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राज्यों में चुनाव

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोआ और मणिपुर की विधानसभाओं के चुनावों में प्रधानमंत्री व भारतीय जनता पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी की परीक्षा होनी है. क्या वे गोआ व पंजाब में अपनी सरकारें बचाए रख पाते हैं और उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश में 2014 का वोट प्रतिशत स्थिर रख पाते हैं? ये चुनाव देश को चाहे न नई दिशा दें, न कोई बदलाव कराएं, 11 मार्च तक सुर्खियों में बने जरूर रहेंगे.

चुनावों से लोकतंत्र मजबूत होता है, यह कहना अब मुश्किल होता जा रहा है. पिछले कुछ चुनावों से साफ दिख रहा है कि नेताओं के भाषणों से न विकास बढ़ता है, न समस्याएं दूर होती हैं. जो दल जाति के नाम पर वोट हासिल करते हैं वे उन वोटरों तक के लिए भी अगले 4-5 साल कुछ नहीं कर पाते. उन का सारा समय अफसरों को इधर से उधर करने और आपसी जूतमपैजार में बीत जाता है.

नरेंद्र मोदी ने 14 मई, 2014 से पहले चुनावप्रचार के दौरान बड़े सब्जबाग दिखाए थे पर 2016 के अंत में हिटलरी और स्टालिनी युग की याद दिलाते हुए उन्होंने एक मूर्खतापूर्ण, तुगलकी फैसले से लोगों को कतारों में खड़ा कर दिया. आज भी जनता का लाखोंकरोड़ रुपया बैंकों के खातों में बंद है जिस पर सरकार विषैले सांप की तरह कुंडली मारे बैठी है और कहती है कि पहले हिसाब लाओ, फिर अपना पैसा ले जाओ, पहले उस का मनमाना लगाया टैक्स भरो, फिर अपना पैसा मांगो.

ऐसा नहीं कि सिर्फ अमीर आदमी इस कष्ट को भोग रहे हैं, इन 5 राज्यों की जनता भी वही कष्ट भोग रही है और वह सरकार के आगे असहाय है, कुछ कर नहीं सकती. डा. भीमराव अंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘एनीहिलेशन औफ कास्ट’ में सही कहा था कि हिंदू लोग नाटे और बौने हैं और उन में स्टेमिना है ही नहीं. उन के अनुसार, इस देश की 90 प्रतिशत जनसंख्या सेना के लिए बेकार है. ऐसा देश वोट के सहारे भी अपने हितों की नहीं सोच सकता क्योंकि उसे तो दूसरों के झूठे वादों पर जीने की आदत पड़ गई है.

इन 5 राज्यों के चुनावों में जो होने वाला है, दिख रहा है. भारतीय जनता पार्टी तो कोई वादा ही नहीं कर रही है. वह तो 10 पाकिस्तानियों को मार डालने और नोटबंदी पर मैडल मांग रही है. उसे मैडल मिल भी सकता है क्योंकि ‘पांय लागूं महाराज’ कहने वाले वोटरों की कमी नहीं. यह पांय लागूं संस्कृति अब बहुजन समाज पार्टी में भी है, समाजवादी पार्टी में भी और आम आदमी पार्टी में भी. जहां कम है, वहां कहा जाता है कि अनुशासन नहीं.

पांय लागूं संस्कृति की देन वाला वोटर अपने हितों के लिए ही मतदान करेगा, इस की आशा नहीं है. वह तो हां में हां मिलाएगा और जो उसे सब से ज्यादा आशीर्वाद देगा, उसे वोट देगा.

इन राज्य चुनावों में परीक्षा तो मतदाताओं की होनी है कि वे लोकतंत्र के हकदारों को चुनते हैं या नहीं. क्या वे राज्यों में निरंकुश, आपस में लड़ती, जिद्दी, दिशाहीन सरकारों को चुन कर नाचेंगे, गुलालअबीर बिखेरेंगे? ये चुनाव देश के इतिहास पर एक और काला धब्बा होंगे. इस तरह के परिणामों का असर तुरंत पता नहीं चलता क्योंकि जब पूरी दीवार पीक के धब्बों से भरी हो तो एक और दाग कहां दिखता है.

कप्तानी को क्यों कहा अलविदा

भारतीय क्रिकेट टीम के सफलतम कप्तान महेंद्र सिंह धौनी ने वर्ष 2014 में टैस्ट मैच से कप्तानी को अलविदा कहा था और उन्होंने अब एकदिवसीय और टी-20 से भी कप्तानी छोड़ने का ऐलान कर दिया.

वैसे दुनिया अभी भी धौनी की कप्तानी की कायल है लेकिन धौनी की बल्लेबाजी में अब वह दम नहीं दिख रहा है जो पहले दिखता था.

क्रिकेट के जानकार मानते हैं कि इस के पीछे कई कारण हैं. एकदिवसीय मैचों में धौनी लगातार फेल हो रहे थे. वे दबाव में थे. लेकिन धौनी ने यह साफ कर दिया कि 2019 के विश्वकप के लिए नए कप्तान को पर्याप्त समय मिलना चाहिए और तीनों फौर्मेट यानी टैस्ट, एकदिवसीय और टी-20 के कप्तान एक ही हों ताकि हर फौर्मेट में वे ढल सकें. अभी विश्वकप के लिए 2 साल बचे हुए हैं ऐसे में अगले कप्तान, जोकि संभवतया विराट कोहली ही होंगे, को अपने मुताबिक एकदिवसीय टीम तैयार करने का मौका मिलेगा.

एकदिवसीय मैचों में वर्ष 2012 से 2016 के बीच धौनी का औसत खूब गिरा. वर्ष 2012 में 65.50 पर था, जबकि वर्ष 2016 में लुढ़क कर 27.80 पर आ गया. लेकिन विराट कोहली की बात करें तो विराट ने एकदिवसीय क्रिकेट में वर्ष 2016 में 10 मैच खेले जिन में 92.37 की औसत से 739 रन बनाए.

टी-20 में धौनी ने वर्ष 2016 में 21 मैचों में 47.60 के औसत से 238 रन बनाए जबकि विराट कोहली ने 15 मैचों में 106.83 के औसत से 641 रन बनाए.

धौनी को लगने लगा था कि अब विराट कोहली के आगे उन का रहना ठीक नहीं है.  विराट यदि टैस्ट मैचों की शृंखला में फ्लौप होते तो हो सकता था कि धौनी कुछ दिनों बाद ही कप्तानी को अलविदा कहते पर जिस तरह से विराट कोहली ने टैस्ट मैचों में आक्रमकता दिखाई और विपक्षी टीम को चारों खाने चित किया उस से यह साबित हो गया कि वे कप्तानी के लिए फिट हैं.

महेंद्र सिंह धौनी चाहे अब कुछ भी कहें लेकिन क्रिकेट के गलियारों में ऊंचा कद रखने वाले एन श्रीनिवासन की जब से छुट्टी हुई है तब से ही धौनी के ऊपर दबाव शुरू हो गए थे.

आरोपों में फंसने के बाद श्रीनिवासन को अपने पद से न सिर्फ हाथ धोना पड़ा बल्कि आईपीएल की टीम चेन्नई सुपर किंग्स, जोकि श्रीनिवासन की थी, भी खत्म हो गई. धौनी उस टीम के मुखिया थे. धीरेधीरे श्रीनिवासन के जाते ही धौनी का रुतबा भी कम होने लगा. कहा जाता है कि वक्त बदलने के साथसाथ हीरो भी बदल जाता है और भारतीय क्रिकेट टीम के हीरो फिलहाल महेंद्र सिंह धौनी की जगह विराट कोहली हैं.

थिएटर की डगर

अभिनय के विविध आयामों में थिएटर की प्रतिष्ठा सब से ज्यादा होती है. इसी माध्यम के जरिए ओम पुरी, नसीरुद्दीन से ले कर पीयूष मिश्रा व शबाना आजमी जैसे कलाकारों ने अभिनय की मिसालें कायम कीं. थिएटर को इसीलिए अभिनय का सब से अच्छा स्कूल कहा जाता है. थिएटर ऐक्टर मयंक गुलाटी भी पिछले 8 सालों से थिएटर की दुनिया में अपने नाट्य मंचनों से ध्यान आकर्षित कर रहे हैं.

पारंपरिक इंजीनियर की नौकरी छोड़ अभिनय में रमे मयंक गुलाटी कौशिक बोस के साथ ‘कंपंक्शन’व बैस्टसेलर लेखक देवदत्त पटनायक की किताब पर आधारित नाटक ‘फ्लेश’ से सुर्खियों में हैं. उन के ‘क्या करेगा काजी’ व ‘रंग रह जाता है’ भी लोकप्रिय नाटक रहे. उम्मीद है थिएटर की कठिन डगर में वे खुद को अपनी कला के दम पर किसी खास मुकाम तक ले जा पाएंगे.

सेहत और स्वाद : मसालों का तड़का

बीटरूट मसाला

सामग्री : 500 ग्राम चुकंदर, 3 प्याज, 2 टमाटर, 1 छोटा टुकड़ा अदरक, 4 कलियां लहसुन, चुटकीभर हलदी, 2 तेजपत्ते, 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, 11/2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर, 11/2 छोटे चम्मच गरममसाला, 1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर, 2 हरीमिर्चें, 1 बड़ा चम्मच तेल, थोड़ी सी कटी धनियापत्ती, नमक स्वादानुसार.

विधि : चुकंदर को चौकोर काट लें. प्याज, टमाटर, हरीमिर्च, अदरक और लहसुन का पेस्ट बना लें. तेल गरम करें और प्याज का मसाला पेस्ट और तेजपत्ते डाल कर भूनें. फिर इस में नमक, धनिया पाउडर, हलदी, जीरा पाउडर और लालमिर्च पाउडर डालें. ऊपर से गरममसाला डालें. फिर चुकंदर के टुकड़े डाल कर थोड़ा पानी डालें और प्रैशर कुकर में पकाएं. पकने के बाद पानी सुखा कर धनियापत्ती से सजा कर परोसें.

 

सरसों का साग

सामग्री : 500ग्राम सरसों का साग, 500 ग्राम पालक, 250 ग्राम बथुआ, 2-3 हरीमिर्चें, थोड़ी सी हींग, 10 ग्राम अदरक, 10 ग्राम लहसुन, 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, 10 ग्राम मक्की का आटा, 1 बड़ा चम्मच तेल, 3 बड़े चम्मच घी, 1 बड़ा प्याज कटा हुआ, 1 छोटा चम्मच जीरा, 1 छोटा चम्मच गरममसाला, 1 बड़ा टमाटर कटा, 1 साबूत लालमिर्च, थोड़ा सा मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि : सरसों, बथुआ व पालक सागों को पानी से अच्छी तरह धो लें. फिर कुकर में डाल कर अदरक, लहसुन, हरीमिर्च व नमक भी डालें और 1 सीटी आने तक पकाएं. फिर एक बरतन में तेल गरम कर उस में हींग, लहसुन, टमाटर और प्याज डाल कर फ्राई करें. अब इस मिश्रण में पका साग डालें. आंच से उतार कर अच्छी तरह मिला लें. अब इस मिश्रण को फिर आंच पर रखें. इस में गरममसाला और मक्की का आटा डालें और गाढ़ा होने तक पकाएं. पकने के बाद एक पैन में घी गरम कर उस में जीरा व लाल साबूत मिर्च डाल कर फ्राई करें. फिर लालमिर्च पाउडर डाल कर इसे साग में डाल कर गरमगरम परोसें.

 

ओट्स ऐंड सूजी उपमा

सामग्री : 1 कप ओट्स, 1/2 कप सूजी, 11/2 कप पानी, 1 कप गाजर, बींस व शिमलामिर्च कटी, 1/2 कप प्याज बारीक कटा, 1 छोटा चम्मच राई, 1 छोटा चम्मच जीरा, 2 छोटे चम्मच धुली उड़द दाल, 3-4 हरीमिर्चें कटी, 1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर, 1 तेजपत्ता, 2 सूखी लालमिर्चें, थोड़े से भुने काजू और थोड़ी सी कटी धनियापत्ती.

विधि : पैन में 1 छोटा चम्मच तेल डाल कर धीमी आंच पर 3-4 मिनट तक ओट्स और सूजी को भूनें. फिर इसे अलग रख दें. अब पैन में तेल गरम करें और उस में राई, उड़द दाल और जीरा डालें. राई चटकने के बाद सूखी लालमिर्च, हरीमिर्चें और तेजपत्ता डालें. फिर इस मिश्रण में प्याज और 1 छोटा चम्मच नमक डालें. प्याज के हलका सुनहरा होने पर सब्जियां डालें और 2-3 मिनट तक चलाएं. अब इस में 1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर डालें. इस मिश्रण में 11/2 कप पानी डालें. 2-3 मिनट तक पानी को उबलने दें. अब इस में भूने हुए ओट्स और सूजी डालें. मिश्रण को

1-2 मिनट ढक कर पकाएं. अब इस में नीबू का रस व नमक डालें और अच्छी तरह मिलाएं. अब इसे लालमिर्च, काजू, और धनियापत्ती से सजा कर नीबू के टुकड़े के साथ गरमागरम सर्व करें.

 

हैल्दी स्मूदी

सामग्री : 2 बड़े संतरे छिले और बीज निकले, 1/2 कप अलसी के बीज, 4 कप पालक, पर्याप्त पानी.

विधि : फूड प्रोसैसर में अलसी के बीज पीसें. अब संतरा, पालक और अलसी के बीज को मिला लें. इस मिश्रण को फूड प्रोसैसर में ब्लैंड कर लें. मिश्रण में पानी डालें और स्मूद होने तक ब्लैंड कर के सर्व करें.

 

ओट्स स्मूदी

सामग्री : 2 कप ओट्स (रेडी टु कुक), 2 कप संतरे छिले और बीज निकले, 1 केला छिला, 5 कप स्किम्ड मिल्क, 25 ग्र्राम अलसी के बीज, 1/4 कप अखरोट, 1/2 बड़ा चम्मच कौफी पाउडर, 1/2 बड़ा चम्मच शहद, थोड़ी सी पुदीनापत्ती कटी.

विधि : 10 मिनट के लिए ओट्स को दूध में भिगो दें. फिर इस में संतरे, केला, अखरोट, अलसी के बीज, पुदीनापत्ती (थोड़ी सी पुदीनापत्ती को सजावट के लिए बचा लें), कौफी पाउडर और शहद डालें. इस मिश्रण को फूड प्रोसैसर में डाल कर स्मूदी तैयार कर लें और फिर सर्व करें. 

मोदी का शुद्धियज्ञ, अनुयायियों की अंधभक्ति

दीवाली के तुरंत बाद हमारा देश ऐतिहासिक शुद्धियज्ञ का गवाह बना है. सवा सौ करोड़ देशवासियों के धैर्य और संकल्पशक्ति से चला यह शुद्धियज्ञ आने वाले अनेक वर्षों तक देश की दिशा निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाएगा. हमारे राष्ट्र जीवन और समाज जीवन में भ्रष्टाचार, कालाधन, जाली नोटों के जाल ने ईमानदार को भी घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था. उस का मन स्वीकार नहीं करता था, पर उसे परिस्थितियों को सहन करना पड़ता था, स्वीकार करना पड़ता था. दीवाली के बाद की घटनाओं से सिद्ध हो चुका है कि करोड़ों देशवासी ऐसी घुटन से मुक्ति के अवसर की तलाश कर रहे थे.  

जब देश के कोटिकोटि नागरिक अपने ही भीतर घर कर गई बीमारियों के खिलाफ, विकृतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरते हैं तो वह घटना हर किसी को नए सिरे से सोचने को पे्ररित करती है. दीवाली के बाद देशवासी लगातार दृढ़संकल्प के साथ, अप्रतिम धैर्य के साथ, त्याग की पराकाष्ठा करते हुए, कष्ट झेलते हुए, बुराइयों को पराजित करने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. जब हम कहते हैं कि ‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’, तो इस बात को देशवासियों ने जी कर दिखाया है. कभी लगता था कि सामाजिक जीवन की बुराइयां, विकृतियां जानेअनजाने में, इच्छाअनिच्छा से हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं लेकिन 8 नवंबर, 2016 की घटना हमें पुनर्विचार के लिए मजबूर करती है.’’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 50 दिन के यज्ञ के बाद 31 दिसंबर, 2016 की शाम प्रजा के नाम जब यह संदेश दिया तो 5 हजार साल पहले पांडु कुल के अंतिम सम्राट राजा जनमेजय के सर्पयज्ञ की कथा ताजा हो गई. जनमेजय ने पृथ्वी से सांपों के अस्तित्व को मिटाने के लिए सर्पमेध यज्ञ किया था.

पौराणिक कथा के अनुसार, परीक्षित, पांडु के एकमात्र वंशज थे. उन को किसी ऋषि ने श्राप दिया था कि वे सर्पदंश से मृत्यु को प्राप्त होंगे. ऐसा ही हुआ. सर्पराज तक्षक की वजह से मर गए. परीक्षित की मृत्यु के बाद हस्तिनापुर की राजगद्दी पर उन के पुत्र जनमेजय विराजमान हुए. जनमेजय पिता की मौत से बहुत आहत हुए और उन्होंने सारे सर्प वंश का समूल नाश करने का संकल्प लिया. इसी उद्देश्य से उन्होंने सर्पयज्ञ के आयोजन का निश्चय किया. यह यज्ञ इतना भयंकर था कि विश्व के सारे सर्पों का महाविनाश होने लगा.

राजा ने जैसे ही महायज्ञ का आरंभ किया तो आह्वान करने पर विभिन्न प्रकार के सर्प और नागों की प्रजातियां एकएक कर अग्निकुंड में समाहित होने लगीं. यज्ञ के धुंए से लोगों की आंखें लाल हो गईं. कालेकाले कपड़े पहने ऋषिगण  जोरजोर से मंत्रोच्चार कर रहे थे. उस समय सारे सर्पों का हृदय डर से कांपने लगा. एकदूसरे से लिपटते, चीखतेचिल्लाते सर्प हवनकुंड में आआ कर  गिरने लगे. उन के जलने की दुर्गंध चारों ओर फैल गई. उन के शोरशराबे व चीख से सारा आकाश गूंज उठा.

यह समाचार तक्षक ने भी सुना. वह भयभीत हो कर देवराज इंद्र की शरण में चला गया. इंद्र उस की रक्षा करने के लिए आगे आना चाहते थे पर यज्ञ इतना विशाल था कि वे तक्षक की कोई मदद नहीं कर पाए.

सर्पयज्ञ में एकएक कर सारे सर्प भस्म होने लगे. जो बेचारे भस्म हो रहे थे उन्हें मालूम ही नहीं था कि आखिर उन का कुसूर क्या है.

वहीं, तक्षक को बचाने के लिए राजा जनमेजय से यज्ञ को समाप्त कराने के लिए जाल बुना गया. इस के लिए वासुकि नाम का नाग आगे आया. वह अस्तीक ऋषि के आश्रम  में गया. वहां जा कर उस ने विनती की कि वे किसी तरह इस यज्ञ को समाप्त करा दें. फिर अस्तीक ऋषि राजा के पास पहुंचे. राजा से कहा गया कि जो हुआ वह ठीक नहीं हुआ, पर इस का मतलब यह नहीं कि किसी एक प्रजाति के जीवों की पूरी सृष्टि ही खत्म कर दी जाए. राजा जनमेजय को लगा कि ऋषि ठीक कह रहे हैं और इस तरह यज्ञ समाप्त कर दिया गया पर इस के बाद राजा राजपाट छोड़ कर जंगल में जा कर संन्यासी हो गए.

आम लोगों की बढ़ी परेशानी

इधर, 8 नवंबर को मोदी ने कालाधन बाहर निकालने के लिए ज्यों ही शुद्धियज्ञ की घोषणा की, जनमेजय के सर्पयज्ञ की भांति कालाधन बैंकों में आ कर जमा होने लगा. कालाधन रखने वालों में खलबली मची या नहीं, आम लोगों में जरूर परेशानी बढ़ गई. वे बैंकों में अपना पैसा जमा कराने व निकालने के लिए लाइनों में लग गए.

50 दिन रोज नए सरकारी नियमों के मंत्रोच्चार के साथ संपन्न हुए. अखंड शुद्धिकरण महायज्ञ में आम जनता की आहुतियों से सरकारी तिजोरियां दानदक्षिणा से भर गईं.

जनमेजय की दुश्मनी नागराजा से थी पर बेकुसूर सांप भी यज्ञ की अग्नि में आ कर जलने लगे. मोदी के निशाने पर भ्रष्टाचारी, कालाधन रखने वाले रहे होंगे पर इस यज्ञ में निर्दोषों की आहुतियां चढ़ने लगीं.

मोदी ने कुछ अलग हट कर नहीं किया. ऐसे काम तो हिंदू राजा करते आए हैं. वे स्मृतियों, पुराणों में लिखी व्यवस्था से चलते थे जो पक्षपातपूर्ण, अन्याय और गैरबराबरी पर आधारित थी. शूद्र को संपत्ति के स्वामित्व से वंचित किया गया है. इस व्यवस्था में राजा को किसी का भी धन जबरन छीनने का अधिकार सुरक्षित था. शूद्र को धनसंपत्ति रखने का हक ही नहीं था. वैश्य का धन भी वह यज्ञ को संपन्न कराने के लिए जबरदस्ती छीन सकता था. धर्मग्रंथों में राजा को मनुष्यों में श्रेष्ठ बताया गया है. उस के वचन ईश्वर के आदेश माने गए हैं. गं्रथों में लिखी बातें भी ईश्वरीय वाणी बताई गई हैं, फिर राजा और प्रजा भला अलग हट कर कैसे चल सकते हैं.

मनुस्मृति में स्पष्ट लिखा है कि शूद्र संपत्ति नहीं रख सकता. अगर उस के  पास कुछ है, यानी वह कोई उत्पाद तैयार करता है तो ब्राह्मण को अधिकार है कि वह उसे छीन ले.

विस्रब्धं ब्राह्मण: शूद्राद् द्रव्योपादानमाचरेत्,

न हि तस्यास्ति किंचित्स्वं भर्तृहार्य धनोहि स:.

मनुस्मृति, 8-417

अर्थात, ब्राह्मण शूद्र से द्रव्य ले ले क्योंकि शूद्र का अपना कुछ नहीं होता. ये जिस के अधीन रहते हैं या जिस की सेवा करते हैं, धन का मालिक वही होता है.

भार्यापुत्रश्च दासश्च त्रय एव अधना.

मनुस्मृति, 8-416

यानी पत्नी, पुत्र और शूद्र ये तीनों  संपत्ति के योग्य नहीं हैं.

न स्वामिना निसृष्टोपि शूद्रो दास्याद्विमुच्यते.

आश्चर्यजनक यह है कि दासत्व से मालिक मुक्त भी कर दे तो भी शूद्र को दासता करनी ही होगी.

यह जो जयजयकार हो रही है, यह दासता का स्वाभाविक गुण है.

मनु ने लिखा है,

निसर्गजं हि तत्तस्य कस्तस्मात्तपोहति.

यानी दासता उस का स्वाभाविक धर्म है, उस से उसे कौन अलग कर सकता है.

इस तथाकथित शुद्धिकरण से कितना नफानुकसान हुआ, कभी सटीक आकलन नहीं हो पाएगा पर इतना तय है कालेधन के खिलाफ मोदी के इस ब्रह्मास्त्र से जमीनी स्तर पर लाखों गरीब, मध्यवर्ग के लोग प्रभावित हुए हैं. सरकार अभी तक यह आंकड़े नहीं बता पाई है कि नोटबंदी के बाद लोगों द्वारा जमा कराए गए 14.86 लाख करोड़ रुपए में से कितना कालाधन है. कितना शुद्ध हुआ? असली कालेधन के कुबेर तो सुरक्षा के लिए तक्षक की तरह  बैंकों में बैठे भ्रष्ट इंद्र की शरण में चले गए जहां उन्हें अभयमुक्ति मिल गई. बेईमानी में इंद्र का कोई सानी नहीं था, इसीलिए तक्षक इंद्र के पास गया.

राजाओं ने यज्ञ हमेशा अपने लिए किए हैं, जनता के कल्याण के लिए नहीं. पुत्रेष्ठि यज्ञ से ले कर अश्वमेध यज्ञ तक राजा की निजी इच्छापूर्ति के लिए हुए. राजा इस तरह के फैसले कभी जनता से पूछ कर नहीं लेते. उन के निर्णय निरंकुश, गैरलोकतांत्रिक होते हैं. जनमेजय ने भी सर्पमुक्त पृथ्वी का निर्णय तक्षक से निजी दुश्मनी के चलते लिया था. जनता के भले के लिए नहीं. युद्ध राजाओं द्वारा आपसी लूट और साम्राज्य बढ़ाने के मकसद से होते रहे हैं.

अब कैशलैस यज्ञ चल रहा है. यज्ञ का विरोध तो कोई कर ही नहीं सकता. यह तो देवयज्ञ था और देवयज्ञ नहीं करने वाले चोर, पापी हो जाते हैं, इसीलिए लाइनों में लगे लोग परेशानी के बावजूद मोदी के इस यज्ञ को अश्वमेध यज्ञ से कम नहीं मान रहे थे हालांकि मोदी के इस महान यज्ञकर्म में विघ्न डालने वाले, विध्वंस करने वाले बीच में आए कुछ बेईमान बैंक कर्मचारियों के कारनामों को देवइच्छा ही समझा गया.

शुद्धिकरण के नाम पर जनता से लूटे गए इस धन में से कुछ गरीबों में बांटने का ऐलान और हर गर्भवती महिला को बच्चा जन्मने के बाद 6 हजार रुपए का सौभाग्यवती, 100 पुत्रों की मां होने जैसा आशीर्वाद मोदी को वापस सत्ता दिलाने वाला सिद्ध होगा या फिर सर्पयज्ञ के बाद जनमेजय की तरह संन्यास  ले कर जंगल की ओर चल देने जैसा. इस देश में राजा के अंधभक्त अनुयायी अपने शासक के प्रति धर्म द्वारा थोपी गईर् सोच से अलग हट कर चलना सीख पाएंगे, इस में संदेह है.        

‘शौर्य स्पोटर्स’ में दमखम दिखाती लड़कियां

लड़कियां केवल पढ़ाई के क्षेत्र में ही नहीं स्पोटर्स मीट में क्रिकेट जैसे दमखम दिखाने वाले खेलों में भी वह बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं. लखनऊ के एसआर ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशन के शौर्य स्पोटर्स मीट 2017’ के आयोजन में लड़कियों की संख्या सबसे अधिक दिखी.

शहरों की लड़कियों को ऐसे अवसर पहले भी मिलते रहे हैं अब गांव और छोटे शहरों की लड़कियां भी इस हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. लड़कियों ने अपने बल पर केवल अच्छा प्रदर्शन ही नहीं किया दकियानूसी सोंच को भी पीछे ढ़केल दिया है.

एसआर ग्रुप के दीक्षांत समारोह में भी टॉपर लिस्ट में लड़कियों की संख्या सबसे अधिक थी. इसे देखकर दीक्षांत समारोह में मेडल दे रहे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने कहा कि जिस तरह से लड़कियां पढ़ाई के साथ करियर के हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं उससे साफ है कि आने वाले दिनों में लड़को को अपने लिये आरक्षण मांगने की जरूरत आ सकती है.

एसआर ग्रुप औफ इंस्टिट्यूशन के चेयरमैन पवन सिंह चैहान कहते हैं कि इंजीनियरिंग के करियर में लड़कियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इसकी वजह यह है कि आज विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है. हर काम मशीनों के जरीये करना सरल हो गया है. ऐसे में लड़कियों के लिये इजीनियरिंग का करियर बेहतर हो गया है. इंजीनियरिंग में हार्डकोर ब्रांचों के अलावा इंजीनियरिंग में कई ऐसी ब्रांच शुरू हो गई है जो लड़कियों के लिये बहुत उपयोगी हो गई है. लड़कियों के करियर में उनके पैरेंट का रोल अहम है. अब वह भी लड़की को केवल डॉक्टर या टीचर ही नहीं बनाना चाहते. लड़की को वह उसी तरह से सहयोग कर रहे हैं जैसे लड़के को करते हैं.

31 जनवरी और 1 फरवरी 2017 को आयोजित शौर्य स्पोटर्स मीटमें लड़कियों ने बैडमिंटन, टेबिल टेनिस, शतरंज जैसे खेलों के अलावा क्रिकेट जैसे दमखम दिखाने वाले खेलों में भी हिस्सा लिया. मैदान पर इनकी बैटिंग और बॉलिंग देखकर किसी को इस बात का अहसास नहीं हुआ कि यह लड़कियां है. वह भी लड़को की ही तरह चैके छक्के लगा रही थीं.

पवन सिंह चैहान कहते है, लड़कियों और उनके परिवार की सोंच को बदलने मीडिया की भूमिका अहम रही है. मीडिया ने जिस तरह से लड़कियों के उत्साह को बढ़ाया है उससे लड़कियों का हौसला बढ़ा है. जो लोग अपनी रूढिवादी सोंच के चलते लड़कियों को पीछे ढ़केलने का प्रयास करते हैं उनको परास्त होना पड़ा है. बड़े शहरों में लड़कियों को पहले भी खेल और पढ़ाई में बराबर के मौके मिलते रहे हैं अब छोटे शहरों और गांव की लड़कियों को भी ऐसे मौके मिलने लगे हैं. इससे समाज में नई सोंच का जन्म होगा.

अंधविश्वास की पोषक सप्तवार कथाएं

हर हिंदू भक्त से बारबार कहा जाता है कि कम से कम समय में कम से कम परिश्रम कर के अधिक से अधिक लाभ, अधिक से अधिक सुख अर्जित कर लेना संभव है. भक्त वह बात मान लेता है. मानव मन की इसी दुर्बलता का लाभ उठाते हुए भविष्यवक्ता, साधुसंत टीवी चैनलों पर ज्यादा से ज्यादा समय खरीद कर स्वकल्याण कर रहे हैं. लोगों को इधरउधर की बातों में उलझा कर धन अर्जित कर रहे हैं.

चैनलों के माध्यम से लोगों पर अध्यात्म का जादू चलाने वालों का कहना है कि जो छोटेछोटे उपाय हम बताते हैं उन को श्रद्धा व विश्वास के साथ करने से अपने वर्तमान को बदला जा सकता है, भविष्य की धुंधली तसवीर को पूर्णतया स्पष्टरूप से देखा जा सकता है.

वे कहते हैं कि पूर्वजों ने जो मार्ग दिखाया है उसी मार्ग पर चलने के लिए वे आप को प्रेरित करते हैं ताकि आप का दुखी जीवन, सुख में बदल सके. लाभ अथवा सुखप्राप्ति के लिए किसी दिन विशेष की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं. इस के लिए आप विधिपूर्वक पूजापाठ में व्यस्त हो जाएं. जैसेजैसे आप साधनापथ पर गहनता से प्रवेश करते चले जाएंगे वैसेवैसे सुख आप के नजदीक आता जाएगा. सुखप्राप्ति के उद्देश्य से रविवार को ‘सूर्यदेव’, सोमवार को ‘शंकर-पार्वती’, मंगलवार को ‘हनुमान,’ बुधवार को ‘बुधदेव’, बृहस्पतिवार को ‘बृहस्पतिदेव’, शुक्रवार को ‘संतोषी मां’ एवं शनिवार को ‘शनिदेव’ से जोड़ दिया गया है. जो भी रविवार व्रत कर के रविवार व्रतकथा, सोमवार व्रत कर के सोमवार व्रतकथा, मंगलवार व्रत कर के मंगलवार व्रतकथा, बुधवार व्रत कर के बुधवार व्रतकथा, बृहस्पतिवार व्रत कर के बृहस्पतिवार व्रतकथा, शुक्रवार व्रत कर के शुक्रवार व्रतकथा और शनिवार व्रत कर के शनिवार व्रतकथा कहता या कथावाचकों से सुनता है, उसे स्वेच्छानुसार भिन्नभिन्न फलों की प्राप्ति होती है. यह उपदेश रातदिन टैलीविजन पर प्रवचनों में घरों में दिया जाता है. देने वाले भगवानों के बिचौलिए, दुकानदार और एजेंट हैं. इसी पर धर्म टिका है. आस्था बेवकूफी का दूसरा नाम है.

प्रलोभन का जाल

यदि कोई स्त्री या पुरुष रविवार व्रत कर के विधिपूर्वक रविवार व्रतकथा कहता अथवा कथावाचकों से सुनता है, वह धनवान हो जाता है, उस के सारे दुख दूर हो जाते हैं. अगर बांझ स्त्री यह सब करती है तो उसे पुत्र प्राप्त होता है. इस व्रत और कथा को करने से ब्राहमण विद्या, क्षत्रिय राज्य, वैश्य बुद्धि और शूद्र सुख पाता है. रोगी रोग से मुक्त हो जाता है.

इसी प्रकार, सोमवार व्रत कर के सोमवार व्रतकथा सुनने वाला यदि 16 सोमवार व्रत करता हुआ विधिपूर्वक सोमवार व्रतकथा कहता अथवा कथावाचकों से सुनता है तो वह व्यक्ति इस लोक में सुख पाता है.

इसी प्रकार, 21 सप्ताह तक प्रति मंगलवार व्रत कर के जो भी स्त्री या पुरुष मंगल व्रतकथा कहता अथवा सुनता है, वह खूब धन प्राप्त करता हुआ यश को प्राप्त होता है.

इसी तरह कोई भी स्त्री अथवा पुरुष 7 बुधवार व्रत करता हुआ बुधवार व्रतकथा कहता अथवा कथावाचकों से सुनता है, उसे सद्बुद्धि प्राप्त होती है.

बृहस्पति व्रत और कथा को विशेष रूप से स्त्रियों के लिए लाभकारी घोषित किया गया है. इस व्रत को करने और कथा को कहनेसुनने से घर में धन और विद्या आती है, सुंदर पति की प्राप्ति होती है.

शुक्रवार व्रत कर के शुक्रवार व्रतकथा कहने अथवा सुनने के परिणामस्वरूप निर्धनता और दरिद्रता का नाश होता है, लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, मन की चिंताएं दूर होती हैं.

इसी प्रकार, जो स्त्री अथवा पुरुष शनिवार व्रत कर के शनिवार व्रतकथा कहता अथवा कथावाचकों से सुनता है, उस के सब दुख दूर हो जाते हैं.

मोक्ष की गारंटी

कथाओं को कहने या सुनने के परिणामस्वरूप हमें जो फल प्राप्त होते हैं उन सब का हमारे जीवन से प्रत्यक्ष संबंध है. वैसे, हम हिंदू मर कर भी मोक्ष की, स्वर्ग की गारंटी चाहते हैं.

इन व्रतों को करने और व्रतकथाओं को कहने या कथावाचकों से सुनने का सब से बड़ा लाभ यह है कि मरने के बाद भी सुख मिलता है, मोक्ष मिलने की गांटी मिल जाती है व व्रती स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है. लेकिन जब हम धार्मिक संस्कारों से मुक्त हो कर इन व्रतकथाओं की जांच करते हैं तो ये कथाएं अंधविश्वास की पोषक सिद्ध होती हैं.

वर्चस्व ब्राहमणों का

हमेशा से हमारे यहां साहित्य लेखन, अध्ययनअध्यापन का कार्य और समाज में शिक्षा की समुचित व्यवस्था का एकाधिकार ब्राह्मणों पर था. ब्राह्मणों को सृष्टि रचयिता ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न और मनुष्यों में मूर्द्धन्य माना जाता था. ब्राह्मणों ने समस्त समाज पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के उद्देश्य से मानवमंगल की उपेक्षा करने के साथ निजी हितों को सर्वोपरि सिंहासन पर आसीन करते हुए प्रलोभन व भय दिखा कर अपनी वर्तमान व भावी पीढि़यों की सुखसुविधा को ध्यान में रखा है और वे हिंदू समाज के सभी वर्गों को ‘सप्तवार व्रतकथाओं’ में बड़ी दूरदर्शिता से समेटने में सफल रहे हैं.

वर्ण व्यवस्था का तानाबाना

ब्राह्मण कथावाचक और दानदक्षिणा ले कर पुण्य बरसाने वाले, सभी पापों से मुक्त करवा के परलोक में सुखसुविधा संपन्न अग्रिम आरक्षण का सुव्यवस्थापक तथा मोक्ष स्वर्गादि का मार्ग प्रशस्त करने वाले ईश्वर के प्रतिनिधि बन गए.

हर जाति के लोग बंधे रहें, इसलिए ‘शनिवार व्रतकथा’ का नायक राजा विक्रमादित्य शासन करने वाला व प्रजा का रक्षक होने से ‘क्षत्रियवर्ण’ का प्रतिनिधि है. ‘वीरवार व्रतकथा’ का नायक व्यापार में लगा ‘वैश्यवर्ण’ का प्रतिनिधि है. ‘शुक्रवार व्रतकथा’ का नायक बुढि़या का निकम्मा पुत्र सेठ के पास नौकरी करने के कारण और अन्य कहानियों – रविवार व्रतकथा की नायक बुढि़या, सोमवार व्रतकथा का धूर्त व नशेबाज पुजारी व ‘मंगलवार व्रतकथा’ की नायिका अंधविश्वासी बुढि़या – इन कहानियों में वर्णित गरीब व सेवा करने वाले पात्र ‘शूद्रवर्ण’ यानी आज के पिछड़े या बैकवर्ड के प्रतिनिधि हैं.

वर्गव्यवस्था

परिवर्तनशील परिवेश में वर्णव्यवस्था का स्थान वर्गव्यवस्था ने लिया और इस दृष्टि से इन कथाओं पर विचार किया जाए तो सेवा करने वाले ‘शोषितवर्ग’ के प्रतिनिधि हैं, जबकि शनिवार व्रतकथा का नायक राजा विक्रमादित्य ‘शोषक वर्ग’ का प्रतिनिधि है. वीरवार व्रतकथा का नायक व्यापारी- ‘मध्यम वर्ग’ का प्रतिनिधि है.

पौष्टिक व संतुलित आहार और शिक्षा की कमी के कारण इस वर्ग में समुचित मानसिक विकास नहीं हो पाता. इस वर्ग में तर्कवितर्क की संभावना बहुत कम होती है. कथा बताती है कि श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधि स्वप्न में कहे गए ‘संतोषी माता’ के कथानुसार सबकुछ करता है तो उसे अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक आमदनी होती है. एक ही दिन में उस का सारा माल बिक जाता है. अभी तक लेनदेन का कोई हिसाब नहीं था, परंतु माता की बात मानते ही देने वाले रुपया लाए, लेने वाले हिसाब लेने लगे, खरीदार नकद दाम में सौदा करने लगे. शाम तक धन का ढेर लग गया.

इसी प्रकार एक स्त्री जिसे उस के पति ने बहुत समय से न तो पत्र भेजा था और न ही धन, अन्य औरतों को ‘संतोषी माता’ का व्रत व कथा करतेसुनते देख और उन से इस व्रत व कथा के लाभ सुन कर स्वयं भी ‘माता’ के चरणों में लोटते हुए विनती करने लगती है तो उसे दूसरे ही शुक्रवार पति द्वारा भेजा हुआ पत्र प्राप्त हो जाता है और तीसरे ही शुक्रवार उसे पति द्वारा भेजा हुआ धन मिल जाता है.

मां संतोषी के अवतार

ऐसी कपोल कल्पित कहानियों का ही प्रभाव है कि आज देश के विभिन्न भागों में व टैलीविजन के विभिन्न चैनलों पर जनमानस की मानसिक दुर्बलता का लाभ उठाती हुई बहुत सी औरतें स्वयं को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ‘संतोषी माता’ से जोड़ कर जनसाधारण को भ्रमित कर अपनी दुकानदारी चला रही हैं. वे देवीदेवताओं, स्वप्नों, भूतप्रेतों, धागेतावीजों, हस्तरेखा, कुंडली आदि देख कर भविष्य का विवरण बताने वालों और उपाय रूप में दानदक्षिणा ले कर भावी अशुभ घटनाओं व विविध बाधाओं को दूर कर सुनहरे स्वप्न दिखाने वाले पंडेपुरोहितों व पुजारियों आदि और अन्य लोकों में एडवांस बुकिंग की सुव्यवस्था करवाने वाले तथाकथित ईश्वर प्रतिनिधियों में आस्था बनाए रखने को बढ़ावा दे रही हैं.

उल्लेखनीय बात यह है, ये तथाकथित माताएं धर्म के नाम पर लंबीलंबी कथाएं राम और कृष्ण आदि की सुनाती हैं, पर आड़ में, पूजा अपनी करवाती हैं. जनसाधारण को भौतिकवादी संस्कृति से दूर रहने की प्रेरणा देती हैं, परंतु, स्वयं भौतिकता, अत्याधुनिक सांसारिक सुखसुविधा का भरपूर उपयोग करती हैं.

ये तथाकथित देवियां काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार आदि का त्याग करते हुए प्रभुचरणों में स्वयं को समर्पित करने की बातें कहती हैं, परंतु, ये स्वयं हर तरह के विकारों से घिरी हैं?

प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ व विषम परिस्थितियों से घबरा कर शांति की खोज में बहुत से लोग इन के चरणों में शांति ढूंढ़ रहे हैं परंतु जो संन्यासी खुद अपने आश्रम के द्वार को अपने पड़ोसी संन्यासी के आश्रम के द्वार से ज्यादा ऊंचा बनवाने में लगा हुआ है, अपने सेवकों को अपनी रसोई में लगवा रहा है, उन से अपने चित्र-चित्रयुक्त मालाएं, किताबें और सीडी व कैसटों आदि की बिक्री करवा रहा है, प्रवचन सुनने वाले भक्तों से अपना प्रचार करवा रहा है, अपने प्रवचनों का मूल्य मांग रहा है तो लोभी की परिभाषा क्या होगी?

होनी बड़ी बलवान

हम हिंदू यह मान कर चलते हैं कि जो कुछ भाग्य में लिखा होगा वही मिलेगा. भाग्य के लेख को तो विधाता भी नहीं बदल सकता. होनी बड़ी बलवान है, जो होना है वह हो कर ही रहेगा. यदि भाग्य में लिखा हुआ मिलना ही है और उस में किसी प्रकार का परिवर्तन संभव नहीं, तो फिर दानपुण्य, पूजापाठ और वंदना आदि में समय व्यर्थ नष्ट करने का क्या लाभ? यदि शनि की दशा में दुख उठाना अपने भाग्य में लिखा हुआ है तो दुख झेलना ही होगा. ऐसे में, शनिवार व्रत कर के शनिदेव की कथा सुनने और चींटियों को आटा डालने का क्या औचित्य है?

पलभर के लिए यह स्वीकार भी कर लेते हैं कि शनिदेव की कथा जो सुनेगा उसे किसी प्रकार का दुख न होगा. परंतु  ‘शनिवार व्रतकथा’ के अंतर्गत जो कथा मिलती है वह तो मात्र वर्णन है कि सूर्य, चंद्रमा आदि नव ग्रहों में इस बात को ले कर झगड़ा होने लगा कि उन सब में बड़ा कौन है? जब देवता झगड़ा करते हैं तो आमजन का झगड़ा व विवाद कैसे दूर होगा?

अन्य वारों की जो व्रतकथाएं हैं वे ऐतिहासिक कथाएं न हो कर मात्र उन लोगों की कथाएं हैं जिन्होंने इन व्रतकथाओं को किया. इन कथाओं को सुन लेने मात्र से कैसे किसी फल की प्राप्ति हो सकती है? कथा क्या है, यह ही पता नहीं चलता.

धर्म की आड़ में

सप्तवार व्रतकथाओं को सुन लेने अथवा पढ़ लेने से कोई धनवान नहीं हो सकता. बांझ स्त्री पुत्र नहीं प्राप्त कर सकती है? धर्म की आड़ में व्यभिचार अवश्य पनप सकता है. इस वैज्ञानिक युग में भी हम बच्चों की प्राप्ति हेतु काल्पनिक कथाकहानियों का दामन पकड़ कर बैठे हुए हैं. एक तरफ कैशलैस भारत की कल्पना की जा रही है तो दूसरी तरफ उसी सरकार द्वारा इन अंधविश्वासों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है.

प्रलोभन व भय का सहारा

मध्यवर्ग अर्थात व्यापारी वर्ग व्यापार में उतारचढ़ाव के चलते सरकारी नियमों से निरंतर संघर्ष करते रहने के कारण आस्तिक हो गया है. ऐसी कथाकहानियों को वह संदेह की दृष्टि से नहीं देख रहा और न ही किंतु/परंतु कर के परख रहा है. ऐसी कथाकहानियों में उस की आस्था इन कथावाचकों को खूब पैसा दिलवा रही है.

उन कथाओं के रचयिता इस बात से भलीभांति परिचित थे कि साधारण नौकरी आदि करने वाले के पास धन हो ही नहीं सकता पर व्यापारी के पास हर धन होता है. इस वर्ग से दानदक्षिणा पाने के लिए प्रलोभन और भय दोनों का सहारा लिया ‘बृहस्पति व्रतकथा’ ने.

बृहस्पति व्रतकथा में बृहस्पति देव की उपेक्षा करते ही व्यापारी की पत्नी की मृत्यु हो जाती है. संपूर्ण धन नष्ट हो गया. व्यापारी का माल से भरा हुआ जहाज समुद्र में डूब गया. बड़ी मुश्किल से लकड़ी के तख्तों पर बैठ कर उस ने अपनी जान बचाई.

जबजब भी व्यापारी ने कथा न करने की भूल की, बृहस्पति देव का कहर उस पर टूटा, जेल की हवा खानी पड़ी. परंतु जैसे ही वह व्यापारी बृहस्पति देव की कथा कहता है, बृहस्पति देव उस से इतना प्रसन्न हो जाते हैं कि रात्रि में स्वप्न में दर्शन दे कर राजा को उस के निर्दोष होने की बात कह कर उसे जेल से मुक्त करवा देते हैं. जेल में डालने के अपने अपराध के लिए राजा उस से क्षमा भी मांगता है और उसे अपना आधा राज्य भी दे देता है तथा उस की लड़की का उच्च कुल में विवाह संपन्न करवा कर दहेजरूप में अनमोल हीरेजवाहरात भी देता है. वाह, क्याक्या है?

ऐसी कथाओं का ही प्रभाव है कि औरतें अपनी संतान, पति व गृहस्थ धर्म की उपेक्षा कर के साधुसंतों की सेवा करना पुण्य समझती हैं और पुण्यलाभ के लोभ में पड़ कर अपने बेटेबेटियों तक की बलि चढ़ा देने में संकोच व लज्जा का भाव अनुभव नहीं करतीं और इस सब में कई बार उन्हें यौनशोषण का शिकार भी बनना पड़ जाता है, यौनउत्पीड़न की मानसिक वेदना झेलनी पड़ती है.

इन व्रतकथाओं के अनुसार, जो कोई स्त्री/पुरुष कथाएं करता है, उस के सब दुख दूर हो जाते हैं, सब मनोरथ पूरे होते हैं. परंतु यदि आप कभी कथा करना भूल गए तो सबकुछ जाता रहेगा. कथा न करने की भूल का दंड तो भोगना ही होगा.

हिंदू परिवारों में सभी बच्चों को बाल्यकाल से यही समझाया जाता है कि भगवान सर्वगुण संपन्न, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान हैं. हमारे धर्मोपदेशक, धर्माचार्य धर्मग्रंथों व धर्मशास्त्रों के श्लोकों के हवाले देदे कर बड़ेबड़े मंचों से, दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों व स्वप्रकाशित सामग्री के माध्यमों से भगवान की सर्वज्ञता को सिद्ध करने के चक्कर में निरंतर एड़ीचोटी का जोर लगा रहे हैं. वे उसे ‘अंतर्यामी’ इत्यादि कई विशेषज्ञों से अलंकृत करते हैं. ऐसे में, भगवान स्वयं क्यों नहीं दोषी को गलत काम करने से रोक लेते और यदि करने देते हैं तो दोषी भगवान हुए, आदमी नहीं. असल में भगवान की कल्पना ही निरर्थक है और लूटने की साजिश है.

अकर्मण्यता को बढ़ावा

वास्तव में ये कथाएं जनसाधारण में अंधविश्वास को बढ़ाती हैं, कर्मक्षेत्र में कूदने की अपेक्षा पलायनवादी व अकर्मण्य हो कर जीने की प्रेरणा देती हैं.

ये कथाएं लिखी गईं, यह एक गलती थी. सदियों तक इन्हें दोहराया गया, स्वीकार किया गया. यह दूसरी गलती थी. तीसरी गलती है आज भी इन से चिपके रहना.

विश्व प्रतिपल नएनए मार्गों पर अग्रसर हो रहा है परंतु हम कंप्यूटर का बटन दबाने के साथसाथ मंदिर की घंटी भी बजा रहे हैं, विज्ञान की परीक्षा देने के साथ भारत के आधुनिक अथवा प्राचीन देवीदेवताओं अथवा संतों के चरणों में गिर कर गिड़गिड़ा रहे हैं. हमारे चंद्रयान भेजने वाले वैज्ञानिक भयंकर मूर्तिपूजक भी हैं और मूर्ति में बसे भगवान में भरोसा करते हैं. यह कैसा उदाहरण है तार्किक व वैज्ञानिक सोच का.

इस प्रकार के जीवनदर्शन से भारत में निराशावाद पनपा. हम मुट्ठीभर विदेशी आक्रमणकारियों का डट कर सामना करने की अपेक्षा कस कर माला को पकड़ लेने और शिवलिंगों से लिपट जाने में अपनी भलाई समझते रहे. आक्रमणकारी अधपके लोग साम्राज्य स्थापित करने में सफल हो गए और हम ‘नमोभगवते वासुदेवाय’, ‘नम: शिवाय’ इत्यादि मंत्रों का जाप करते हुए वर्तमान से संघर्ष करने की अपेक्षा कथित स्वर्ग में अग्रिम आरक्षण हेतु अज्ञात सत्ता की साधना व खोज में पलायनवादी बने रह गए.

– सूरजकांत शर्मा  

विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण करेगा इसरो

'इसरो' यानि कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, फरवरी के पहले हफ्ते में अपने प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी37 का इस्तेमाल कर रिकॉर्ड 103 उपग्रहों का प्रक्षेपण करेगा और इसी के साथ ही मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी दक्षिण एशियाई उपग्रह परियोजना शुरू होगी. आपको बता दें कि फरवरी में भारत में जिन 100 से ज्यादा उपग्रहों का प्रक्षेपण होना है वे अमेरिका और जर्मनी सहित कई अन्य देशों के हैं.

इसरो के लिक्विड प्रॉपल्शन सिस्टम्स सेंटर के निदेशक एस. सोमनाथ के अनुसार एक साथ 100 से ज्यादा उपग्रहों का प्रक्षेपण करके भारत शतक बनाने जा रहा है. इससे पहले इसरो ने जनवरी में एक साथ 83 उपग्रहों के प्रक्षेपण की योजना बनाई थी जिनमें 80 उपग्रह विदेशी थे. लेकिन अब 20 और विदेशी उपग्रहों के जुड़ जाने के कारण प्रक्षेपण की तारीख बढ़ा दी गई है. जानकारों की मानें तो ये 100 सूक्ष्म-लघु उपग्रह हैं जिनका प्रक्षेपण पीएसएलवी-37 के इस्तेमाल से किया जा रहा है. इसमें प्रयोग में आने वाला पेलोड 1350 किलोग्राम का होगा जिसमें कि 500-600 किलोग्राम उपग्रहों का वजन होगा. भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में यह प्रक्षेपण एक बड़ी उपलब्धि होगी, क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर पहले कभी प्रक्षेपण नहीं किया गया है.

बीते साल यानि कि 2016 में इसरो ने 22 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया था और अब फरवरी में होने वाले प्रक्षेपण में उपग्रहों की संख्या करीब पांच गुना बढ़ चुकी है. इसरो के असोसिएट निदेशक एम नागेश्वर राव की मानें तो इन प्रक्षेपणों में दक्षिण एशियाई उपग्रह जीसैट-9 भी शामिल किया जाऐगा. इस संचार उपग्रह का प्रक्षेपण दिसंबर 2016 में किया जाना था.

सूत्रों ने बताया कि इस परियोजना में अफगानिस्तान को भी शामिल किया जाना है और इसलिए अफगानिस्तान से चल रही बातचीत अंतिम चरण में है. पहले दक्षेस उपग्रह वाली परियोजना भारत के पड़ोसी देशों के लिए तोहफा मानी जा रही है. भारत के अलावा, इस सफलता से श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान इन देशों को भी फायदा मिलेगा. लेकिन हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान इस परियोजना पर कड़ा विरोध जताता रहा है. पाकिस्तान इसे दक्षिण एशियाई क्षेत्र फोरम के बैनर तले प्रक्षेपित कराना चाह रहा था लेकिन बाद में वह स्वयं इस परियोजना से अलग हो गया.

जब 5 रुपये के लिए खली ने की मजदूरी

खेल जगत में कई ऐसे दिग्गज हैं जिन्होंने अपने मेहनत के दम पर फर्श से अर्श तक का सफर तय किया. द ग्रेट खली के नाम से मशहूर दलीप सिंह राणा भी उन्हीं में से एक हैं.

खली ने ऐसा भी दौर देखा है जब उनके गरीब माता पिता ढाई रुपया फीस नहीं भर सके, जिसकी वजह से उन्हें स्कूल से बाहर कर दिया गया और उन्हें 8 साल की उम्र में 5 रुपये रोजाना कमाने के लिए गांव में माली की नौकरी करनी पड़ी थी. खली ने बचपन में काफी खराब दौर झेला है. स्कूल छोड़ने से लेकर दिहाड़ी मजदूरी तक दलीप सिंह राणा ने सब कुछ किया.

1979 में गर्मियों के मौसम में खली को स्कूल से निकाल दिया गया, क्योंकि बारिश नहीं होने से फसल सूख गई थी और उनके पास फीस भरने के पैसे नहीं थे. उस दिन खली के क्लास टीचर ने पूरी क्लास के सामने उन्हें अपमानित किया. सभी छात्रों ने उनका मजाक बनाया. इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह कभी स्कूल नहीं जाएंगे.

इसके बाद खली का स्कूल से नाता हमेशा के लिए टूट गया. वे काम में जुट गया ताकि परिवार की मदद कर सकें. एक दिन जब वे अपने पिता के साथ थें तब उन्हें पता चला कि गांव में दिहाड़ी मजदूरी के लिए एक आदमी चाहिए और इस काम के लिए रोजाना 5 रुपये मिलेंगे. उस समय पांच रुपये बहुत बड़ी रकम थी. खली ने सोचा उन्हें ढाई रुपये नहीं होने से स्कूल छोड़ना पड़ा था और 5 रुपये तो उससे दोगुने हैं. खली को अपनी पहली मजदूरी आज भी याद है.

अपने कद के कारण वह लोगों के उपहास के पात्र बनें. बाद में खली ने कुश्ती को चुना और वह कर दिखाया जो उनसे पहले किसी भारतीय ने नहीं किया था. वह डब्ल्यूडब्ल्यूई में पहुंचने वाले पहले भारतीय पहलवान बने.

प्यार ऐसे नहीं हासिल होता

18 अक्तूबर, 2016 की सुबह साढ़े 5 बजे के करीब पुणे शहर की केतन हाइट्स सोसायटी की इमारत के नीचे एक्टिवा सवार एक महिला और एक आदमी के बीच कहासुनी होते देख उधर से गुजर रहे लोग ठिठक गए थे. औरत से कहासुनी करने वाले आदमी की आवाज धीरेधीरे तेज होती जा रही थी. लोग माजरा समझ पाते अचानक उस आदमी ने जेब से चाकू निकाला और एक्टिवा सवार औरत पर हमला कर दिया. औरत जमीन पर गिर पड़ी और बचाव के लिए चिल्लाने लगी. हमलावर के पास चाकू था, जबकि वहां खड़े लोग निहत्थे थे. फिर भी वहां खड़े लोग उस की ओर बढ़े, लेकिन वे सब उस तक पहुंच पाते, उस के पहले ही वह आदमी महिला पर ताबड़तोड़ चाकू से वार कर के उसी की स्कूटी से भाग निकला था. महिला जमीन पर पड़ी तड़प रही थी. उस की हालत देख कर किसी ने कंट्रोल रूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी. चूंकि घटनास्थल थाना अलंकार के अंतर्गत आता था, इसलिए कंट्रोल रूम ने घटना की जानकारी थाना अलंकार पुलिस को दे दी थी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर बी.जी. मिसाल ने घटना की सूचना अपने अधिकारियों को दी और खुद एआई विजय कुमार शिंदे एवं कुछ सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश और घटनास्थल के निरीक्षण में पुलिस वालों ने देखा कि घायल महिला सलवारसूट पहने थी. उस की उम्र 30-31 साल रही होगी. उस के शरीर पर तमाम गहरे घाव थे, जिन से खून बह रहा था. पुलिस को लगा कि अभी वह जीवित है, इसलिए उसे तत्काल पुलिस वैन में डाल कर इलाज के लिए सेसून अस्पताल ले जाया गया. लेकिन अस्पताल पहुंच कर पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. इंसपेक्टर बी.जी. मिसाल अपने सहायकों के साथ घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि डीएसपी सुधीर हिरेमठ और एएसपी भी फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. फोरैंसिक टीम ने जरूरी साक्ष्य जुटा लिए तो अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. उस के बाद बी.जी. मिसाल को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. बी.जी. मिसाल ने सहयोगियों की मदद से घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कीं और उस के बाद अस्पताल जा पहुंचे. डाक्टरों से पता चला कि महिला के शरीर पर कुल 21 घाव थे. अधिक खून बहने की वजह से ही उस की मौत हुई थी. उन्होंने काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए रखवा दिया और थाने आ कर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर इस मामले की जांच इंसपेक्टर (क्राइम) विजय कुमार शिंदे को सौंप दी.

विजय कुमार शिंदे ने मामले की जांच के लिए अपनी एक टीम बनाई और हत्या के इस मामले की जांच शुरू कर दी. घटनास्थल पर पुलिस को मृतका का पर्स और मोबाइल फोन मिला था. मोबाइल फोन के दोनों सिम गायब थे, इसलिए मृतका की शिनाख्त में उस से कोई मदद नहीं मिल सकी. लेकिन पर्स से उस का ड्राइविंग लाइसैंस मिल गया, जिस से उस की शिनाख्त हो गई. मृतका का नाम शुभांगी खटावकर था और वह कर्वेनगर के श्रमिक परिसर की गली नंबर-5 में रहती थी. उस के पति का नाम प्रकाश खटावकर था. इस के बाद विजय कुमार शिंदे ने लाइसैंस में लिखे पते पर एक सिपाही को भेजा तो वहां मृतका का पति प्रकाश खटावकर मिल गया. सिपाही ने उसे पूरी बात बताई तो वह सिपाही के साथ थाने आ गया.

विजय कुमार शिंदे ने अस्पताल ले जा कर उसे लाश दिखाई तो लाश देख कर वह खुद को संभाल नहीं सका और जोरजोर से रोने लगा. विजय कुमार शिंदे ने किसी तरह उसे चुप कराया तो उस ने एकदम से कहा, ‘‘शुभांगी की हत्या किसी और ने नहीं, मेरे ही परिसर में रहने वाले विश्वास कलेकर ने की है. वह उसे एकतरफा प्रेम करता था. वह उसे राह चलते परेशान किया करता था.’  प्रकाश खटावकर के इसी बयान के आधार पर विजय कुमार शिंदे ने विश्वास कलेकर को नामजद कर के उस की तलाश शुरू कर दी. उस के घर में ताला बंद था. आसपड़ोस वालों से पूछताछ में पता चला कि घटना के बाद से ही वह दिखाई नहीं दिया था. पुलिस को प्रकाश खटावकर से उस का नागपुर का जो पता मिला था, जांच करने पर वह फरजी पाया गया था. इस के बाद उस की तलाश के लिए पुलिस की 2 टीमें बनाई गईं. एक टीम नागपुर भेजी गई तो दूसरी टीम वहां जहां वह रहता और काम करता था. पुलिस ने वहां के लोगों से उस के बारे में पूछताछ की.

दूसरी टीम द्वारा पूछताछ में पता चला कि विश्वास नागपुर का नहीं, बल्कि कोल्हापुर का रहने वाला था. वहां के थाना राजारामपुरी में उस के खिलाफ हत्या का एक मुकदमा दर्ज हुआ था, जिस में वह साल भर पहले बरी हो चुका था. बरी होने के बाद ही वह पुणे आ गया था. इंसपेक्टर विजय कुमार शिंदे के लिए यह जानकारी काफी महत्त्वपूर्ण थी. कोल्हापुर जा कर वह थाना राजारामपुरी पुलिस की मदद से विश्वास को गिरफ्तार कर पुणे ले आए और उसे अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया. थाने में अधिकारियों की उपस्थिति में विश्वास कलेकर से शुभांगी की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू ही हुई थी कि वह फर्श पर गिर कर छटपटाने लगा. उस के मुंह से झाग भी निकल रहा था. अचानक उस का शरीर अकड़ सा गया. पूछताछ कर रहे सारे पुलिस वाले घबरा गए. उन्हें लगा कि पूछताछ से बचने के लिए विश्वास ने जहर खा लिया है. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया.

डाक्टरों ने उसे चैक कर के बताया कि इस ने जहर नहीं खाया है, बल्कि इसे मिर्गी का दौरा पड़ा है. यह जान कर पुलिस अधिकारियों की जान में जान आई. इलाज के बाद विश्वास को थाने ला कर पूछताछ की जाने लगी तो उस से सख्ती के बजाय मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में एकतरफा प्रेम में शुभांगी की हत्या करने की उस ने जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार से थी—

शुभांगी महाराष्ट्र के नागपुर के रहने वाले प्रकाश मधुकर खटावकर की पत्नी थी. जिस समय शुभांगी की शादी प्रकाश से हुई थी, उस समय वह बीकौम कर रहा था. शुभांगी जैसी सुंदर, संस्कारी और समझदार पत्नी पा कर वह बहुत खुश था. पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ दिनों तक वह गांव में पिता मधुकर खटावकर के साथ खेती के कामों में उन की मदद करता रहा. खेती की कमाई से किसी तरह परिवार का खर्च तो चल जाता था, पर भविष्य के लिए कुछ नहीं बच पाता था. ऐसे में जब प्रकाश और शुभांगी को एक बच्चा हो गया तो उस के भविष्य को ले कर उन्हें चिंता हुई. दोनों ने इस बारे में गहराई से विचार किया तो उन्हें लगा कि बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें गांव छोड़ कर शहर जाना चाहिए.

इस के बाद प्रकाश और शुभांगी घर वालों से इजाजत ले कर पहले मुंबई, उस के बाद पुणे जा कर स्थाई रूप से बस गए थे. पुणे के जेल रोड पर किराए का मकान ले कर उन्होंने रोजीरोटी की शुरुआत की. प्रकाश को एक प्राइवेट कोऔपरेटिव बैंक में नौकरी मिल गई थी तो पति की मदद के लिए शुभांगी कुछ घरों में खाना बनाने का काम करने लगी थी. इस काम से शुभांगी को अच्छे पैसे मिल जाते थे. इस के अलावा वह घर से भी टिफिन तैयार कर के सप्लाई करती थी. इस तरह कुछ ही दिनों में उन की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत हो गई. शुभांगी के पास पैसा आया तो इस का असर उस के रहनसहन पर तो पड़ा ही, उस के शरीर और बातव्यवहार पर भी पड़ा. अब वह पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी.

जल्दी ही शुभांगी और प्रकाश ने कर्वेनगर के श्रमिक परिसर की गली नंबर-5 में अपना खुद का मकान खरीद लिया था. बच्चे का भी उन्होंने एक बढि़या अंगरेजी स्कूल में दाखिला करा दिया था. शुभांगी को मेहनत ज्यादा करनी पड़ती थी और उस के पास समय कम होता था. उस की भागदौड़ को देखते हुए प्रकाश ने इस के लिए स्कूटी खरीद दी थी. शुभांगी घर और बाहर के सारे काम कुशलता से निपटा रही थी. इस के अलावा वह अपने शरीर का भी पूरा खयाल रखती थी. बनसंवर कर वह स्कूटी से निकलती तो देखने वाले देखते ही रह जाते थे. उस का शरीर सांचे में ढला ऐसा लगता था कि वह कहीं से भी 13 साल के बच्चे की मां नहीं लगती थी. उस की यही खूबसूरती उस के लिए खतरा बन गई.

शुभांगी जिस परिसर में रहती थी, उसी परिसर में 40 साल का विश्वास कलेकर भी एक साल पहले कोल्हापुर से आ कर रहने लगा था. रोजीरोटी के लिए वह वड़ापाव का ठेला लगाता था. एक ही परिसर में रहने की वजह से अकसर उस की नजर शुभांगी पर पड़ जाती थी. खूबसूरत शुभांगी उसे ऐसी भायी कि वह उस का दीवाना बन गया. इस की एक वजह यह थी कि उस की शादी नहीं हुई थी. शायद मिर्गी की बीमारी की वजह से वह कुंवारा ही रह गया था. और जब उसे घर बसाने का मौका मिला तो उस में भी कामयाब नहीं हुआ. जिस लड़की से वह प्यार करता था, उस की हत्या हो गई थी. उस की हत्या का आरोप भी उसी पर लगा था, लेकिन अदालत से वह बरी हो गया था. बरी होने के बाद वह पुणे आ गया था और उसे शुभांगी से प्यार हुआ तो वह हाथ धो कर उस के पीछे पड़ गया. शुभांगी तक पहुंचने के लिए पहले उस ने उस के पति प्रकाश से यह बता कर दोस्ती कर ली कि वह भी उस के गांव के पास का रहने वाला है. इस के बाद जल्दी ही वह शुभांगी के परिवार में घुलमिल गया. शुभांगी के घर आनेजाने में ही उस ने शुभांगी से यह कह कर अपना टिफिन भी लगवा लिया कि दिन भर काम कर के वह इस तरह थक जाता है कि रात को उसे अपना खाना बनाने में काफी तकलीफ होती थी. शुभांगी को भला इस में क्या ऐतराज होता, उस का तो यह धंधा ही था. वह उस का भी टिफिन बना कर पहुंचाने लगी.

समय अपनी गति से सरकता रहा. शुभांगी विश्वास का टिफिन देने आती तो इसी बहाने वह उसे एक नजर देख लेता, साथ ही उसे प्रभावित करने के लिए उस के बनाए खाने की खूब तारीफ भी करता. अपनी तारीफ सुन कर शुभांगी कुछ कहने के बजाय सिर्फ हंस कर रह जाती. इस से विश्वास को लगने लगा कि वह उस के मन की बात जान गई है. शायद इसी का परिणाम था कि एक दिन उस ने अपने मन की बात शुभांगी से कह दी. उस की बातें सुन कर शुभांगी सन्न रह गई. वह संस्कारी और समझदार महिला थी, इसलिए नाराज होने के बजाय उस ने उसे समझाया, ‘‘मैं शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे की मां भी हूं. मेरा अच्छा सा पति है, जिस के साथ मैं खुश हूं. तुम हमारे गांव के पास के हो, इसलिए हम सब तुम्हारी इज्जत करते हैं. तुम अपने मन में कोई ऐसा भ्रम मत पालो, जो आगे चल कर तुम्हें तकलीफ दे.’’ लेकिन शुभांगी के लिए पागल हुए विश्वास पर शुभांगी के समझाने का कोई असर नहीं हुआ. उस ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘शुभांगी, तुम्हारी वजह से मेरी रातों की नींद और दिन का चैन लुट गया है. हर घड़ी तुम मेरी आंखों के सामने रहती हो. मुझे तुम से सचमुच प्यार हो गया है. तुम पति और बच्चे को छोड़ कर मेरे पास आ जाओ. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें कोई काम नहीं करने दूंगा.’’

विश्वास कलेकर की इन बातों से शुभांगी का धैर्य जवाब दे गया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें इतना समझाया, फिर भी तुम्हारी समझ में नहीं आया. अगर फिर कभी इस तरह की बातें कीं तो ठीक नहीं होगा. मैं तुम्हारी शिकायत प्रकाश से कर दूंगी. जरूरत पड़ी तो पुलिस से भी कर दूंगी.’’ शुभांगी की इस धमकी से कुछ दिनों तक तो विश्वास शांत रहा. लेकिन एक दिन मौका मिलने पर वह शुभांगी के सामने आ कर खड़ा हो गया और पहले की ही तरह गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘शुभांगी, तुम मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता.’’

शुभांगी ने नाराज हो कर उसे खरीखोटी तो सुनाई ही, उस की इस हरकत की शिकायत प्रकाश से भी कर दी. प्रकाश ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो उस की बात को समझने के बजाय वह उलटा उसे ही समझाने लगा. इस के बाद दोनों में कहासुनी हो गई.

परेशानी की बात यह थी कि इस के बाद भी विश्वास अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. अब वह शुभांगी को परेशान करने लगा. जब इस की जानकारी शुभांगी के भाई को हुई तो उस ने विश्वास की पिटाई कर के चेतावनी दी कि अगर उस ने फिर कभी शुभांगी को परेशान किया तो ठीक नहीं होगा.

शुभांगी के भाई द्वारा पिटाई करने से विश्वास इतना आहत हुआ कि उस ने अपनी इस पिटाई और अपमान का बदला लेने के लिए शुभांगी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया. उसे शुभांगी के सारे कामों और आनेजाने की पूरी जानकारी थी ही, इसलिए 18 अक्तूबर, 2016 की सुबह 5 बजे जा कर वह केतन हाइट्स सोसायटी के पास खड़े हो कर उस का इंतजार करने लगा. शुभांगी अपने समय पर वहां पहुंची तो उस की स्कूटी के सामने आ कर उस ने उसे रोक लिया. उस की इस हरकत से नाराज हो कर शुभांगी ने कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है. अभी तुम्हें या हमें चोट लग जाती तो?’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम तो जानती ही हो, आशिक मरने से नहीं डरते. अपनी मंजिल पाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं.’’ विश्वास ने बेशर्मी से मुसकराते हुए कहा, ‘‘आखिर तुम मेरी बात मान क्यों नहीं लेती?’’

‘‘तुम्हारी बकवास सुनने का मेरे पास समय नहीं है, तुम मेरे सामने से हटो और मुझे काम पर जाने दो.’’

‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?’’ विश्वास ने कहा.

‘‘मुझे तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं देना.’’ शुभांगी ने गुस्से में कहा.

‘‘तो क्या तुम्हारा यह आखिरी फैसला है?’’ विश्वास ने पूछा.

‘‘हां…हां,’’ शुभांगी ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है. तुम मुझे इस जन्म में तो क्या, अगले 7 जन्मों तक नहीं पा सकोगे.’’

शुभांगी के चेहरे पर अपने लिए नफरत और दृढ़ता देख कर विश्वास को गुस्सा आ गया. लंबी सांस लेते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितना समझाया कि तुम मेरी हो जाओ, लेकिन तुम ने मेरी बात नहीं मानी. अब मैं तुम्हारा 7 जन्मों तक इंतजार करूंगा.’’

कह कर विश्वास ने जेब से चाकू निकाला और ताबड़तोड़ वार कर के शुभांगी की हत्या कर दी. इस के बाद जल्दी से उस के मोबाइल फोन के दोनों सिम निकाल कर उसी की स्कूटी से भाग निकला. स्कूटी उस ने पुणे के रेलवे स्टेशन पर पार्किंग में खड़ी कर दी और ट्रेन से कोल्हापुर चला गया.

  विस्तृत पूछताछ के बाद विजय कुमार शिंदे ने उस के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह एकतरफा प्यार करने वाला विश्वास अपनी सही जगह पर पहुंच गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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