Download App

बच्चों के मुख से

मैं नीलगिरी शहर में अपने परिवार से दूर रह कर नौकरी करता हूं. मेरी पत्नी 2 बच्चों व मेरे मातापिता के साथ लखनऊ में रहती है. मैं साल में 2 बार होली और दीवाली के मौके पर लखनऊ जाता हूं.
पिछली दीवाली को जब मैं लखनऊ गया तो धनतेरस के अवसर पर मेरी पत्नी ने वाश्ंिग मशीन लेने की इच्छा जाहिर की. मैं वाश्ंिग मशीन घर ले आया.
मेरी पत्नी ने वाशिंग मशीन में कपड़े डाल कर, उस के ऊपर ढक्कन लगा दिया और मशीन चालू कर दी. कुछ समय बाद ढक्कन खोल कर देखा तो कपड़े एकदम साफ हो गए. कपड़ों को ड्रायर में डाल दिया. कुछ समय बाद कपड़े सूख भी गए.
इन सब कार्यों को मेरा 6 वर्षीय बेटा शशांक बड़े ध्यान से देख रहा था. जब पत्नी ने उस से स्नान करने को कहा तो वह कहने लगा कि मम्मी, मुझे भी वाश्ंिग मशीन के अंदर डाल दो, ऊपर से ढक्कन लगा कर मशीन चालू कर दो. मैं भी साफ हो जाऊंगा. उस की बात सुन कर हम सब हंसने लगे.
विवेक कुमार यादव, नीलगिरी (तमिलनाडु)
 
एक रोज रात को हम दूरदर्शन पर  प्रसारित समाचार देख रहे थे. उस समाचार बुलेटिन में यह बारबार दोहराया जा रहा था : ‘भारी वर्षा से दिल्ली और एनसीआर का तापमान गिरा.’
हमारा नन्हा दिव्यांश कहने लगा, ‘यह दूरदर्शन वाले कभी भी पूरी खबर नहीं देते. वे यह तो बता रहे हैं कि तापमान गिरा है परंतु यह नहीं बता रहे कि इस के गिरने से उन्हें कितनी चोटें आईं या उसे किस अस्पताल में दाखिल कराया गया.’
बच्चे के मुख से यह सुन हम हंस पड़े.
ओमदत्त चावला, पश्चिम विहार (न.दि.)
 
कुछ समय पहले मैं अपने बेटे प्रतीक को ले कर मायके जमालपुर (बिहार) पहुंची. प्रतीक को गोद में लिए मैं ने मां के चरणस्पर्श किए. 
बेटा 3 वर्ष का था. उसे गोद में देखते ही अम्मा बिफर कर बोलीं, अरे, यह क्या? मेरा नाती इतना सूख क्यों गया है? खानेवाने का ध्यान नहीं रखती?
मां मुझे फटकार लगाने के मूड में थीं कि प्रतीक बीच में ही तपाक से बोल उठा, ‘‘नहींनहीं नानी, ऐसी बात नहीं है. मम्मी तो हमें ठूंसठूंस कर जबरदस्ती खिलाती रहती हैं. दरअसल, अभी मैं गाड़ी से आया न, उसी से सूख गया हूं. मम्मा जब मुझ को नहलाएंगी तो मैं गीला हो जाऊंगा.’’
उस की बात सुन कर घर के सभी सदस्य ठहाका मार कर हंस दिए.
डा. श्वेता सिन्हा, धनबाद (झारखंड) 

दोस्त

 
बुरे हैं वे दोस्त 
जो खूबियों पर दाद दें
वो दुश्मन अच्छा है 
जो खामियों पर नजर रखे
 
फुटकर में बेचता हूं मैं 
अपनी जिंदगी
खरीद ले कोई मगर 
संवार कर रखे.
बलवीर सिंह पाल

दिन दहाड़े

मैं सुबहसुबह डेयरी पर दूध लेने गई. वहां 14-15 साल की एक लड़की थी. मैं ने उसे 100 रुपए का नोट दिया व 1 लिटर दूध लिया.
उस ने मुझे कम पैसे लौटाए, तो पूछने पर उस ने कहा, ‘‘आंटी, आप ने 50 रुपए का नोट दिया था.’’ पर चूंकि मेरे पास अकेला 100 रुपए का नोट था इसलिए मैं भी अड़ी रही कि नहीं, मैं ने 100 रुपए का ही नोट दिया है.
उस लड़की ने आगेपीछे व बौक्स में फिर देखा और कहा, ‘‘नहीं आंटी, आप ने मुझे 50 रुपए का नोट दिया है,’’ उस ने 50 रुपए का नोट दिखाते हुए कहा, जो उस के बौक्स में पहले से पड़ा हुआ था. तब मैं ने उस से कहा, ‘‘रुको, मैं अंदर आ कर देखती हूं.’’
इस पर वह झट से नीचे झुकी और बोली, ‘‘हां आंटी, नोट पैर के पास पड़ा हुआ है. मुझे दिखा नहीं.’’
करीब 20 दिन बाद फिर मैं उसी डेयरी पर दूध लेने गई. वही लड़की बैठी हुई थी. मैं ने फिर 100 रुपए का नोट दिया और 1 लिटर दूध लिया. उस ने मुझे कम पैसे दे कर कहा, ‘‘आंटी, आप ने 50 रुपए का नोट दिया है.’’
मुझे पिछली बार की घटना याद आई और बहुत तेज गुस्सा भी आया. मैं ने उस से कहा, ‘‘अभी 20 दिन पहले भी तुम ने मुझ से यही कहा था कि आंटी, आप ने 50 रुपए का नोट दिया है जबकि 100 रुपए का नोट तुम्हारे पैर के पास मिला,’’ मेरे ऐसा कहने पर वह जोरजोर से रोने लगी. दुकान पर लोग इकट्ठे होने लगे तो सब से बोली कि आंटी मुझे 50 रुपए का नोट दे कर कहती हैं कि 100 रुपए का नोट दिया है और मुझे झूठा साबित कर रही हैं. दुकान पर भीड़ जमा होने के कारण मैं कुछ न बोल पाई और घर आ कर सोचती रही कि इतनी छोटी लड़की किस तरह बड़ी होशियारी से अपने से बड़ों को ठग रही है.
उपमा मिश्रा, गोंडा (उ.प्र.)
 *
एक दिन शाम के समय एक अधेड़  सज्जन मेरी मैडिकल शौप पर आए और लगभग 180 रुपए की दवाएं खरीदीं. और जब भुगतान की बारी आई तो  उन्होंने सारी जेबें टटोल कर लगभग  30 रुपए निकाले और बोले, ‘‘मेरे पास अभी केवल 30 रुपए ही हैं. अगर आप मुझ पर विश्वास करें तो 150 रुपए मैं कल दे जाऊंगा.’’ मेरे इनकार करने पर उन्होंने अपनी जेब से केस सहित चश्मा निकाला और बोले, ‘‘पैसों के एवज में आप कृपा कर के मेरा चश्मा रख लें, मैं कल बाकी पैसे दे कर अपना चश्मा वापस ले जाऊंगा.’’
मैं ने उन की उम्र का लिहाज करते हुए उन की बात पर भरोसा कर के चश्मा रख कर दवाएं दे दीं. वह दिन था और आज का दिन है, वे आज तक अपना चश्मा लेने नहीं आए. इस तरह उन्होंने बैठेबिठाए मुझे
150 रुपए का चूना लगा दिया.
मुकेश जैन ‘पारस’, बंगाली मार्केट (न.दि.) 

बाकी यादें

आंगन का वो पेड़ नहीं है
कुएं की वो मेड़ नहीं है
छिपाछिपी का खेल थम गया
जाने कब मैं बड़ा हो गया
 
उस के मुखड़े को देखदेख के
आंगन, चांद उतर आता था
उस की धानी चूंदर से ले कर
धरती का रंग बदल जाता था
 
अलमारी में कागज के नीचे
मिले, आज कुछ कागज पीले
स्याही थोड़ी फैल गई थी
पर रंगों में कमी नहीं थी
 
पीला वर्क भी कथा कह गया
स्पर्श पुराना नया हो गया
स्मृतियों का लगा था मेला
बारबार फिर आया रेला
 
छलता, एहसास उस क्षण का
छूना अधरों से अधरों का
विस्मय रहस्य कुछ पल का
पिघल जाना दो जानों का
 
कुछ संदेश अधूरे थे
कुछ वाक्य हुए न पूरे थे
कुछ तो है रीतारीता
कुछ तो है बीताबीता.
डा. राजीव जैन

केरल आंखों में भर लो नजारे

जहां देश के ज्यादातर राज्य आधुनिकता की आंधी में कंकरीट के जंगलों में तब्दील हो रहे हैं वहीं केरल ने आज भी अपने प्राकृतिक सौंदर्य को बचा कर रखा है. भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित यह राज्य पर्यटन की दृष्टि से बेहद मनोहारी है. यहां प्रकृति के रमणीय दृश्यों का खजाना है.
मुन्नार
यह एक हिल स्टेशन है. यहां का ठंडा, सुखद मौसम तनमन को शांत कर शीतलता का एहसास कराता है. यह हिल स्टेशन एक जमाने में दक्षिण भारत के पूर्व ब्रिटिश प्रशासकों का ग्रीष्मकालीन रिजोर्ट हुआ करता था. दूरदूर तक फैले चाय के बागान, नीलकुरुंजी, प्रपात और बांध यहां की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. ट्रैकिंग एवं माउंटेन बाइकिंग के लिए भी यह आदर्श स्थल है.
दर्शनीय स्थल
इरविकुलम नैशनल पार्क : मुन्नार से 15 किलोमीटर दूर इरविकुलम नैशनल पार्क है. यहां आप लुप्तप्राय प्राणी नीलगिरि टार को निकट से देख सकते हैं. चीता, सांभर, बार्किंग डियर, भीमकाय मलबार खरगोश आदि वन्यजीव भी यहां देखे जा सकते हैं. 12 वर्षों में एक बार खिलने वाला नीलकुरुंजी नामक पौधा यहां के वन की खासीयत है. यह स्थानीय पौधा जब पहाड़ों की ढलान पर पनपता है तो पहाड़ नीली चादर में लिपटा सा लगता है.
पल्लिवासल : यह केरल का पहला हाइड्रोइलैक्ट्रिक परियोजना स्थल है. यह मुन्नार से 8 किलोमीटर की दूरी पर है. 
माट्टुपेट्टी : यह मुन्नार से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. रोज गार्डन, हरीभरी घास के मैदान, बड़ीबड़ी गाएं यहां की खासीयत हैं. यहां आप नौकाविहार का भी आनंद उठा सकते हैं. 
मरयूर, चिन्नार वन्यजीव अभयारण्य, देवीकुलम चिलिरपुरम, चीत्वारा, मीनूली, आनमुड़ी राजमला आदि भी यहां के आसपास के अन्य दर्शनीय स्थल हैं.
कोवलम
यह केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां के कोवलम बीच, द लाइटहाउस बीच और हवाह बीच मशहूर हैं. यहां सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए सैलानियों का जमघट लगा रहता है. यहां रेत पर धूप स्नान, तैराकी, जड़ीबूटियों से बने तेल से शरीर की मालिश, क्रूजिंग जैसे असंख्य आकर्षण उपलब्ध हैं. 
दर्शनीय स्थल
श्री चित्रा आर्ट गैलरी : प्रसिद्ध नेपियर म्यूजियम के पास यह आर्ट गैलरी है. यहां रवि वर्मा, रियोरिक पेंटिंग्स के अलावा राजपूत, मुगल, तंजावूर स्कूल की पेंटिंग्स का अच्छा संकलन है. चीन, जापान, तिब्बत, बाली से एकत्र की गई पेंटिंग्स भी यहां देखने को मिलती हैं.
नेय्यार डैम : यह तिरुअनंतपुरम से 32 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां का मगरमच्छ फार्म और लायन सफारी पार्क भी दर्शनीय है.
अलप्पुझा
केरल के सामुद्रिक इतिहास में अलप्पुझा का महत्त्वपूर्ण स्थान है. अलप्पुझा बीच पर्यटकों की पसंदीदा जगहों में से एक है. नौका दौड़, बैकवाटर टूरिज्म, कौपर उद्योग, समुद्री उत्पाद के लिए भी यह शहर विख्यात है. यहां समुद्र में घुसा हुआ पोनघाट 137 साल पुराना है. विजया बीच पार्क की मनोरंजक सुविधाएं बीच का खास आकर्षण हैं. यहां पास ही एक पुराना लाइट हाउस भी है.
यहां हाउसबोट की सैर पर्यटकों के लिए एक रोमांचक अनुभव होता है.
इन हाउसबोटों में अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं. शयन- कक्ष, आधुनिक टौयलेट, आरामदेह बैठक, रसोईघर भी मौजूद हैं. अगर आप की दिलचस्पी खुद मछली पकड़ कर खाने में है तो यहां फिशिंग की भी सुविधा है.
अन्य दर्शनीय स्थल
कृष्णपुरम म्यूजियम : यह अलप्पुझा से कोल्लम रूट पर 47 किलोमीटर की दूरी पर है. केरल की सब से बड़ी म्यूरल पेंटिंग ‘गजेंद्र मोक्षम’ इस संग्रहालय में सुरक्षित रखी है. 
पातिरामनल : यह वेबनाट झील का सब से छोटा व खूबसूरत द्वीप है. यह ‘सैंड औफ मिडनाइट’ के नाम से भी जाना जाता है. यहां आप दुर्लभ पक्षियों के दर्शन भी कर सकते हैं.
कुट्टनाड : संसार में शायद ही ऐसी कोई जगह होगी जहां समुद्रतल से भी नीचे खेती की जा रही है. लेकिन कुट्टनाड ऐसी ही जगह है. इसे केरल का ‘राइस बाउल’ भी कहते हैं. यहां की खास फसल धान है. 
थेक्कड़ी
थेक्कड़ी यहां का सब से अहम पर्यटन स्थल है. यहां तरहतरह के वन्यजीव देखे जा सकते हैं. यह 777 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है जिस में 360 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र घना जंगल है. 1978 में इसे टाइगर रिजर्व का दरजा मिला था. यहां की झील में बोट में सैर कर के वन्यजीव को निकट से देख पाने का मौका भी मिलता है. झील के आसपास हाथियों के टहलने का दृश्य भी मनमोहक होता है. 
दर्शनीय स्थल
कुमली : यह थेक्कड़ी से 4 किलोमीटर दूर है. यह एक शौपिंग जोन है, साथ ही साथ यह सुगंधित व्यंजनों का केंद्र भी है.
मुरीकड़ी : यह थेक्कड़ी से 5 किलोमीटर दूर है. यहां इलायची, कौफी, कालीमिर्च के बाग दर्शनीय हैं.
वंडिपेरियार : यह थेक्कड़ी से 14 किलोमीटर दूर है. इस खास ट्रेड सैंटर में कई टी फैक्टरियां हैं.
कुट्टिकानम : यह थेक्कड़ी से 40 किलोमीटर दूर स्थित है. इस हिल स्टेशन का ठंडा व सुखद मौसम किसी को भी यहां दोबारा आने के लिए आमंत्रित करता है. यहां जलप्रपात के नीचे स्नान करने का आनंद भी उठाया जा सकता है.
कोच्चि
कोच्चि शहर केरल के केंद्र भाग में स्थित है. यह इस राज्य की व्यापारिक राजधानी है. यहूदी, पुर्तगाली, यूनानी, अरब, रोमन व्यापारी व्यापार के लिए यहां आयाजाया करते थे. इसलिए यहां के स्थानीय लोगों के जीवन पर उन की संस्कृति का प्रभाव आज भी देखा जा सकता है. कोच्चि संसार के सब से पुराने व विख्यात बंदरगाहों में एक है. यह ‘अरब सागर की रानी’ के नाम से विख्यात है. पैलेस, किले, झील, नृत्य, ऐतिहासिक स्मारक, लंबे समुद्री तट साथ ही साथ गगनचुंबी इमारतें, मौल कोच्चि का चेहरा बदल रहे हैं. प्राचीन व नवीन का समृद्ध मिश्रण यहां की खूबी है.
दर्शनीय स्थल
मट्टानचेरी : एरणाकुलम से बस द्वारा 30 मिनट के भीतर मट्टानचेरी पहुंचा जा सकता है. मट्टानचेरी के आसपास अनेक ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल हैं. 
जू टाउन : ऐतिहासिक स्मारक जूविश सिनगेग के चारों ओर का इलाका जू टाउन नाम से जाना जाता है.  
चाइनीज फिश्ंिग नैट : वास्कोडिगामा स्क्वायर से आप टीक व बांस की लकडि़यों से बने चाइनीज फिश्ंिग नैट की कतारों का अच्छा नजारा देख सकते हैं. 
अन्य दर्शनीय स्थल
परिक्षित नंबुरान म्यूजियम, म्यूजियम औफ केरला हिस्ट्री, आर्ट गैलरी, बोलगाटी पैलेस, सांताक्रूज बसिलिका डच सिमिट्री, बिशप हाउस, गुंडु द्वीप के अलावा यहां और भी बहुत से दर्शनीय स्थल हैं.

कर्नाटक शिल्प, संस्कृति और सौंदर्य का प्रतीक

अच्छा होता यदि भारत में देशाटन की परंपरा को महज धार्मिक भावनाओं की नींव पर रख कर विकसित न किया गया होता. फिर इस निर्धन देश के छोटेछोटे शहरों से ले कर सुदूर गांवों तक में रहने वाले नागरिक सैलानीपन के नाम पर अपने मन में केवल चारों धाम की यात्रा के सपने न संजोते. धर्म के दुकानदारों ने रामेश्वरम से ले कर कैलास पर्वत तक और द्वारका से ले कर गंगासागर तक तीर्थस्थलों को बेच कर सैलानियों की सोच को परंपरागत तीर्थस्थानों तक सीमित रख दिया. 
आज का समृद्ध और शिक्षित वर्ग पर्यटन के आनंद को धार्मिक अंधविश्वास के अलावा अंगरेजों द्वारा विकसित किए हुए पर्वतीय हिल स्टेशनों को छोड़ कर अन्य रमणीक स्थलों को अनदेखा कर देता है क्योंकि ऐसी हर जगह में जहां प्रकृति ने उन्मुक्त सुंदरता तो लुटाई है पर पहुंचने, रुकने और ठहरने की साधारण सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. पर्यटन सुविधाओं के अभाव ने एक भेड़चाल वाली मनोवृत्ति को बढ़ावा दिया है जिस के वशीभूत इस वर्ग के सैलानी को गरमी में केवल शिमला, मसूरी, नैनीताल, मनाली, कश्मीर और दार्जिलिंग जैसे हिलस्टेशन ही दिखते हैं और सर्दियों में गोआ के समुद्रतट.
मनमोहक सौंदर्य
रमणीक स्थल यदि कोई खोजना चाहे जिन के प्राकृतिक सौंदर्य के आगे हमारे ख्यातिप्राप्त पर्यटन स्थल भी फीके लगें तो उत्तरी कर्नाटक के समुद्रतट पर बिखरे हुए अनमोल रत्नों की तरफ उसे उन्मुख होना चाहिए. 
गोआ के खूबसूरत समुद्रतट तक को तो बहुत सारे लोग पहुंचते हैं पर वहां उमड़ी भारी भीड़ उत्साह फीका कर देती है. सैलानी यदि दक्षिण दिशा में गोआ से थोड़ा ही अर्थात केवल डेढ़दो सौ किलोमीटर और आगे जाएं तो उत्तर कर्नाटक के रमणीक समुद्रतट पर बिखरे हुए बेहद खूबसूरत छोटेछोटे शहर, कसबे और गांव अपने अद्भुत सौंदर्य से उन्हें सम्मोहित कर देंगे. चांदी सी चमकती रेत वाले समुद्रतट जिन्हें उद्योगजन्य प्रदूषण का अभिशाप नहीं झेलना पड़ा है, इन तटों के विस्तार को बीचबीच में तोड़ती हुई छोटीछोटी नदियां जो समुद्र तक गजगामिनी सी मंथर गति से आ कर उस में निस्तब्ध हो कर विलीन हो जाती हैं और अचानक कहींकहीं इस धरातली एकरसता को भंग करते हुए अकेले निर्जन में प्रहरी की तरह तना खड़ा हुआ कोई प्रकाश स्तंभ (लाइट हाउस), ये सब कुल मिला कर एक ऐसे अछूते सौंदर्य की संरचना करते हैं जिन से अनूठी शांति का एहसास होता है. इन्हीं के बीचबीच में मछुआरों के छोटेछोटे गांव अचानक याद दिला देते हैं कि बिना बाजारवाद के दंश का अनुभव कराने वाले बाजार भी हो सकते हैं. 
ठहरने, रहने, खानेपीने की 2-3 सितारों वाली भी सुविधाएं कोई खोजे तो निराशा हाथ लगेगी. पर अनेक छोटे से ले कर मध्यम श्रेणी के शहर ऐसे रमणीक स्थलों से दूर नहीं हैं. वहां ठहर कर समुद्रतट के राजमार्ग से पर्यटक आसानी से ऐसे शांत स्थानों तक आ सकते हैं और थोड़ा भी पैदल सैर करने वालों के लिए तो असीम संभावनाओं से भरा हुआ है यह क्षेत्र. 
आंखें चुंधिया जाएं
उत्तरी कर्नाटक का तटीय क्षेत्र कारवार से ले कर उडुपी तक इतने ठिकानों से भरा हुआ है कि प्रकृति प्रेमी पर्यटकों की आंखें चुंधिया जाएं. दिसंबर के अंत और जनवरी के प्रथम सप्ताह में तटीय कर्नाटक का मौसम गोआ के जैसा ही गुलाबी होता है और यह ही आदर्श मौसम है इस क्षेत्र में पर्यटन के लिए. समुद्रतट पर धूप में पसरे रहने वाला मौसम, अलस्सुबह और देर शाम को ठंडी हवा में हलकी सी झुरझुरी महसूस करने वाला मौसम, रात में तारोंभरे आकाश को निहारते हुए मीठी यादों में खो जाने वाला मौसम. 
अप्रैल, मई के महीनों में इस क्षेत्र में सुबह 10-11 बजे से ले कर सूर्यास्त तक तो दिन गरम होते हैं पर समुद्रतट पर सुबह सुहानी ही रहती है और शाम होते ही समुद्र की तरफ से आने वाली पछुवा हवाएं दिन के ताप को दूर भगा देती हैं. जून का महीना आते ही मानसूनी हवाएं और बादलों से भरा आकाश, बारिश की झड़ी, एक अनोखा सौंदर्य भर देती हैं.
लुभावना कारवार
गोआ से कर्नाटक की सीमा में प्रवेश करने के 15 किलोमीटर के अंदर ही कारवार आ जाता है. इतने महत्त्वपूर्ण समुद्री और तटीय मार्ग पर बसा है यह शहर कि इब्न बतूता की यात्रा वृत्तांत में भी इस का जिक्र है. अरब, डच, पुर्तगाली, फ्रांसीसी और अंगरेज सभी इस से गुजरे. आज भी कारवार एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह है. भारतीय नौसेना का एक महत्त्वपूर्ण ठिकाना होने के अतिरिक्त गोआ से ले कर चिकमंगलूर क्षेत्र की खदानों से लौह अयस्क भेजने के लिए भी कारवार के बंदरगाह की महत्ता है. 
सैलानियों के लिए इस नितांत व्यापारिक शहर के तट से थोड़ी ही दूर पर कुरुम गढ़ द्वीप है. इस द्वीप पर श्वेत बालू के विस्तृत तट पर समुद्रस्नान और तैराकी के अतिरिक्त सैलानी मोटरबोट में भी घूम सकते हैं. सागर के अंदर मोटरबोट आप को निकट से डौल्फिन के जल में अठखेलियां करते हुए समूहों के भी कभीकभार दर्शन करा सकती है. 
पश्चिमी घाट के पर्वतों से उतर कर कारवार पहुंच कर काली नदी अरब सागर में जिस स्थान पर विलीन हो कर अपनी यात्रा समाप्त करती है उसी के निकट सदाशिव गढ़ के पुराने दुर्ग में इतिहास के पन्ने आज के सूनेपन में फड़फड़ाते हुए से लगते हैं. काली नदी में मछली के शिकार के शौकीनों को अपना शौक पूरा करने के अवसर खूब मिलते हैं.
कारवार से लगभग 100 किलोमीटर आगे मुर्देश्वर के समुद्रतट पर ऊंची शिवमूर्ति स्थापित है. इस के विशाल आकार को प्रतिबंधित करता है बीसमंजिला गोपुरम जो शिवमूर्ति के नीचे प्रतिष्ठित शिवमंदिर का प्रवेशद्वार है.
अद्भुत है मुर्देश्वर 
मुर्देश्वर में आप केवल प्रकृति के सान्निध्य में अपने नित्यप्रति के मानसिक तनाव भूल कर कुछ उन्मुक्त आनंद के क्षण खोजते हुए आए
हैं. एक अच्छा होटल, वातानुकूलित कमरे, स्वादिष्ठ शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन इत्यादि भी चाहिए तो मुर्देश्वर में वे सभी सुविधाएं मिल जाती हैं. 
मुर्देश्वर का समुद्रतट, स्नान करने और किनारे रेत में लेटने का मजा लेने के लिए किसी भी अच्छे रिजोर्ट से पीछे नहीं. यही नहीं, यदि आप साइकिल से या पैदल 10-15 किलोमीटर की दूरी तय कर के वनाच्छादित सह्याद्रि पर्वत की चढ़ान तक पहुंच सकते हैं तो फिर ट्रैकिंग के लिए कई सुरम्य चढ़ाइयां आप को मिल जाएंगी.
मुर्देश्वर तक कोई आए और वहां से केवल 70-80 किलोमीटर दूर जा कर भारत का सब से विशाल और ऊंचा प्रपात जोग फौल्स देखे बिना वापस जाए, यह कैसे संभव है. कर्नाटक के पूरे तटीय क्षेत्र का पर्यटन भले ही सर्दियों में अधिक आनंद दे पर जोग प्रपात का अद्वितीय सौंदर्य सिर्फ बारिश के मौसम में ही अपने चरमोत्कर्ष पर होता है. लेकिन बारिश में सड़कें इतनी अच्छी दशा में नहीं रहतीं और घूमनेफिरने का आनंद सिमट जाता है. 
जोग प्रपात की भव्यता कम ही दिखे पर कुछ तो होगी ही, इसलिए हम ने जनवरी के महीने में भी जोग प्रपात देखने का निर्णय ले लिया. पर
वहां जा कर निराशा ही हाथ लगी. श्मशान में जैसे बहुत दुनियादार व्यक्ति भी कुछ देर के लिए दार्शनिक बन जाता है वैसे ही जोग प्रपात के संकुचित असहाय से लगते स्वरूप को देख कर मन में एक अवसाद सा उठा.
जोग प्रपात की भव्यता
बारिश के मौसम में इतनी ऊंचाई से इतनी विशालकाय, चौड़ी छाती वाला प्रपात कितना भीषण निनाद करता हुआ नीचे गिरता होगा, कैसा अविस्मरणीय प्रभाव डालता होगा, इस की कल्पना करना कठिन नहीं था, पर अपनी निराशा से कहीं अधिक दुख हुआ उन कुछ विदेशी पर्यटकों को देख कर जिन्हें पर्यटन व्यवसाय में लगी कंपनियां जोग प्रपात के वर्षा ऋतु का स्वरूप चित्रों में दिखा कर यहां तक खींच लाई थीं. वे सिर्फ ठगा सा महसूस ही नहीं कर रहे थे बल्कि स्पष्ट शब्दों में कहने से भी हिचक रहे थे कि उन्हें बेवकूफ बनायागया था.
यदि समय हो तो 100 किलोमीटर और दक्षिण जा कर उडुपी भी घूम आएं, समुद्र तट तो वहां है ही पर उत्सुकता यह जानने की भी होती है कि आखिर क्या है वहां जो डोसा, इडली, वडा, सांभर सबकुछ खा कर अघाने वाला पारखी भी एक बार कहता जरूर है कि उडुपी के रैस्टोरैंट्स की बात ही कुछ और है. 
 

शाही अंदाज में हैदराबाद का सुहाना सफर

पिछले साल मईजून में हम हैदराबाद घूमने गए थे. तपतेसुलगते वे दिन आंध्रप्रदेश की राजधानी में जा कर इतने मनोरम बन जाएंगे, कल्पना भी नहीं की थी. राजीव गांधी इंटरनैशनल एअरपोर्ट से बाहर आते ही हरेभरे वृक्षों और फूलों से सरोकार हुआ तो तनबदन में ताजगी भर गई. एक तरफ पुराना शहर अपने बेजोड़ स्थापत्य से हमें लुभा रहा था, वहीं दूसरी ओर हाईटैक सिटी दिग्भ्रमित कर रही थी.
हैदराबाद 500 साल पहले बसा था. आज यह आंध्रप्रदेश की राजधानी है. मूसी नदी के किनारे बसे हैदराबाद और सिकंदराबाद को ट्विन सिटीज के नाम से जाना जाता है. यहां रेल मार्ग, सड़क मार्ग व हवाई मार्ग से जाया जा सकता है. यह तीनों रूट से वैलकनैक्टेड है.
गोलकुंडा फोर्ट
पहला कदम रखा हम ने गोलकुंडा फोर्ट पर. हैदराबाद के इस किले को कुतुबशाही शासकों ने बनवाया था.
हम ने प्रवेश किया मुख्य दरवाजे से. इस का नाम फतेह दरवाजा है. यह इतना बड़ा है कि हाथी पर बैठा हुआ आदमी आराम से निकल जाए. ऊंची दीवारों और कई दरवाजों वाला यह किला अनूठा है. किले में 87 परकोटे हैं जिन पर खड़े हो कर सुरक्षाप्रहरी पहरा देते थे.
गोलकुंडा की दास्तान हो और उस में कोहिनूर की चर्चा न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता क्योंकि विश्वविख्यात कोहिनूर हीरे का असली घर गोलकुंडा किला है. यह दुनिया का सब से दुर्लभ और सब से बेशकीमती हीरा है, जो अब ब्रिटेन की महारानी के ताज में जड़ा हुआ है.
चारमीनार
हैदराबाद का नाम सुनते ही चारमीनार जेहन में आती है. ढलती शाम में चारमीनार का सौंदर्य देखते ही बनता है. हैदराबाद के व्यस्ततम बाजार लाड बाजार के बीचोबीच खड़ी यह इमारत कुतुबशाह द्वारा 1591 में बनवाई गई थी. चारमीनार के एक कोने पर स्थित देवी का मंदिर कौमी एकता को दर्शाता है.
लाड बाजार
चारमीनार के आसपास बहुत सारी दुकानों से बना है यह बाजार. यहां की रौनक सुबहशाम देखते ही बनती है. तंग गलियों में दुकानों और दुकानों में टूरिस्ट व लोकलाइट्स. समूचा बाजार नायाब हैदराबादी मोतियों और चूडि़यों से अटा पड़ा है. जम कर होने वाले मोलभाव में कभी सैलानी बाजी मार ले जाते हैं तो कभी दुकानदार.
हुसैन सागर लेक
हैदराबाद जिस तालाब के किनारे बसा हुआ है वह है हुसैन सागर लेक. हजरत हुसैन शाह वली ने 1562 में मूसी नदी की सहायक नदी पर इसे बनवाया था. तालाब के बीचोबीच एक पत्थर से बनी विशालकाय गौतम बुद्ध की मूर्ति ध्यान खींचती है. हुसैन सागर में बोटिंग, वाटर स्पोर्ट्स होते हैं. यहां आसपास के गार्डन में बच्चों के लिए झूले, टौयट्रेन, म्यूजिकल फाउंटेन आदि चीजें देखने लायक हैं. शाम को यहां पर रोज लाइट एवं साउंड शो होता है जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है.
बिड़ला मंदिर
हुसैन सागर तालाब के दक्षिणी कोने में स्थित काला पहाड़ के कोने पर बिड़ला मंदिर बना है. 1976 में बिड़ला ग्रुप द्वारा इसे बनवाया गया था. मंदिर का स्थापत्य दक्षिण भारतीय है.
सलारजंग संग्रहालय
मूसा नदी के उत्तरी तट पर भारत का तीसरा सब से बड़ा म्यूजियम सलारजंग संग्रहालय है. यह लाजवाब है. एक पूरा दिन भी इसे देखने के लिए कम पड़ता है.
जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1951 में उद्घाटित यह संग्रहालय अपनी नायाब और अनमोल चीजों के लिए प्रसिद्ध है. अगर आप हैदराबाद गए और आप ने यह म्यूजियम नहीं देखा तो आप बहुत कुछ खोएंगे. सेमी सरक्युलर शेप में बने इस भवन में 38 गैलरियां हैं. इस दोमंजिले संग्रहालय के हर कमरे पर नंबर लिखा है. एकएक कर के आप हर कमरे का अवलोकन कर सकते हैं. संग्रहालय को बड़े प्यार और जतन से नवाब यूसुफ अली खान ने बनवाया था.
नवाब का संग्रहालय
सलारजंग के पास ही है नवाब का संग्रहालय. यह संग्रहालय सलारजंग से छोटा होते हुए भी आप को बांधे रखेगा. सलारजंग से यहां तक आने के लिए आप रिकशा या आटो ले सकते हैं. पुरानी हवेली में बने इस म्यूजियम में आखिरी निजाम की व्यक्तिगत चीजों का अच्छा संकलन है. 1930 की बनी रौल्स रौयस, मार्क जगुआर कारों को देख कर आप रोमांचित हो उठेंगे. निजाम का हीरों व सोने का कलैक्शन आंखें चुंधिया देता है.
एक बड़े हौल में रखी उन की पोशाकें देखते ही बनती हैं. प्राचीन वैभव, रईसी और शान देख कर आंखें विस्मित सी हो जाती हैं. कुछ देर के लिए बाहरी दुनिया से आप कट कर इतिहास की बांहों में समा जाते हैं.
चौमहला पैलेस
नवाब के महल से थोड़ी दूरी पर ही चौमहला पैलेस स्थित है. लगभग 200 वर्ष पूर्व बना चौमहला पैलेस 4 महलों से मिल कर बना है. इन में आफताब
महल सब से आलीशान है. यहां का स्थापत्य व सौंदर्य अनूठा है.
नेहरू जूलौजिकल पार्क
यों तो हैदराबाद में कई पार्क हैं लेकिन नेहरू जूलौजिकल पार्क का जवाब नहीं. 1,300 एकड़ क्षेत्र में फैला यह पार्क पशुपक्षियों की असंख्य प्रजातियों से भरा है. लौयन सफारी पार्क, नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम और बच्चों की टे्रन इस जूलौजिकल पार्क की दूसरी विशेषताएं हैं. 1963 में खुला यह पार्क अपनी बोट राइड और माइग्रेटरी बर्ड्स के लिए भी प्रसिद्ध है.
हाईटैक सिटी
हैदराबाद के प्राचीन वैभव को चुनौती देता इस का हाईटैक सिटी का हिस्सा गगनचुंबी इमारतों का है. आधुनिक हैदराबाद को देख कर ऐसा लगता ही नहीं कि आप भारत में हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के द्वारा स्थापित शहर के इस हिस्से में आईटी कंपनियों के औफिस हैं. कुछ पार्क व रैस्टोरैंट भी हैं. आधुनिकता के इस सम्मिश्रण को देख कर आंखें चुंधिया जाती हैं.
क्या खरीदें : हैदराबाद प्रसिद्ध है अपने मोतियों के लिए. जांचनेपरखने का तरीका भी दुकानदार ही बताते हैं. हैंडीक्राफ्ट आइटमों, मोती और कीमती रत्नों के जेवर, यहां के राईस पर्ल और बसरा पर्ल सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं. कांच की हैदराबादी चूडि़यां मन मोह लेती हैं. यहां की कढ़ाई की गई हैंडीक्राफ्ट आप लोगों को तोहफे में दे सकते हैं.
भाषा : अधिकांश लोग स्थानीय भाषाओं के अतिरिक्त हिंदी व अंगरेजी समझते व बोलते हैं, इसलिए भाषा की कोई खास दिक्कत नहीं है.
इतिहास : हैदराबाद का इतिहास कुतुबशाही कुल की स्थापना से शुरू हुआ. 1518 में बहमनी राज्य से कुली कुतुबशाह ने सत्ता छीन कर गोलकुंडा का राज्य बसाया. कालांतर में यहां का वैभव देख कर औरंगजेब ने आक्रमण किया और कब्जा कर लिया. औरंगजेब के बाद आसफ शाह प्रथम ने स्वयं को निजाम घोषित किया और फिर हैदराबाद उन्नति करता गया.
शहर में आनेजाने के लिए : हैदराबाद के भ्रमण के लिए आप टैंपो, आटो, साइकिल रिकशा, सिटी बस और कैब का इस्तेमाल कर सकते हैं.

मध्य प्रदेश प्रेम, प्रकृति, परंपरा का अद्वितीय संगम

भारत की हृदयस्थली कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में शेरों की दहाड़ से ले कर पत्थरों में उकेरी गई प्रेम की मूर्तियों का सौंदर्य वहां जाने वाले के मन में ऐसी यादें छोड़ जाता है कि दोबारा जाने के लिए उस का मन ललचाता रहता है.
बांधवगढ़ नैशनल पार्क में टाइगर देखने से ले कर ओरछा के महलों व खजुराहो के मंदिरों की मूर्तियों में आप वास्तविक भारत को खोज सकते  हैं. इस राज्य का इतिहास, भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक विरासत और यहां के लोग इसे भारत के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में से एक बनाते हैं. यहां आने वाले सैलानियों के लिए प्रदेश का टूरिज्म विभाग विशेष तौर पर मुस्तैद रहता है ताकि पर्यटकों को किसी तरह की असुविधा न हो. इस बार मध्य प्रदेश को नैशनल टूरिज्म अवार्ड से सम्मानित किया गया है. मध्य प्रदेश के पर्यटन राज्यमंत्री सुरेंद्र पटवा को दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने सर्वोत्तम पर्यटन प्रदेश का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया.   
दर्शनीय स्थल
मांडू 
खंडहरों के पत्थर यहां के इतिहास की कहानी बयां करते हैं. यहां के हरियाली से भरे बाग, प्राचीन दरवाजे, घुमावदार रास्ते बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं.
रानी रूपमती का महल एक पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है जो स्थापत्य का एक बेहतरीन नमूना है. यहां से नीचे स्थित बाजबहादुर के महल का दृश्य बड़ा ही विहंगम दिखता है, जोकि अफगानी वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. मांडू विंध्य की पहाडि़यों पर 2 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां के दर्शनीय स्थलों में जहाज महल, हिंडोला महल, शाही हमाम और नक्काशीदार गुंबद वास्तुकला के उत्कृष्टतम रूप हैं.
नीलकंठ महल की दीवारों पर अकबरकालीन कला की नक्काशी भी काबिलेतारीफ है. अन्य स्थलों में हाथी महल, दरियाखान की मजार, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, मलिक मुगीथ की मसजिद और जाली महल भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.
धार से 33 और इंदौर से 99 किलोमीटर दूर स्थित मांडवगढ़ (मांडू) पहुंचने के लिए इंदौर व रतलाम नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं. बसों से भी मांडू जाया जा सकता है. नजदीकी एअरपोर्ट (99 किलोमीटर) इंदौर है.
ओरछा 
16वीं व 17वीं शताब्दी में बुंदेला राजाओं द्वारा बनवाई गई ओरछा नगरी के महल और इमारतें आज भी अपनी गरिमा बनाए हुए हैं. स्थापत्य का मुख्य विकास राजा बीर सिंहजी देव के काल में हुआ. उन्होंने मुगल बादशाह जहांगीर की स्तुति में जहांगीर महल बनवाया जो खूबसूरत छतरियों से घिरा है. महीन पत्थरों की जालियों का काम इस महल को एक अलग पहचान देता है.
इस के अतिरिक्त राय प्रवीन महल देखने योग्य है. ईंटों से बनी यह दोमंजिली इमारत है. इस महल की भीतरी दीवारों पर चित्रकला की बुंदेली शैली के चित्र मिलते हैं. राजमहल और लक्ष्मीनारायण मंदिर व चतुर्भुज मंदिर की सज्जा भी बड़ी कलात्मक है. फूल बाग, शहीद स्मारक, सावन भादों स्तंभ, बेतवा के किनारे बनी हुई 14 भव्य छतरियां भी देखने योग्य स्थल हैं. 
यह ग्वालियर से 119 किलोमीटर और खजुराहो से 170 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां छोटा रेलवे स्टेशन है.
सांची
भारत में बौद्धकला की विशिष्टता व भव्यता सदियों से दुनिया को सम्मोहित करती आई है. सांची के स्तूप विश्व विरासत में शुमार हैं. स्तूप, प्रतिमाएं, मंदिर, स्तंभ, स्मारक, मठ, गुफाएं, शिलाएं व प्राचीन दौर की उन्नत प्रस्तर कला की अन्य विरासतें अपने में समाए हुए सांची को वर्ष 1989 में यूनैस्को की विश्व विरासत सूची में शमिल किया गया है. बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र होने के कारण यहां
देशी व विदेशी पर्यटक प्रतिदिन हजारों की संख्या में पहुंचते हैं. 
सांची में सुपरफास्ट रेलें नहीं रुकतीं, इसलिए भोपाल आ कर यहां आना उपयुक्त रहता है. सांची देश के लगभग सभी नगरों से सड़क व रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है.
खजुराहो
खजुराहो के मंदिर पूरे विश्व में आकर्षण का केंद्र हैं. पर्यटक यहां स्थापित भारतीय कला के अद्भुत संगम को देख कर दांतों तले उंगली दबाने से अपने को नहीं रोक पाते. मंदिरों की दीवारों पर उकेरी गई  विभिन्न मुद्राओं की प्रतिमाएं भारतीय कला का अद्वितीय नमूना प्रदर्शित करती हैं. यहां काममुद्रा में मग्न मूर्तियों के सौंदर्य को देख कर  खजुराहो को प्यार का प्रतीक पर्यटन स्थल कहना भी अनुचित नहीं होगा. काममुद्रा के साक्षी इन मंदिरों में प्रतिवर्ष असंख्य जोड़े अपनी हनीमून यात्रा पर यहां आते हैं.
किसी समय इस क्षेत्र में खजूर के पेड़ों की भरमार थी. इसलिए इस स्थान का नाम खजुराहो हुआ. मध्यकाल में ये मंदिर भारतीय वास्तुकला के प्रमुख केंद्र माने जाते थे. वास्तव में यहां 85 मंदिरों का निर्माण किया गया था, किंतु वर्तमान में 22 ही शेष रह
गए हैं. 
मंदिरों को 3 भागों में बनाया गया है. यहां का सब से विशाल मंदिर कंदरिया महादेव मंदिर है. उसी के पास ग्रेनाइट पत्थरों से बना हुआ चौंसठ योगनी मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, घंटाई मंदिर, आदिनाथ और दूल्हादेव मंदिर प्रमुख हैं. मंदिरों की प्रतिमाएं मानव जीवन से जुड़े सभी भावों आनंद, उमंग, वासना, दुख, नृत्य, संगीत और उन की मुद्राओं को दर्शाती हैं. ये शिल्पकला का जीवंत उदाहरण हैं. 
शिल्पियों ने कठोर पत्थरों में भी ऐसी मांसलता और सौंदर्य उभारा है कि देखने वालों की नजरें उन प्रतिमाओं पर टिक जाती हैं. ये कला, सौंदर्य और वासना के सुंदर व कोमल पक्ष को दर्शाती हैं. खजुराहो तो अद्वितीय है ही, इस के आसपास भी अनेक दर्शनीय स्थान हैं जो आप की यात्रा को पूर्णता प्रदान करते हैं. इन में राजगढ़ पैलेस, गंगऊ डैम, पन्ना राष्ट्रीय उद्यान एवं हीरे की खदानें आदि हैं. 
खजुराहो के लिए दिल्ली व वाराणसी से नियमित फ्लाइट उपलब्ध हैं व खजुराहो रेलवे स्टेशन सभी प्रमुख रेल मार्गों से जुड़ा है.
पचमढ़ी
प्राकृतिक सौंदर्य के कारण सतपुड़ा की रानी के नाम से पहचाने जाने वाले पर्यटन स्थल पचमढ़ी की खोज 1857 में की गई थी. यकीन मानिए, आप मध्य प्रदेश के एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल पचमढ़ी जाएंगे तो प्रकृति का भरपूर आनंद उठाने के साथसाथ  तरोताजा भी हो जाएंगे.  सतपुड़ा के घने जंगलों का सौंदर्य यहां चारों ओर बिखरा हुआ है. यहां का वाटर फौल, जिसे जमुना प्रपात कहते हैं, पचमढ़ी को जलापूर्ति करता है. 
सुरक्षित पिकनिक स्पौट के रूप में विकसित अप्सरा विहार का जलप्रपात देखते ही बनता है. प्रियदर्शनी, अप्सरा विहार, रजत प्रपात, राजगिरि, डचेस फौल, जटाशंकर, हांडी खोह, धूपगढ़ की चोटी और पांडव गुफाएं यहां के प्रमुख स्थल हैं. यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन पिपरिया है. यहां भोपाल और पिपरिया से सड़क मार्ग द्वारा भी जाया जा सकता है. निकटतम हवाई अड्डा  भोपाल 210 किलोमीटर की दूरी पर है.
बांधवगढ़़
राजशाहों का पसंदीदा शिकारगाह रहा है बांधवगढ़. प्रमुख आकर्षण जंगली जीवन, बांधवगढ़ नैशनल पार्क में शेर से ले कर चीतल, नीलगाय, चिंकारा, बारहसिंगा, भौंकने वाले हिरण, सांभर, जंगली बिल्ली, भैंसे से ले कर 22 प्रजातियों के स्तनपायी जीव और 250 प्रजातियों के पक्षियों के रैन बसेरे हैं. 
448 स्क्वायर किलोमीटर में फैला बांधवगढ़ भारत के नैशनल पार्कों में अपना प्रमुख स्थान रखता है. यहां पहाड़ों पर 2 हजार साल पुराना बना किला भी देखने लायक है. बांधवगढ़ प्रदेश के रीवा जिले में स्थित है. यहां आवागमन के सभी साधन देश भर से उपलब्ध हैं. 
नजदीकी हवाई अड्डा जबलपुर में है. यह रेल मार्ग से भी जबलपुर, कटनी, सतना से जुड़ा हुआ है.
कान्हा किसली
940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विकसित कान्हा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यान है. इसे देखने के लिए किराए पर जीप मिल जाती है. कान्हा में वन्यप्राणियों की 22 प्रजातियों के अलावा 200 पक्षियों की प्रजातियां हैं. यहां बामनी दादर एक सनसैट पौइंट है. यहां से सांभर, हिरण, लोमड़ी और चिंकारा जैसे वन्यप्राणियों को आसानी से देखा जा सकता है.  जबलपुर, बिलासपुर और बालाघाट से सड़क मार्ग से कान्हा पहुंचा जा सकता है. नजदीकी विमानतल जबलपुर में है.

राजशाही शान राजस्थान

ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक सौंदर्य बिखेरती अरावली पर्वत शृंखलाओं के बीच बसे राजस्थान की मरुभूमि आज भी शौर्य और वैभव
के गीत गा रही है. मीलों फैले सुनहरी रेत के धोरे, कलात्मक राजप्रासाद, अजेय दुर्ग, बावडि़यां, छतरियां, स्मारक, अद्भुत हवेलियों और महलों के वास्तुशिल्प की कलात्मकता के साथ राजपूती वीरता की कहानियां अनायास ही पर्यटकों को आकर्षित कर लेती हैं. सदैव ही राजस्थानी आभूषण व कपड़े पर्यटकों को विशेष रूप से लुभाते रहे हैं.
दर्शनीय स्थल
अजमेर
अजमेर एक तरह से अंधविश्वास का शहर है पर फिर भी यहां विभिन्न ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थल हैं.
दरगाह : तारागढ़ पहाड़ी के नीचे स्थित यहां प्रांगण में रखे 2 विशालकाय देग विशेष आकर्षण हैं साथ ही, अकबरी मसजिद तथा शाहजहानी मसजिद में सफेद संगमरमर की परिष्कृत नक्काशी मन मोह लेती है.
अढ़ाई दिन का झोपड़ा : खंडहर के रूप में एक उत्कृष्ट इमारत अढ़ाई दिन के झोपड़े के नाम से प्रसिद्ध है. यह भारतीय इसलामी वास्तुशिल्प का बेहतरीन नमूना है. बताया जाता है कि इसे निर्मित होने में केवल ढाई दिन लगे थे.
तारागढ़ का किला : 800 फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित इस किले से शहर को देखा जा सकता है. लोक परंपरा में इसे गठबीठली भी कहा गया है. मुगलकाल में यहां सैन्य गतिविधियां होती थीं, अंगरेजों ने इस का इस्तेमाल सैनेटोरियम के रूप में किया.
संग्रहालय : यह अकबर का शाही निवास था, जिसे संग्रहालय में तबदील कर दिया गया. यहां राजपूतों के कवचों व उत्कृष्ट मूर्तियों का समृद्ध भंडार है.
सर्किट हाउस : कृत्रिम आनासागर झील के ऊंचे किनारे पर पूर्व में अंगरेजी रैजिडैंसी रहा सर्किट हाउस भी दर्शनीय है.
पुष्कर झील : अजमेर से 13 किलोमीटर दूर रेगिस्तान के किनारे स्थित व 3 तरफ से पहाडि़यों से घिरी हुई यह झील नाग पहाड़ी से अजमेर से पृथक हो जाती है.
खरीदारी : समकालीन डिजाइनों वाले सोने व चांदी के अद्भुत आभूषण, प्राचीन वस्तुएं, कलाकृतियां, रंगीन बंधेज की साडि़यां एवं मिठाई में प्रसिद्ध सोहन हलवा खरीदा जा सकता है.
कैसे पहुंचें : जयपुर के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से 132 किलोमीटर दूर है अजमेर. यह महत्त्वपूर्ण शहरों के साथ सड़क एवं रेल सेवाओं से भी जुड़ा है. 
अलवर
किला : शहर से 1 हजार फुट और समुद्रतल से 1,960 फुट की ऊंचाई पर स्थित किला उत्तर से दक्षिण तक 5 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम तक 1.6 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है. बाबर, अकबर, जहांगीर एवं महाराणा प्रताप के शौर्य को इस किले ने नजदीकी से देखा है. किले में अनेक द्वार हैं जिन की नक्काशी देखते ही बनती है.
सिटी पैलेस : 18वीं शताब्दी के इस महल में राजपूत व मुगल शैली का सुव्यवस्थित समायोजन है. इस के पीछे कृत्रिम झील सागर है जिस के तट पर कई मंदिर हैं. असाधारण बंगाली छत व मेहराबों से युक्त अद्भुत मूसी की छतरी भी यहां स्थित है.
राजकीय संग्रहालय : 18वीं एवं 19वीं सदी के मुगल एवं राजपूत चित्र, अरबी, फारसी, उर्दू और संस्कृत की कई पांडुलिपियां जैसे गुलिस्तां (गुलाबों का बगीचा), वक्त-ए-बाबरी (मुगल सम्राट बाबर की आत्मकथा) और बोस्तां (झरनों का बगीचा) आदि संग्रहालय में हैं. यहां अलवर शैली के कलाकारों द्वारा चित्रित महाकाव्य महाभारत की प्रति भी है.
पुर्जन विहार (कंपनी गार्डन) : 1868 में महाराज शिवदान सिंह द्वारा बनवाए गए इस मनोरम बगीचे को शिमला की संज्ञा दी जाती है. अलवर से 10 किलोमीटर दूर विजय मंदिर पैलेस में जाने से पहले कंपनी गार्डन के सचिव की अनुमति लेनी आवश्यक है.
सिलिसेड झील : अलवर से 13 किलोमीटर दूर पैलेस होटल, 6 किलोमीटर की दूरी पर जयसमंद झील लोकप्रिय एवं मनोरम स्थल है.
सरिस्का : अलवर से 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, अरावली की सुरम्य घाटी में झूलता यह लंबा घना वृक्षयुक्त अभयारण्य है. इस बाघ अभयारण्य को 1955 में प्रोजैक्ट टाइगर योजना के अंतर्गत मान्यता प्रदान की गई.
जोधपुर
16वीं शताब्दी में मारवाड़की राजधानी रहा जोधपुर मुख्य व्यापारिक केंद्र के रूप में प्रसिद्ध रहा है. यह राजसी गौरव की जीवंत मिसाल है.
मेहरानगढ़ किला : 125 मीटर ऊंची पहाड़ी पर  5 किलोमीटर लंबा भव्य मेहरानगढ़ किला और कई विराट इमारतें स्थित हैं. यह किला ‘मयूर ध्वज’ के नाम से प्रसिद्ध है. बाहर से अदृश्य, घुमावदार सड़कों से जुड़े इस किले के 4 द्वार हैं. किले के भीतर मोतीमहल, फूलमहल, शीशमहल, सिलेहखाना और दौलतखाना आदि खूबसूरत इमारतें हैं. 
इन जगहों पर रखे राजवंशों के साजोसामान का विस्मयकारी संग्रह देखा जा सकता है. इस के अतिरिक्त पालकियां, हाथी के हौदे, विभिन्न शैलियों के लघुचित्र, संगीत वाद्य, पोशाकें व फर्नीचर का अनूठा संकलन है.
उम्मेद भवन पैलेस : 20वीं सदी का एकमात्र बलुआ पत्थर से निर्मित यह उम्मेद भवन पैलेस अकाल राहत परियोजना के अंतर्गत निर्मित हुआ. यह 16 वर्ष में बन कर तैयार हुआ.
ओंसिया : जोधपुर बीकानेर राजमार्ग की दूसरी दिशा पर जोधपुर से 65 किलोमीटर की दूरी पर रेगिस्तान में ओंसिया मरुधान स्थित है. रेगिस्तान विस्तार, रेतीले टीले व छोटेछोटे गांवों के दृश्य देखने लायक हैं.
धवा : जोधपुर से45 किलोमीटर दूरी पर एक वन्यप्राणी उद्यान है जिस में भारतीय मृग सब से अधिक संख्या में हैं.
कैसे पहुंचें : दिल्ली, मुंबई, उदयपुर व जयपुर से वायुमार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है. देश के प्रमुख शहरों के साथ सीधी रेल सेवाएं उपलब्ध हैं. सड़क द्वारा भी सुगमता से पहुंचा जा सकता है.
उदयपुर
उदयपुर को मेवाड़ के रतन के नाम से जाना जाता है. हरीभरी पहाडि़यों से घिरे झीलों के शहर उदयपुर की स्थापना 16वीं शताब्दी में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह ने की थी.
सिटी पैलेस : पहाड़ी पर झील के उप मुख्यद्वार, दीवारों से घिरा वास्तुकला का चमत्कार सिटी पैलेस किला गलियारों, मंडपों, छतों, प्रांगणों, कमरों व लटके बगीचों का समूह है.
3 मेहराबों का त्रिपोलिया द्वार मुख्य प्रवेश द्वार है जिस की 8 संगमरमर की ड्योढि़यां हैं.
मोर चौक : शीशे की उत्कृष्ट पच्चीकारी के लिए मोर चौक प्रसिद्ध है.
दरबार हौल : यहां के दरबार हौल में अत्यंत बेशकीमती, विशालकाय झाड़फानूस और महाराणाओं के आदमकद त्रिआयामी तैलचित्रों की शानदार शृंखला देखी जा सकती है.
सहेलियों की बाड़ी : यह एक बगीचा है. इस अलंकृत बगीचे में शाही घराने की महिलाएं सैर करने आया करती थीं. यहां मनमोहक
4 तालों में कई फौआरे हैं, तराशी हुई छतरियां व संगमरमर के हाथी हैं.
कैसे पहुंचें : जोधपुर, जयपुर, औरंगाबाद, मुंबई व दिल्ली से वायुसेवाएं उपलब्ध हैं. मुख्य शहरों से सीधी रेल सेवा द्वारा जुड़ा है. अनेक स्थानों के साथ बस सेवाओं से भी जुड़ा है.
माउंट आबू
ऋषियों, मुनियों की तपोभूमि और अरावली पर्वत शृंखला के दक्षिणी छोर पर स्थित माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र पर्वतीय स्थल है. किवदंती है कि आबू हिमालय का पुत्र है. इस शहर का नाम अर्बुदा नामक सर्प पर पड़ा है.
नक्की झील : पहाडि़यों के बीच एक सुरम्य छोटी सी झील, झील के चारों ओर चट्टान की अजीब सी आकृति दिलचस्पी का केंद्र है. टोड राड विशेषकर उल्लेखनीय है जो वास्तविकता में मेंढक के आकार की लगती है.
सनसैट पौइंट : माउंट आबू में सनसैट पौइंट, हनीमून पौइंट, बाग व बगीचों के अलावा गुरुशिखर, जो अरावली पर्वत शृंखला की सब से ऊंची चोटी है, से माउंट आबू के देहाती परिवेश का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है.
ट्रैवोर टैंक : माउंट आबू से 5 किलोमीटर दूर यह स्थान घनी वृक्षयुक्त पहाडि़यों के कारण मंत्रमुग्ध कर देता है. पक्षीप्रेमियों के लिए आनंद- दायक स्थल है. पैंथर और भालू को देखने का सब से अधिक मौका इसी स्थल पर संभव है.
कैसे पहुंचें : यहां से 185 किलोमीटर पर उदयपुर का हवाईअड्डा सब से नजदीक है. 29 किलोमीटर की दूरी पर आबू रोड नजदीकी रेलवे स्टेशन है. आगे की यात्रा के लिए जीप, टैक्सी व बसें किराए पर ली जा सकती हैं.

घुमक्कड़ों की चहेती दिल्ली

दिल्ली पिछले कई सालों से बतौर राजधानी देश की सियासत का केंद्र तो है ही, साथ में अपने ऐतिहासिक महत्त्व के चलते देशीविदेशी पर्यटकों को भी लुभाती है. अपने 102 साल पूरे कर चुकी दिल्ली आज जितनी पुरानी है उतनी आधुनिक भी है. इन सालों में इस ने सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में बेहतर परिवर्तनों के साथ देशीविदेशी पर्यटकों के दिलों में खासी जगह भी बनाई है.
दिल्ली में पर्यटन का मजा ही कुछ और है. यहां की प्राचीन इमारतें, लजीज व्यंजन और फैशन पर्यटकों को विशेषतौर पर आकर्षित करते हैं. यहां घूमने के लिए जहां कुतुबमीनार, लाल किला, पुराना किला, इंडिया गेट, चिडि़याघर, डौल्स म्यूजियम, जामा मसजिद, चांदनी चौक, नई सड़क, संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, राष्ट्रीय संग्रहालय, प्रगति मैदान, जंतरमंतर, लोटस टैंपल, बिड़ला मंदिर, अक्षरधाम मंदिर हैं वहीं पुरानी दिल्ली की परांठे वाली गली के परांठे, लाजपत नगर की चाट और शौपिंग व इंटरटेनमैंट के लिए शानदार मौल व मल्टीप्लैक्स भी हैं.
ऐतिहासिक धरोहरें
इंडिया गेट : दिल्ली में होने वाली ज्यादातर फिल्मों की शूटिंग का पहला शौट इंडिया गेट में ही संपन्न होता है. राजपथ पर स्थित इंडिया गेट को दिल्ली का सिग्नेचर मार्क भी कह सकते हैं. अन्ना के अनशन और आंदोलन के दौरान भी इस जगह ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी. इस का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्ध में मारे गए 90 हजार भारतीय सैनिकों की स्मृति में कराया गया था. 160 फुट ऊंचा इंडिया गेट दिल्ली का पहला दरवाजा माना जाता है. जिन सैनिकों की याद में यह बनाया गया था उन के नाम इस इमारत पर अंकित हैं. इस के अंदर अखंड अमर जवान ज्योति जलती रहती है. दिल्ली का पर्यटन यहां आए बिना अधूरा है.
पुराना किला : पुराना किला आज दिल्ली का लोकप्रिय पिकनिक स्पौट बन कर उभर रहा है. यहां हरी घास और पुराने खंडहर हैं तो वहीं एक बोट क्लब भी है जहां सैलानी अपने परिवार के साथ नौकायन का आनंद उठाते हैं. इस में प्रवेश करने के 3 दरवाजे हैं. हुमायूं दरवाजा, तलकी दरवाजा और बड़ा दरवाजा. हालांकि वर्तमान में सिर्फ बड़े दरवाजे को प्रयोग में लाया जाता है.
जंतरमंतर : यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति का नायाब नमूना है. जंतरमंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है. ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं. यहां बना सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से समय और ग्रहों की स्थिति की सूचना देता है.
कुतुबमीनार : इस मीनार को देख कर स्मृतिपटल पर पीसा की झुकी हुई मीनार का चित्र उभर कर सामने आता है. भले ही इस मीनार के अंदर जाने के दरवाजे पर्यटकों के लिए बंद करा दिए गए हों पर यहां आने वाले सैलानियों की तादाद में कोई कमी नहीं आई है. यह मीनार मूल रूप से सातमंजिला थी पर अब यह पांचमंजिला ही रह गई है. इस मीनार की कुल ऊंचाई 75.5 मीटर है और इस में 379 सीढि़यां हैं. परिसर में और भी कई इमारतें हैं जो अपने ऐतिहासिक महत्त्व व वास्तुकला से सैलानियों का मन मोहती हैं. मीनार के करीब में चौथी शताब्दी में बना लौहस्तंभ भी दर्शनीय है.
 
दिल्ली के गार्डन
दिल्ली शहर ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जितना मशहूर है उतना ही दुर्लभ किस्म के पुष्पों से भरे उद्यानों के लिए भी जाना जाता है. यहां कई बेहतरीन गार्डन हैं जहां आ कर लगता है मानो किसी हिल स्टेशन पर आ गए हों. मुगल गार्डन की बात करें तो यहां तकरीबन 125 प्रकार के गुलाबों की खुशबू आप के दिल में उतर जाएगी. राष्ट्रपति भवन में स्थित यह गार्डन प्रकृतिप्रेमी पर्यटकों का पसंदीदा ठिकाना है.
13 एकड़ में फैले इस विशाल गार्डन में मुगलकाल व ब्रिटिशकाल की शैली का अद्भुत संगम परिलक्षित होता है. पर्ल गार्डन और बटरफ्लाय गार्डन जैसे कई बगीचों से मिल कर बना मुगल गार्डन 15 फरवरी से 15 मार्च तक आमजन के लिए खुलता है.
इसी तरह लोदी गार्डन भी खूबसूरत फौआरों, तालाब व रंगबिरंगे फूलों से सजा है. गार्डन में राष्ट्रीय बोनसाई पार्क भी है. कभी लेडी विलिंगटन पार्क के नाम से मशहूर रहे लोदी गार्डन में पेड़ों की विभिन्न प्रजातियों समेत विविध किस्म के पक्षियों को देखना मजेदार अनुभव होता है. लोदी गार्डन के अलावा तालकटोरा गार्डन में रंगबिरंगे फूलों के साथसाथ स्टेडियम भी है जहां खेलों और कार्यक्रमों का समयसमय पर आयोजन होता रहता है.
संग्रहालय : शिल्प संग्रहालय यानी क्राफ्ट म्यूजियम में भारत की समृद्ध हस्तशिल्प कला को निहायत खूबसूरती से सजाया गया है. यहां अलगअलग जगहों से आए शिल्पकार प्रदर्शनियों में भाग लेते हैं. यहां आदिवासी और ग्रामीण शिल्प व कपड़ों की गैलरी हैं. अगर आप को हर राज्य के आर्टिस्टों के हाथों से बनी चीजें देखने और खरीदने का शौक है तो प्रगति मैदान के गेट नंबर 2 के पास स्थित क्राफ्ट म्यूजियम आप के लिए ही है. आम विजिटर के लिए यहां प्रवेश हेतु 10 रुपए का टिकट है जबकि स्कूल और फिजिकली डिसएबल्स के लिए कोई टिकट नहीं है. सोमवार को यह बंद रहता है.
शिल्प संग्रहालय के पास ही डौल संग्रहालय भी है. विभिन्न परिधानों में सजी गुडि़यों का यह संग्रह, विश्व के बड़े संग्रहों में से एक है. बहादुरशाह जफर मार्ग पर नेहरू हाउस की बिल्डिंग में स्थित इस संग्रहालय में 85 देशों की करीब साढ़े 6 हजार से अधिक गुडि़यों का अद्भुत संग्रह है. वहीं, 1960 में स्थापित राष्ट्रीय संग्रहालय में लघु चित्रों का संग्रह है. इस में बनी संरक्षण प्रयोगशाला में छात्रों को ट्रेनिंग दी जाती है.
साउथ दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित रेल संग्रहालय भारतीय रेल के 140 साल के इतिहास की अभूतपूर्व झांकी पेश करता है. यहां रेल इंजनों के अनेक मौडल सहित देश का प्रथम रेल मौडल और इंजन भी देखा जा सकता है. यहां बच्चों के लिए एक टौय ट्रैन भी है.
चिडि़याघर : दिल्ली का चिडि़याघर पुराने किले के नजदीक है. इस विशाल चिडि़याघर में जानवरों और पक्षियों की हजारों प्रजातियां और सैकड़ों प्रकार के पेड़ हैं. यहां दुनियाभर से लाए गए पशुपक्षियों को देखना रोचक लगता है. यह गरमियों में सुबह 8 से शाम 6 बजे तक और सर्दियों में सुबह 9 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है.
 
खाना, खरीदारी और मनोरंजन स्थल : दिल्ली में घुमक्कड़ों के लिए सिर्फ स्मारक और म्यूजियम ही नहीं हैं बल्कि मौजमस्ती, शौपिंग, इंटरटेनमैंट के साथ खानेपीने के भी अनेक विकल्प मौजूद हैं. बात खरीदारी की करें तो सब से पहला नाम कनाट प्लेस यानी सीपी मार्केट का आता है. दिल्ली के इस केंद्र बिंदु में सभी देशीविदेशी ब्रैंड्स के शोरूम तो हैं ही, साथ ही अंडरग्राउंड पालिका बाजार भी है, जो पूरी तरह से वातानुकूलित है. खरीदारी के साथ यहां खाने का भी पूरा इंतजाम है. यहां के इनर सर्किल में लगभग सभी अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंड के कपड़ों के शोरूम, रेस्टोरैंट और बार हैं. पास में ही जनपथ बाजार है जहां कई तरह का एंटीक सामान मिल जाता है.
इसी तरह पुरानी दिल्ली का चांदनी चौक इलाका, जहां विदेशी सैलानियों की भारी तादाद दिखती है, खानेपीने और खरीदारी के लिए मुफीद जगह है. दिल्ली आने वाले किसी भी व्यक्ति की यात्रा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक वह चांदनी चौक न आए. यहां की परांठे वाली गली में तो जवाहर लाल नेहरू से ले कर अक्षय कुमार जैसी हस्तियां परांठों का लुत्फ उठा चुकी हैं.
अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें