वर्ष 2015 का गणतंत्र दिवस कई मानों में खास था. पहला, एनडीए सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी की अगुआई में मनाया गया, दूसरा, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा गणतंत्र परेड में बहैसियत मुख्य अतिथि शामिल हुए और तीसरे, राजपथ पर बस्तर के दशहरे की झांकी का प्रदर्शन किया गया. बस्तर और वहां के आदिवासी सभी के लिए हमेशा ही जिज्ञासा का विषय रहे हैं. वजह, उन का मुख्यधारा से कटे होना है. मुख्यधारा, रोशनी और विकास सहित तमाम सामयिक विषयों व प्रसंगों से मुंह मोड़े बस्तर के आदिवासी आज भी अपनी जीवनशैली, तीजत्योहारों और परंपराओं में बंधे हैं. जिसे लोग आधुनिकता कहते हैं वह बस्तर की सीमाएं छू कर वहीं ठहर सी जाती है.

बस्तर के आदिवासियों की एक खूबी यह भी है कि न तो वे बाहर की दुनिया में झांकते हैं न ही किसी बाहरी को अपनी दुनिया में जरूरत से ज्यादा झांकने देते हैं. लेकिन बीते 5-10 सालों से उन की यह जिद खत्म हो रही है. इस के लिए एक खूबसूरत बहाना बस्तर का दशहरा है जिस का राज्य सरकार और छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल खासा प्रचार करते हैं.

क्या है खास

बस्तर के दशहरे को ले कर आम लोगों की उत्सुकता बेवजह नहीं है. बस्तर का दशहरा वाकई खास और शेष देश के दशहरों से अलग होता है. यह पर्व एक, दो या तीन दिन नहीं, बल्कि पूरे 75 दिन मनाया जाता है. तय है कि यह दुनिया का सब से ज्यादा अवधि तक मनाया जाने वाला त्योहार है जिस की शुरुआत सावन के महीने की हरियाली अमावस से होती है. बस्तर के दशहरे की दूसरी खासीयत यह है कि बस्तर में गैर पौराणिक देवी की पूजा होती है. आदिवासी लोग शक्ति के उपासक होते हैं. सच जो भी हो, इन विरोधाभासों से परे बस्तर के आदिवासी हरियाली अमावस के दिन लकडि़यां ढो कर लाते हैं और बस्तर में तयशुदा जगह पर इकट्ठा करते हैं. इसे स्थानीय लोग पाट यात्रा कहते हैं. बस्तर कभी घने जंगलों के लिए जाना जाता था, आज भी उस की यह पहचान कायम है और सागौन व टीक जैसी कीमती लकडि़यों की यहां इतनी भरमार है कि हर एक आदिवासी को करोड़पति कहने में हर्ज नहीं. इस त्योहार पर 8 पहियों वाला रथ आकर्षण का केंद्र होता है.

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