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संभावनाओं का नया मंगल

हमारे सौरमंडल के ग्रह मंगल को ले कर नई सनसनी पैदा हुई है. सितंबर, 2015 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के प्लैनेटरी साइंस डायरैक्टर जिम ग्रीन ने दावा किया कि मंगल अब तक अनुमानों के विपरीत सूखा और बंजर ग्रह नहीं है. इस पर पानी है जो अभी इस की सतह पर बहने की स्थिति में है.

मंगल पर पानी के ये सुबूत नासा के अंतरिक्ष यान ‘मार्स रीकानिसेंस औरबिटर’ से लिए गए चित्रों व प्रेक्षणों में मिले हैं. इन चित्रों में मंगल की एक सतह पर ऊपर से नीचे की ओर बहती हुई धाराओं के प्रमाण मिले हैं जो करीब 5 मीटर चौड़ी और 100 मीटर तक लंबी हैं. ये जलधाराएं कम तापमान या फिर सर्दियों में गायब हो जाती हैं और तापमान बढ़ने पर यानी गरमियों में एक बार फिर प्रकट हो जाती हैं.

नमकीन पानी यानी साल्ट क्लोरेट

मंगल पर पानी मिलने के बारे में एक विस्तृत शोधपत्र ‘नैचुरल जियोसाइंस’ नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है. यह शोधपत्र नेपाली मूल के वैज्ञानिक लुजेंद्र ओझा और उन के सहयोगी वैज्ञानिकों ने लिखा है. इस खोज के बारे में एरिजोना विश्वविद्यालय के खगोल वैज्ञानिक अल्फ्रेड मैकइवेन ने कहा कि यह खोज साबित करती है कि मंगल ग्रह के वातावरण में पानी की अहम भूमिका है यानी कभी इस ग्रह पर पानी अवश्य था. यह भी हो सकता है कि मंगल की अंदरूनी संरचनाओं में पानी अब भी मौजूद हो.

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अनुसार लुजेंद्र ओझा ने जो खोज की है, उस के तहत मंगल पर काली धारियों के रूप में पानी के बहाव की जानकारी मिली है. ये धारियां 4 साल पहले 2011 में अप्रैलमई के दौरान नजर आईं और गरमी आतेआते  काफी स्पष्ट हो गईं. हालांकि अगस्त के दौरान ये धारियां गायब हो गईं. प्रोफैसर अल्फ्रेड एस मैकइवेन के अनुसार, शोधकर्ताओं ने खोज की है कि वह असल में मंगल पर पानीयुक्त नमकीन अणुओं यानी साल्ट क्लोरेट की उपस्थिति का संकेत है. साल्ट क्लोरेट के बहाव से बनी काली धारियों की तसवीरें नासा ने अपनी वैबसाइट पर प्रदर्शित की हैं.

तसवीरों के अध्ययन से यह भी साफ होता है कि मंगल ग्रह पर नमक, पानी के जमाव और पानी के वाष्पीकृत होने के संकेत हैं. ये तीनों चीजें किसी सतह का तापमान बदल सकती हैं. इस का अर्थ यह हुआ कि ऐसे स्थान पर पानी लंबे समय तक मौजूद रह सकता है.

खास बात यह है कि मंगल ग्रह पर पानी का जमाव तापमान शून्य डिग्री सैल्सियस ही है, लेकिन वहां काफी कम दबाव है. इस वजह से पानी 10 डिग्री तापमान पर ही वाष्पित हो जाता है, जबकि पृथ्वी पर पानी को भाप बनने के लिए 100 डिग्री सैल्सियस तापमान की जरूरत होती है. हो सकता है कि मंगल का पानी इसी तरह वाष्पित हो कर अंतरिक्ष में चला गया हो.

उल्लेखनीय है कि अतीत में पहले भी कई बार मंगल पर पानी मौजूद होने की बात कही जा चुकी है. सब से पहले वर्ष 1877 में जब इटली के साइंटिस्ट गैलीलियो गैलिली ने खुद की बनाई दूरबीन से मंगल की सतह को कुछ करीब से देखा तो वहां नहरों (कैनाल) जैसी संरचनाएं देख कर वे चौंक गए थे. इस जानकारी के बाद यह दावा भी किया गया कि करोड़ोंअरबों वर्ष पहले मंगल पर जीवन रहा होगा.

पानी और जीवन

कहा जाता है कि मंगल पर करीब साढ़े 4 अरब साल पहले आज की तुलना में साढ़े 6 गुना अधिक पानी था. पर मंगल का पृथ्वी जैसा चुंबकीय क्षेत्र नहीं था और उस की सतह पर काफी कम दबाव था, इसलिए वहां का ज्यादातर पानी भाप बन कर उड़ गया और उसे मंगल का वायुमंडल रोक नहीं पाया. वैसे मंगल को इस के धु्रवों पर जमी बर्फ और क्रेटर्स (गड्ढों) में कैद रहस्यों के कारण हमेशा एक जैव संभावना वाला या कहें जीवन की संभावना वाला ग्रह माना जाता रहा है.

शून्य से 130 डिग्री नीचे के औसत तापमान वाले मंगल के धु्रवों पर जमी शुष्क बर्फ, पानी के बहाव के प्रमाण, गरमी और लावा का प्रवाह जैसे संकेतों को हमेशा जीवन की निशानी समझा गया, पर सवाल तो यह है कि क्या इन सुबूतों के आधार पर वहां कोई जीवन वास्तव में संभव है? इस गुत्थी को सुलझाने की जितनी कोशिश होती है, रहस्य उतना ही गहराता दिखता है.

इस से पहले भी कई बार मंगल ग्रह को जीवन से जोड़ने की कोशिश हुई है. कई बार अनजाने में, सुबूतों के बगैर कल्पना के आधार पर, तो कई मौके ऐसे भी आए, जब मंगल तक पहुंचे उपग्रहों और स्पेस टैलीस्कोपों से ली गई तसवीरों के आधार पर वहां पानी की मौजूदगी बताई गई.

ये हैं सुबूत

दिसंबर, 2003 से मंगल के चक्कर लगा रहे यूरोपियन स्पेस एजेंसी के स्पेसक्राफ्ट मार्स ऐक्सप्रैस में लगे उपकरण प्लैनेटरी फौरियर स्पैक्ट्रोमीटर (पीएफएस) से अब तक जो चित्र और जानकारियां मिली हैं, उन के विश्लेषण के आधार पर शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि मंगल पर मौजूद मीथेन और फौर्मेल्डिहाइड को जीवन के संदर्भ में अनदेखा नहीं किया जा सकता है. वे दावा करते हैं कि मंगल पर मीथेन गैस मिलने का यह मतलब है कि कम से कम 150 टन गैस हर साल वहां के वातावरण में पहुंचती है. इसी तरह फौर्मेल्डिहाइड मिलने का अर्थ है कि वहां मीथेन के उत्सर्जन की दर 25 लाख टन प्रतिवर्ष होगी.

मंगल के दूसरे जीवनदायी तत्त्व वैसे माइक्रोब्स (अतिसूक्ष्म जीवाणु) बताए जाते हैं, जैसे हमारी पृथ्वी पर भी मिलते हैं. ये जीवाणु भी मीथेन पैदा करते हैं. कुछ ऐसे सुबूत भी मिले हैं, जिन से पता चलता है कि मंगल की ओजोन परत को जलवाष्पों ने तबाह कर डाला, जिस से हो सकता है कि जीवन नष्ट हुआ हो. चूंकि पृथ्वी के वायुमंडल में भी ग्लोबल वार्मिंग के कारण ओजोन परत संकट में है, इसलिए यह साम्य भी मंगल के अतीत को जीवन से जोड़ता है. बैक्टीरिया के रूप में मंगल पर जीवन अगर रहा भी है, तो सवाल यह है कि क्या ऐसा जीवन हमारे किसी काम का है?

ऐसा है मंगल

मंगल ग्रह पर जीवन की कल्पना करते समय इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि वहां ठोस धरती जरूर है, लेकिन वह बेहद रूखीसूखी है और पूरे ग्रह पर धूल भरी तेज आंधियां चलती रहती हैं.

मंगल के वायुमंडल में 95.32 प्रतिशत कार्बन डाइऔक्साइड, 2.7 प्रतिशत आणविक नाइट्रोजन, 1.6 प्रतिशत आर्गन और मात्र 0.13 प्रतिशत आणविक औक्सीजन का अंश मौजूद है. ऐसी हवा में हमारी पृथ्वी के प्राणी जीवित नहीं रह सकते. इसलिए वहां मानव जाति के समान किसी सभ्यता की कल्पना करना महज कपोलकल्पना ही साबित होगी.

मिथकों का मंगल

पृथ्वी के बाद सौरमंडल के जिस दूसरे ग्रह को सब से ज्यादा खोदा और खंगाला गया है वह पृथ्वी से औसतन 22 करोड़ 50 लाख किलोमीटर दूर मौजूद मंगल ग्रह ही है. नंगी आंखों से तो इसे इंसान सदियों से देख रहा है और आकाश में लटकी खून की बूंद की तरह दिखने वाले मंगल को ले कर उस ने तरहतरह के मिथक भी रचे. जैसे मध्य एशिया में टिग्रिस नदी के किनारे रहने वाले लोग इसे ‘रक्त छाया’ (शेड औफ ब्लड) कहते थे. ग्रीक और रोम के निवासियों की नजर में यह ‘युद्ध का देवता’ रहा है.

पर ऐसी फंतासियों से अलग हट कर एक धारणा गैलीलियो गैलिली ने ही अपनी दूरबीनों के आधार पर बनाई. गैलीलियो की खोज से इस कल्पना को बल मिला कि मंगल पर पृथ्वी से ज्यादा बुद्धिमान सभ्यताएं निवास करती हैं और उन्होंने ही ऐसी नहरें बनाई हैं, जो पृथ्वी से भी देखी जा सकती हैं. हैरानी यह है कि गैलीलियो की इस खोज को भी गल्पकारों ने लपक लिया और कल्पना की ऐसी उड़ान भरी कि कभी मंगल से आए प्राणी मनुष्यों पर हमला बोल देते थे, तो कभी इंसानों को बंधक बना ले जाते थे. सब से चर्चित गल्प 1898 में लिखी गई एच जी वेल्स की ‘द वार औफ द वर्ल्ड्स’ रही.

हद तो तब हो गई, जब 1938 में वेल्स के उपन्यास पर आधारित रेडियो रूपांतरण का प्रसारण हुआ. इस उपन्यास में चूंकि हाईटैक मंगलवासियों के दक्षिणी लंदन में उतरने और पृथ्वी पर कब्जा जमाने की कोशिश करने सा दृश्य प्रस्तुत किया गया था, इसलिए जब लोगों ने रेडियो पर इस का प्रसारण सुना, तो वे उसे सच मान बैठे और इस पर काफी समय तक वादविवाद होता रहा कि कहीं वास्तव में तो मंगल के निवासियों ने पृथ्वी पर हमला नहीं बोल दिया.

शुरू हुआ खोजबीन का सिलसिला

हालांकि धीरेधीरे मंगल मिथकों और कपोलकल्पनाओं से बाहर आया. 1965 में पृथ्वी से भेजे गए नासा के अंतरिक्षयान ‘मैरिनर-4’ से मंगल पर पृथ्वी से जाने वाले अंतरिक्षयानों का जो सिलसिला शुरू हुआ, तो उन से मंगल के बारे में सोची और कही गई बातों की पोल खुलनी शुरू हो गई. जुलाई, 1976 में मंगल पर उतरे वाइकिंग-1 और वाइकिंग-2 के बाद 1996 में वहां पहुंचे यान ‘मार्स ग्लोबल’ आदि से पता चला कि मंगल कभी गरम और नम ग्रह जरूर था, लेकिन यहां कोई परग्रही सभ्यता निवास नहीं करती है. नासा के मार्स पाथफाइंडर ने मंगल पर पहुंच कर जो 20 हजार तसवीरें और 2.3 अरब सूचनाएं भेजीं, उन से मंगल की सतह के हर कोने पर नजर डाली जा सकी.

अप्रैल, 2001 में नासा के ‘मार्स ओडिसी’ ने मंगल का जियोलौजिकल नक्शा तैयार कर के यह बता दिया कि इस ग्रह का निर्माण किन चीजों से हुआ है और 2004 में क्रमश: 7 व 25 जनवरी को नासा के स्पिरिट और अपौरच्युनिटी ने मंगल के बारे में रहेबचे तथ्यों का भी खुलासा कर दिया. हालत यह है कि इन सभी अंतरिक्ष यानों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर हम इस बारे में तो आश्वस्त हो सकते हैं कि मंगल पर कभी पानी और बर्फ की मौजूदगी रही होगी, लेकिन इस धारणा का कोई आधार नहीं है कि मंगल पर पृथ्वी जैसे जीवन का कोई रूप था या है.

मंगलयान भारत का भी

कहने को इसे महज एक संयोग कहा जा सकता है कि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का यान ‘मार्स एटमास्फीयर ऐंड वोलाटाइन इवोल्यूशन’ (मावेन) और भारतीय स्पेस एजेंसी – इसरो का मार्स औरबिटर मिशन लगभग साथसाथ मंगल तक पहुंचे, पर इन की तुलना बताती है कि कई चीजें इस कोरे इत्तफाक से परे हैं. जैसे 4,026 करोड़ रुपए के खर्च से मंगल तक पहुंचे मावेन के मुकाबले करीब 10 गुना कम लागत (450 करोड़ रुपए) वाले मार्स औरबिटर का पहले ही प्रयास में सफल होना कोई संयोग नहीं है. इस के पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति और ठोस वैज्ञानिक इरादों के अलावा व्यापार की सोचीसमझी रणनीति काम कर रही है जो भारत जैसे एक गरीब देश को किफायत में अंतरिक्ष मिशन चला कर स्पेस के कमाई के मौके दिला रही है.

गौरतलब है कि 24 सितंबर, 2014 को जब भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के मंगलयान यानी मार्स औरबिटर मिशन ने मंगल की कक्षा में प्रवेश किया तो उस वक्त वह वहां अकेला नहीं था. 22 सितंबर, 2014 को अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मार्स एटमास्फीयर ऐंड वोलाटाइन इवोल्यूशन (मावेन) की पहुंच से कई और यान या तो मंगल की परिक्रमा कर रहे हैं या फिर मार्स रोवर इस लाल ग्रह की धरती पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं. फिलहाल 6 औरबिटर इस की कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं और नासा के 2 रोवर स्पिरिट और अपौरच्यूनिटी इस की सतह को खंगाल रहे हैं.

फिलहाल भारतीय मंगलयान के अलावा जो मिशन मंगल की छानबीन में संलग्न हैं, उन में से एक यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) के मार्स ऐक्सप्रैस (2003) को छोड़ कर अन्य सभी नासा (अमेरिका) के हैं. इस बीच चीन और जापान भी मंगल पर अपने यान भेजने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन वे नाकाम रहे.

मामला सिर्फ मंगल तक यान पहुंचाना भर नहीं है बल्कि इस का उद्देश्य मंगल के बारे में कई ऐसे रहस्यों का खुलासा करना है जिन्हें दुनिया जानना चाहती है. खासतौर से मावेन की तरह, जिस का प्रमुख उद्देश्य मंगल के वातावरण के अध्ययन के साथ वहां की जलवायु में बदलाव की पड़ताल करना है.

मंगलयान में कई ऐसे उपकरण हैं जो मंगल की परिक्रमा करते वक्त कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएं जुटा चुके हैं. इन के आकलन से मंगल के बारे में कई नई जानकारियां मिल सकती हैं. जैसे मंगलयान पर लगे लिमन अल्फा फोटोमीटर (एलएपी) से मंगल के ऊपरी वायुमंडल में हाइड्रोजन कणों की मौजूदगी का पता लग सकता है. इस उपकरण में शक्तिशाली लैंस हैं जो हाइड्रोजन कणों की खोज कर सकते हैं. यान में मीथेन सैंसर फौर मार्स (एमएसएम) भी फिट किया गया था जो मंगल के वातावरण में मीथेन गैस की मौजूदगी की टोह ले सकता है. इसी तरह मंगल के वायुमंडल की संरचना यानी वहां के वातावरण में क्याक्या है, इस की जांच के लिए मंगलयान में मार्स एक्सोफेरिक कंपोजिशन ऐक्सोप्लोरर (एमईएनसीए) स्थापित किया गया था. लाल ग्रह के जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए मंगलयान में मार्स कलर कैमरा (एमसीसी) भी है जो 50 किलोमीटर के दायरे में फोटो खींच कर उस की सतह का विश्लेषण कर सकता है. मंगल की मिट्टी में मौजूद खनिजों की पड़ताल के लिए यान में टीआईआर इमेजिंग स्पैक्टोमीटर भी मौजूद है, जिस से निकलने वाली किरणें जमीन की गहराई तक जा कर यह पता लगाएंगी कि वहां कौन से खनिज भंडार है.

सनी लियोनी की नजर में कौन है सबसे हैंडसम क्रिकेटर?

इन दिनों बॉलीवुड की बेबी डॉल सनी लियोनी अपनी फिल्‍म 'मस्तीजादे' के प्रमोशन के लिए कई इंटरव्‍यू दे रही हैं. ऐसे ही एक इंटरव्‍यू के दौरान जब सनी से क्रिकेट के बारे में पूछा गया तो उनकी बोलती बंद हो गई.

सनी का कहना है कि वे क्रिकेट नहीं देखती, इसलिए क्रिकेट के बारे में उन्‍हें कुछ भी नहीं पता है. जब एक रिपोर्टर ने सनी से पूछा कि उन्‍हें सबसे हैंडसम क्रिकेटर कौन लगता है तो सनी ने बिना पल गंवाए इसका जवाब दे दिया. क्रिकेट में कोई दिलचस्‍पी नहीं रखने वाली बेबी डॉल को क्रिकेट के 'भगवान' सचिन तेंदुलकर सबसे हैंडसम लगते हैं.

जहां एक ओर सनी ने सचिन को सबसे हैंडसम और गुड लुकिंग क्रिकेटर बताया तो वहीं उनके को-स्‍टार वीर दास ने विराट कोहली को अपना फेवरेट और गुड लुकिंग क्रिकेटर बताया.

क्रिकेट की एबीसी भी नहीं जानने वाली सनी ने पूरे आत्‍मविश्‍वास के साथ सचिन तेंदुलकर का नाम लिया. सनी की पसंद से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि रिटायरमेंट के बाद भी सचिन का जादू कम नहीं हआ है और क्रिकेट के बारे में जानकारी नहीं रखने वाले भी उनकी शख्सियत से वाकिफ हैं.

सोशल मीडिया में वायरल वरुण एरोन की शादी का कार्ड

टीम इंडिया के क्रिकेटर वरुण एरोन की शादी 4 फरवरी 2016 को जमशेदपुर के बिष्टुपुर सेंट मेरी चर्च में होगी. वरुण अपनी बचपन की दोस्त रागिनी के संग परिणय सूत्र में बंध जाएंगे. संभावना है कि इस स्टार क्रिकेटर की शादी में शामिल होने के लिए कई दिग्गज क्रिकेटर और सेलिब्रेटी आएंगे.

वरुण एरोन की मां मेरी ने इस बात की टेलीफोन पर पुष्टि की है. शादी का रिसेप्शन उसी दिन शाम साढ़े सात बजे से ट्यूब मेकर्स क्लब में होगा. वरुण की शादी का कार्ड बड़े ही आकर्षक ढंग से बनाया गया है जिसमें वरूण को अपनी दुल्हन के हाथों क्लीन बोल्ड होते हुए दिखाया गया है.

गौरतलब है कि वरुण एरोन का परिवार कुछ साल पूर्व तक जमशेदपुर में ही रहता था, बाद में उनके माता पिता पूना शिफ्ट हो गए थे. वरुण का ननिहाल जमशेदपुर ही है. झारखंड रणजी टीम के पूर्व कप्तान और वर्तमान में टीम इंडिया के स्टार गेंदबाज़ एरोन का जमशेदपुर से गहरा संबंध है.

टी20 में विराट का जलवा, ऐसा करने वाले पहले बल्लेबाज

टीम इंडिया के बलेबाज विराट कोहली ने टी-20 में एक नया रिकॉर्ड अपने नाम किया है. इस रिकॉर्ड के साथ ही कोहली ऐसा करने वाले दुनिया के इकलौते बल्लेबाज बन गए हैं.

टी-20 में 50 की औसत से रन बनाने वाले विराट दुनिया के एक मात्र बल्लेबाज बन गए हैं. विराट के बाद दूसरे नबंर पर ऑस्ट्रेलिया के एरोन फिंच है, जिनका औसत 40 का है. वहीं 39.28 की औसत के साथ फॉफ डुपलेसिस तीसरे नंबर पर हैं.

टीम इंडिया में बात करें तो विराट के बाद रोहित शर्मा हैं. रोहित ने अपने अभी तक के 46 मैचों के करियर में 34.21 की औसत से 958 रन बनाए हैं. वहीं तीसरे नंबर पर कप्तान धोनी हैं. धोनी ने 33.29 की औसत से 54 मैचों में 899 रन बनाए हैं.

टी-20 फॉर्मेट में भारतीय खिलाड़ियों में विराट सबसे आगे हैं. टी-20 में सबसे ज्यादा रन 1165 रन है, जिसमें 11 हाफ सेंचुरी है. जो कि सबसे ज्यादा है.

 

इश्क जुनून: सेक्स को परदे पर भुनाने की कोशिश

‘‘एलाने जंग’’, ‘मां’’, ‘‘नॉटी एट फॉर्टी’’, ‘‘सिंह साब द ग्रेट’’ जैसी फिल्मों के निर्माता अनुज शर्मा इस बार बदले हुए परिवेश और पाश्चात्य के प्रभुत्व में जी रही युवा पीढ़ी को बहुत नजदीक से समझने के दावे के साथ थ्रीसम पर आधारित एक अति बोल्ड और अति सेक्सी फिल्म ‘‘इश्क जुनून : हीट इज ऑन’’ लेकर आ रहे हैं, जिसका निर्देशन किया है – संजय शर्मा ने. अनुज शर्मा और संजय शसर्मा ने अपनी इस अति सेक्सी फिल्म में इस सवाल का भी जवाब ढूढ़ने का प्रयास किया है कि क्या आज के प्रतिस्पर्धा और तेज गति से भागने वाले युग में सच्चे प्यार के मायने हैं?

फिल्म की कहानी के केंद्र में दो गहरे दोस्त वीर (राजवीर) और राज (अक्षय रंगशाही) हैं, जो कि बचपन से ही एक दूसरे की हर छोटी बड़ी बात के राजदार हैं. दोनो अपनी जिंदगी की हर बात एक दूसरे न सिर्फ बताते हैं, बल्कि खुशी और दुःख के मौके पर भी एक ही रहते हैं. इनकी दोस्ती को कोई तोड़ नहीं पाता. जबकि उत्तर भारत के एक छोटे शहर की मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की सिमरन (दिव्या सिंह) अपने आसमानी सपनों को पूरा करने और एकदम स्वतंत्र जिंदगी जीने की चाह के साथ मुंबई शहर में पहुंचती है, उसे लोडेड यानी कि करोड़पति प्रेमी की तलाशस है. सिमरन की मुलाकात वीर और राज से होती है. दोनो दोस्त इसे अपनी प्रेमिका बनाकर सेक्स का लुत्फ उठाना शुरू करते हैं. सिमरन के दिमाग में है कि एक दिन वह इनके बीच की दोस्ती तुड़वाकर किसी एक की हो जाएगी, पर अंत में क्या होता है, पता नहीं.

‘‘थ्रीसम’’ के कांसेप्ट पर फिल्म ‘‘इश्क जुनून : हीट इज ऑन’’ के निर्माण की चर्चा करते हुए अनुज शर्मा कहते हैं-‘‘इस फिल्म का कांसेप्ट मेरा अपना और मौलिक है. अब सिनेमा बड़ी तेजी से बदल रहा है. हमारा दर्शक समाज के यथार्थ को परदे पर देखना चाहता है. मैं कुछ समय से महसूस कर रहा हूं कि हमारी युवा पीढी पर पाश्चात्य सभ्यता, बाजारवाद व संस्कृति इस कदर हावी होती जा रही है कि अब उनके लिए जीवन मूल्य/मॉरालिटी, संस्कार वगैरह कोई मायने नहीं रखते. कल तक हम जिन रिश्तों व नातों की दुहाई दिया करते थे, उनमें भी अब जंग लग गयी है. अब लोगों की शादियां नहीं टिक रही हैं. लोग ज्यादा समय तक लिव इन रिलेशनशिप में भी नहीं रह पा रहे हैं. नई आंधी के चलते अब जीवन की सही दिशा क्या होनी चाहिए? प्यार के सही मायने क्या रह गए हैं? इन्ही को तलाशने के लिए हम ‘थ्रीसम’ पर यह संगीतमय फिल्म ‘इश्क जुनून : हीट इज ऑन’ लेकर आ रहे हैं. हमारी यह फिल्म पूरी तरह से आज की युवा पीढ़ी की फिल्म है.’’

फिल्म के निर्देशक संजय शर्मा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. वह ‘गे’ रिश्तों पर ‘‘डूनो या ना जाने क्यों’’ तथा इसका सिक्वल निर्देशित कर चुके हैं. फिल्म ‘‘इश्क जुनून : हीट इज ऑन’ की चर्चा करते हुए वह कहते हैं-‘‘हम हमेशा कुछ नया और लीक से हटकर फिल्म बनाने में यकीन करते हैं. यह एकदम नया विषय है. इस पर अब तक किसी ने भी काम करने का प्रयास नहीं किया. जबकि यह विषय वर्तमान युवा पीढ़ी के दिल की बात करता है. यह एक रोमांटिक व संगीत प्रधान रोमांचक फिल्म है. पहली बार मैंने इस फिल्म में नए कलाकारों को निर्देशित किया है, क्योंकि यह विषय वस्तु की मांग थी.’’

फिल्म ‘‘इश्क जुनून : हीट इज ऑन’’ के कुछ अंश व पांच गाने देखने के बाद इस बात का अहसास होता है कि फिल्म में सेक्स सीन के साथ ही द्विअर्र्थी संवादो की भी भरमार है. इस पर सफाई देते हुए फिल्म के निर्देशक संजय शर्मा कहते हैं-‘‘माना कि इसमें सेक्स सीनों की भरमार है, पर यह सारे सेक्स सीन विषयवस्तु की मांग के अनुरूप हैं. फिल्म का क्लायमेक्स और ट्रीटमेंट हर किसी को चौंकाएगा. अंततः हमारी फिल्म में सच्चे प्यार की ही जीत होती है.’’

‘शांतकेतन इंटरटेनमेंट’’ और ‘‘विन्र फिल्मस’’ के बैनर तले बन रही फिल्म ‘‘इश्क जुनून’’ के निर्माता अनुज शर्मा व विनय गुप्ता, निर्देशक संजय शर्मा, संगीतकार संजीव दर्शन, अंकित तिवारी, जीत गांगुली, वरदान सिंह और अंजान भट्टाचार्य, गीतकार संजीव चतुर्वेदी और शिराज निजामी हैं.

फिल्म ‘‘इश्क जुनून : हीट इज ऑन’’ का पहला डिजिटल पोस्टर आने के बाद बौलीवुड में यह चर्चा गर्म है कि क्या अब हम भी पार्न फिल्मों की ओर बढ़ चुके हैं?

शाहिद-विशाल रंगून में लगाएंगे हिट की हैट्रिक

मेरे पिया गए रंगून, किया है वहां से टेलीफून…ये नज्म याद हैं. रंगून  यानी आज का बर्मा, आज से 50 साल पहले तक इसे काफी दूर माना जाता था. और लगभग हर भारतीय को पता था कि रंगून क्या है और कितनी दूर है. अमूमन भारतीय वहां आसानी से काम के सिलसिले में ज्यादा जाते थे. वर्ल्ड वार-2 के समय रंगून की भूमिका काफी अहम मानी जाती है. ब्रिटिश राज के लिए यह जापानी मोर्च को लेकर बड़ा सिरदर्द बना था. तो बस यहां की आबोहवा और इतिहास को देखते हुए विशाल भारद्वाज ने रंगून नाम से एक पीरियड रोमांस ड्रामा बनाई है.

फिल्म में उनके फेवरेट शाहिद कपूर लीड रोल में हैं. इससे पहले शाहिद कपूर विशाल भारद्वाज के साथ बैक-टू-बैक दो हिट फिल्में कमीने और हैदर दी हैं. इन दोनों फिल्मों में शाहिद कपूर की एक्टिंग को खूब सराहा गया. बकौल शाहिद कपूर वो किसी भी अन्य डायरेक्टर की अपेक्षा विशाल भारद्वाज के साथ ज्यादा कंफर्ट महसूस करते हैं. 

विशाल हमेशा से शाहिद को नए रूप में पेश करते हैं. शाहिद कपूर को विशाल की यही बात हमेशा से अच्छी लगती है. विशाल भी खुलकर शाहिद के साथ एक्पेरीमेंट करते रहते हैं. यही कारण है कि विशाल ने अपने करियर की सबसे महंगी फिल्म के लिए अदाकार शाहिद को चुना है. फिल्म की शूटिंग के दौरान शाहिद के घायल होने की हालत में विशाल भारद्वाज ने कई दिनों तक शूटिंग को रोका था. ये विशाल का बड़ा डिसीजन था. क्योंकि शूटिंग रोककर रखे रहना भारी आर्थिक नुकसान था. लेकिन अपने फेवरेट शाहिद के लिए भारद्वाज का दिल विशाल हो गया.

सूत्रों की माने तो रंगून शाहिद-विशाद की जोड़ी हिट फिल्मों की हैट्रिक बनाने को तैयार है. फिल्म में विशाल ने शाहिद की अदाकारी को नए सिरे से निचोड़ा है. फिल्म युद्ध के इर्द-गिर्द घूमती है पर रोमांस भी उसी मात्रा में प्रचुर मात्रा में है. रोमांटिक कैरेटक्टर प्ले करने में शाहिद कपूर का कोई सानी नहीं है.

फिल्म की शूटिंग लगभग पूरी हो चुकी है. जिसका अधिकतर हिस्सा अरुणाचल प्रदेश में फिल्माया गया है. भारी तादात में जापान से जूनियर आर्टिस्टों को भी सेट पर बुलाया गया था. फिल्म के सितंबर के आखिरी सप्ताह में रिलीज होने के कयास लगाए जा रहे हैं. विशाल-शाहिद के हिट के हैट्रिक को देखने के लिए सभी तैयार हैं. बस इंतजार है तो फिल्म के रिलीज होने का.

 

अब टीवी प्रोडक्शन में कदम रखेंगे विवेक ओबेरॉय

विवेक ओबेरॉय जल्द ही टीवी प्रोडक्शन में अपना डेब्यू कर रहे हैं, विवेक फ़िलहाल उनके प्रोडक्शन की पहली शूटिंग पूरी कर रहे हैं. क्रिएटिव टीम ने बच्चों के रियलिटी शो के शूट को लेकर उस पर काम करना शुरू कर दिया है और अगले साल शो शूट किया जायेगा.

विवेक फ़िलहाल इंडियाज बेस्ट ड्रामेबाज शो जज कर रहे है, इस शो का टीआरपी सबसे टॉप पर है और इस शो को हर कोई पसंद कर रहा है. विवेक कहते है " ​अभी मैं जो शो जज कर रहा हूं वह बहुत ही पॉपुलर हुआ है, किड्स शो के ऑडियंस बहुत है, क्यूंकि सभी परिवार यह शो देखते हैं.  अब मैं टेलीविजन पर कुछ नया करने जा रहा हूं, मेरे प्रोडक्शन हाउस के तले बच्चे सिर्फ एंटरटेन ही नहीं होंगे, बल्कि उन्हें शिक्षा भी जिम्मेदारी से दी जाएगी.  

साला खड़ूस: बाक्सिंग पर फिल्म, बाक्सिंग ही गायब

‘‘खेलों से राजनीति को हटा दो, गली गली में चैम्पियन मिलेंगे.’’ इस मूल मंत्र को प्रचारित करने के लिए आर माधवन ने राज कुमार हिरानी के साथ मिलकर महिला बाक्सरों की स्थिति वगैरह को चित्रित करने के लिए हिंदी में फिल्म ‘‘साला खड़ूस’’ और तमिल में ‘‘इरूद्धि सुत्तरू’’ का निर्माण किया है. माना कि यह फिल्म है, इस वजह से निर्माता व निर्देशक को सिनेमाई स्वतंत्रता का हक है. मगर जब आप किसी खेल पर केंद्रित फिल्म बना रहे हैं, तो उस खेल की कुछ सच्चाई व उस खेल की तकनीक से आप समझौता करें, यह तो पूरी तरह से गलत है.

फिल्म देखने के बाद निर्माता आर माधवन और निर्देशक सुधा कोंगरा की यह बात गले नहीं उतरती कि इस फिल्म का निर्माण करने से पहले उन्होंने महिला बाक्सिंग पर कई माह तक रिसर्च कर स्केच वगैरह बनाए थे. सबसे बड़ी लाजिक की बात यह है कि एक बाक्सर या बाक्सिंग का कोच लंबे बाल नहीं रखता और न ही दाढ़ी रखता है. क्योंकि लंबे बाल होने पर पसीने के साथ उसके बाल की लतें चेहरे पर या आंख पर आती है, जिससे खिलाड़ी का ध्यान भंग हो जाता है. दूसरी बात चेहरे पर दाढ़ी होने पर चेहरे पर लगी चोट के अहसास नहीं हो सकता. पूरी फिल्म में बाक्सिंग मैच के जो भी सीन हैं, उनमें भी बाक्सिंग का खेल सही ढंग से उभर नहीं पाता है. इसकी वजह फिल्म का कम बजट होना भी हो सकता है. फिल्म देखकर लगता है कि आर माधवन ने अपनी ‘लवर ब्वाय’ की ईमेज को बदलने के लिए यह फिल्म बनायी है और इस फिल्म से वह साबित करना चाहते हैं कि वह भी गुस्सैल किरदार निभा सकते हैं. पर आर.माधवन कहीं से भी एक स्पोर्ट्स मैन या बाक्सिंग कोच के किरदार में फिट नजर नहीं आते हैं. पर वह एक गुस्सैल गुरू जरुर नजर आते हैं. इसी के साथ गुरू –शिष्य परंपरा के साथ गुरू व शिष्य के बीच जो रिश्ता होना चाहिए, उसका सही चित्रण है.

फिल्म की कहानी के केंद्र में खेल में व्याप्त राजनीति के साथ ही बाक्सिंग में लड़कियों की रूचि न हेना है. फिल्म की कहानी आदि तोमर (आर माधवन) से शुरू होती है, जिस पर बाक्सिंग एसोसिएशन के देव खत्री (जाकिर हुसेन) लड़कियों के शारीरिक शोषण का आरोप लगाकर चेन्नई तबादला कर देते हैं. आगे पता चलता है कि आदि तोमर बहुत बेहतरीन बाक्सर थे, पर देव खत्री एक मंत्री के रिश्तेदार होने के नाते ऐसा कुछ करते हैं कि आदि तोमर की आंख में चोट लग जाती है. दस साल तक वह खेल से बाहर रहते है. तब तक देव खत्री बाक्सिंग में कई अवार्ड जीतकर अब एसोसिएशन में उच्च पद पर आसीन हो चुके हैं. और आदि तोमर कोच बन गए हैं. पर दोनों की जमती नहीं है.

इसलिए देव, आदि को सजा देता रहता है. वैसे भी आदि तोमर गुस्सैल और अक्खड़ स्वभाव का है. चेन्नई पहुंचने पर आदि तोमर नई प्रतिभा की खोज शुरू करते हैं. उन्हे चेन्नई में बाक्सिंग कर रही लक्ष्मी उर्फ लक्स (मुमताज सरकार) में प्रतिभा नहीं दिखती. लक्ष्मी तो खेल कोटे से पुलिस की नौकरी पाने के लिए बाक्सिंग कर रही हैं. पर एक दिन आदि तोमर की नजर लक्स की छोटी बहन तथा मछली बेचने वाली मधी (रितिका सिंह) पर पड़ती है. अब आदि तोमर, लक्स और मधी दोनों को जूनियर कोच पंडयन (नासिर) के सहयोग से बाक्सिंग की ट्रेनिंग देता है. मधी सभी को पछाड़ते हुए तेजी से आगे निकलती है. इधर देव को इसकी भनक लगती है, तो वह चाल चलते हुए आदि को पुनः दिल्ली वापस बुलाने की बात करता है. मगर आदि चेन्नई की सभी महिला बाक्सरों को लेकर हिसार पहुंचकर वहां की एसोसिएशन के अंदर ट्रेनिंग देने लगता है. एक दिन लक्स को गलतफहमी हो जाती है कि मधी कोच आदि तोमर से संबंध बनाकर उसे पछाड़ रही है. जलनवश वह उसके हाथ में चोट पहुंचाकर उसे टूर्नामेंट से बाहर करवा देती है.

तब आदि, मधी को बुरा भला कहता है और मधी वापस चेन्नई आ जाती है. चेन्नई में पंडयन उसके साथ है. इधर देव खत्री, मधी को दिल्ली बुलाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाने के लिए बुलाता है. पर वह हार जाती है. वापसी में ट्रेन के अंदर देव, मधी के साथ सेक्स संबंध बनाने का असफल प्रयास करता है. फिर गुस्से में देव चाल चलकर मधी के लाकर से बड़ी रकम जप्त करवाकर उस पर एसोसिएशन के पैसे चुराने का आरोप लगवा देता है.

आदि को खबर मिलती है और वह पुलिस अफसर को डेढ़ लाख रूपए घूस देकर मधी को लेकर हिसार जाता है. इस बार वह मधी को इंटरनेशनल चैंपियनशिप में उतारता है. सेमीफाइनल में वह पास हो जाती है. पर फाइनल में देव उसका नाम हटवा देता है. तब देव के कहने पर आदि कोच से त्यागपत्र देता है. अब देव खुद मधी का कोच बनकर उसे मैदान में उतारता है. मधी, रशियन बाक्सर को हराकर गोल्ड मैडल जीतती है. जब देव उसे अपना स्टूडेंट बताता है, तो मधी स्टेडियम के अंदर ही देव को मारकर अधमरा कर देती है.

सुधा कोंगरे की यह पहली फिल्म है. इसमें पटकथा व निर्देशन की काफी खामियां हैं. पूरी फिल्म सपाट लहजे में चलती है, कहीं भी इमोशन में उतार चढ़ाव नजर नहीं आता. निर्माता, लेखक व निर्देशक की यह सोच भी गलत है कि झोपड़पट्टी में रहने वाला परिवार अपनी बेटियों को बाक्सिंग के खेल में महज इसलिए भेजता है कि वह सरकारी नौकरी पा जाए और पूरे परिवार का भविष्य उज्ज्वल हो जाएगा. यदि वास्तव में लेखक व निर्देशक ने महिला बाक्सरों पर रिसर्च की है, तो उन्हें इस बात का अहसास हुआ होगा कि बाक्सिंग में लड़कियों के आने की मूल वजह यह रहती है कि उनकी परवरिश किस माहौल में हो रही है. हरियाणा, पंजाब या उत्तरपूर्वी राज्यों का माहौल यहां की लड़कियों को  बाक्सिंग के प्रति रूचि पैदा करता है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो आर माधवन अच्छे अभिनेता हैं, मगर हर किरदार में वह फिट बैठे, यह आवश्यक नहीं. पहली फिल्म के तौर पर रितिका सिंह और मुमताज सरकार उम्मीदे बंधाती हैं. फिल्म के कथानक में कुछ भी नयापन नहीं है. यह फिल्म कई अंग्रेजी फिल्मों से प्रेरित लगती है. फिल्म के कुछ सीन बहुत घिसे पिटे हैं. फिल्म के कैमरामैन शिवकुमार विजयन ने कमाल का काम किया है.

फिल्म ‘‘साला खड़ूस’’ का निर्माण एस. शशिकांत, सीवी कुमार, आर माधवन, राज कुमार हिरानी, लेखक व निर्देशक सुधा कोंगरा, संगीतकार संतोष  नारायणन, कैमरामैन शिवकुमार विजयन तथा कलाकार हैं -आर माधवन, रितिका सिंह, मुमताज सरकार, नासिर, राधा रवि, काली वेंकट व संजना मोहन और जाकिर हुसेन.

पांच साल, 651 मैचों में बने पांच दोहरे शतक

एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पहले दोहरे शतक के लिये 39 साल और 50 दिन तथा 2962 मैचों का इंतजार करना पड़ा लेकिन इसके बाद पिछले पांच वर्ष और 651 मैचों के अंदर क्रिकेट के इस प्रारूप में पांच दोहरे शतक लग चुके हैं. यह भी संयोग है कि पहले चार दोहरे शतक भारतीय बल्लेबाजों ने लगाये. रोहित शर्मा दो बार ऐसा कारनामा कर चुके हैं जबकि क्रिस गेल पहले गैर भारतीय बल्लेबाज हैं जो इस सूची में शामिल हुए हैं. गेल ने विश्व कप में दोहरा शतक जड़ा और वह इस टूर्नामेंट में यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले बल्लेबाज हैं.

पहला एकदिवसीय मैच पांच जनवरी 1971 को खेला गया था और वनडे में पहला शतक 24 अगस्त 1972 को डेनिस एमिस ने लगाया था. इसके बाद तेंदुलकर के दोहरे शतक बनाने तक वनडे में 1051 शतक लगे लेकिन इनमें कोई भी दोहरा शतक नहीं था. दो बल्लेबाज ऐसे थे जो एक छक्का जड़ने पर 200 रन पर पहुंच जाते लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. पाकिस्तान के सईद अनवर 1997 में भारत के खिलाफ 194 रन बनाकर आउट हो गये जबकि 2009 में जिम्बाब्वे चार्ल्स कावेंट्री बांग्लादेश के खिलाफ इसी स्कोर पर नाबाद रहे थे. इस बीच वनडे क्रिकेट में कई धुरंधर बल्लेबाज देखे गये. मसलन वि​व रिचर्ड्स, सनथ जयसूर्या, मैथ्यू हेडन, कपिल देव, वीरेंद्र सहवाग, एडम गिलक्रिस्ट आदि. ये सभी 170 रन की संख्या के पार भी पहुंचे लेकिन दोहरे शतक से महरूम रहे. यहां तक कि तेंदुलकर ने जब पहला दोहरा शतक लगाया तो यही कहा गया कि उन्होंने इस मुकाम पर पहुंचने में देर लगायी. आखिर तब तक भारत की तरफ 172, आस्ट्रेलिया की तरफ से 152, पाकिस्तान की तरफ से 142, वेस्टइंडीज की तरफ से 130, श्रीलंका की तरफ से 106, इंग्लैंड की तरफ से 91, दक्षिण अफ्रीका की तरफ से 88 और न्यूजीलैंड की तरफ से 71 शतक वनडे क्रिकेट में लग चुके थे. तेंदुलकर ने यह मुकाम अपने 37वें जन्मदिन से दो महीने  पहले किया.

यह भी संयोग है कि तेंदुलकर ने 24 फरवरी 2010 को वनडे का पहला दोहरा शतक लगाया था और गेल ने इसके ठीक पांच साल बाद 24 फरवरी 2015 का विश्व कप का पहला और वनडे का पांचवां दोहरा शतक जड़ दिया. इन पांच वर्षों में वनडे में कुल 345 शतक लगे जिनमें पांच दोहरे शतक शामिल है. जाहिर है इस बीच मैचों की संख्या बढ़ी और उसी अनुपात में शतकों की संख्या में भी इजाफा हुआ. दक्षिण अफ्रीका ने इन पांच वर्षों में सर्वाधिक 55, भारत ने 54, श्रीलंका ने 44, आस्ट्रेलिया ने 33, इंग्लैंड ने 31, न्यूजीलैंड ने 29, वेस्टइंडीज ने 27 और पाकिस्तान ने 24 शतक लगाये. बांग्लादेश ने 11 और आयरलैंड ने 10 शतक लगाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी लेकिन भारत के तीन बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर (200 नाबाद), वीरेंद्र सहवाग (219) और रोहित शर्मा (209 और 264) चार दोहरे शतक जमाने में सफल रहे.

असल में जिस दोहरे शतक को कभी वनडे में मुश्किल मुकाम माना जा रहा था, टी20 क्रिकेट के आगमन के बाद वह कुछ आसान बन गया. इस बीच बल्लेबाजों के पक्ष में बने क्षेत्ररक्षण और बाउंसर के नियमों ने भी मदद पहुंचायी. बल्ले के निचले भाग की मोटाई विशेषकर 'स्वीट स्पॉट' में भी ताकत भर दी गयी. इससे बड़े शाट खेलने में मदद मिली. गेल सरीखों से तो बहुत पहले से उम्मीद की जा रही थी लेकिन उनके बारे में भी यही कहा जाएगा कि वह देर से इस मुकाम तक पहुंचे. वैसे सिर्फ मददगार परिस्थितियों के दम पर ही दोहरे शतक तक नहीं पहुंचा जा सकता. इसके लिये संयम की भी जरूरत पड़ती है. जैसे कि आज गेल ने दिखाया. उन्होंने अपने पहले 50 रन 51 गेंदों और फिर शतक 105 गेंदों में पूरा किया. मतलब उन्होंने अगले 50 रन के लिये 54 गेंद खेली. वह 100 से 150 रन तक 21 गेंदों में और फिर 150 से 200 रन तक केवल 12 गेंद में पहुंचे. दोहरा शतक इसी तरह से पूरा किया जा सकता है.

तेंदुलकर ने भी जब पहला दोहरा शतक लगाया था तो उन्होंने पहले 100 रन 90 गेंद पर बनाये लेकिन अगले 100 रन के लिये उन्होंने केवल 57 गेंदें खेली थी. सहवाग ने अपनी लय एक जैसी बनाये रखी थी. उन्होंने शतक 69 गेंदों में पूरा किया जबकि अगले 100 रन बनाने के लिये भी 71 गेंदों का सामना किया था. रोहित ने जब 2013 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला दोहरा शतक लगाया था तो उन्होंने बेहद धीमी शुरूआत की थी और पहले 100 रन के लिये 114 गेंद खेल ली थी लेकिन इसके बाद उन्होंने मौके की नजाकत को भांपते हुए तेजी दिखायी और अगली 42 गेंदों पर 200 रन पर पहुंच गये. उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ 264 रन की रिकार्ड पारी के दौरान भी यही रणनी​ति अपनायी. रोहित ने तब शतक 100 गेंद पर पूरा किया लेकिन उनका दोहरा शतक 151 गेंदों पर बना. मतलब अगले शतक के लिये उन्होंने केवल 51 गेंदे खेली थी.

और हां अंत में ….. 24 फरवरी को वनडे में दो दोहरे शतक लग चुके हैं. क्या आप जानते हैं कि इस दिन पहला वनडे शतक किस बल्लेबाज ने बनाया था? आस्ट्रेलिया के रिकी ​पोंटिंग ने 2008 में भारत के खिलाफ सिडनी में. बाद में गौतम गंभीर ने भी इस मैच में सैकड़ा जड़ा था. संयोग देखिये कि इससे ठीक 100 साल पहले 24 फरवरी को टेस्ट मैचों में पहला शतक पूरा किया गया था. यह शतक 1908 में इंग्लैंड के जार्ज गुन ने बनाया था.

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