हमारे पड़ोस में एक रिटायर्ड आयुर्वेदिक डाक्टर रहते थे. उन का लड़का मेरे भैया का घनिष्ठ मित्र था. वे अकसर हमारे घर आया करते थे. वे जब भैया से मिलते तो अपने अन्य मित्रों के बारे में ये कहते हुए नहीं थकते थे कि वो साला बहुत खराब है, वो साला ऐसा है, वैसा है, वगैरावगैरा. यह सब सुनतेसुनते मेरे भैया परेशान हो गए तो एक दिन बातबात में बोले, ‘‘अरे जीजाजी, होगा आप का साला खराब, लेकिन इतना गुस्सा करना आप के लिए ठीक नहीं. वैसे, यह बताओ, ऐसे कितने साले हैं आप के.’’ यह सुन कर वे बहुत शर्मिंदा हुए और उस के बाद से उन्होंने बातबात पर ‘साला’ कहना बंद कर दिया.

विद्या व्यास, मंदसौर  (म.प्र.)

*

हम उन दिनों पटना में रहते थे. पति के दोस्त की शादी बिहार के एक गांव में हुई थी. रिवाज के मुताबिक गौना कुछ सालों के बाद होता है. दोस्त पत्नी को विदा कराने गांव पहुंचे. उन्होंने गांव के मेले में अपनी दुलहन को एक बार देखा था पर पत्नी ने शायद उन्हें नहीं देखा था. विदाई के बाद पत्नी ट्रेन में अपनी सीट पर बैठ गई थी और पति अपने साले साहब के साथ प्लेटफौर्म पर खड़े हो कर बात कर रहे थे. इसी बीच पत्नी को पानी लेने के लिए प्लेटफौर्म के नल पर पहुंचते पति ने देख लिया था. नल पर भीड़ थी. पत्नी की मदद के लिए पति उस के पीछे पहुंच गए और उन्होंने पत्नी के हाथ से जग ले कर भरने की कोशिश की तो उसी क्षण पत्नी ने आव देखा न ताव, एक चांटा पति को जड़ दिया. पति सन्नाटे में थे. तभी उन का साला ‘मेहमानमेहमान’ (जमाईसाहब) कहते हुए आ गया. पत्नी के होश गुम हो गए. वह फौरन पति के पैर पकड़ कर माफी मांगने लगी. आसपास के सारे लोग माजरे को समझने की कोशिश करते हुए मुसकरा रहे थे.

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