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वैज्ञानिक विधि से हो उत्तराखंड में सेब की खेती

उत्तराखंड में सेब की खेती ने पिछले 2 दशकों में दम तोड़ दिया है, जिस की खास वजह उम्दा पौधों का न मिलना और सरकारी रवैया है. ब्रिटिश शासनकाल में राज्य के नैनीताल, अल्मोड़ा, उत्तरकाशी, चमोली वगैरह जिलों में सेब के बागों को लगाया गया. तब मुख्य रूप से सेब की उम्दा प्रजातियों जैसे गोल्डन, ग्रेनीस्मिथ, स्टारकिंग डिलिसियस, रेड डिलिसियस व मैक्नटोवस वगैरह को लगाया गया?था. गोल्डन व ग्रेनीस्मिथ वगैरह प्रजातियां परागण करने वाली प्रजातियां थीं. वास्तव में अंगरेज अपने वैज्ञानिक ज्ञान से सेब का उत्पादन करते?थे. लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि हम अपने इन अमूल्य बागों को सहेज कर न रख सके. हालांकि इस का एक बड़ा कारण पर्यावरणीय असंतुलन भी रहा है.

पुराने बागों का सुधार : उत्तराखंड के ज्यादातर बाग 70-80 साल पुराने हैं, जो कि रूट राट, कैकर, रूटबोरर, स्टेम बोरर और कुप्रबंध के शिकार हैं. लिहाजा इन को हटा दें और इस मिट्टी को उपचारित कर दें. उपचार के लिए इस में चूना डाला जा सकता है.

नई प्रजातियों का चयन : नए बाग लगाने से पहले सही प्रजातियों का चयन करना जरूरी है. प्रजाति का चयन भौगोलिक आधार, अनुकूल जलवायु और बाजार की मांग के अनुसार करना बेहतर होता?है. आजकल रायल डिलिसियस के अलावा स्पर की तमाम प्रजातियों का कृषिकरण हिमाचल व अन्य सेब उत्पादक राज्यों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. इन प्रजातियों को उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लगाया जा सकता है:

सुपरचीफ : यह प्रजाति 4500 से 8000 फुट ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जुलाई तक तैयार होती है.

स्कारलेट स्पर टू : 6500 फुट से ऊपर वाले क्षेत्रों में भरपूर फल देने का समय जुलाई महीने का पहला पखवाड़ा है.

स्कारलेट स्पर : इस की 2 किस्में हैं जो कि अमेरिका व फ्रांस से यहां लाई गई हैं.

आग्रेन स्पर टू : अमेरिका की यह किस्म 6000 से 8000 हजार फुट तक की ऊंचाई पर लगाई जाती है. जुलाई में इस में खूब फल आते?हैं.

आर्ली रेड वन : 7000 फुट की ऊंचाई से ऊपर के लिए यह मुनासिब किस्म है. पारंरिक रायल डिलिसियस से 2 हफ्ते पहले इस की फसल तैयार हो जाती है.

वाशिंगटन रेड : डिलिसियस अमेरिकी प्रजाति का यह पौधा 6500 से 7000 फुट तक की ऊंचाई पर बहुत कामयाब है.

अमेरिकन शैलेट स्पर : 90 से 100 दिनों में तैयार होने वाली यह प्रजाति 6000 फुट से नीचे वाले स्थानों के लिए सही नहीं है.

ऐस स्पर : अमेरिकी प्रजाति का यह पौधा 8000 फुट की ऊंचाई तक बहुत आसानी से होता?है.

रेड विलाक्स : इटली की यह प्रजाति उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले?क्षेत्रों में बेहतरीन साबित हो सकती है.

जेरोमाइन : इटली की यह प्रजाति मध्यम क्षेत्रों के लिए बहुत अच्छी है, लेकिन यह नई प्रजाति है.

एजटैक फ्यूजी?: पथरीली भूमि पर यह प्रजाति आसानी से सफल होती है और इस के फल की भंडारण कूवत भी बहुत अच्छी?है.

फ्यूजी : चीन की यह बेहतरीन प्रजाति देर नवंबर तक तैयार होती है. 6500 फुट से ऊपर के स्थानों के लिए यह प्रजाति बेहतरीन है.

गेल गाला : ऊंचाई पर होने वाली यह प्रजाति स्वपरागण और नियमित रूप से फल देने वाली है.

ग्रेनी स्मिथ : ग्रेनी स्मिथ की परागण कूवत गोल्डन प्रजाति से अधिक?है.

पिंक लेडी : कम ठंड वाले क्षेत्रों में भी यह प्रजाति आसानी से उगती है. 220 दिनों में तैयार होने वाली यह प्रजाति 4 से 8 हजार फुट तक आसानी से होती है.

वैज्ञानिक तरीकों से प्रबंधन

प्रजातियों के सही चयन के बाद बाग प्रबंधन, पौध रोपण, बाग संरचना, कटाईछंटाई, फल तोड़ाई व पौधों का रखरखाव आदि काम वैज्ञानिक विधियों से माहिरों के मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिए.

वास्तव में आज उत्तराखंड राज्य के लोग सेब उत्पादन को अपना कर अपना भविष्य हिमाचल की तर्ज पर संवार सकते हैं. गौरतलब है कि हिमाचल हर साल 3600 करोड़ रुपए के सेब व्यवसाय को कर रहा?है, जबकि उत्तराखंड में अभी तक इस के लिए कोई नीति नहीं बन पाई है.

– डा. नारायण सिंह, अमित ठाकुर, डा. एलएस लोधियाल

मार्च महीने के दौरान होने वाले खेती के खास काम

महाशिवरात्रि और होली जैसे उत्सवों के लिए मशहूर महीना मार्च खेती के लिहाज से भी रंगारंग ही होता है. इस महीने तमाम किसान होली के खुमार में डूबे रहते हैं, लिहाजा इन के काम का जोश भी बढ़ जाता है. रंगबिरंगे त्योहार की मस्ती किसानों की कूवत में खासा इजाफा कर देती है. इस महीने रबी की तमाम फसलें पकने की दहलीज पर पहुंच चुकी होती हैं, इस से किसानों का जोश ज्यादा ही बढ़ जाता है. एक ओर रबी की फसलें तैयार होने को होती हैं, तो दूसरी तरफ जायद की तमाम फसलों की बोआई का सिलसिला चालू हो जाता है.

एक ओर गेहूं की फसल में दाने बनने लगते हैं, तो दूसरी ओर चीनी की फसल यानी गन्ना कटाई के लिए तैयार हो जाता है. एक ओर त्योहारों का आलम किसानों में नई उमंग भरता है, तो दूसरी तरफ गन्ने व गेहूं की आमदनी की उम्मीद किसानों के परिवारों में खुशी भर देती है. पेश है मार्च के दौरान होने वाले खेती के खास कामों का ब्योरा :

* मार्च में गेहूं की बालियों में दूध बनना शुरू हो जाता है और इसी के साथ गेहूं के दाने बनने का सिलसिला शुरू हो जाता है.

* गेहूं के दाने बनने के दौरान पौधों को पानी की दरकार रहती है, इसलिए खेत में नमी कायम रखना लाजिम होता है. लिहाजा गेहूं के खेत की सिंचाई का पूरा खयाल रखें.

* अकसर मार्च के दौरान दिन में अंधड़ यानी तेज हवाओं का दौर चलता है, लिहाजा रात के वक्त सिंचाई करना बेहतर रहता है.

* अगर उड़द की बोआई का इरादा हो, तो इस काम को 15 मार्च तक निबटा लें. उड़द बोने से पहले इस बात का खयाल रखें कि बीजों को उपचारित करना जरूरी है. इस के लिए कार्बंडाजिम या राइजोबियम कल्चर का इस्तेमाल करें.

* उड़द की बोआई के लिए 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें, बोआई लाइनों में करें और बीजों के बीच पर्याप्त फासला रखें.

* उड़द की तरह यदि मूंग बोने की भी मंशा हो, तो उस की शुरुआत 15 मार्च से कर सकते हैं. मगर मूंग की बोआई का काम 1 महीने के अंदर यानी 15 अप्रैल तक जरूर निबटा लेना चाहिए.

* मूंग की बोआई के लिए भी उड़द की तरह करीब 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लेने चाहिए.

* मूंग की बोआई से पहले बीजों को उपचारित कर लें और लाइनों में बोआई करें. 2 लाइनों के बीच 1 फुट का फासला रखें और 2 बीजों यानी पौधों (उगने वाले) के बीच भी पर्याप्त फासला छोड़ना न भूलें.

* यह महीना गन्ना किसानों के लिए बहुत खास होता है. पुरानी फसल के गन्ने मार्च तक कटाई के लिए एकदम तैयार होते हैं और नई फसल की बोआई का वक्त भी शुरू हो जाता है. इस महीने ही पुरानी फसल की कटाई का काम खत्म कर लेना चाहिए.

* मार्च में ही गन्ने की नई फसल की बोआई कर लेना आखिरकार फायदे का सौदा साबित होता है. बोआई के लिए 3 आंखों वाले गन्ने के टुकड़े बेहतर रहते हैं. बोने से पहले इन बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए.

* गन्ने की बोआई का काम बराबरी से करने के लिए शुगरकेन प्लांटर इस्तेमाल करें.

* बोआई से पहले गन्ने के खेत में कंपोस्ट खाद या अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद पर्याप्त मात्रा में मिलानी चाहिए.

* बोआई से पहले खेत से हर किस्म के खरपतवार चुनचुन कर निकाल देने चाहिए. इस से गन्ने की फसल का बेहतर जमाव होगा.

* अगर ज्यादा आमदनी का जज्बा हो तो गन्ने के 2 कूंड़ों के बीच मूंग, उड़द या लोबिया जैसी चीजें बोई जा सकती हैं. इन के अलावा मक्के की चारे वाली फसल भी गन्ने के 2 कूंड़ों के बीच बोई जा सकती है.

* जिन किसानों के पास कई मवेशी होते हैं, वे हमेशा चारे के लिए फिक्रमंद रहते हैं. ऐसे किसान इस महीने ज्वार, बाजरा या सूडान घास की बोआई कर सकते हैं.

* मार्च में सरसों की फसल पकने लगती है, लिहाजा उस पर ध्यान देना भी जरूरी है. अगर सरसों की करीब 75 फीसदी फलियां पीलेसुनहरे से रंग की हो जाएं, तो यह उन की कटाई का सब से सही वक्त होता है.

* पिछले महीने बोई गई सूरजमुखी के खेतों का जायजा लें. अगर खेत सूखते नजर आएं, तो जरूरत के हिसाब से सिंचाई करें.

* सूरजमुखी के खेत में अगर पौधे ज्यादा पासपास लगे नजर आएं, तो बीचबीच से फालतू पौधे निकाल दें. इस बात का ध्यान रखें कि 2 पौधों के दर्मियान 2 फुट का फासला दुरुस्त रहता है.

* आलू के खेतों का मुआयना करें, क्योंकि मार्च तक ज्यादातर आलू की फसल तैयार हो जाती है. अगर आप के आलू भी तैयार हो चुके हों, तो उन की खुदाई का काम खत्म करें. आलू निकालने के बाद खेत को आगामी फसल के लिए तैयार करें.

* इस महीने प्याजलहसुन की तेजी से तैयार होती फसलों का खास खयाल रखना चाहिए. तैयार होती प्याजों व लहसुनों को नर्म खेत की जरूरत होती है, लिहाजा निराईगुड़ाई कर के खेत को नर्म बनाएं. अगर जरूरी लगे तो खेत में यूरिया खाद डालें.

* सुनहरी हलदी और खुशबूदार अदरक की बोआई के लिए मार्च का महीना मुफीद होता है. बोआई के लिए हलदी व अदरक की स्वस्थ गांठों का इस्तेमाल करें. इन गांठों की बोआई 50×25 सेंटीमीटर की दूरी पर करें.

* बीते महीने के दौरान बोई गई लोबिया, भिंडी व राजमा के खेतों का जायजा लें. अगर खेत सख्त व गंदा लगे तो निराईगुड़ाई कर के उसे दुरुस्त करें. निराईगुड़ाई के बाद सिंचाई करना न भूलें. इस से फसल को काफी फायदा होता है. सिंचाई के बाद टाप ड्रेसिंग के लिहाज से यूरिया का इस्तेमाल करें.

* मार्च में हरी मटर कम होने के साथसाथ दाने वाली मटर की फसल तैयार हो जाती है. अगर मटर की फलियां सूख कर पीली पड़ जाएं, तो उन की कटाई कर लेनी चाहिए. गहाई करने के बाद मटर के दानों को इतना सुखाएं कि सिर्फ 8 फीसदी नमी ही बचे.

* वैसे तो ज्यादातर किसान बैगन की रोपाई का काम फरवरी तक निबटा लेते हैं, लेकिन मरजी हो तो यह काम मार्च में भी कर सकते हैं. बैगन की रोपाई के बाद सिंचाई करें, इस से पौधे सही तरीके से लग जाते हैं.

* फरवरी में लगाए बैगन के पौधे महीने भर में काफी बढ़ जाते है, लिहाजा उन की निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालना जरूरी होता है.

* इस महीने याद से आम के बागों की खोजखबर ले लेनी चाहिए. इस दौरान हापर कीट व फफूंद से होने वाले रोगों का डर बढ़ जाता है. इन रोगों का अंदेशा लगे, तो कृषि वैज्ञानिकों से पूछ कर इलाज करना चाहिए.

* आम के अलावा मार्च में अमरूद के बागों की देखभाल भी जरूरी होती है. इस दौरान अमरूद के पेड़ों में तनाबेधक कीट का प्रकोप हो सकता है. ऐसा होने पर कृषि वैज्ञानिकों से पूछ कर इलाज करना चाहिए.

* इस महीने पपीते के बीज नर्सरी में बोएं ताकि पौध तैयार हो सकें. अगर पहले बीज बो चुके हैं, तो इन के पौध अब तक तैयार हो गए होंगे. जगह के मुताबिक पपीते के पौधों की रोपाई कर सकते हैं या उन्हें दूसरे बागबानों को बेच सकते हैं.

* अपने बाग के अंगूर के गुच्छों को फूल खिलने के दौरान जिब्रेलिक अम्ल के 50 पीपीएम वाले घोल में बेल में लगे हुए ही डुबोएं. ऐसा करने से अंगूर स्वस्थ रहते हैं.

* अगर अंगूर की फसल में रोगों व कीटों का हमला नजर आए तो कृषि वैज्ञानिक की सलाह से जरूरी इलाज करें.

* अपने आम, अमरूद और पपीता वगैरह के बगीचों की ठीक से सफाई करें. उन में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें व खाद डालें. इस बारे में कृषि वैज्ञानिकों से भी राय लें.

* फूलों की खेती में दिलचस्पी रखने वाले किसान इस महीने रजनीगंधा व गुलदाउदी की रोपाई करें. रोपाई करने के बाद बाग की हलकी सिंचाई करना न भूलें.

* जाती सर्दी व आती गरमी के मार्च महीने में गायभैंसों को अकसर अफरा की शिकायत हो जाती है, लिहाजा इन्हें फूली हुई बरसीम न खाने दें. जरूरत के मुताबिक पशुओं का इलाज कराएं.

* मार्च में मवेशियों को सर्दी से तो नजात मिल जाती है, पर उन के मामले में लापरवाह न बनें. उन के रहने की जगह पर उम्दा कीटनाशक दवा छिड़कें.

* सर्दी से नजात पाए मवेशियों की सफाई का बदसतूर खयाल रखें. खासकर भैंसों के शरीर के फालतू बाल कटा दें.

* अगर भेड़बकरियां पाल रखी हों तो उन्हें पेट के कीड़े मारने की दवा खिलाएं.

* अपनी गायभैंसों को भी शिड्यूल के मुताबिक पेट के कीड़ों की दवा खिलाएं.

* गरमी में दूध की किल्लत बढ़ जाती है, ऐसे में अपनी गायभैंसों को हीट में आते ही डाक्टर के जरीए गाभिन कराना न भूलें ताकि दूध की कमी न होने पाए.

* मार्च से अंडों की खपत में कुछ गिरावट आती है, पर अपनी मुरगियों का खयाल कायदे से रखें.

जल की रानी बनाएगी राजा

आजकल देशविदेश में बिहार की पहचान बन चुकी मछलियों की पैदावार बढ़ा कर राज्य को मछली उत्पादन के मामले में अपने पैरों पर खड़ा करने की कवायद शुरू की गई है. मछली को ‘जल की रानी’ कहा जाता है और मछली उत्पादक अब मछलीपालन कर के राजा बनने की राह पर चल पड़े हैं. बिहार में मछली की सालाना खपत 6 लाख टन है, जबकि सूबे का अपना उत्पादन 4 लाख 70 हजार टन है. बाकी मछलियों को दूसरे राज्यों से मंगवाया जाता है.

झींगा मछली : सूबे के जलजमाव वाले इलाकों में झींगा मछली का बेहतर उत्पादन हो सकता है. पहले फेज में उत्तर बिहार के पूर्णियां, कटिहार, सहरसा, अररिया, मधेपुरा और किशनगंज जिलों के जलजमाव वाले इलाकों में झींगापालन योजना की शुरुआत की गई है. बिहार में झींगा की माइक्रो ब्रेकियम रोजाबर्गी और माइक्रो विलियम मालकम सोनी नस्लों का काफी बढि़या उत्पादन हो सकता है. राज्य में हर साल 30 से 50 टन झींगा मछली की खपत होती है और इस की कीमत 500 से 700 रुपए प्रति किलोग्राम है.

मधुबनी जिले के रहिका गांव के मछली उत्पादक सुजय राय बताते हैं कि 1 हेक्टेयर क्षेत्र में झींगापालन करने में 2 लाख 80 हजार रुपए तक की लागत आती है. तालाब में बीज डालने के तुरंत बाद मत्स्य निदेशालय में अनुदान के लिए आवेदन करने पर 1 लाख 40 हजार रुपए झींगापालकों को मुहैया किए जाएंगे.

मांगुर मछली : बिहार की मांगुर मछली की दूसरे राज्यों में खासी मांग है. इस वजह से पिछले कुछ सालों में मांगुरपालन काफी मुनाफा देने वाला धंधा बन गया है. बाजार में वायुश्वासी मछलियों की काफी मांग है, जिन में मांगुर भी शामिल है. बिहार सरकार ने मांगुर को राजकीय मछली का दर्जा दिया है.

मांगुर मछली में आयरन की मात्रा बहुत होती है, जिस से कई बीमारियों में फायदा होता है. इस का स्वाद भी बाकी मछलियों से बेहतर होता है.

राष्ट्रीय मत्स्यिकी विकास बोर्ड द्वारा मांगुर मछली के पालन के लिए सहायता दी जा रही है. मछलीपालकों द्वारा छोटेछोटे तालाब इस्तेमाल कर के इस का पालन किया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक बीएन सिंह ने बताया कि मांगुर मछली के बीज उत्पादन के लिए किसान आगे आ रहे हैं. इस का बीज सस्ती कीमत पर बाजार में मौजूद है. कम पूंजी और मेहनत में मांगुर मछली भरपूर मुनाफा देती है.

जयंती रोहू : बिहार में रोहू मछली की नई किस्म जयंती रोहू से मछलीपालकों  की आमदनी में कई गुना इजाफा होने की उम्मीद है. इस का उत्पादन बढ़ने से दूसरे राज्यों से मछली मंगाने की मजबूरी कम हो सकेगी. केंद्रीय मीठाजल मत्स्य अनुसंधान संस्थान की ताजा रिसर्च का परीक्षण कामयाब रहा है. परीक्षण में पाया गया कि साधारण रोहू की तुलना में इस का वजन डेढ़ गुना ज्यादा होता है.

राज्य सरकार किसानों को इस नई किस्म की मछली का बीज मुहैया कराएगी. इस मछली का रंग सुनहरा होता है और स्वाद सामान्य रोहू से काफी अच्छा होता है. राज्य के सभी इलाकों के तालाबों में जयंती रोहू का उत्पादन किया जा सकता है. साधारण रोहू के मुकाबले इस का वजन बहुत तेजी से बढ़ता है.

पंगेसियस मछली : पंगेसियस मछली के उत्पादन से मछलीपालकों की बल्लेबल्ले हो सकती है. मीठे पानी में पंगेसियस मछली का वजन काफी तेजी से बढ़ता है और यह 8 महीने में ही डेढ़ किलोग्राम की हो जाती है. यह मछली भारतीय मछली की तुलना में 5 गुना ज्यादा तेजी से बढ़ती है.

1 हेक्टेयर क्षेत्र में पंगेसियस मछली के उत्पादन में 5 लाख रुपए का खर्च आता है. इस में 60 हजार रुपए मछली के बीज पर और 4 लाख 40 हजार रुपए मछली के भोजन पर खर्च होते हैं. मत्स्य संसाधन विभाग मछलीपालकों को 1 हेक्टेयर क्षेत्र में 1000 किलोग्राम के बजाय ढाई हजार किलोग्राम मछली उत्पादन के लिए जागरूक कर रहा है. पिछले साल 168 किसानों ने 126 हेक्टेयर में पंगेसियस मछली का पालन किया था और 1117 मीट्रिक टन मछली की पैदावार हुई थी.

पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री अवधेश कुमार सिंह कहते हैं कि पूर्वी और पश्चिमी चंपारण से कतला और रोहू मछली नेपाल भेजी जा रही हैं, जबकि दरभंगा में पैदा की जाने वाली बुआरी और टेंगरा मछलियां भूटान में खूब पसंद की जाती हैं. वहीं भागलपुर और खगडि़या जिलों में पैदा की जाने वाली मोए और कतला मछलियां सिलीगुड़ी भेजी जा रही हैं. चंडीगढ़ और पंजाब के व्यापारी मुजफ्फरपुर और बख्तियारपुर से बड़ी तादाद में मछलियां मंगा रहे हैं. मंत्री का मानना है कि बिहार की मछलियों का लाजवाब जायका दूसरे राज्यों और तमाम देशों के लोगों को दीवाना बना रहा है. इस से जहां बिहार की मछलियों की मांग बढ़ रही है, वहीं उत्पादकों को ज्यादा कीमत भी मिल रही है. इस से मछली के उत्पादन में तेजी से इजाफा हो रहा है.

पालक की खेती : कम लागत में ज्यादा मुनाफा

पालक आयरन से भरपूर होती?है. यह एक ऐसी फसल है, जो कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है. पालक की 1 बार बोआई करने के बाद उस की 5-6 बार कटाई की जाती है. इस की फसल में कीटों व बीमारियों का प्रकोप कम पाया जाता है. पालक की फसल पूरे साल ली जाती?है. इस के लिए अलगअलग महीनों में इस की बोआई करनी पड़ती है. वैसे अक्तूबर से अप्रैल तक का समय पालक की खेती के लिए सब से मुफीद होता है. पालक की खेती करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि जिस खेत में आप उसे बोने जा रहे?हैं, वह समतल हो और उस में जलनिकासी का अच्छा इंतजाम हो. पालक की खेती के लिए सब से अच्छी मिट्टी बलुई दोमट या मटियार होती है.

पालक की बोआई से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई कर के मिट्टी को?भुरभुरी बना लेना चाहिए. इस के लिए हैरो या कल्टीवेटर से 2-3 बार जुताई की जानी चाहिए. जुताई के समय ही खेत से खरपतवार निकाल देने चाहिए. अच्छी उपज के लिए खेत में पाटा लगाने से पहले 25 से 30 टन गोबर की सड़ी खाद व 1 क्विंटल नीम की खली या नीम की पत्तियों से तैयार की गई खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में बिखेर देना चाहिए. पालक की उन्नत प्रजातियां : पालक की बोआई से पहले ही यह पक्का कर लें कि आप जिस किस्म का चयन कर रहे हैं वह अधिक उत्पादन देने वाली हो.

पालक की उन्नतशील प्रजातियों में जोबनेर ग्रीन, हिसार सिलेक्सन 26, पूसा पालक, पूसा हरित, आलग्रीन, पूसा ज्योति, बनर्जी जाइंट, लांग स्टैंडिंग, पूसा भारती, पंत कंपोजिटी 1, पालक नंबर 15-16 खास हैं. इन प्रजातियों के पौधे लंबे होते हैं. इन के पत्ते कोमल व खाने में स्वादिष्ठ होते हैं.

बोआई का समय : वैसे तो पालक की बोआई पूरे साल की जा सकती?है, लेकिन फरवरी से मार्च व नवंबर से दिसंबर महीनों के दौरान बोआई करना ज्यादा फायदेमंद रहता है.

बीज की मात्रा व बोआई : पालक की उन्नत प्रजातियों के 25-30 किलोग्राम बीज 1 हेक्टेयर खेत के लिए सही रहते हैं. बोआई से पहले बीजों को 5-6 घंटे तक पानी में भिगो कर रखने से बीजों का जमाव बेहतर होता है.

बोआई के समय खेत में नमी होना जरूरी है. अगर पालक को लाइनों में बोया जा रहा है तो लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर व पौध की दूरी भी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. छिटकवां विधि से बोआई करते वक्त यह ध्यान रखें कि बीज?ज्यादा पासपास न गिरने पाएं. पालक की बोआई 2-3 सेंटीमीटर से ज्यादा गहराई में नहीं करनी चाहिए.

खाद व उर्वरक : पालक की खेती के लिए गोबर की सड़ी खाद व वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल सब से सही होता?है. इस से पालक के पौधों का विकास तेजी से होता है और इनसानों को कोई नुकसान नहीं होता.

बोआई के समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालने से पैदावार में काफी इजाफा होता है. इस के अलावा हर कटाई के बाद 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन का बुरकाव खेत में करते रहना चाहिए.

खरपतवार व कीटनियंत्रण : कृषि विज्ञान केंद्र बंजरिया (बस्ती) के वरिष्ठ वैज्ञानिक व प्रभारी डा. एसएन सिंह का कहना?है कि पालक की फसल में किसी तरह के रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से बचना चाहिए. अगर फसल में खरपतवार उग आएं तो उन्हें जड़ से उखाड़ देना चाहिए. इस से फसल की बढ़वार अच्छी होती है और उपज भी अच्छी मिलती है.

वैसे तो फसल में कीटों का प्रकोप नहीं पाया जाता है, लेकिन कभीकभी इस की फसल में पत्ती खाने वाले कीट का प्रकोप देखा गया है. कैटर पिलर नाम का यह कीट पहले पत्तियों को खाता है और बाद में तने को नष्ट कर देता है.

इस कीट से नजात पाने के लिए जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा सकता?है. जैविक कीटनाशक के रूप में किसान नीम की पत्तियों का?घोल बना कर 15-20 दिनों के अंतर पर छिड़काव कर सकते हैं. इस के अलावा 20 लीटर गौमूत्र में 3 किलोग्राम नीम की पत्तियां व आधा किलो तंबाकू घोल कर फसल में छिड़काव कर के कीड़ों से नजात पा सकते हैं.

उपज व लाभ : पालक की बोआई के 1 महीने बाद जब पत्तियों की लंबाई 15-30 सेंटीमीटर के करीब हो जाए तो पहली कटाई कर देनी चाहिए. यह ध्यान रखें कि पौधों की जड़ों से 5-6 सेंटीमीटर ऊपर से ही पत्तियों की कटाई की जानी चाहिए. हर कटाई में 15-20 दिनों का फर्क जरूर रखना चाहिए. हर कटाई के बाद फसल की सिंचाई  करें, इस से फसल तेजी से बढ़ती है.

कृषि विज्ञान केंद्र बंजरिया (बस्ती) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. दिनेश कुमार यादव का कहना है कि 1 हेक्टेयर फसल से 150-250 क्विंटल तक की औसत उपज हासिल की जा सकती है, जो बाजार में 15-20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आसानी से बेची जा सकती है. इस प्रकार अगर प्रति हेक्टेयर लागत के 25 हजार रुपए निकाल दिए जाएं तो 1500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से 200 क्विंटल से 3 महीने में ही 2 लाख, 75 हजार रुपए की आमदनी हासिल की जा सकती है

धौंस नहीं अनुशासन दिखाएं

देश की सड़कें तो छोटी ही हैं पर उन से ज्यादा छोटे दिल सड़कों को इस्तेमाल करने वालों के हैं जो केवल अपनी सोचते हैं और अपने रोबदाब के आगे खुद की भी, दूसरों की भी जान पर खेलते हैं. देश में जितनी दुर्घटनाएं होती हैं उन में बड़ा हिस्सा युवाओं का होता है चाहे वे ड्राइविंग कर रहे हों या सड़क पर हों.

जो बात हरेक को मालूम होनी चाहिए कि चाहे सिनेमा में एंट्री हो या रेल का टिकट खरीदना हो, अपनी बारी का सब्र से इंतजार करें, युवाओं ने शायद पैदा होते ही यह आदत गंवा डाली. वे अगर स्कूटर, साइकिल पर आड़ेतिरछे, हो कर इंच भर जगह से निकलने की कोशिश करेंगे और कभी इस से टकराएंगे कभी उस से, कोई कुछ कह दे तो नारा होता है, ‘जो हम से टकराएगा, चूरचूर हो जाएगा.’ अगर चल रहे हैं तो न लालबत्ती का इंतजार करेंगे न डिवाइडरों का, जहां मुंह उठाया चल दिए. दूसरे परेशान हो रहे हैं तो होते रहें. सड़क के बीच रुक कर गपशप करना और स्कूटर, गाड़ी रोक कर हैलोहाय करना आम है. यहांवहां कहीं भी अपनी गाड़ी खड़ी कर देना, अगर इन्हें कोई रोके या कहे कि यहां पार्किंग नहीं है और आप के ऐसा करने से ट्रैफिक जाम हो जाएगा तो वे दोदो हाथ आजमाने से भी पीछे नहीं हटते. अगर चलते हुए मोबाइल का इस्तेमाल नहीं किया तो यूथ कैसे कहलाएंगे. पैदल चलते हुए भी कानों में इयरप्लग लगे होंगे और ध्यान या तो बातों पर या गानों पर होगा. नतीजा दूसरों को परेशानियां.

अगर युवा 5-7 के झुंड में चल रहे हैं तो समझ लें कि मिल्कीयत का बदलाव हो गया. सड़क उन को अभी से विरासत में मिल गई और बाकी सब घुसपैठिए जो सरियों से पीटे जाने लायक हैं और इस के लिए युवा तैयार रहते हैं. गाड़ी चलाना सीखने से पहले मारपीट करना सीखा जाता है इस देश में और यह भी सड़क दुर्घटनाओं का कारण है.

सड़कों पर ट्रैफिक जाम सड़कों के संकरी होने के कारण तो है ही, सड़कों पर कतार में न चलना और दूसरों का खयाल न रखना भी है. आज का युवा बेचैन है और मर्दानगी सड़क पर ही दिखाता है चाहे खुद उसे ज्यादा भुगतना पड़े. बात अनुशासन की नहीं, अपनी सुविधा जुटाने की है. आप अगर ट्रैफिक या रोड एटीकेट छोड़ेंगे तो दूसरे भी छोड़ेंगे और अंतत: हरेक को परेशानी होगी. यह सोचना कि धौंस से कुछ जल्दी आगे निकल जाएंगे गलत है. आज इतना ट्रैफिक और इतनी नजरअंदाजी है कि चार कदम अगर जल्दी चल भी लिए तो आगे फंस जाओगे. सड़कें तो गर्लफ्रैंड की तरह हैं, उन्हें प्यार से, दुलार से रखोगे तो ही दिल खुश रहेगा. धौंस से काम लोगे तो वे रूठी मुंह बनाए रहेंगी.

राजू बन गया जैंटलमैन

माफ कीजिए, पहले मैं आप को अपने बारे में बता तो दूं. मैं देश की सब से मजबूत दीवारों में से एक हूं. यह किसी कंपनी का इश्तिहार नहीं है. मैं तिहाड़ जेल की दीवार हूं. हिंदी में कहावत है न कि दीवारों के भी कान होते हैं. मैं भी सुनती हूं, देखती हूं, महसूस करती हूं, पर बोल नहीं पाती, क्योंकि मैं गूंगी हूं.

एक बार जो मेरी दहलीज के बाहर कदम रख देता है, वह मेरे पास दोबारा न आने की कसम खाता है. न जाने कितनों ने मेरे सीने पर अपने आंसुओं से अपनी इबारत लिखी है.

कैदियों के आपसी झगड़ों की वजह से अनगिनत बार उन के खून के छींटे मेरे दामन पर भी लगे, फिर दोबारा रंगरोगन कर मुझे नया रूप दे दिया गया.

समय को पीछे घुमाते हुए मैं वह दिन याद करने लगी, जब राजू ने पहली बार मुझे लांघ कर अंदर कदम रखा था. चेहरे पर मासूमियत, आंखों में एक अनजाना डर और होंठों पर राज भरी खामोशी ने मेरा ध्यान उस की ओर खींचा था. मैं उस के बारे में जानने को बेताब हो गई थी.

‘‘नाम बोल…’’ एक अफसर ने डांटते हुए पूछा था.

‘‘जी… राजू,’’ उस ने मासूमियत से जवाब दिया था.

‘‘कौन से केस में आया है?’’

‘‘जी… धारा 420 में.’’

‘‘किस के साथ चार सौ बीसी कर दी तू ने?’’

‘‘जी, मेरे बिजनैस पार्टनर ने मेरे साथ धोखा किया है.’’

‘‘और बंद तुझे करा दिया. वाह रे हरिश्चंद्र की औलाद,’’ अफसर ने ताना मारा था.

अदालत ने उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में यहां मेरे पास भेज दिया था.

पुलिस वाले राजू को भद्दी गालियां देते हुए एक बैरक में छोड़ गए थे. बैरक में कदम रखते ही कई जोड़ी नजरें उसे घूरने लगी थीं. अंदर आते ही उस के आंसुओं के सैलाब ने पलकों के बांध को तोड़ दिया था. सिसकियों ने खामोश होंठों को आवाज की शक्ल दे दी थी.

मन में दर्द कम होने के बाद जैसे ही राजू ने अपना सिर ऊपर उठाया, उस ने अपने चारों ओर साथी कैदियों का जमावड़ा देखा था. कई हाथ उस के आंसुओं को पोंछने के लिए आगे बढ़े. कुछ ने उसे हिम्मत दी, ‘शांत हो जा… शुरूशुरू में सब रोते हैं. 2-3 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’

‘‘घर की… बच्चों की याद आ रही है,’’ राजू ने सहमते हुए कहा था.

‘‘अब तो हम ही एकदूसरे के रिश्तेदार हैं,’’ एक कैदी ने जवाब दिया था.

‘‘चल, अब खाना खा ले,’’ दूसरे कैदी ने कहा था.

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ राजू ने सिसकते हुए जवाब दिया था.

‘‘भाई मेरे, कितने दिन भूखा रहेगा? चल, सब के साथ बैठ.’’

एक कैदी उस के लिए खाना ले कर आ गया और बाकी सब उसे खाना खिलाने लगे थे.

राजू को उम्मीद थी कि उस के सभी दोस्त व रिश्तेदार उस से मुलाकात करने जरूर आएंगे, लेकिन जल्दी ही उस की यह गलतफहमी दूर हो गई. हर मुलाकात में उसे अपनी पत्नी के पीछे सिर्फ सन्नाटा नजर आता था. हर मुलाकात उस के हौसले को तोड़ रही थी.

राजू की हिरासत के दिन बढ़ने लगे थे. इस के साथ ही उस का खुद पर से भरोसा गिरने लगा था. उस के जिस्म में जिंदगी तो थी, लेकिन यह जिंदगी जैसे रूठ गई थी.

हां, साथी कैदियों के प्यार भरे बरताव ने उसे ऐसे उलट हालात में भी मुसकराना सिखा दिया था.

इंजीनियर होने की वजह से जेल में चल रहे स्कूल में राजू को पढ़ाने का काम मिल गया था. उस के अच्छे बरताव के चलते स्कूल में पढ़ने वाले कैदी

उस से बात कर अपना दुख हलका करने लगे थे.

यह देख कर एक अफसर ने राजू को समझाया था, ‘‘इन पर इतना यकीन मत किया करो. ये लोग हमदर्दी पाने के लिए बहुत झूठ बोलते हैं.’’

‘‘सर, ये लोग झूठ इसलिए बोलते हैं, क्योंकि ये सच से भागते हैं…’’ राजू ने उन से कहा, ‘‘सर, किसी का झूठ पकड़ने से पहले उस की नजरों से उस के हालात समझिए, आप को उस की मजबूरी पता चल जाएगी.’’

अपने इन्हीं विचारों की वजह से राजू कैदियों के साथसाथ जेल के अफसरों का भी मन जीतने लगा था.

एक दिन जमानत पाने वाले कैदियों की लिस्ट में अपना नाम देख कर वह फूला न समाया था. परिवार व रिश्तेदारों से मिलने की उम्मीद ने उस के पैरों में जैसे पंख लगा दिए थे.

वहां से जाते समय जेल के बड़े अफसर ने उसे नसीहत दी थी, ‘‘राजू, याद रखना कि बारिश के समय सभी पक्षी शरण तलाशते हैं, मगर बाज बादलों से भी ऊपर उड़ान भर कर बारिश से बचाव करता है. तुम्हें भी समाज में ऐसा ही बाज बनना है. मुश्किलों से घबराना नहीं, क्योंकि कामयाबी का मजा लेने के लिए यह जरूरी है.’’

‘‘सर, मैं आप की इन बातों को हमेशा याद रखूंगा,’’ कह कर राजू खुशीखुशी मुझ दीवार से दूर अपने घर की ओर चल दिया था.

राजू को आज दोबारा देख कर मेरी तरह सभी लोग हैरानी से भर उठे. वह सभी से गर्मजोशी से गले मिल कर अपनी दास्तान सुना रहा था. मैं ने भी अपने कान वहीं लगा दिए.

राजू ने बताया कि बाहर निकल कर दुनिया उस के लिए जैसे अजनबी बन गई थी. पत्नी के उलाहने व बड़े होते बच्चों की आंखों में तैरते कई सवाल उसे परिवार में अजनबी बना रहे थे. वह समझ गया था कि उस की गैरहाजिरी में उस के परिवार ने किन हालात का सामना किया है.

राजू के रिश्तेदार व दोस्त उस से मिलने तो जरूर आए, लेकिन उन की नजरों में दिखते मजाक उस के सीने को छलनी कर रहे थे. उस की इज्जत जमीन पर लहूलुहान पड़ी तड़प रही थी.

राजू के होंठों ने चुप्पी का गहना पहन लिया था. उस की चुनौतियां उसे आगे बढ़ने के लिए कह रही थीं, लेकिन मतलबी दोस्त उस की उम्मीद को खत्म कर रहे थे.

राजू इस बात से बहुत दुखी हो गया था. जेल से लौटने के बाद घरपरिवार और यारदोस्त ही तो उस के लिए सहारा बन सकते थे, पर बाहर आ कर उसे लगा कि वह एक खुली जेल में लौट आया है.

दुख की घनघोर बारिश में सुख की छतरी ले कर आई एक सुबह के अखबार में एक इश्तिहार आया. कुछ छात्रों को विज्ञान पढ़ाने के लिए एक ट्यूटर की जरूरत थी.

राजू ने उन बच्चों के मातापिता से बात कर ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरू कर दिया. अपनी जानकारी और दोस्ताना बरताव के चलते वह जल्दी ही छात्रों के बीच मशहूर हो गया. उस ने साबित कर दिया कि अगर कोशिश को मेहनत और लगन का साथ मिले, तो वह जरूर कामयाबी दिलाएगी.

छात्रों की बढ़ती गिनती के साथ उस का खुद पर भी भरोसा बढ़ने लगा. यह भरोसा ही उस का सच्चा दोस्त बन गया.

प्यार और भरोसा सुबह और शाम की तरह नहीं होते, जिन्हें एकसाथ देखा न जा सके. धीरेधीरे पत्नी का राजू के लिए प्यार व बच्चों का अपने पिता के लिए भरोसा उसे जिंदगी के रास्ते पर कामयाब बना रहा था.

यह देख कर राजू ने अपनी जिंदगी के उस अंधेरे पल में रोशनी की अहमियत को समझा और एक एनजीओ बनाया.

यह संस्था तिहाड़ जेल में बंद कैदियों को पढ़ालिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए जागरूक करेगी.

अपने इसी मकसद को पूरा करने के लिए ही राजू ने मेरी दहलीज के अंदर दोबारा कदम रखा, लेकिन एक अलग इमेज के साथ.

मुझे राजू के अंदर चट्टान जैसे हौसले वाला वह बाज नजर आया, जो अपनी हिम्मत से दुख के बादलों के ऊपर उड़ रहा था. 

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