अमेरिका प्रवास के दौरान हमारे पर्यटन स्थलों की सूची में नासा भी था. मैं व मेरे पति न्यूयार्क से फ्लोरिडा पहुंचे. वहां हमें लैक मेरी में अपने परिचित के घर रुकना था. दूसरे दिन वहां जाने के लिए हम ने बस में सीट बुक करा ली. बस को 8 बजे निकलना था. लगभग आधा घंटा पहले हम उस स्थान पर पहुंच गए जहां से बस को चलना था. वहां ग्रौसरी की अच्छी बड़ी शौप थी, सुबह ही वह खुल भी गई थी. अभी समय था इसलिए हम उस शौप में घुस गए. हम ने वहां से कुछ स्नैक्स के पैकेट यह सोच कर खरीद लिए कि पूरे दिन की घुमक्कड़ी में शायद वे हमारे काम आएं. बाहर आए तो सामने से बस आती दिखाई दी. हम ने नंबर चैक किया तो पाया, यह वही बस थी जिस से हमें जाना है. बस में बैठते ही वह चल पड़ी. यहां से सिर्फ हमें ही चढ़ना था. बीचबीच में कुछ जगहों पर रुक कर कुछ और यात्रियों को लिया. ड्राइवर कम कंडक्टर तथा गाइड हमें बीचबीच में पड़ते स्थानों के बारे में बताते जा रहे थे. लगभग डेढ़ घंटे बाद उस ने बस ‘एस्ट्रोनौट हौल औफ फेम’ के सामने रोकी तथा यात्रियों को घूमने के लिए 1 घंटे का समय दिया.

एस्ट्रोनौट हौल औफ फेम के अंदर प्रवेश करते ही एक बड़ी सी एस्ट्रोनौट अर्थात अंतरिक्षयात्री की मूर्ति दिखाई दी. अंदर एक बड़े हौल में उन के द्वारा समयसमय पर पहने जाने वाले कपड़े, स्पेस शटल के मौडल, पहली बार चंद्रमा पर उतरे मानव द्वारा वहां पहली बार चलाई गई गाड़ी का मौडल डिस्प्ले किया हुआ था. इस के साथ ही स्पेस की मिट्टी तथा अन्य कई तरह की जानकारियां वहां उपलब्ध थीं. हौल बहुत बड़ा नहीं था, इसलिए घूमने में बहुत समय नहीं लगा. वहां एक छोटे से रैस्टोरैंट के अतिरिक्त वाशरूम की भी सुविधा थी. हम तरोताजा हो कर बस में बैठ गए, धीरेधीरे सभी यात्री आ गए. बस चल दी. ड्राइवर ने हमें बताया कि अब हमारा अगला स्टौप कैनेडी स्पेस सैंटर होगा. कैनेडी स्पेस सैंटर जाने के लिए हमें इंडियाना रिवर को क्रौस करना पड़ा. ड्राइवर ने कैनेडी स्पेस सैंटर के पास बने पार्किंग स्थल पर बस पार्क की तथा शाम साढ़े 5 बजे तक लौट कर आने के लिए कहा. लगभग 12 बज रहे थे. हम आगे बढ़े, सामने नासा की भव्य इमारत देख कर रोमांचित हो उठे. जिस का नाम न जाने कितनी बार सुना था उसे आज देखने जा रहे थे. हम अंदर प्रविष्ट हुए तो हमें सूचना केंद्र दिखाई दिया. वहां उपस्थित सज्जन से हम ने बुकलेट लेते हुए पूछा, ‘‘पहले क्या देखें?’’ उस ने हम से आईमैक्स थिएटर देखने के लिए कहा.

शटल लौंच का अनूठा अनुभव

हमारा अगला दर्शनीय स्थल शटल का अनुभव था. हौल में जाने से पहले उन्होंने हम से हमारा बैग और अन्य चीजें रखने के लिए कहा. इस के लिए उन्होंने हमें एक लौकर दिया. उस में सामान रख कर हम अंदर गए. पहले हमें एक हौल में बिठा कर शटल लौंच ऐक्सपीरिएंस के बारे में जानकारी दी गई. इस के बाद हमें एक दूसरे हौल में ले जाया गया. वहां हमें ग्रुप में बांट दिया गया. उस के बाद कुछ निर्देशों के बाद हमें एक कुरसी पर बैठने का निर्देश दिया गया. 4-4 कुरसियों का एक रौकेटनुमा केबिन था. केबिन में घुसते ही दरवाजे लौक हो गए तथा हमें बैल्ट बांधने का आदेश दिया गया. इस में एक इंजीनियर था, एक नेवीगेटर, एक पायलट तथा एक कमांडर. हमें एनाउंसर के निर्देश के आधार पर अपना यान संचालित करना था. हम ने मोटर, सिमुलेटर थ्रिल राइड के द्वारा शटल लौंच का अनुभव किया. इस क्रम में हमारा यान कभी नदीनालों से होता हुआ पहाड़ से टकराता प्रतीत होता तो कभी स्पेस में चांदतारों के बीच घूमता महसूस होता. हमें पता था कि हमारा यान कहीं नहीं टकराएगा. हम स्पेस या अर्थ में वास्तव में नहीं घूम रहे हैं बल्कि एक केबिन में बैठे सिर्फ उस का एहसास कर रहे हैं पर फिर भी लाइट और साउंड इफैक्ट के कारण हमारी हार्टबीट बढ़ गई थी. जब शो समाप्त हुआ तब लगा हम ने बाहर बोर्ड पर लिखी वार्निंग की ओर ध्यान क्यों नहीं दिया, जिस में लिखा था कि जिन को हार्ट प्रौब्लम हो, या जिन को ब्लडप्रैशर हो या बैक या नैक प्रौब्लम या कोई भी ऐसी बीमारी जो इस प्रकार के अनुभव से बढ़ जाए, वह इस में न बैठे. हम दोनों को ही ब्लडप्रैशर की समस्या थी. कुछ हुआ तो नहीं पर अगर कुछ हो जाता तो इस अनजान जगह में…सोच कर सिहर गए पर फिर लगा, जब घूमने निकले हैं तो डर क्यों?

शटल ऐक्सप्लोरर

हम शटल ऐक्सप्लोरर में गए जहां एक रौकेट का मौडल था. उस में रौकेट के अंदर के भागों को दर्शाया गया. उस के अंदर जाने के बाद ऐसा अनुभव हो रहा था कि मानो हम वास्तविक रौकेट के अंदर के भागों का अवलोकन कर रहे हैं.

स्पेस सैंटर टूर स्टौप

अब हम नासा के अन्य भागों को घूमने के लिए स्पेस सैंटर टूर स्टौप पर गए जहां से नासा के द्वारा चलाई जा रही बस में बैठ कर अन्य स्थानों के अवलोकनार्थ हमें जाना था. लंबी कतार थी, गरमी भी काफी थी. तभी एक हलकी सी बौछार ने हमें गरमी से राहत दी. ऊपर देखा तो पाया जगहजगह पर ऐसे फौआरे लगे हैं जो यात्रियों के ऊपर पानी का हलका सा छिड़काव करते हुए उन को गरमी से राहत पहुंचा रहे हैं. नंबर आने पर हम बस में सवार हुए. उसी समय हम ने देखा कि व्हीलचेयर को बस में चढ़ाने के लिए बस से एक स्लाइडर नीचे आया तथा व्हीलचेयर के चढ़ते ही वह अंदर चला गया. यह देख कर बहुत अच्छा लगा. वृद्ध और विकलांग लोगों के लिए वह बहुत अच्छी व्यवस्था थी. इस के द्वारा बिना किसी परेशानी के वे भी बस में सवार हो गए. सब के अंदर बैठते ही बस चल दी. उस ने हमें रौकेट लौंच कौंप्लैक्स ‘39 औब्जर्वेशन गैंट्री’ में उतारा.

39 औब्जर्वेशन गैंट्री

यहां पहले हमें एक फिल्म के जरिए रौकेट लौंच की जानकारी दी गई, उस के बाद हम लौंच पैड पर चढ़े जहां से हम ने क्राउलर वे तथा व्हीकल एसैंबली बिल्ंिडग देखने का आनंद लिया.

अपोलो सैटर्न फिफ्थ

39 औब्जर्वेशन गैंट्री को देखने के बाद हम ने बस पकड़ी तो उस ने हमें ‘अपोलो सैटर्न फिफ्थ’ पर उतारा. वहां हम ने एक बड़े हौल में प्रवेश किया. उस हौल में मशीनें लगी हुई थीं जिन के द्वारा लौंच किए रौकेट को कंट्रोल किया जाता है. वह फायरिंग रूम थिएटर था जिस के द्वारा अपोलो के लौंच का प्रसारण किया जा रहा था जो पहली बार चंद्रमा पर उतरा था. वैसे तो इस तरह के दृश्य टीवी पर मैं ने कई बार देखे हैं, लगभग हर बार जब भी किसी रौकेट को लौंच किया जाता है पर अपनी आंखों से उन मशीनों को देखना अपनेआप में अद्भुत था.

इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन सैंटर

अब हमारा दूसरा स्टौप ‘इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन सैंटर’ था. वहां बड़ीबड़ी मशीनें लगी हुई थीं. दरअसल, वहां रौकेट के विभिन्न भागों के निर्माण का काम चल रहा था. वह एक बड़ा प्रोजैक्ट था जो हमारे टूर प्रोजैक्ट का एक हिस्सा था. उन भागों को हम प्रोजैक्ट के चारों ओर बने पथगामी मार्ग से ही देख सकते थे, अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी. एक स्टौप से दूसरे स्टौप पर जाते हुए हम ने नासा हैडक्वार्टर भी देखा जिस में लगभग 6 हजार कर्मचारी काम करते हैं. वह काफी बड़ी एवं भव्य इमारत है. इस के साथ ही दूर से बस के द्वारा हम ने वे स्थान भी देखे जहां लौंचिंग पैड बने हुए हैं, जहां से स्पेस शटल को लौंच किया जाता है. पर्यटकों को वहां जाने की सुविधा नहीं थी. यह जगह एटलांटिक ओशन के पास बनी हुई है. अब हम वापस स्पेस सैंटर टूर स्टौप पर आ गए. इस समय तक भूख काफी लग आई थी. हम वहीं बने रैस्टोरैंट में बैठ गए. संतुष्ट मन से खापी कर तथा थोड़ा आराम करने के बाद बाहर आए तो एक जगह एस्ट्रोनौट के कपड़े पहना मौडल बना हुआ था पर सिर वाली जगह खाली थी, कुछ लोगों को फोटो खिंचवाते देखा तो हम ने भी एकदूसरे का फोटो खींच लिया. समय बाकी था. हम वहीं बने रौकेट गार्डन में चले गए. वहां पर एक बहुत बड़े स्पेस में रौकेट के विभिन्न मौडल बने हुए थे. कुछ देर वहां बैठे और घूमघूम कर देखते रहे. साढ़े 5 बज रहे थे. हम ने नासा पर अंतिम बार नजर डाली तथा बाहर निकल कर बस में बैठ गए.

यात्रियों के बैठते ही बस चल पड़ी. जहां हम सुबह एक आस ले कर चले थे उस आस से तृप्त हो जाने की खुशी तथा एक अनोखा एहसास ले कर लौट रहे थे. यद्यपि शरीर थक कर चूर हो गया था जबकि मन सारी यादों, बातों को मन ही मन दोहरा रहा था. बस ड्राइवर जहां सुबह से लगातार जानकारी देता जा रहा था, अब चुप था. अपनी मंजिल आने पर यात्री उतरते तथा अपरिचित बन जाते. हम भी संतुष्ट मन से अपने स्टौप पर उतरे. नई यादों और अनुभवों के साथ हमारा दिन खुशनुमा हो गया था.

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