भारत वैस्टइंडीज मैच के बाद श्रीनगर के टैक्निकल इंस्टिट्यूट में कुछ छात्रों के खुशी मनाने पर हुए बवाल से जम्मूकश्मीर में उबाल आ गया है. सवाल तो यह उठना चाहिए कि आखिर देश के बाहरी इलाकों से इतने ज्यादा छात्र श्रीनगर के उस टैक्निकल इंस्टिट्यूट में कर क्या रहे हैं? जब उन्हें मालूम है कि कश्मीर मुसलिम बहुल इलाका ही नहीं अकसर पुलिस, सेना और नागरिकों की झड़पों का शिकार रहता है, तो उन्हें वहां एडमिशन लेने की जरूरत ही क्या थी? सवाल यह भी उठता है कि आजकल जब कश्मीरी युवक शिक्षा के प्रति बहुत उत्साहित हैं और श्रीनगर और दूसरे शहरों के बाजार कोचिंग क्लासों के बोर्डों से पटे दिखते हैं तो इन बाहरी युवकों को श्रीनगर में प्रवेश कैसे मिल गया? जाहिर है कि प्रवेश परीक्षाओं में कश्मीरी युवा पिछड़ गए होंगे.

कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है पर है तो तनावग्रस्त और संवेदनशील ही, सही या गलत वहां के लोग केंद्र सरकार से नाराज रहते हैं और उन की शिकायतों की सूची लंबी है. तिस पर तुर्रा यह कि कश्मीर के बाहर से आए युवा श्रीनगर के इंस्टिट्यूट में आ कर वहीं के छात्रों पर दादागीरी दिखाएं. यह कोरी मूर्खता है और हवाईजहाज में बैठ कर मजाकमजाक में बमबम चिल्लाने जैसा है. ऊपर से हमारे सैनिकों का गरम खून है. जो कश्मीर की रक्षा में लगे हैं, उन में देशभक्ति चाहे भरी हो, कूटनीति में वे कोरे हैं. वे यह समझ नहीं पाते कि कश्मीर में सुरक्षा बंदूक के बल पर नहीं गांधीगीरी से आ सकती है. पर उन के हाथों में तो बंदूकें हैं न, वे तो उन्हें ही हर समस्या का हल समझते हैं और यही बंदूकें कश्मीरियों को अलगथलग करती हैं.

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