आजकल देशविदेश में बिहार की पहचान बन चुकी मछलियों की पैदावार बढ़ा कर राज्य को मछली उत्पादन के मामले में अपने पैरों पर खड़ा करने की कवायद शुरू की गई है. मछली को ‘जल की रानी’ कहा जाता है और मछली उत्पादक अब मछलीपालन कर के राजा बनने की राह पर चल पड़े हैं. बिहार में मछली की सालाना खपत 6 लाख टन है, जबकि सूबे का अपना उत्पादन 4 लाख 70 हजार टन है. बाकी मछलियों को दूसरे राज्यों से मंगवाया जाता है.
झींगा मछली : सूबे के जलजमाव वाले इलाकों में झींगा मछली का बेहतर उत्पादन हो सकता है. पहले फेज में उत्तर बिहार के पूर्णियां, कटिहार, सहरसा, अररिया, मधेपुरा और किशनगंज जिलों के जलजमाव वाले इलाकों में झींगापालन योजना की शुरुआत की गई है. बिहार में झींगा की माइक्रो ब्रेकियम रोजाबर्गी और माइक्रो विलियम मालकम सोनी नस्लों का काफी बढि़या उत्पादन हो सकता है. राज्य में हर साल 30 से 50 टन झींगा मछली की खपत होती है और इस की कीमत 500 से 700 रुपए प्रति किलोग्राम है.
मधुबनी जिले के रहिका गांव के मछली उत्पादक सुजय राय बताते हैं कि 1 हेक्टेयर क्षेत्र में झींगापालन करने में 2 लाख 80 हजार रुपए तक की लागत आती है. तालाब में बीज डालने के तुरंत बाद मत्स्य निदेशालय में अनुदान के लिए आवेदन करने पर 1 लाख 40 हजार रुपए झींगापालकों को मुहैया किए जाएंगे.
मांगुर मछली : बिहार की मांगुर मछली की दूसरे राज्यों में खासी मांग है. इस वजह से पिछले कुछ सालों में मांगुरपालन काफी मुनाफा देने वाला धंधा बन गया है. बाजार में वायुश्वासी मछलियों की काफी मांग है, जिन में मांगुर भी शामिल है. बिहार सरकार ने मांगुर को राजकीय मछली का दर्जा दिया है.
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