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2015 में बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली फ्रांस यात्रा की. फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन से राफेल लड़ाकू विमान की खरीद के लिए लंबे समय से चल रही सौदेबाजी के बीच मोदी यह यात्रा कर रहे थे. 2012 में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने भारतीय वायु सेना के लिए 126 राफेल विमानों की आपूर्ति ठेके में डसॉल्ट एविएशन को सबसे कम बोली लगाने वाला घोषित किया था. मोदी सरकार एक ऐसे समय में बनी जब 10 साल की सतर्क योजना, फील्ड ट्रायल और कठिन मूल्यांकन प्रक्रिया के बाद, भारत अपनी वायु सेना में बहुप्रतीक्षित सात बेड़ें शामिल करने के करीब था. मोदी के पास इस सौदे में अपनी छाप छोड़ने का मौका था.

फ्रांस यात्रा के पहले दिन, फ्रांस के ढांचागत और रक्षा क्षेत्रों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) के साथ गोलमेज वार्ता और फ्रांस के राष्ट्रपति से मुलाकात प्रधानमंत्री मोदी के तय कार्यक्रमों में शामिल थी. इसके बाद मोदी ने मीडिया के सामने घोषणा की कि उन्होंने, फ्लाई-अवे कंडीशन यानी तैयार हालत में 36 राफेल विमानों की जल्द से जल्द खरीद के लिए, वैश्विक टेंडर की जगह सरकारी स्तर (विदेश से सैन्य खरीदारी के लिए सरकारों के बीच होने वाली प्रत्यक्ष सौदेबाजी करार) पर की चर्चा की है.

यहां पुरानी खरीद प्रक्रिया को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया था. भारत को आपूर्ति करने वाली अन्य विदेशी रक्षा कंपनियों की तरह ही डसॉल्ट को भी मिलने वाले बड़े करार का एक भाग स्थानीय स्तर पर उत्पादन कर, निवेश और प्रोद्योगिकी हस्तांतरण के जरिए खरीददार देश में पुन: निवेश करना था. पहले सरकार ने तय किया था कि जिस कंपनी को ठेका मिलेगा उसे सार्वजनिक कंपनी हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) का मुख्य साझेदार बनकर काम करना होगा. मोदी की इस घोषणा के बाद एचएएल इस प्रक्रिया से अचानक बाहर हो गया.

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