साल भर छिपकलियों से डरती रहने वाली भोपाल के गुलमोहर इलाके में रहने वाली 55 वर्षीया सुविधा प्रकाश दीवाली के कोई सप्ताहभर पहले से छिपकलियों को झाड़ू से मारने और भगाने का अपना पसंदीदा काम बंद कर देती हैं. वजह, करोड़ों दूसरे लोगों की तरह उन का भी यह मानना है कि दीवाली की रात छिपकली दर्शन से साल भर पैसा आता रहता है. मन में झूठी उम्मीद लिए कई बार बेटियों से बहाने बना कर वे छत पर जाती हैं और चारों दिशाओं में निगाह दौड़ाती हैं कि शायद कहीं उल्लू दिख जाए तो फिर कहना ही क्या...लेकिन उल्लू आज तक उन्हें नहीं दिखा तो वे छिपकली ढूंढ़ते तसल्ली कर लेती हैं. दीवाली का जगमग करता त्योहार कैसेकैसे दिलोदिमाग पर अंधविश्वासों के अंधियारों में जकड़ा है, सुविधा तो इस की बानगी भर हैं नहीं तो इस रोशन त्योहार से जुड़े कई ऐसे पहलू मौजूद हैं जिन्हें देख कर लगता नहीं कि दीवाली उल्लास, खुशी और समृद्धि का त्योहार है, जैसा कि कहा और माना जाता है. ये अंधविश्वास, रूढि़यां, खोखली मान्यताएं और कुरीतियां कैसे दीवाली को भार और अभिशाप बना देती हैं यह जानने के लिए बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं. अपने मन में झांकें तो हम सब भी इस की गिरफ्त में हैं.
दीवाली को वैश्यों यानी व्यापारियों का त्योहार गलत नहीं कहा गया है. कोई भी अखबार या पत्रिका उठा लें, कोई भी चैनल देख लें, हर कोई आप के लिए कुछ न कुछ औफर ले कर आया है. ऐसा औफर वाकई आप ने पहले कभी देखासुना नहीं. इसलिए आप अपने बजट को कोने में रख उन चीजों की खरीदारी का मन बनाने लगते हैं जिन की आप को कतई जरूरत नहीं. बेवजह की गैरजरूरी यह खरीदारी फिर सालभर कैसे आप को रुलाती है, यह आप से बेहतर कोई और समझ भी नहीं सकता.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन