आजकल बहुमंजिला इमारतों का जमाना है. ऐसी इमारतों में सीढि़यों से ऊपरनीचे आनाजाना दुष्कर कार्य है. 16-16 मंजिल चढ़नाउतरना न केवल थकाने वाला होता है बल्कि सांस भी चढ़ा देता है. ऐसे में ऊंची इमारतों में चढ़ने का एकमात्र कारगर तरीका लिफ्ट ही है. लिफ्ट ही वह साधन है, जिस से किसी इमारत में ऊपर जाना या नीचे आना बहुत सुलभ है. लगभग सवा सौ वर्ष पहले अमेरिका के ओटिस नामक व्यक्ति ने लिफ्ट तैयार की थी. परंतु इस का अधिक प्रयोग उस समय होने लगा जब बिजली की मोटर से इसे चलाने की व्यवस्था की गई. आजकल बड़े नगरों में बहुमंजिला इमारतों में लिफ्ट लगाना कानून की दृष्टि से भी आवश्यक है.

इमारत के जिस स्थान पर लिफ्ट लगाई जाती है, वहां कुएं जैसा स्थान खाली रखा जाता है. तीनों ओर से बंद छोटे कमरे जैसा एक प्लेटफौर्म लगाया जाता है, जिस पर लोग खड़े होते हैं. यह प्लेटफौर्म बिजली की मोटर से नीचेऊपर आताजाता है. मोटर सब से ऊपर लगाई जाती है. यह मोटर उन पहियों (पुलियों) को चलाती है जो लिफ्ट के साथ लगे होते हैं. इन पुलियों पर स्टील की मोटी रस्सियां चलती हैं जो प्लेटफौर्म को नीचेऊपर ले जाती हैं. प्लेटफौर्म का जितना वजन होता है, लगभग उतने वजन की लोहे की एक मोटी सिल्ली एक ओर लगाई जाती है. इसे ‘काउंटरवेट’ (संतुलन भार) कहते हैं. प्लेटफौर्म को चलाने के लिए उतनी ही शक्ति की आवश्यकता होती है जितनी प्लेटफौर्म और लोहे की इस मोटी सिल्ली के भार के अंतर को चलाने के लिए आवश्यक हो. लिफ्ट में 2 बटन लगे होते हैं. एक ऊपर जाने का और दूसरा नीचे जाने का. जब ऊपर जाने वाला बटन दबाया जाता है तो पुलियां घूमती हैं और उस पर चलने वाले लोहे के रस्से प्लेटफौर्म या लिफ्ट को ऊपर ले जाते हैं. जब नीचे जाने वाला बटन दबाया जाता है तो पहिए उलटी दिशा में घूमते हैं और लिफ्ट लोहे के उन्हीं रस्सों के सहारे नीचे आती है.

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