शामली के कुदाना गांव की मीना राणा की शादी 1981 में हुई थी. शादी के 10 साल बाद भी दोनों मातापिता नहीं बन सके. डाक्टरों को दिखाने पर पता चला कि मीना कभी मां नहीं बन सकती. निराश हो कर पतिपत्नी ने 1990 में एक दिव्यांग बच्चे को गोद लिया. उस का नाम रखा मांगेराम. लेकिन यहां भी उन के हाथ निराशा ही लगी, 5 साल बाद मांगेराम चल बसा.

आखिर दुखी हो कर वीरेंद्र राणा और मीना शामली छोड़ कर शुक्रताल आ कर रहने लगे और अनाथ बच्चों को गोद ले कर पालने पढ़ाने लगे. जल्द ही लोगों का ध्यान उन की ओर गया, जिस की वजह से उन्हें डोनेशन में 8 बीघा जमीन मिल गई.

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इस जमीन पर उन्होंने अनाथाश्रम चलाना शुरू किया, जिस में स्कूल भी स्थापित किया गया. इस वक्त इस दंपति के 46 बच्चे हैं. कई बच्चे ऐसे रहे जो बड़े हो कर नौकरी करने बाहर चले गए. कइयों की शादी हो गई. यह सब संभव हुआ डोनेशन की मदद से.

मीना कहती हैं कि उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे हिंदू हैं या मुसलमान. मुझे सिर्फ इतना पता है कि ये सब मेरे बच्चे हैं. इस वक्त इस आश्रम में जो बच्चे रह रहे हैं, उन में 19 लड़कियां हैं और 27 लड़के. इन में से कई दिव्यांग हैं. अनाथाश्रम में एक अच्छी रसोई है, बड़े कमरे और एक बड़ा सा खेल का मैदान है.

वीरेंद्र राणा के अनुसार शुक्रताल ग्राम पंचायत ने उन्हें एक बड़ा प्लौट दिया है. गांव के लोग उन्हें गेहूं वगैरह देते हैं. बाकी जरूरतों के लिए डोनेशन पर निर्भर रहना पड़ता है. इस अनाथाश्रम में पलीबढ़ी ममता ने मुजफ्फरनगर के कालेज से पोस्ट ग्रैजुएशन किया है. वह कहती है, ‘अगर मीनाजी और वीरेंद्रजी का ध्यान उन पर न गया होता तो न जाने उस का क्या भविष्य होता.’

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