गोहत्या और गोमांस पर पूरे देश में एक आंदोलन करना भारतीय जनता पार्टी की नीति का एक हिस्सा है पर यह मामला तो बहुत पुराना है. गाय को मां या देवता कहने वाले हिंदू धर्म के समर्थक इस देवी की कितनी कद्र करते हैं यह तो देश भर की सड़कों पर देखा जा सकता है और इस पर ज्यादा कहना या लिखना पुरानी बातों को दोहराना होगा. फिलहाल इस आंदोलन को जो रूप दिया जा रहा है वह किसी तरह से मरी गायों के चमड़े के व्यापार में लगे मुसलमानों को आर्थिक हानि पहुंचा कर कमजोर करना है. यह एक बहाना भी है जिस से कट्टर हिंदुओं को हथियार दिया जा रहा है कि गायें कट गईं कह कर वे कहीं भी, कैसा भी उत्पात मचा सकते हैं और राज्य प्रशासन को उत्पात से पीडि़तों को ही दोषी मानना पड़ेगा. देश भर में कुकुरमुत्तों की तरह गोसेवकों की यूनिटें पैदा हो गई हैं जो गाय की रक्षा के नाम पर लड़नेमरने को तैयार हैं क्योंकि उन के सामने स्पष्ट दिखने वाला शत्रु है और दंगा करने के लिए उस का घर व संपत्ति है. बदले में ये यूनिटें जम कर या कहिए लड़ कर, चंदा वसूली में लग गई हैं और जो इन्हें इनकार करता है उसे हिंदू विरोधी कह कर राष्ट्रद्रोही घोषित करते देर

नहीं लगती.

गाय की महत्ता उसे पालने से कहीं ज्यादा निसंदेह उस की पूजा में है. गाय के नाम पर चंदा वसूला जाता है. गोशालाओं के नाम पर बागबगीचों को हथिया लिया जाता है. गोसेवकों को खाना खिलाने का इंतजाम कर लिया जाता है. गोदान तो इस देश की सब से बड़ी धार्मिक व्यवस्था है जिस पर प्रेमचंद की कहानी के पात्र आज भी इर्दगिर्द मौजूद हैं. गोहत्या के नाम पर उत्तर प्रदेश के दादरी जिले के बिसाहड़ा कसबे में अखलाक की भीड़ द्वारा निर्मम हत्या सैकड़ों हत्याओं में से एक है जो गाय के नाम पर की गई पर चूंकि यह यादवों के गढ़ में बिहार चुनावों के ऐन पहले हुई है, इस का राजनीतिक महत्त्व बढ़ गया है. गोपूजा का हिंदू धर्मग्रंथों में जो बड़ा गुणगान है उस का कारण यही है कि यह ऐसी संपत्ति थी जिसे ब्राह्मण दान के साथ जजमान के घर से ले जा सकता था. युगों तक इस देश के आम आदमी के पास घड़े भर अनाज के अलावा कुछ होता था तो वह दुधारू गाय होती थी और ब्राह्मणों ने उसे ही दान में लेने का निशाना बनाया. हिंदू ग्रंथ उन राजाओं के गुणगान से भरे हैं जिन्होंने हवन या आयोजन के बाद गायें दान में दीं. आज इस बात को दोहराया जा रहा है जबकि गायों की संख्या अब लगातार घटती जा रही है. गोदान या गोपूजा हिंदुओं को हमेशा बड़ी महंगी पड़ी है और लगता है फिर इस पर विवाद उठा कर देश में दंगों और मारकाट की तैयारी हो रही है. गाय के व्यापार में, यह न भूलें, मुसलमानों के अलावा दलित व पिछड़े भी हैं. अभी तक वे मुसलमानों का साथ नहीं दे रहे पर इस व्यापार पर पाबंदी लगी तो समाज दो फाड़ हो सकता है.

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