीधरन का कहना है कि बहुत कम लोग इस समुदाय को जानते हैं, लोग उनको अजीब समझते हैं, जबकि ये लोग आम इंसान की तरह ही होते हैं, आम घरों में रहते हैं, ऑफिस में जाते हैं, इनकी सोच सिर्फ अलग होती है. ये सेक्सुअल नहीं होते, न ही अपराधी होते है. समस्या ये है कि इन्हें धर्म, समाज, कानून और परिवार एक्सेप्ट नहीं करते. कुछ ही देशों में इन्हें मान्यता दी गई है.

पहले वर्ष बहुत कम लोग इस फेस्टिवल में आए थे. पिछले साल 10 हज़ार लोगों ने ऐसी फिल्में देखी. इस साल 53 देशों की 182 फिल्में, जिनमें 27 भारतीय फिल्म भी शामिल हैं उन्हें तीन स्थलों लिबर्टी सनेमा, अलाएंस फ्रेंकेस डे बोम्बे और मेक्स्मुलेर भवन में दिखाया जायेगा. ये क्राइम नहीं करते. लोग उनसे डरते हैं, जबकि कानून के हिसाब से अगर कोई क्राइम वे पब्लिक प्लेस में करें, तो गलत होता है, जैसा की आम लोगों के लिए भी है.

‘गे’ और ‘लेस्बियन’ को आप तब तक समझ नहीं सकते, जब तक कि वे खुद इस बारें में न बताएं. इसमें ट्रांसजेंडर सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, वे पढे लिखे होते हैं, वे टेलीफोन ऑपरेटर, पुलिस, ऑफिस में,आदि सब जगह अच्छा काम कर सकते हैं, पर उन्हें काम नहीं मिलता, वे रास्ते पर भीख मांगकर गुजारा करते हैं. लोगों को लगता है कि वे कुछ गलत करेंगे. कंपनी उन्हें इसलिए काम नहीं देती, क्योंकि किसी कंपनी में अगर मेल या फीमेल टॉयलेट है, तो ट्रांसजेंडर कहा जायेंगे. इसलिए कई बड़ी कंपनिया आजकल यूनिसेक्स टॉयलेट्स बनवा रही हैं, ताकि ये समस्या न हो. ये एक अच्छी बात हो रही है.

माता-पिता फ्रेंड्स को इस फेस्टिवल में खास तौर पर बुलाया जाता है, ताकि उनकी सोच बदले, क्योंकि उन्हें ही अपने बच्चे को सबसे पहले समझाना पड़ता है. इस अवसर पर आई सोनम कपूर का कहना है कि मैं इस फेस्टिवल मैं आकर बहुत खुश हूँ. यहाँ प्रतिभावान फिल्म निर्माता और समाज एक साथ मंच पर आते और लोगों की मानसिकता में बदलाव को प्रोत्साहित करते हैं. प्रेम की भाषा फिल्मों में हमेशा ही अलग–अलग दिखाई जाती है, प्रेम कभी किसी से करना गलत नहीं, ये अपराध नहीं. उम्मीद है ऐसे फेस्टिवल से लोगों के विचार बदलेंगे और वे भी एक सम्मानपूर्वक जीवन बिता पाएंगे.

दुबई में पहला थ्रीडी औफिस

अभी तक आप ने थ्रीडी प्रिंटर्स, थ्रीडी मूवीज के बारे में सुना होगा, यहां तक कि अभी हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘जंगल बुक’ को भी आप ने थ्रीडी में खूब ऐंजौय किया होगा और आगे भी इस तरह की मूवीज आती रहें, ताकि आप को खुद को अलग तरह से ऐंटरटेन करने का मौका मिल सके. ऐसी इच्छा आप मन ही मन रखते होंगे. लेकिन क्या कभी आप के दिमाग में थ्रीडी औफिस के बारे में खयाल आया है तो 100% आप का जवाब न में ही होगा, क्योंकि आप के दिमाग में वही पुराने प्लेटफार्म पर तैयार होने वाले औफिसों की इमेज जो बनी हुई है. जिस में बैठने के लिए वही फर्नीचर जो आमतौर पर आप को हर जगह देखने को मिल जाता है, दीवारों पर भी वही पुरानी डिजाइनिंग, जिसे देख कर कुछ भी नया नहीं लगता. औफिस में नया होता है तो सिर्फ हमारे आइडियाज से किसी प्रोजैक्ट को बेहतर दिशा मिल पाती है या फिर हमारे बेहतर कार्य से कंपनी प्रौफिट में चली जाती है लेकिन बाकी सब चीजें वही पुरानी.

लेकिन आप ही सोचिए अगर आप को थ्रीडी औफिस में काम करने का मौका मिले तो कैसा लगेगा. शायद आप यह बात सोच कर ही कल्पनाओं की दुनिया में चले जाओगे. आप सोचेंगे कि जब कल्पनाएं इतनी खूबसूरत हैं तो हकीकत में कितना अच्छा लगेगा ऐसे औफिस में काम करना. असल में अब यह कल्पना नहीं बल्कि हकीकत में बदल गया है. क्योंकि दुनिया का पहला थ्रीडी प्रिंटेड औफिस दुबई में खोला गया. जब इसे लोगों ने देखा तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. क्योंकि औफिस दिखने में जितना खूबसूरत था उतनी ही इस की तकनीक भी काबीलेतारीफ थी.

आप को भले ही विश्वास न हो लेकिन यह भी सच है कि इसे महज 17 दिन में तैयार किया गया. अधिकतर औफिसों को बनाने में महीनों, सालों लग जाते हैं लेकिन इसे तो महज कुछ दिनों में, जो पलक झपकते ही बीत गए में बना कर अन्य देशों के सामने दुबई की मिसाल कायम की गई है. यूएई के पीएम शेख मोहम्मद बिन राशिद ने इस का शुभारंभ करते हुए कहा कि थ्रीडी तकनीक के क्षेत्र में दुबई एक कदम आगे निकल गया है और भविष्य में दुबई में इस तरह के और भी औफिस बनाने की कोशिश की जाएगी. इस औफिस को मुंबई फ्यूचर फाउंडेशन का औफिस बनाया गया है.

डिजाइन लाजवाब

थ्रीडी तकनीक से बने औफिस से दुबई की एक अलग ही इमेज दुनिया के सामने उभर कर आई है. क्योंकि इस में न सिर्फ बिल्डिंग बल्कि बिजली, वाटर सिस्टम भी थ्रीडी तकनीक पर आधारित है. यह औफिस 2,700 वर्ग फीट में बना है. इस का बाहरी डिजाइन फ्यूचर में काम करने का माहौल कैसा होगा इस को दर्शाता है. साथ ही इसे पुराने औफिसों से हट कर एक अलग प्लेटफार्म पर तैयार किया गया है जो हमें बेहतर सोचने के साथसाथ अच्छा कार्य करने के लिए भी पे्ररित करता है, जिस से हमारे आगे बढ़ने की संभावनाएं बढ़ेंगी.

इस को इस तरह डिजाइन कर के स्पेस छोड़ा गया है ताकि वहां ऐग्जिबिशन, वर्कशौप्स और इवैंट्स आदि भी आयोजित किए जा सकें. सब से बड़ी बात हैलदी और हैप्पी ऐंवायरमैंट में काम करने का मौका मिलेगा. इसे मामूली सीमेंट से नहीं बल्कि स्पैशल मिक्सर सीमेंट से बनाया गया है और इस में यूएस में बने सैटों का इस्तेमाल किया गया है. इन सैटों की विश्वसनीयता जांचने के लिए इन का टैस्ट चीन और युनाइटेड किंगडम दोनों जगह हुआ है. सुरक्षा कारणों और बिल्डिंग लंबे समय तक टिकी रहे, के लिए इस को आर्क शेप दी गई है.

ऊर्जा की खपत कम करने के लिए नए फीचर्स यूज किए गए हैं जैसे विंडो शैड्स ऐसे लगाए हैं जो सूर्य की किरणों को अंदर आने से रोकने के साथसाथ बिल्डिंग को भी ठंडा रखते हैं. इसी के साथ मैनेजमैंट का इंफौमेशन सिस्टम भी लेटैस्ट टैक्नोलौजी से लैस है. प्रिंटर के फीचर्स फुली औटोमैटिकली हैं. इस 3डी प्रिंटर की ऊंचाई 20 फीट, लंबाई 120 फीट और चौड़ाई 40 फीट है.

क्यों लागत में सस्ता

इस पूरे प्रिंटेड प्रोसैस में प्रिंटर को औपरेट करने के लिए एक थ्रीडी प्रिंटेड विशेषज्ञ, बिल्डिंग में सैटों को फिट करने के लिए 7 व्यक्ति और 10 व्यक्तियों की एक टीम ने विद्युत और यांत्रिक इंजीनियरिंग का कार्यभार संभाला यानी 17-18 लोगों की टीम ने इस औफिस को तैयार किया. जो परंपरागत औफिसों की तुलना में काफी सस्ता था. हम कह सकते हैं कि इसे बनाने में 50% कम लेबर कौस्ट आया.

क्या है 3डी टैक्नोलौजी

3डी टैक्नोलौजी असल में 3 डायमैंशियल टैक्नोलौजी है. यह हमारी आंखों के सामने भ्रम पैदा करती है जिस के कारण चीजें हमें हर तरफ से एक जैसी दिखाई देने के साथ साथ हम उसे गहराई व करीब से महसूस भी कर पाते हैं.

भाजपा यूपी में लागू नहीं करेगी ‘असम फामूर्ला’

वैसे तो भाजपा असम में मिली जीत से बहुत उत्साहित है. असम में जिन नेताओं की अगुवाई में चुनाव लडे गये, उत्तर प्रदेश में उनके नाम के होर्डिंग लग गये. भाजपा कार्यकर्ता न केवल उनको सम्मानित करने की तैयारी में हैं, बल्कि उनकी मांग है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी असम फामूर्ला लागू किया जाये. असम में भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के अपने उम्मीदवार को सामने रखकर चुनाव लडा था. राजनीतिक जानकार मानते है कि इसका ही भाजपा को लाभ मिला और उसकी जीत हई.

राजनीति में जो सफल हो जाता है वही हिट फामूर्ला माना जाता है. मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ भाजपा ने दिल्ली में चुनाव लडा था. इसके बाद भी दिल्ली में भाजपा की बुरी तरह से हार हुई. तब मुख्यमंत्री के चेहरे के फार्मूला को सारा दोष दे दिया गया था. इसके बाद भाजपा ने बिहार में बिना किसी चेहरे को आगे किये विधानसभा का चुनाव लडा पर जीत हासिल नहीं हुई. अब असम में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद एक बार फिर से मुख्यमंत्री के चेहरे को आगे करके चुनाव लडने की तरफदारी की जा रही है.

भाजपा के कुछ रणनीतिकार मानते है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी को आगे करके विधानसभा चुनाव लडना चाहिये. भाजपा में संगठन स्तर पर इस बारे में कई बार गंभीरता से विचार हुआ. दर्जन भर से ज्यादा नेताओं ने अपने अपने नाम की लाबिंग शुरू करा दी. जिसकी वजह से नेताओं में आपस में टकराव शुरू हो गया. उत्तर प्रदेश की जातीय अंकगणित में कोई एक जाति ऐसी नहीं है जिसको साधने से चुनाव जीता जा सके. ऐसे में किसी एक नेता पर भरोसा करना भाजपा को सही नहीं लग रहा था. भाजपा में उत्तर प्रदेश में नेताओं के अलग अलग गुट बने है. जिसके चलते ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव करने में तमाम परेशानियां आई थी. उत्तर प्रदेश में भाजपा दलित-पिछडो के साथ ही साथ अगडों को भी पार्टी के साथ जोड के रखना चाहती है.

ऐसे में भाजपा को उत्तर प्रदेश में असम फामूर्ला रास नही आ रहा है. अब भाजपा की रणनीति है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव लडने के लिये एक कमेटी बनाई जाये. कमेटी में कई नेताओं को एक साथ जिम्मेदारी दी जाये. जिससे सभी नेताओं के गुटों को खुश रखने में सफलता मिल सकेगी. कमेटी बनाना सरल है पर कमेटी के अध्यक्ष का नाम तय करना मुश्किल होगा. जनता की नजर में कमेटी का अध्यक्ष ही मुख्यमंत्री का चेहरा होगा. ऐसे में भाजपा के लिये चुनाव कमेटी का अध्यक्ष तय करना मुश्किल काम है. इस नाम के लिये केन्द्रीय स्तर पर डाक्टर महेश शर्मा और स्मृति ईरानी का नाम सबसे आगे है. भाजपा इन नामों को पहले मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित करना चाहती थी. अब भाजपा की रणनीति है उसे मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी का नाम भी घोषित न करना पडे और उस दौड में शामिल लोगों को आगे भी कर दिया जाये. इसके तहत भाजपा ने असम फामूर्ला नकार दिया है ओर उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार कमेटी बनाकर विधानसभा चुनाव लडेगी. कमेटी के अध्यक्ष का नाम मुख्यमंत्री पद का सबसे प्रबल चेहरा बन सकता है.

मुलायम चल रहे ‘सत्ता का ब्रम्हास्त्र‘

समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की व्यूहरचना शुरू कर दी है. उत्तर प्रदेश में कोई महागठबंधन जैसी ताकत उभर न सके, इसके लिये सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने ‘सत्ता का ब्रम्हास्त्र’ का प्रयोग करना शुरू कर दिया है. ‘सत्ता का ब्रम्हास्त्र’ विधान परिषद और राज्यसभा के जरीये चलाया जा रहा है. ‘सत्ता का ब्रम्हास्त्र’ पुराने समाजवादी नेताओं को एकजुट होने का जरीया बन गया है. अमर सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा के बाद अब लोकदल नेता अजीत सिंह इस ब्रम्हास्त्र के निशाने पर हैं. समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में किसी बडे राजनीतिक गठजोड को आकार लेने से पहले ही खत्म कर देने की योजना बना कर चल रहे हैं. मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दल के रूप मे समाजवादी पार्टी ही मुकाबले में दिखे. मुलायम सिंह की मुख्य चिन्ता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हें.

जनता दल यूनाइटेड नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले एक बडा गठबंधन बनाना चाहते हैं. इसमें जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, अपना दल, लोकदल सहित कई छोटे छोटे दलों के शामिल होने की संभावना व्यक्त की जा रही है. उत्तर प्रदेश में 3 प्रमुख ताकतवर पार्टियां भाजपा, बसपा और सपा है. चुनाव के पहले इनमें से कोई भी एक दूसरे से मिलने को तैयार नहीं है.

कांग्रेस यहां चौथी पार्टी के रूप में है. कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड का गठबंधन बिहार में सरकार चला रहा है. यह गठबंधन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी एक गठबंधन की शक्ल बनाने की राह पर है. इस गठबंधन में लोक दल और अपना दल जैसे छोटे छोटे दलों के भी शामिल होने की बात चल रही थी. कांग्रेस की अगुवाई में बनने वाला यह गठबंधन उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कोई भी उलटफेर कर सकता है.

समाजवादी पार्टी नेता मुलायम सिंह जानते है कि यह दल पिछडा वर्ग के वोटों पर ही हमला करेगा, जिसका सबसे बडा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा. ऐेसे में वह इस तरह के गठबंधन को पहले से ही बनने देना नहीं चाहते. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश में शराबबंदी को चुनावी मुद्दा बनाने का काम कर रहे हैं, उससे सपा बेचैन हो उठी है. सपा के लिये इस मुद्दे का विरोध और समर्थन दोनो ही मुश्किल है. ऐसे मे सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव चुनाव के पहले अपने सभी बिछडे साथियों को सपा के साथ खडा करके अपनी ताकत का अहसास विरोधियों को कराना चाहते हैं.

मुलायम सिंह यादव न केवल पुराने समाजवादी नेताओं को सत्ता की मुख्यधारा में शामिल कर रहे हैं, उनके बेटों को भी सुरक्षित आसरा देने की योजना में लगे हैं. लोकदल और समाजवादी पार्टी के संबंध पहले भी बनते बिगडते रहे हैं. लोकदल के सपा के साथ आने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी का जनाधार मजबूत होगा. जिसका प्रभाव 145 विधानसभा सीटों पर पडने की पूरी उम्मीद की जा रही है. 2017 का विधानसभा चुनाव मुलायम सिंह यादव अपनी रणनीति और अखिलेश सरकार की उपलब्धियों के बल पर जीत लेना चाहती है. चुनावी व्यूह रचना में मुलायम विरोधियों पर भारी पडते दिख रहे हैं

पाप मुक्ति का सर्टिफिकेट पाएं, रोगग्रस्त हो जाएं

राजस्थान का प्रतापगढ़ स्थित एक शिव मंदिर बड़ा ही अनोखा मंदिर है. यहां की खासियत है कि कितना ही बड़ा पापी,अपराधी या गुनाहगार यहां क्यों न आ जाए, जब वह वापिस जाएगा तो उस के सारे पाप धुल चुके होगें. बकायदा जिस तरह स्कूल कालेज से शिक्षा ग्रहण करने के बाद डिग्री मिलती है उसी तरह इस मंदिर में बने एक कुंड में डुबकी लगाने पर पाप मुक्त होने का सर्टीफिकेट दिया जाता है. हां, इस सर्टीफिकेट को हासिल करने के लिए 11 रुपए की कीमत जरूर चुकानी होती है. मंदिर के पुजारी कन्हैयालाल शर्मा कहते हैं, “मनुष्य से हर दिन छोटेमोटे कई पाप होते हैं यदि वो इन पापों के लिए पश्चाताप नहीं करता तो उसे दंड भुगतना पड़ता है. लेकिन इस कुंड के पवित्र जल में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं.”

नहीं होती है कुंडों की सफाई

कितनी विचित्र बात है कि एक कुंड जिस का पानी हफ्तों नहीं बदला जाता और हर दिन उस कुंड में हजारों लोग डुबकियां लगाते हैं उस का जल पवित्र कैसे हो सकता है. इस बाबत इंडिया वाटर र्पोटल के हिंदी वैबसाइट के संपादक केसर सिहं कहते हैं, “एक समय था जब मंदिर के कुंड तलाब से जोड़े जाते थे और इससे पानी बदलता रहता था. लेकिन अब इस तरह की व्यवस्था खत्म हो चुकी और इस की जगह मशीनों से कुंड के पानी की सफाई होती है और इस प्रक्रिया  में काफी समय लगता है इसलिए महीने में कभी एक बार सफाई हो जाए तो हो जाए वरना गंदा पानी ही भरा रहता है. इस पानी में कई ऐसे लोग भी डुबकी लगाते होंगे, जिन्हें त्वचा का संक्रमण हो. ऐसे में पानी और भी दूषित हो जाता है. साथ ही रुके हुए पानी में हवा के विषाणु  होते हैं , जो यदि मनुष्य के शरीर में घुस जाएं तो उस का बीमार पड़ना तय है.”

ऐसे में मनुष्य के पाप धुलें या न धुलें लेकिन पानी में एक के शरीर का मैल धुल कर दूसरे के शरीर में जरूर लग जाता है और पाप मुक्त होने का सर्टीफिकेट लेने के साथ ही आदमी रोगग्रस्त होने का तमगा लगा कर इस मंदिर से जाता. यनी 11 रुपए में पाप मुक्त होने के बाद न जाने कितने रुपए खर्च करने बाद आदमी रोग मुक्त हो सकेगा, यह कहना मुश्किल है।

मगर मंदिर के पंडे पुजारियों को इस से क्या फर्क पड़ता है. सर्टीफिकेट के नाम पर रोज आस्था में अंधे भक्तों से 11 रुपए ऐंठ कर कागज का एक टुकड़ा पकड़ा कर वे अपनी झोलिया भरने मग्न हैं.
भारत में यह कोई अकेला मंदिर नहीं जहां के पंडे पुजारी अपनी पाखंड की दुकान चलाने के लिए लोगों को आस्था की आकर्षक स्कीमों के जाल में फंसा रहे हैं. देश में ऐसे कई बड़े और प्रसिद्ध  मंदिर हैं जहां झूठी कहानियों और खोखली आस्था के बल पर धर्म के ठेकेदारों द्वारा लोगों को लूटा जा रहा है.

पंडों का गुंडाराज

इसी कड़ी में एक विश्वविख्यात मंदिर जगन्नाथ पुरी का नाम भी आता है. वैसे तो यहां पंडों का गंडाराज चलता है लेकिन धार्मिक मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है कि अपने जीवन काल में, जो एक बार यहां आता है उसे स्वर्ग की प्राप्ती होती है. इस भ्रम और अंधविश्वास के चलते हर दिन लाखों लोग पुरी के इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं. लेकिन दर्शन केवल उन लोगों को ही मिलते हैं, जो 150 रुपए का टिकट खरीद कर मंदिर के अंदर घुसता है. इतना ही नहीं मंदिर में घुसने के बाद शुरु होता है दान दक्षणा देने का सिलसिला.

मंदिर में मौजूद छोटेछोटे हर मंदिर में बैठा पंडा एक बड़े से थाल के साथ अंधे भक्तों का इंतजार कर रहा होता है और इस थाल में भक्त को दान के नाम पर जो राशि डालनी है यह तय भी भक्त नहीं बल्कि वो पंडा ही करता है. धोखे से भी आप 10 या 20 रुपए का नोट थाल में डालने की न सोचें, क्योंकि इस से पंडा नाराज हो जाता है और कम पैसे चढ़ा कर भगवान की बेज्जती करने का इलजाम भक्त के सिर मढ़ देता है. जाहिर है भक्त डर जाएगें और जेब से हरीहरी 100 के नोट की पत्ती निकाल पंडे की हथेली को गरम कर देगें. लेकिन डराने धमकाने का सिलसिला यहाँ भी खत्म नहीं होता.

मंदिर से कुछ ही दूर पर स्थित है पिशि मां की कुटिया. पुराणों के अनुसार यह जगन्नाथ की बुआ का घर है. यहां एक चंदन सरोवर है. कहते हैं, जगन्नाथ के दर्शन तब तक अधूरे हैं जब तक इस सरोवर में डुबकी न लगाई जाए. आस्था की डुपकी लगाने कई भक्त यहां आते हैं लेकिन बदबूदार सरोवर में गंदगी के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिलता बल्कि डुबकी लगने के लिए उन्हे 5 रुपए का टिकट खरीदना पड़ता है. ऐसे ही 5-5 रुपए श्रद्घालुओं से ऐंठ कर पंडे अपनी अंटी भरते रहते हैं और भक्तों को बदले में मिलती है सिर्फ बीमारियाँ.

अंधी भक्ती नदियों की निर्मलता के रास्ते में रोड़ा

दरअसल हिंदू धर्म में नदियों, तलाब और कुंडों को आस्था का प्रतीक माना जाता है. नदियों को तो हिंदू धर्म में मां का दर्जा प्राप्त है. इस के पीछे वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दोनों ही तरह के तथ्य हैं. वैज्ञानिक तौर पर ‘जल ही जीवन है’ और मनोवैज्ञानिक तौर पर ‘जो जीवन दे वही मां है’. लेकिन समस्या यह है कि बच्चे ही मां के जीवन के दुश्मन बने हुए हैं. यहां आश्य उन श्रद्घालुओं की अंधी भक्ती से है, जो नदियों, जलाश्यों और तलाबों की निर्मालता के रास्ते में रोड़े अटकाने का काम कर रही है.
आस्था के नाम पर नदियों को तो हमेशा से ही निशाना बनाया गया है. कभी कुंभ मेला तो कभी माघ मेला, कभी श्राद्घ तो कभी अस्थी विसर्जन, कभी पुण्य कमाने के लिए तो कभी धन कमाने के लिए संत पुरोहितों द्वारा बनाए गए बेतुके रीतिरिवाजों को निभाने के लिए लोग नदियों में आस्था की डुबकी लगाने पहुंच जाते हैं और खुद को तो रोगग्रस्त करते ही हैं साथ में देश के उन करोड़ों लोगों को भी मौत के कठघरे में खड़ा कर देते हैं जिन का इन सब से लेना देना भी नहीं है.

नदियों के तटों पर मक्खियों की तरह भिनभिनाते इन पाखंडियों के लिए धंधे का सब से सही स्थान यही होता है. यहां आने जाने वाले यात्रियों को यह लोग छोटेछोटे मंदिरों और उन से जुड़ी मनगढ़ंत कहानियों से आकर्षित करते हैं और फिर शुरु होता है धर्म के नाम पर डारा धमका कर लूटने का धंधा. नदियों से जुड़ी कई कहानियां है और हर कहानी का यही सार है कि संत साधुओं को दान करने पर ही सभी दुखों का अंत होगा.

धन नहीं बीमारी की वर्षा करती हैं नदियां

ऐसी ही एक कहानी के अनुसार कार्तिक मास में गंगा,यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा और कावेरी जैसी नदियों में स्नान करने से धन की वर्षा होती है. ऐसा भी कहा गया है कि इस मास में 33 करोड़ देवी देवता इसी लिए धरती पर आते हैं. कितनी हास्यात्मक बात है कि जिन देवी देवता को खुश करने के लिए और धन प्राप्ती के लिए लोग नदियों में डुबकी लगाने आते हैं वही देवी देवता खुद भी इसी काम के लिए पृथवी पर उतर आते हैं. ऐसी देवी देवता जो खुद धन के भूखे हों उन के लिए इस तरह के धार्मिक कर्मकांड करने का क्या लाभ.

इस के अतिरिक्त पुराणों में नदियों पर जा कर विधिवत स्नान करने की बात कही गई. तब ही इस का फल मिलता है. ऐसे में विधि बताने के लिए तटों पर मौजूद पंडे  धार्मिक कर्मकाडों का ढकोसला देकर फिर से अपना उल्लू सीधा करने निकल पड़ते हैं. यह ऐसे तरीके बताएंगे, जो सुनने और करने में बेहद आसान लगेंगे मसल नदी में फूल चढ़ाओ, अगरबत्ती दिखाओ और दिया बहाओ.

लेकिन नदी को इन सब की कोई जरूरत नहीं है. यह सब चीजें उसे मैला और गंदा करती हैं. यह सारी गंदगी नदी की सतेह को गंदा करती है. केशर बताते हैं, “जल प्रदूषण दो तरह का होता है. पहला प्वाइंट सोर्स प्रदूषण होता है और दूसरा नौन प्वाइंट सोर्स प्रदूषण. प्वाइंट सोर्स प्रदूषण पहचाना जा सकता है लेकिन नौन प्वाइंट सोर्स प्रदूषण का पता नही लगता. यह प्रदूषण ज्यादातर नदियों में फूल पत्ती औैर लोगों के स्नान करने से फैलता है. ऐसे प्रदूषण से पानी में कौलीफैर्म बैक्टीरिया, मल के विषाणु और सुपरबग बैक्टीरिया हो जाते हैं. मनुष्य जब इस प्रदूषित पानी में प्रवेश करता है तो यह बैक्टीरिया उस के शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं और वह एक गंभीर बीमारी से पीडि़त हो जाता है. इन सभी बैक्टीरिया में मानव मल का विषाणु से अधिक खतरनाक होता है. यदि यह पेट में चला जाए तो मनुष्य निश्चित ही किसी जानलेवा बीमारी के आगोश में चला जाएगा.”

सूखती मरती नदियां क्या देंगी जीवन

बड़ी बात तो यह है कि लगातार गंदे होते तलाब, नदियों और जलाश्यों में पाय जाने वाले बैक्टीरिया पर भी कीटनाशकों और मशीनी साफ सफाई का कोई असर नहीं पड़ता औैर इनकी रिस्सिटैंट पावर बढ़ती जाती है. ऐसे में मानव शरीर में इन के प्रवेश पर कोई भी ऐंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं होता है. यह विचार करने योग बात है कि नदियों से इस तरह के जुड़ाव का क्या फायदा जो उन्हें भी मार रहा है और खुद को भी. केसर कहते हैं, “नदियों की स्थिती कुछ ज्यादा ही खराब है. पहले इन में जीव जीवन होता था.

जल में रहने वाले जीव ही गंदगी साफ कर दिया करते थे लेकिन अब बढ़ते प्रदूषण के कारण नदियों का जीव जीवन समाप्त होता जा रहा है और इसी लिए नदियां मरती जा रही हैं. अब तो हालात यह हैं कि ग्राउंड वाटर भी प्रदूषित होता जा रहा है. हालही में गंगा और यमुना नदी के ग्राउंड वाटर पर हुई रिसर्च में सामने आया है कि इस में ऐसे तत्व पाए गए हैं , जिन्हें महंगे वाटर फिल्टर से भी नहीं निकाला जा सकता है. इनके त्वरित परिणाम भले ही देखने को न मिले लेकिन भविष्य में यह सेहत के लिए घातक ही साबित होंगे. यदि लोग पूजा पाठ करने के स्थान पर नदियों के किनार पेड़ पौधे लगा दें तो इससे नदियों का भी भला होगा और मनुष्य का भी.”

सूखती मरती नदियां,तलाब, कुंड मनुष्य को केवल मौत ही दे सकते हैं. इनसे धन, मोक्ष और अन्य किसी तरह का लालच खुद के लिए ही हानिकारक है. यदि हम इन की सुरक्षा करेंगे तो यह भी हमें सुरक्षित रखेंगी नहीं तो अंधविश्वास में आंखे मूंदे कुछ भी कर लें व्यर्थ है.

मैरिज रजिस्ट्रेशन है जरूरी

कानूनन जरूरी होने के बावजूद लोग शादी का रजिस्ट्रेशन तभी कराते हैं जब उन्हें वीजा आदि के लिए आवेदन करना होता है. शादी या उस के बाद और बातों का तो बड़ा ध्यान रखा जाता है, लेकिन शादी का रजिस्ट्रेशन कराने को प्राथमिकता नहीं दी जाती है. अनपढ़ लोगों का ही नहीं शिक्षित लोगों का भी यही हाल है. चलिए, बात करते हैं कि शादी का रजिस्ट्रेशन कितना जरूरी है तथा यह करवाना कितना आसान है और आगे चल कर इस के क्या फायदे हैं:

मैरिज सर्टिफिकेट इस बात का आधिकारिक प्रमाण होता है कि 2 लोग शादी के बंधन में बंधे हैं. आजकल जन्म प्रमाणपत्र को उतनी अहमियत नहीं दी जाती, जितनी विवाह प्रमाणपत्र को दी जाती है. लिहाजा, इसे बनवाना अहम है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. अत: यहां 2 ऐक्ट्स के तहत शादियों का रजिस्ट्रेशन होता है- हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 और स्पैशल मैरिज ऐक्ट 1954.

आप की शादी हुई है और अमुक तारीख को हुई है, इस बात का अनिवार्य कानूनी सुबूत है मैरिज सर्टिफिकेट. आप बैंक खाता खोलने, पासपोर्ट बनवाने या किसी और दस्तावेज के लिए आवेदन करते हैं, तो वहां मैरिज सर्टिफिकेट काम आता है. जब कोई दंपती ट्रैवल वीजा या किसी देश में स्थाई निवास के लिए आवेदन करता है, तो मैरिज सर्टिफिकेट काफी मददगार साबित होता है.

भारत या विदेश में स्थित दूतावास पारंपरिक विवाह समारोहों के सुबूत को मान्यता नहीं देते. उन्हें मैरिज सर्टिफिकेट देना होता है. जीवन बीमा के फायदे लेने के लिए भी मैरिज सर्टिफिकेट जमा कराना (जिन मामलों में पति या पत्नी में से किसी की मौत हो गई हो) होता है. नौमिनी अपने आवेदन की पुष्टि में कानूनी दस्तावेज पेश नहीं करे तो कोई बीमा कंपनी अर्जी को गंभीरता से नहीं लेती. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर शादी का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य घोषित कर दिया था.

कैसे कराएं रजिस्ट्रेशन

हिंदू ऐक्ट या स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन कराना कतई मुश्किल नहीं है. पति या पत्नी जहां रहते हैं, उस क्षेत्र के सबडिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के दफ्तर में अर्जी दे सकते हैं. अर्जी पर पतिपत्नी दोनों के हस्ताक्षर होने चाहिए. अर्जी देते वक्त उस के साथ लगाए गए दस्तावेज की जांचपरख होती है. उस के बाद औफिस की ओर से एक दिन तय किया जाता है. इस की सूचना दंपती को दे दी जाती है. उस वक्त पहुंच कर पतिपत्नी शादी को रजिस्टर्ड करा सकते हैं. उस वक्त एसडीएम के सामने पतिपत्नी के साथ एक गैजेटेड औफिसर को भी मौजूद रहना पड़ता है, जो शादी में मौजूद रहा हो. प्रमाणपत्र उसी दिन जारी कर दिया जाता है.

आवेदन के लिए क्या क्या है जरूरी

पूरी तरह भरा आवेदनपत्र, जिस पर पतिपत्नी और उन के मातापिता के हस्ताक्षर हों. रिहाइश का प्रमाणपत्र जैसे वोटर आईडी/राशन कार्ड/पासपोर्ट/ड्राइविंग लाइसैंस, पति और पत्नी दोनों का जन्म प्रमाणपत्र, 2-2 पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ्स, शादी का एक फोटोग्राफ.

सारे दस्तावेज सैल्फ अटैस्टेड होने चाहिए. आवेदन के साथ शादी का एक निमंत्रणपत्र भी लगाना होता है.

अर्हताएं: दूल्हा या दुलहन उस तहसील का निवासी हो जहां शादी रजिस्टर्ड कराई जानी है. शादी के वक्त दुलहन की उम्र 18 और दूल्हे की 21 साल से कम न हो.

जुर्माना: अगर कोई शख्स विवाह प्रमाणपत्र नहीं दे पाता है, तो उसे क्व10 हजार जुर्माना भरना पड़ सकता है.

विवाह प्रमाणपत्र के लिए अर्जी देने में कोई ज्यादा खर्च नहीं आता है और न ही यह लंबी प्रक्रिया है. हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत प्रमाणपत्र लेने के लिए आवेदन फीस क्व100 और स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत लेने के लिए क्व150 है. फीस डीएम औफिस के कैशियर के पास जमा कराई जाती है और उस की रसीद अर्जी के साथ लगानी होती है. सरकार ने औनलाइन रजिस्ट्रेशन की पहल भी की है.

विवाह प्रमाणपत्र के फायदे

– भारत में स्थित विदेशी दूतावासों या विदेश में किसी को पतिपत्नी साबित करने के लिए विवाह प्रमाणपत्र देना अनिवार्य होता है.

– विवाह प्रमाणपत्र होने से महिलाओं में विश्वास और सामाजिक सुरक्षा का एहसास जगता है. पतिपत्नी के बीच किसी तरह का विवाद (दहेज, तलाक, गुजाराभत्ता लेने आदि) होने की स्थिति में विवाह प्रमाणपत्र काफी मददगार साबित होता है.

– इस से प्रशासन को बाल विवाह पर लगाम लगाने में मदद मिलती है. अगर आप की उम्र शादी लायक नहीं है तो विवाह का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा.   

शादीशुदा हों या तलाकशुदा, दोनों ही सूरत में विवाह प्रमाणपत्र काम आता है. इस के अलावा इस प्रमाणपत्र की सब से ज्यादा उपयोगिता तलाकशुदा महिलाओं के लिए है क्योंकि तलाक के बाद महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा की जरूरत पुरुषों की तुलना में ज्यादा होती है.

स्पैशल मैरिज ऐक्ट 1954

स्पैशल मैरिज ऐक्ट के तहत भी आसानी से शादी रजिस्टर्ड कराई जा सकती है. इस के लिए निम्न स्टैप्स हैं:

– पतिपत्नी जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहां के मैरिज अफसर को शादी की सूचना देनी होती है.

– नोटिस की तारीख से कम से कम 1 महीना पहले से उस क्षेत्र में रिहाइश होनी जरूरी है.

– नोटिस मैरिज अफसर के औफिस में किसी ऐसी जगह पर चस्पां करना चाहिए जहां सब की नजर पड़े.

– अगर पतिपत्नी दोनों अलगअलग इलाके में रहते हैं तो नोटिस की एक कौपी दूसरे क्षेत्र के मैरिज अफसर को भेजनी होगी. नोटिस पब्लिश होने के 1 महीने बाद शादी को कानूनी वैधता दे दी जाती है.

– अगर कहीं से कोई आपत्ति आती है तो मैरिज अफसर दंपती से संपर्क कर पूछता है कि शादी को वैधता प्रदान की जाए या नहीं.

शादी रजिस्टर्ड कराने के स्टैप्स

 

हिंदु मैरिज ऐक्ट के तहत कोई भी अपनी शादी को रजिस्टर्ड करा सकता है. इस के लिए निम्न स्टैप्स हैं:

– दंपती को रजिस्ट्रार के यहां आवेदन करना होता है. यह रजिस्ट्रार या तो उस क्षेत्र का होगा जहां शादी हुई हो या फिर वहां का जहां पतिपत्नी में से कोई कम से कम 6 महीने से रह रहा हो.

– दंपती को शादी के 1 महीने के भीतर गवाह के साथ रजिस्ट्रार के सामने हाजिर होना होगा. बतौर गवाह मातापिता, अभिभावक, दोस्त कोई भी हो सकता है.

– रजिस्ट्रेशन में देरी होने पर 5 साल तक रजिस्ट्रार को माफी देने का अधिकार है. इस से ज्यादा वक्त होने पर संबंधित डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार के पास इस का अधिकार है. 

होममेड हेयर मास्क से पाएं खूबसूरत बाल

वैसे तो बाजार में बालों के ट्रीटमैंट के लिए कई तरह के हेयर मास्क उपलब्ध हैं पर महंगे होने के साथसाथ उन में कैमिकल्स भी होते हैं, जो बालों को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में बालों को नुकसान से बचाने के लिए मेकअप ऐक्सपर्ट रेनू महेश्वरी कुछ होममेड हेयर मास्क बता रही हैं:

जानें बालों के प्रकार

कोई भी हेयर मास्क चुनने से पहले अपने बालों के प्रकार को जानना जरूरी होता है. बाल 3 प्रकार के होते हैं- ड्राई हेयर, औयली हेयर और नौर्मल हेयर.

ड्राई व दोमुंहे बाल होने के कारण

– बालों को सुरक्षित रखने वाले प्रोटैक्टिव क्यूटिकल्स जब कम या खत्म हो जाते हैं अथवा बालों का नैचुरल औयल स्कैल्प से बालों के छोर तक नहीं पहुंच पाता तब बालों के सिरे रूखे हो फट कर दोमुंहे हो जाते हैं.

– स्ट्रौंग हेयर कलर व हेयर ड्रायर का प्रयोग, तेज धूप या हवा में रहने और बहुत तेजतेज कंघी करने पर भी बालों का नैचुरल औयल खत्म हो जाता है, जिस से वे दोमुंहे हो जाते हैं.

– धातु के कंघे का इस्तेमाल करने, गीले बालों में कंघी करने, बहुत देर तक बालों में तौलिया बांधे रखने या गीले बालों को तौलिए से झाड़ते हुए पोंछने पर भी वे दोमुंहे हो जाते हैं.

– सोते समय साटन का तकिया प्रयोग करने से भी बाल दोमुंहे हो जाते हैं.

– खाने में पौष्टिकता की कमी होने से भी बाल रूखे व दोमुंहे हो जाते हैं.

– परांदे या रिबन के इस्तेमाल से भी बालों का नैचुरल औयल खत्म हो जाता है.

– ज्यादा हेयरपिन लगाने से भी बालों को नुकसान पहुंचता है.

ड्राई बालों को स्वस्थ और सुंदर बनाने के लिए निम्न होममेड हेयर मास्क हैं:

फ्रूट मास्क: पपीता ड्राई व दोमुंहे बालों का अच्छा उपचार है. इस के लिए मध्यम आकार के पके पपीते को मैश कर उस में दही मिलाएं और फिर अच्छी तरह फेंटें. अब इसे बालों में मेहंदी की तरह लगा कर 30 मिनट बाद पानी से धो लें.

क्रीम टौनिक मास्क: 1/2 कप दूध में 1 बड़ा चम्मच क्रीम मिला कर अच्छी तरह फेंटें. फिर बालों में लगा कर 15 मिनट बाद ठंडे पानी से धो लें.

औलिव एग मास्क: औलिव औयल और अंडे के पीले भाग को मिला कर बालों पर लगाएं और 1 घंटे बाद हर्बल शैंपू से धो लें. इस के बाद बालों में कंडीशनर भी कर लें.

बीयर मास्क: यह ड्राई और नौर्मल दोनों तरह के बालों के लिए है. बालों को फुल प्रोटैक्शन देने के लिए अंडे का सफेद भाग और बीयर को एकसाथ फेंट लें. फिर बालों में शैंपू करने के बाद इसे लगाएं और 10 मिनट बाद ठंडे पानी से धो लें.

नारियल मास्क: इस मास्क में मौइश्चराइज करने वाले तत्त्व बालों को मौइश्चराइज कर के उन्हें मुलायम व चमकदार बनाते हैं. नारियल और जैतून के तेल को अच्छी तरह मिला कर बालों की जड़ों से सिरों तक लगाएं. फिर बालों को 1 घंटा कवर कर के रखें. बाद में शैंपू और कंडीशनर लगा लें.

केला क्रीम मास्क: यह मास्क कमजोर और रूखे बालों में नई जान डालेगा. यह जड़ों को नुकसान से बचा कर बालों को मजबूती देता है. केले में मौजूद आयरन और विटामिन बालों को पोषण भी देते हैं. इसे बनाने के लिए 1 केले का ग्राइंडर में पेस्ट बना लें. फिर उस में 1 चम्मच शहद डालें. इस पूरे घोल को बालों की जड़ों से सिरों तक लगाएं. 15-20 मिनट लगा रहने दें. बाद में कुनकुने पानी से धो लें. इस लेप को फिर प्रयोग करने के लिए फ्रिज में भी रख सकती हैं.

नौर्मल बालों के लिए हेयर मास्क

नरिशिंग हनी मास्क पैक: 1/2कप दूध में 1 बड़ा चम्मच शहद मिला कर अच्छी तरह फेंटें. फिर स्कैल्प में लगा कर हलके हाथों से मालिश करें. 30 मिनट बाद बालों को धो लें.

प्रोटीन पैक: 1/2कप छिलके वाली उरद दाल में 1 छोटा चम्मच मेथीदाना मिला कर ग्राइंड करें. फिर 1/2 कप दही में डाल कर फेंट लें. कुछ देर तक बालों में लगाए रखें. फिर बालों को धो लें.

घुंघराले बालों के लिए हेयर मास्क: 15-20 करीपत्ते, 1 टुकड़ा रतनजोत और एकचौथाई कप नारियल का तेल लें. करीपत्तों को पानी में और रतनजोत को नारियल तेल में रात भर भिगोए रखें. सुबह रतनजोत को तेल से निकाल लें. फिर तेल और भीगे करीपत्तों को एकसाथ अच्छी तरह मिला कर पीस लें. इसे सिर की त्वचा और बालों में अच्छी तरह लगाएं. 1 घंटा बालों में लगा रहने दें. फिर बालों को अच्छी तरह धो लें. यह हेयर मास्क घुंघराले बालों के लिए बहुत अच्छा होता है.

औयली हेयर के लिए हेयर मास्क

तैलीय प्रकृति वाले बालों के लिए ये हेयर मास्क अपनाएं:

जई से बना हेयर मास्क: यह हेयर मास्क सिर की तैलीय त्वचा, रूसी, खुजली और जलन से जूझने वालों के लिए बेहतरीन है. इसे बनाने के लिए 1 चम्मच जई, 1 चम्मच दूध और 1 चम्मच बादाम के तेल को एकसाथ मिला कर लेप बना लें. लेप में कोई गांठ न हो. फिर इसे बालों में लगा लें. इस लेप को 15-20 मिनट बालों में लगा रहने के बाद उन्हें कुनकुने पानी से धो लें.

एग मास्क और औलिव औयल : अंडे के हेयर मास्क में काफी ज्यादा प्रोटीन, विटामिन और फैटी ऐसिड होता है. इस से बालों के झड़ने की समस्या नहीं होती. साथ ही जैतून का तेल आप के बालों में मजबूती भरेगा और उन्हें कोमल बनाएगा. इसे बनाने के लिए 2 अंडों का सफेद भाग, 1 चम्मच शहद, 1 चम्मच जैतून का तेल ले कर एक कटोरे में तीनों को मिक्स कर के बालों में लगा कर शावर कैप पहन लें. 15-20 मिनट बाद बालों को शैंपू से धो लें. इस मास्क को महीने में 1-2 बार ही प्रयोग करें.

मास्क बनाने में तेल का प्रयोग

यदि आप पहली बार मास्क बना रही हैं, तो शुरुआत में आप जैतून के तेल का प्रयोग करें. यह सब से अच्छा होता है. बाद में आप दूसरे तेल का प्रयोग कर सकती हैं.

जोजोबा तेल: तैलीय से सामान्य बालों के लिए.

बादाम का तेल: सामान्य से रूखे बालों के लिए.

नारियल तेल: रूखे बालों के लिए.

गाय का घी: कंडीशनर करने और बालों को सफेद होने से बचाने के लिए.

ऐक्स्ट्रा ड्राई बालों के लिए तेल

अगर बाल बहुत ज्यादा नाजुक और रूखे हो गए हैं, तो आप अंडे और जैतून के तेल के मिश्रण के अलावा कुछ और भी लगा सकती हैं. जैसे शहद, ऐलोवेरा जैल, दूध, अंडा, कच्चा ऐवोकैडो या केला.

कलर्ड हेयर के लिए : यदि आप नियमित हेयर कलर लगाती हैं तब जोजोबा औयल आप के लिए बेहतरीन है. इस से क्षतिग्रस्त कलर्ड और रूखे बालों को रिपेयर किया जा सकता है.

बाल झड़ने के ट्रीटमैंट पैक

ये सभी तरह के बालों के लिए उपयोगी हैं:

हेयर पैक पाउडर

आंवला, शिकाकाई, हरड़, भृंगराज, ब्राह्मी, मेथी, मिनरल क्ले, रोजमैरी, ऐलोवेरा और सागा. इन सब को पीस कर पैक तैयार करें. जरूरत पड़ने पर इस पाउडर को गरम पानी में 2 घंटे तक भिगो कर बालों में लगाएं. अगर बाल तैलीय हैं, तो सादा पैक लगाएं और अगर बाल रूखे हैं, तो उस में 2 अंडे फेंटें. फिर इसे बालों की जड़ों में 30 मिनट लगा कर साफ पानी से धो कर बालों में हलका सा सीरम लगाएं. इस से वे चमकदार बनते हैं.

बालों की कमजोर जड़ों के लिए मास्क

हिबिस्कस (गुड़हल) हेयर मास्क: अगर आप के बालों की जड़ें काफी कमजोर हैं, तो यह पैक आप के लिए बहुत अच्छा रहेगा. यह मास्क स्कैल्प में खून के संचार को सुचारु करता है और रोमछिद्रों को अवरुद्ध होने से रोकता है. यह बालों की जड़ों तक पोषण पहुंचा कर उन्हें घना बनाता है.

विधि: 1 कप पानी में 6-7 गुड़हल की पत्तियां डाल कर रात भर के लिए छोड़ दें. सुबह एकचौथाई पानी और 2 चम्मच कच्चे दूध के साथ पत्तियों को मिक्सी में पीस लें. फिर इसे हलके हाथों से बालों में लगाएं. 20-25 मिनट बाद ठंडे पानी से धो लें. इसे नियमित लगाएं.

जम्मू कश्मीर में उबाल

भारत वैस्टइंडीज मैच के बाद श्रीनगर के टैक्निकल इंस्टिट्यूट में कुछ छात्रों के खुशी मनाने पर हुए बवाल से जम्मूकश्मीर में उबाल आ गया है. सवाल तो यह उठना चाहिए कि आखिर देश के बाहरी इलाकों से इतने ज्यादा छात्र श्रीनगर के उस टैक्निकल इंस्टिट्यूट में कर क्या रहे हैं? जब उन्हें मालूम है कि कश्मीर मुसलिम बहुल इलाका ही नहीं अकसर पुलिस, सेना और नागरिकों की झड़पों का शिकार रहता है, तो उन्हें वहां एडमिशन लेने की जरूरत ही क्या थी? सवाल यह भी उठता है कि आजकल जब कश्मीरी युवक शिक्षा के प्रति बहुत उत्साहित हैं और श्रीनगर और दूसरे शहरों के बाजार कोचिंग क्लासों के बोर्डों से पटे दिखते हैं तो इन बाहरी युवकों को श्रीनगर में प्रवेश कैसे मिल गया? जाहिर है कि प्रवेश परीक्षाओं में कश्मीरी युवा पिछड़ गए होंगे.

कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है पर है तो तनावग्रस्त और संवेदनशील ही, सही या गलत वहां के लोग केंद्र सरकार से नाराज रहते हैं और उन की शिकायतों की सूची लंबी है. तिस पर तुर्रा यह कि कश्मीर के बाहर से आए युवा श्रीनगर के इंस्टिट्यूट में आ कर वहीं के छात्रों पर दादागीरी दिखाएं. यह कोरी मूर्खता है और हवाईजहाज में बैठ कर मजाकमजाक में बमबम चिल्लाने जैसा है. ऊपर से हमारे सैनिकों का गरम खून है. जो कश्मीर की रक्षा में लगे हैं, उन में देशभक्ति चाहे भरी हो, कूटनीति में वे कोरे हैं. वे यह समझ नहीं पाते कि कश्मीर में सुरक्षा बंदूक के बल पर नहीं गांधीगीरी से आ सकती है. पर उन के हाथों में तो बंदूकें हैं न, वे तो उन्हें ही हर समस्या का हल समझते हैं और यही बंदूकें कश्मीरियों को अलगथलग करती हैं.

कश्मीर आने वाले बाहरी लोगों को समझना चाहिए कि यह वह देश है जहां महाराष्ट्र में बिहारियों को कोसना आम है, कर्नाटक में तमिलभाषियों पर हमले होते रहते हैं, दिल्ली में पूर्वोत्तर की युवतियों को चिंकी कह कर चिढ़ाने में हिचक नहीं होती. इसलिए कश्मीर में रहें, यह हक है, बुनियादी हक है, पर संभल कर रहें. वहां दोस्तों की खेती करें, जो केसर की तरह महके. कहीं दूर हो रहे क्रिकेट की नौटंकी पर जान लेनेदेने की बात न करें. यह जवानों पर भी लागू होता है. वे कश्मीरियों को आतंकवादियों से बचाते हैं, वे प्यार का संदेश ले कर आते हैं, वे देश के दूत हैं कि देश उन्हें अपना सपूत मानता है. अफसोस यह है कि जहरीले और भगवा झंडे व खौफनाक बंदूकें ज्यादा हैं, अपनेपन का संदेश केवल राज्यपाल के लिखित भाषणों में है.

गजब: इस स्मार्टफोन में है 100 जीबी मैमोरी…!

पिछले महीने सैन फ्रांसिस्को की कंपनी नेक्स्टबिट ने एलान किया था कि वह दुनिया के पहले क्लाउड स्टोरेज पर बेस्ड एंड्रायड स्मार्टफोन पर काम कर रही है. जिसे वह जल्द ही भारत में पेश करेगी. जिसके बाद कंपनी ने यह फोन नेक्स्टबिट रॉबिन भारत में लॉन्च कर दिया है.

कंपनी ने अपने इस फोन की कीमत 19,999 रुपए रखी है. स्मार्टफोन रॉबिन को ग्राहक ऑनलाइन शॉपिंग साईट फ्लिप्कार्ट से खरीद सकते हैं. इस फोन के लिए प्री-बुकिंग शुरू हो चुकी है. यह बिक्री के लिए 30 मई से उपलब्ध होगा.

आइए अब जानते हैं इस फोन के बारे में कुछ खास बातें

डिस्प्ले: नेक्स्टबिट रॉबिन में 5.2 इंच का फुल एचडी डिस्प्ले दिया गया है. जिसका रेसोल्यूशन 1920*1080 पिक्सल है. साथ ही इसमें कॉर्निंग गोरिल्ला ग्लास 4 प्रोटेक्शन दिया गया है.

प्रोसेसर: फोन में 2GHz हेक्सा कोर क्वालकॉम स्नेपड्रैगन 808 प्रोसेसर दिया गया है. फोन में 3 जीबी की दमदार रैम भी दी गई है.

स्टोरेज व क्लाउड स्टोरेज: स्मार्टफोन रॉबिन में 32जीबी की इंटरनल स्टोरेज है, साथ ही फोन में 100 जीबी की क्लाउड स्टोरेज मुफ्त मिलती है. आपको बता दें कि यह दुनिया का पहला क्लाउड स्टोरेज वाला फोन है.

कैमरा: यह हैंडसेट ड्यूल टोन एलईडी फ़्लैश और फेज़ डिटेक्शन ऑटोफोकस फीचर्स से लैस 13 मेगापिक्सल पिक्सल के रियर कैमरा के साथ आता है. साथ ही इसका सेल्फी कैमरा 5 मेगापिक्सल का है.

यूएसबी टाइप सी पोर्ट व बैटरी: फोन में यूएसबी टाइप सी पोर्ट दिया गया है, जिससे यह काफी जल्दी चार्ज हो जाता है. फोन की बैटरी 2,680 mAh की है.

सिक्यूरिटी है कमाल: नेक्स्टबिट रॉबिन स्मार्टफोन बिल्ट-इन एन्क्रिप्शन के साथ आता है. जो कि इसकी सिक्यूरिटी को बेहद मजबूत बना देता है. सिक्यूरिटी के लिए फोन का डाटा सर्वर में एन्क्रिप्टेड रहता है.

स्मार्ट ऑपरेटिंग सिस्टम: फोन में इस्तेमाल नेक्स्टबिट ओएस, क्लाउड और एंड्रायड प्लेटफ़ॉर्म के साथ मिलकर काम करता है. यह आपके इस्तेमाल के तरीके को अपनाता है, जिससे आपका अनुभव और भी बेहतर होता जाए. यह एंड्रायड प्लेटफ़ॉर्म को और भी सिक्योर और आसान बना देता है.

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