किसी मौल में बैठ कर शास्त्रीय संगीत का मजा लिया जा सकता है, किसी वातानुकूलित हौल या औडिटोरियम में देख कर भी आनंद लिया जा सकता है लेकिन वाकई अगर शास्त्रीय नृत्य और संगीत का सुख महसूस करना है तो सिरपुर से ज्यादा सटीक जगह और खूबसूरत मौका, सिरपुर अंतर्राष्ट्रीय नृत्य एवं संगीत महोत्सव से बेहतर कोई नहीं. पिछले 3 सालों से न केवल देश से, बल्कि विदेशों से भी कला और संगीतप्रेमी सिरपुर महोत्सव में आ कर शास्त्रीय गायन व नृत्य का लुत्फ उठा रहे हैं. इस की वजह यातिनाम कलाकारों की प्रस्तुतियों के साथसाथ ऐतिहासिक महत्त्व वाला व नैसर्गिक रूप में सुंदर शहर सिरपुर भी है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 85 किलोमीटर दूर बसा सिरपुर एक ऐसा शहर है जिस में लगभग सारी संस्कृतियों के एकसाथ दर्शन होते हैं. महानदी किनारे बसे इस शहर की छटा अद्भुत है. शहर का प्राचीनतम नाम श्रीपुर उल्लेखित है. पांडुवंश की राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र रहे सिरपुर में 7वीं सदी में चीन के यातिनाम यात्री पर्यटक ह्वेनसांग का आना एक ऐतिहासिक घटना थी.

ह्वेनसांग के आगमन के समय सिरपुर एक विकसित बौद्धस्थली था और आज भी है लेकिन तब वहां लगभग 100 संघाराम और 10 हजार बौद्ध भिक्षु निवास करते थे. हैरानी की बात यह है कि तत्कालीन शासक महाशिव गुप्त बालार्जुन खुद शैव मतावलंबी था लेकिन उस ने बौद्ध विहारों और भिक्षुकों को उदारतापूर्वक संरक्षण दिया था. बीते कल की शांति आज भी यहां मौजूद है, ऐतिहासिक अवशेष हैं तो दर्शनीय मंदिर भी. लेकिन इन के साथसाथ सिरपुर आने की अब एक नई वजह जुड़ गई है– ‘सिरपुर महोत्सव’, जिस ने महज 3 साल में ही अंतर्राष्ट्रीय नक्शे पर अपनी अलग पहचान बना ली है. पंडित बिरजू महाराज ने बीते साल जब लक्ष्मण मंदिर परिसर में कथक प्रस्तुति दी थी तो मानो समूचा समारोह स्थल ध्यानस्थ हो गया था. छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल द्वारा आयोजित सिरपुर महोत्सव के बारे में बेहिचक कहा जा सकता है कि यह कोणार्क और खजुराहो उत्सवों की तर्ज पर कला और संगीत प्रेमियों को लुभाने लगा है. यहां एक बेहतर कुदरती माहौल है जो कला और संगीत प्रेमियों को चाहिए होता है. वे तमाम सुविधाएं यहां मुहैया कराई जाती हैं जिन की जरूरत हर किसी को होती है.

इस ऐतिहासिक नगरी में नृत्य की लय और संगीत की तीनदिवसीय धुन देखतेसुनते कब समय निकल जाता है, इस का एहसास पर्यटकों और कला प्रेमियों को नहीं हो पाता. छत्तीसगढ़ का पारंपरिक नृत्य संगीत भी सिरपुर महोत्सव में देखने को मिलता है. मांदर, मृदंग, झांज, ढोल, लोहाटी, टिमकी, गदुमबाजा और खंजरी से ले कर ड्रम, बोंगो, कोंगो, डबरबुका और काहेना जैसे विदेशी वाद्ययंत्रों को एकसाथ सुनने का मौका शायद ही दुनिया में कहीं और मिलता हो. सिरपुर में देशीविदेशी कलाकारों का संगम एक वैश्विक संगीत का एहसास कराता है. कला और संस्कृति के मामले में छत्तीसगढ़ क्यों छत्तीसगढ़ कहा जाता है, इसे साबित करने में सिरपुर महोत्सव का योगदान अहम हो गया है, साथ ही सिरपुर महोत्सव पर्यटन को बढ़ावा और प्रोत्साहन दे ही रहा है. आदिवासी बाहुल्य इस राज्य के प्रति जो जिज्ञासाएं लोगों के दिलोदिमाग में हैं, यह महोत्सव उन का भी समाधान कला के जरिए करता है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों और कला से ले कर स्थानीय स्तर तक की कला व कलाकारों को एकसाथ देखने का मौका कलाप्रेमियों को फिर 2016 की सर्दियों में मिलेगा जब पर्यटन के लिहाज से भी छत्तीसगढ़ और सिरपुर आने के लिए मौसम अनुकूल रहता है. कई नामी देशीविदेशी कलाकारों की प्रस्तुतियां सिरपुर को गुलजार करेंगी. नृत्य और संगीत के बाद आप के पास आदिवासी जीवन और संस्कृति की सरलता को बेहद नजदीक से देखने और महसूस करने का भी मौका होगा.

वैसे भी सिरपुर में पर्यटन स्थलों की कमी नहीं, मंदिरों की शृंखला में लक्ष्मण मंदिर, गंधेश्वर मंदिर, राम मंदिर हैं तो बौद्ध विहार में बुद्ध की साढ़े 6 फुट ऊंची प्रतिमा भी सहज आकर्षित करती है. सिरपुर संग्रहालय में इस क्षेत्र में मिली दुर्लभ मूर्तियां और कलाकृतियां संगृहीत हैं. ये कलाकृतियां शैव, वैष्णव, बौद्ध और जैन चारों संस्कृतियों से संबंधित हैं. संग्रहालय का एक आकर्षण अंगड़ाई लेती एक नायिका की प्रतिमा है जिस का सहज सौंदर्य उसे निहारते रहने को विवश करता है. छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल इस बार भी मेहमानों को लुभाने व सुविधाएं देने के लिए खास तैयारियां कर रहा है. वजह, यह तय है कि इस बार और ज्यादा संख्या में कला व संगीत प्रेमी आएंगे. पर्यटकों की आवाजाही जाड़े के मौसम में यहां ज्यादा रहती है.

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