जीवनसाथी के प्रति प्रेम को संसार में चिरस्मरणीय बनाए रखने के लिए खूबसूरत महल, ऊंचेऊंचे, बडे़बड़े शानदार किले, आलीशान मकबरों आदि का बनाना नई बात नहीं है. इस का ज्वलंत उदाहरण ‘महलों का ताज’, भारत के आगरा में बना अद्वितीय प्रेम का प्रतीक, ताजमहल, अपनी सुंदरता, भव्यता एवं आकर्षण के कारण विश्व के  ‘नौ वंडर्स’ में एक है. आगरा का ताजमहल अकेला ही एक ऐसे प्रेम का प्रतीक  है जिस का कोई मुकाबला नहीं है. भारत के मुगल बादशाह शाहजहां की पत्नी मुमताज की मृत्यु के बाद शाहजहां ने अपने सच्चे प्यार को अमर करने के लिए दुनिया का सब से सुंदर और सर्वश्रेष्ठ महल बनाने की ठान ली थी और इस तरह एक अत्यंत सुंदर, आलीशान महल बन गया जिसे उस की अद्वितीय सुंदरता एवं भव्यता के कारण ताजमहल का नाम दिया है.

यहां हम विश्व के कुछ और शानदार ताजमहलों की बात करेंगे. प्रेम के प्रतीक कई प्रकार के होते हैं. आगरा के ताजमहल को देखने के बाद ऐसे ही अमरप्रेम के और प्रतीकों को देखने का मुझे अवसर मिला.

बोल्ट कैसल

कनाडा में 1,000 आईलैंड्स पर बोल्ट कैसल महल को जौर्ज बोल्ट ने अपनी प्रिय पत्नी लुईस की याद में बनवाया था. 1851 में जन्मा जौर्ज बोल्ट, अमेरिका का एक अरबपति था. बोल्ट अपनी पत्नी लुईस, जिसे वह ‘ब्यूटीफुल पिं्रसैस’ कह कर पुकारता था, को बहुत प्यार करता था. बोल्ट ने 1,000 आइलैंड्स पर लुईस की याद में एक चिरस्मरर्णीय महल बनाने का निश्चय किया. 1900 में इस प्रेम के प्रतीक का बनना शुरू हुआ. शायद उस ने आगरा के ताजमहल का नाम नहीं सुना था. उस ने उस समय के मशहूर एवं महंगे से महंगे आर्किटैक्ट व करीगरों को इस महत्त्वपूर्ण कार्य में लगाया. बोल्ट ने निश्चय किया कि वैलेंटाइन डे और लुईस के जन्मदिन के अवसर पर उसे इस अपार प्रेम के उपहार को भेंट करेगा. अपने जन्मदिन के ठीक 1 महीने पहले बोल्ट को अकेला छोड़ 42 वर्षीया लुईस अचानक इस संसार को छोड़ कर चली गई. 1904 में बोल्ट कैसल बनाने का काम लुईस की अचानक मृत्यु के कारण बंद कर दिया गया. आज यह 1977 से एक टूरिस्ट केंद्र के रूप में जाना जाता है.

अत्यंत आधुनिक साजसज्जा एवं विश्व के विभिन्न भागों से लाई गई कलाकृतियों से सजा यह कैसल दुनिया के किसी राजमहल से कम नहीं है.

माउसोलस का मकबरा

पतिपत्नी के अमरप्रेम के प्रतीक की एक निशानी हमें 377 बीसी में बने माउसोलस के मकबरे के रूप में मिलती है. इस प्यार की यादगार के पीछे की कहानी थोड़ी अलग है. यहां पर महल या मकबरा पति न बनवा कर पत्नी अपने पति के मरने के बाद उस की याद में बनाती है. जिस की अमरप्रेम को निशानी के रूप में दुनिया के उस समय के सब से शानदार मकबरों में गिनती होती है.  माउसोलस अपनी रानी अर्टमीसिया के साथ हैलीकारनासस और उस के आसपास के क्षेत्रों में 24 साल तक राज करता रहा. अर्टमीसिया और माउसोलस आपस में इतना प्यार करते थे कि माउसोलस कभी भी अर्टमीसिया के बिना रहने की कल्पना नहीं कर सकता था. सन 353 बीसी में माउसोलस की अचानक मृत्यु हो गई. रानी अर्टमीसिया ने अपने पति की याद में दुनिया का सब से बड़ा और शानदार बहुमूल्य मकबरा बनाने का निश्चय किया. कई वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद 125 फुट ऊंचा तीनमंजिला मकबरा बन कर तैयार हुआ.

यह मकबरा अपनी सुंदरता, विशालता तथा अद्वितीय शिल्पकला की कृति के कारण विश्व का प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक मकबरा गिना जाने लगा. अपनी सजावट एवं इस में लगी अति सुंदर मूर्तियों के कारण इस की ख्याति में कई गुना वृद्धि हुई. अर्टमीसिया द्वारा अपने पति राजा माउसोलस के प्रति अमरप्रेम के प्रतीक के रूप में बनाए गए इस मकबरे को एंशिएंट वर्ल्ड के सातवें आश्चर्य में गौरवपूर्ण स्थान मिला. माउसोलस की मृत्यु के 2 वर्ष भी नहीं बीते थे कि अर्टमीसिया की मृत्यु हो गई. पतिपत्नी दोनों के पार्थिव शरीर इसी मकबरे में दफन हैं. अमरप्रेम की निशानी भारत के ताजमहल की तरह दोनों प्रे्रमियों के शरीर अपने बनाए इस शानदार मकबरे के नीचे शांत पड़े हैं.

हुमायूं का मकबरा

दिल्ली में बने हुमायूं के मकबरे की शानोशौकत ताजमहल से कम नहीं है. मुगल बादशाह हुमायूं की मृत्यु के बाद उस की विधवा हमीदा बानो बेगम ने अपने पति की याद में 1565 में दिल्ली में मथुरा रोड के पास एक आलीशान एवं भव्य मकबरा बनाया. इसे देखने से आप को किसी राजा के आलीशान महल की याद आती है. यह मुगल साम्राज्य की अद्वितीय वास्तुकला तथा शिल्कला को भारत में फैलाने वाला प्रथम स्मारक है. जिस में पर्शियन निर्माणशैली की छवि दिखती है जो चारों तरफ सुंदर, हरेभरे बगीचों और क्यारियों से घिरा है. यह मकबरा भारतीय उपमहाद्वीप में मुगलों द्वारा बना प्रथम औद्योगिक मकबरा है जो आगे चल कर मुगलों के अनेक स्मारकों को बनाने में प्रेरणा बना. ताजमहल उस में से एक है. 15 लाख रुपयों में बनने वाले हुमायूं के इस मकबरे को ‘ताजमहल का दादा’ भी कहते हैं. दिल्ली का यह एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है.

हैंगिंग गार्डेंस

हैंगिंग गार्डेंस को बने 2,500 वर्ष से अधिक समय बीच चुका है किंतु अपने समय में बने स्मारकों में यह अपनी खूबसूरती और इस के बनने के पीछे जुड़ी कहानी के कारण इसे ताजमहल की श्रेणी में गिना जाता है. बेबीलोन का हैंगिंग गार्डेंस ‘सैवन वंडर्स औफ एंशिएंट वर्ल्ड’ में गिना जाता है. बेबीलोन के बादशाह ने इसे 605 बीसी में अपनी प्रिय पत्नी एमिटिस को खुश रखने के लिए बनवाया था. यह प्यार कुछ गहरा, कुछ अनोखा और कुछ दिल की गहराइयों को छूने वाला था. इतिहास में इस तरह के अनोखे प्यार का दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलता. विवाह के पहले एमिटिस हरेभरे मैदान, ऊंचेऊंचे पहाड़, झरने आदि, जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर थे, में रहती थी. शादी के बाद मैसोपोटामिया में राजा का महल और उस के आसपास के नीरस स्पौट्स, जो प्राकृतिक सौंदर्य से दूर थे, उसे रास नहीं आते थे. राजा ने अपने दिल की मल्लिका, सौंदर्य सामाज्ञी तथा गुणों की खान एमिटिस की उदासी दूर करने के लिए और उसे प्रसन्न रखने के लिए उसी तरह के पहाड़, हरेभरे जंगल, हरियाली, बागबगीचे आदि बनाने की योजना बनाई जो अंतिमरूप में हैंगिंग गार्डेंस के रूप में सामने आई.

एक कृत्रिम पहाड़ पर बने बड़ेबड़े खोखले खंभों के ऊपर छत, खंभों के अंदर भरी मिट्टी से निकलते पेड़पौधों और छतों को जोड़ती सुंदर कीमती संगमरमर की सीढि़यां, उस पर हरेभरे बगीचे, क्यारियां, पौधे आदि का यह एक मायावी संसार था. जगहजगह ऊंचेऊंचे फौआरे, वाटर फौल्स, विभिन्न प्रकार के रंगों के कई तरह के पुष्पों से सुसज्जित गमलों की सीढि़यों पर लगी कतारें प्राकृतिक सौंदर्य की कमी को सिर्फ पूरा ही नहीं किया बल्कि एक नई अनूठी, झूलती हुई अविश्वसनीय रचना ने एमिटिस के प्रति उस के प्रेम की निशानी को अमर बना दिया. पति द्वारा पत्नी के प्यार में बनाया यह सुंदर, आकर्षक स्मारक किसी ताजमहल से कम न था. मगर समय के थपेड़ों ने इसे आज एक खंडहर के रूप में परिवर्तित कर दिया है.

इस प्रकार, विश्व के कई कोनों में कई ताजमहल बने, टूटे और इतिहास के पन्नों में गुम हो गए. पर शाहजहां द्वारा मुमताज के प्रति अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में आगरा में बनाया गया ताजमहल आज भी सुंदर एवं कलाकृति के सर्वश्रेष्ठ नमूने के रूप में लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इस का चिरयौवन सदियों तक लोगों को अपने मोह में बांध कर रखता रहेगा. विश्व के अनेक देशों के राष्ट्रपति, राजनेता, राजा, महाराजा, प्रिंस आदि विश्व की इस बेजोड़ कलाकृति की एक झलक पाने के लिए अनयास ही यहां खिंचे चले आते हैं.

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