उत्तराखंड में सेब की खेती ने पिछले 2 दशकों में दम तोड़ दिया है, जिस की खास वजह उम्दा पौधों का न मिलना और सरकारी रवैया है. ब्रिटिश शासनकाल में राज्य के नैनीताल, अल्मोड़ा, उत्तरकाशी, चमोली वगैरह जिलों में सेब के बागों को लगाया गया. तब मुख्य रूप से सेब की उम्दा प्रजातियों जैसे गोल्डन, ग्रेनीस्मिथ, स्टारकिंग डिलिसियस, रेड डिलिसियस व मैक्नटोवस वगैरह को लगाया गया?था. गोल्डन व ग्रेनीस्मिथ वगैरह प्रजातियां परागण करने वाली प्रजातियां थीं. वास्तव में अंगरेज अपने वैज्ञानिक ज्ञान से सेब का उत्पादन करते?थे. लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि हम अपने इन अमूल्य बागों को सहेज कर न रख सके. हालांकि इस का एक बड़ा कारण पर्यावरणीय असंतुलन भी रहा है.

पुराने बागों का सुधार : उत्तराखंड के ज्यादातर बाग 70-80 साल पुराने हैं, जो कि रूट राट, कैकर, रूटबोरर, स्टेम बोरर और कुप्रबंध के शिकार हैं. लिहाजा इन को हटा दें और इस मिट्टी को उपचारित कर दें. उपचार के लिए इस में चूना डाला जा सकता है.

नई प्रजातियों का चयन : नए बाग लगाने से पहले सही प्रजातियों का चयन करना जरूरी है. प्रजाति का चयन भौगोलिक आधार, अनुकूल जलवायु और बाजार की मांग के अनुसार करना बेहतर होता?है. आजकल रायल डिलिसियस के अलावा स्पर की तमाम प्रजातियों का कृषिकरण हिमाचल व अन्य सेब उत्पादक राज्यों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. इन प्रजातियों को उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लगाया जा सकता है:

सुपरचीफ : यह प्रजाति 4500 से 8000 फुट ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जुलाई तक तैयार होती है.

स्कारलेट स्पर टू : 6500 फुट से ऊपर वाले क्षेत्रों में भरपूर फल देने का समय जुलाई महीने का पहला पखवाड़ा है.

स्कारलेट स्पर : इस की 2 किस्में हैं जो कि अमेरिका व फ्रांस से यहां लाई गई हैं.

आग्रेन स्पर टू : अमेरिका की यह किस्म 6000 से 8000 हजार फुट तक की ऊंचाई पर लगाई जाती है. जुलाई में इस में खूब फल आते?हैं.

आर्ली रेड वन : 7000 फुट की ऊंचाई से ऊपर के लिए यह मुनासिब किस्म है. पारंरिक रायल डिलिसियस से 2 हफ्ते पहले इस की फसल तैयार हो जाती है.

वाशिंगटन रेड : डिलिसियस अमेरिकी प्रजाति का यह पौधा 6500 से 7000 फुट तक की ऊंचाई पर बहुत कामयाब है.

अमेरिकन शैलेट स्पर : 90 से 100 दिनों में तैयार होने वाली यह प्रजाति 6000 फुट से नीचे वाले स्थानों के लिए सही नहीं है.

ऐस स्पर : अमेरिकी प्रजाति का यह पौधा 8000 फुट की ऊंचाई तक बहुत आसानी से होता?है.

रेड विलाक्स : इटली की यह प्रजाति उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले?क्षेत्रों में बेहतरीन साबित हो सकती है.

जेरोमाइन : इटली की यह प्रजाति मध्यम क्षेत्रों के लिए बहुत अच्छी है, लेकिन यह नई प्रजाति है.

एजटैक फ्यूजी?: पथरीली भूमि पर यह प्रजाति आसानी से सफल होती है और इस के फल की भंडारण कूवत भी बहुत अच्छी?है.

फ्यूजी : चीन की यह बेहतरीन प्रजाति देर नवंबर तक तैयार होती है. 6500 फुट से ऊपर के स्थानों के लिए यह प्रजाति बेहतरीन है.

गेल गाला : ऊंचाई पर होने वाली यह प्रजाति स्वपरागण और नियमित रूप से फल देने वाली है.

ग्रेनी स्मिथ : ग्रेनी स्मिथ की परागण कूवत गोल्डन प्रजाति से अधिक?है.

पिंक लेडी : कम ठंड वाले क्षेत्रों में भी यह प्रजाति आसानी से उगती है. 220 दिनों में तैयार होने वाली यह प्रजाति 4 से 8 हजार फुट तक आसानी से होती है.

वैज्ञानिक तरीकों से प्रबंधन

प्रजातियों के सही चयन के बाद बाग प्रबंधन, पौध रोपण, बाग संरचना, कटाईछंटाई, फल तोड़ाई व पौधों का रखरखाव आदि काम वैज्ञानिक विधियों से माहिरों के मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिए.

वास्तव में आज उत्तराखंड राज्य के लोग सेब उत्पादन को अपना कर अपना भविष्य हिमाचल की तर्ज पर संवार सकते हैं. गौरतलब है कि हिमाचल हर साल 3600 करोड़ रुपए के सेब व्यवसाय को कर रहा?है, जबकि उत्तराखंड में अभी तक इस के लिए कोई नीति नहीं बन पाई है.

– डा. नारायण सिंह, अमित ठाकुर, डा. एलएस लोधियाल

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