विश्वभर में अपनी खूबियों के लिए मशहूर सिंगापुर अनेक सभ्यताओं और परंपराओं का सम्मिश्रण होते हुए भी आधुनिक है. बड़ीबड़ी इमारतों वाले चकाचौंध भरे सिंगापुर में पर्यटन करना एक यादगार अनुभव है.

बैंकौक से सिंगापुर की हमारी यात्रा डेढ़ घंटे की थी. वहां हमारा भ्रमण 2 हिस्सों में बंटा हुआ था. प्रथम 4 दिन, 3 रातें क्रूज पर और बाकी 2 दिन सिंगापुर शहर के दर्शन के लिए. सिंगापुर की धरती पर हम ने कदम रखे. बंदरगाह पर हमारा विशालकाय जहाज ‘सुपर स्टार वर्गो’ बंधा हुआ था. भीतर लंबीलंबी कतारें थीं. जांच प्रक्रिया से गुजरने के बाद हमें जहाज के अंदर जाने की अनुमति मिली.

हमें 9वीं मंजिल पर स्थित केबिन आवंटित किए गए. हमें बोडिंग पास दिए गए थे जो हमारी पहचान थी. इस जहाज पर कुल 13 मंजिलें थीं. हमारे केबिन में उस दिन आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा पढ़ने पर मालूम हुआ कि यहां हर मंजिल पर अलगअलग शोज होते हैं. डांस, गाने, मैजिक शो आदि. हमारे पैकेज में 3 रेस्तरां थे जिन में से किसी में भी हम भोजन ले सकते थे.

रात्रि 11 बजे वाले शो का आनंद उठाने मैं, मेरे पति ननद व ननदोई अपनेअपने केबिन से निकल कर हौल में पहुंचे. लोगों की अच्छीखासी भीड़ वहां थी. उस शो में मंच पर अलगअलग देशों से आए 5 युवक सामने आए. उन्हें सैक्सी नृत्य द्वारा अपनी पार्टनर को रि?ाना था. सब ने अपनेअपने ढंग से उत्तेजक भावभंगिमाओं द्वारा अपनी- अपनी पार्टनर को रि?ाने का प्रयास किया. इन पांचों में से बाजी मारी आस्ट्रेलियाई युवक ने. अनेक भारतीय जोड़े यहां हनीमून मनाने आए हुए थे. ज्यादातर लोग गुजरात, पंजाब और दिल्ली से थे.
अगले दिन जहाज को कुआलालंपुर बंदरगाह पर रुकना था. उस दिन हम आराम करना चाहते थे इसलिए हम ने टिकटें नहीं खरीदीं.
हम ने पूरा दिन जहाज का जायजा लिया. 13वीं मंजिल पर स्विमिंग पूल, जकूजी बाथ आदि सुविधाएं उपलब्ध थीं. आस्ट्रेलियाई और चीनी वहां जलविहार का आनंद उठा रहे थे और भारतीय खानेपीने के स्टालों पर भीड़ लगाए थे.
डेक पर खड़े हो कर दूर तक फैली अथाह जलराशि का नजारा तृप्ति प्रदान करने वाला था.

उस रात 11 बजे का शो गत रात्रि के शो से अलग था. आयोजकों ने क्रूज के कुछ लड़कों को मंच पर बुलाया. उस के बाद दर्शकों में से लड़कियों को मंच पर आमंत्रित किया. लड़कियों को एक क्रूजबौय की छाती पर नीबू का रस मल कर नमक लगाना था और फिर जीभ से चाटना था. कोई भी भारतीय लड़की आगे नहीं आई. एकएक कर के आस्ट्रेलियाई, चीनी और स्वीडिश लड़कियां आगे आईं. अपनेअपने ढंग से उन्होंने उस उत्तेजक खेल में हिस्सा लिया. हौल तालियों और सीटियों से गूंज उठा.
क्रूज में कैसिनो भी था. जो भी हो, यहां अलग ही दुनिया थी और दुनिया के नजारे अलग थे. कुछ लोग यहां से मलयेशिया जाने वाले थे. 

अगले दिन हम ने फुकेट के टूर का चुनाव किया. यह थाईलैंड में आता है लेकिन हम उस स्पौट पर वाया सिंगापुर गए. सुबह 11 बजे हम पोर्ट पर उतर गए. वहां रेत पर चलते हुए हम बस तक पहुंचे. बस द्वारा हम फुकेट पहुंचे. फुकेट वही शहर है जो कुछ वर्ष पूर्व सूनामी लहरों की चपेट में आ कर तबाह हो गया था. इसे देख कर कोई कह नहीं सकता कि यह लहरों की प्रचंडता का कभी शिकार भी हुआ था.

हम नाव से थोड़ी दूरी पर पहुंचे. हम नाव से उतर कर केले के आकार की छोटी कश्ती ‘बनाना बोट’ में बैठे. हम नाव द्वारा गुफा में प्रविष्ट हुए. वहां समंदर के बीचोंबीच 3 गुफाएं थीं. समंदर की ऊंची लहरों के कारण हमें 2 गुफाओं में ही जाने की अनुमति मिली. जब हम पहली गुफा में प्रविष्ट हुए तो भीतर अंधेरा था. हमारी नाव पर सवार नाविक ने टौर्च जला कर हमें गुफा की छत पर उलटे लटके चमगादड़ दिखाए. चमगादड़ों की अंधेरे में चमकती आंखें डरावना एहसास करा रही थीं.

इस के बाद हम दूसरी गुफा में प्रविष्ट हुए. कुछ सैलानी समंदर में उतर कर तैराकी का मजा लेने लगे. हम ‘बनाना बोट’ से उतर कर अपनी बड़ी नाव में बैठ गए. अब जोरों से भूख लग रही थी. दोपहर का भोजन तैयार था. हम भोजन पर टूट पड़े. हम लोग काफी थक चुके थे.
हमारा जहाज जल में ?ाग बनाता अपने गंतव्य की ओर दौड़ता जा रहा था और लहरें पीछे रपटती जा रही थीं. यहीं से सिंगापुर के लिए हमारी वापसी थी.
हम डेक से उतर कर वापस अपने केबिन में आ गए. रात्रि भोज के बाद 11 बजे ‘कैसेनोवा शो’ की टिकट खरीदी थी. वहां मौजूद अधिकतर दंपतियों ने इस शो की टिकटें खरीदी थीं.

ठीक 11 बजे कैसेनोवा शो शुरू हुआ. कैसेनोवा नामक लवर बौय परंपरागत परिधान में सुसज्जित रस्सी से ?ालता हुआ मंच पर उपस्थित हुआ. पृष्ठभूमि में गीतसंगीत लहरियां मनोरंजक वातावरण उत्पन्न कर रही थीं. दर्शक मंत्रमुग्ध हो रहे थे. धीरेधीरे 8 रूसी लड़कियां टौपलैस हो मंच पर आईं. फिर उर्वशी, रंभा, मेनका बन कर अपनी नृत्यकला का प्रदर्शन करने लगीं. शो की समाप्ति पर स्टेडियम तालियों और सीटियों की आवाज से गूंज उठा. सुबह हम देर से जागे. आज हमें पैकिंग करनी थी.

हम तैयार हो कर नाश्ते के लिए रेस्तरां पहुंचे. आज क्रूज के 7 नंबर डेक पर एक फिल्म की शूटिंग होनी थी. पूरे दिन शूटिंग देखी. जहाज रात्रि 8 बजे सिंगापुर पहुंचने वाला था. हमारी यात्रा यहीं समाप्त होनी थी. सामान पैक कर के हम ने अपनेअपने केबिन के बाहर रख दिया. सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद लगभग 8 बज कर 5 मिनट पर हम क्रूज से बाहर आ गए.

लौयन सिटी

बाहर बारिश हो रही थी. हमारा टैक्सी ड्राइवर काफी देर से हमारी प्रतीक्षा कर रहा था. वह नाराज लग रहा था. हम खामोशी से टैक्सी में बैठ गए.

लगभग पौने घंटे बाद हम पूर्व आरक्षित होटल पहुंच गए. टैक्सी चालक ने हमें सूचित किया कि वह अगले दिन सुबह 9 बजे हमें लेने आएगा. दिन के प्रथम भाग में हमें सिटी टूर कराएगा और द्वितीय भाग में सैंतोसा आईलैंड पर बसे सैंतोसा पार्क में छोड़ देगा. फिर रात्रि साढ़े 8 बजे हमें वहां से लेगा.

अगले दिन हम घूमने निकले. सिंगापुर बड़ीबड़ी इमारतों वाला देश है. विश्वभर में अपनी खूबियों के लिए मशहूर यह देश विभिन्न सभ्यताओं, परंपराओं और धर्मों का सम्मिश्रण होते हुए भी आधुनिक है.

यह एक स्वतंत्र गणतंत्र देश है. यहां बहुतायत में चीनी हैं, बाकी भारतीय, अंगरेज, तमिल, बौद्ध, मुसलिम और ईसाई हैं.

हम ने मुस्तफा मौल की बहुत तारीफ सुनी थी. हम टैक्सी ले कर मुस्तफा मौल पहुंचे. यहां का एक सिंगापुरी डौलर भारत के 35 रुपए के बराबर था.

मुस्तफा बहुत बड़ा मौल है. यहां चप्पलें, टीशर्ट, जैकेट, परफ्यूम आदि बहुत महंगे थे. हम लोग काफी?थक चुके थे. रात भी हो गई थी. वापस होटल में आ कर सो गए.

सुबह उठ कर हम फटाफट तैयार हुए और नाश्ता कर के रेस्तरां से बाहर निकले. टैक्सी हमारी प्रतीक्षा में बाहर खड़ी थी. गाइड ने बताया कि सिंगापुर छोटा सा देश है और यही राजधानी भी है और यही शहर भी है. यहां चीनी, मले और तमिल लोग रहते हैं. अंगरेजी, मंडारिन, मले और तमिल भाषा का प्रयोग किया जाता है.

रास्ते में उस ने कई पार्क दिखाए. एक पार्क में हम लोग रुके. वहां स्थापित जलसिंह यानी मरलौयन की विशालकाय मूर्ति दिखाते हुए गाइड ने कहा कि यह सिंगापुर का राष्ट्रीय चिह्न है. मर यानी जल और लौयन यानी सिंह. इसी सिंह के कारण इस देश का नाम सिंगापुर पड़ा. उस ने बताया कि भले ही चीनी यहां अधिक संख्या में हैं लेकिन वे अन्य जातियों से मिलजुल कर रहते हैं.

थोड़ी देर बाद हम सैंतोसा पार्क पहुंचे. इस विशाल पार्क की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती थी. विशालकाय मछलीगृह में लगभग 250 प्रकार की विभिन्न प्रजातियों की मछलियां तैर रही थीं.

वहां से बाहर निकल कर डौल्फिन शो देखने के लिए आगे बढ़े. डौल्फिन बहुत प्रशिक्षित थी. उस के अलावा सी लौयन ने भी संगीत पर थिरकथिरक कर अपने नृत्य कौशल से दर्शकों को रोमांचित किया.

वहां से हम लोग बाहर आए और आगे ‘इमेजिज औफ सिंगापुर’ में प्रविष्ट हुए. अंदर अद्भुत दृश्य देखने को मिले. सिंगापुर कैसे बना, इस ऐतिहासिक घटनाक्रम को श्रव्यदृश्य प्रभावों के माध्यम से सम?ाया गया था. प्रवेशद्वार पर टंगे तैलचित्रों का होंठ और आंखों की पुतलियों को हिला कर बोलना, धुएं की बोलती आकृति काफी सजीव जान पड़ती थी. सिंगापुर के रीतिरिवाजों की जानकारी बोलते पुतलों के माध्यम से दी गई थी. सबकुछ अद्भुत था. चायनीज, मले और तमिल लोगों की एकता का प्रतीक यह संग्रहालय यादगार था.

शाम साढ़े 7 बजे होने वाले ‘सौंग औफ सी’ शो देखने के लिए आगे समुद्र किनारे की ओर प्रस्थान करना था. ठीक साढ़े 7 बजे तेज संगीत की आवाज बंद हो गई और शुरू हुआ ‘सौंग औफ सी’. कार्टून कैरेक्टर पानी की बौछारों से बने परदे पर बोलने लगे. आग के गोले तेज आवाज के साथ फटने लगे. सीधी भाषा में बात करें तो लाइट ऐंड साउंड इफैक्ट का ऐसा संगम पहले कभी नहीं देखा.

आह से आहा तक

अगले दिन यूनिवर्सल स्टूडियो जाने का कार्यक्रम निश्चित था. सुबह ड्राइवर हमें लेने फिर हाजिर हुआ.

उस ने हमें स्टूडियो में होने वाले कार्यक्रमों की छपी रूपरेखा थमाई जिस पर कुछ गोल निशान बने थे. अब हमें स्टूडियो में सिर्फ वही स्थान देखने थे जो उस के द्वारा चिह्नित थे.

हम ‘लौस्ट वर्ल्ड’ में प्रविष्ट हुए. यहां जुरासिक पार्क रैपिड स्क्वायर है यानी रिवर राफ्ट राइड है. इसी तरह कैनोपी फ्लायर है. यह ?ाला 3 सैकंड में तेज रफ्तार से ?ाडि़यों के बीच जिगजैग हो कर चलता है. इसी तरह ‘वाटर वर्ल्ड’ में ‘लाइव वाटर शो’ का प्रसारण हुआ.

इस के बाद ‘फौर फौर अवे’ में श्रैक नामक फोर डी ऐडवैंचर ऐनिमेशन फिल्म अत्यंत दिलचस्प थी. दर्शकों को चश्मे दिए गए थे. हमारी सीट में से पानी की फुहारें निकल कर मुंह पर आ रही थीं. फिल्म में घोड़े पर सवार हीरो दिखाई दे रहा था और घोड़े की तगड़तगड़ की आवाज के साथ हमारी सीटें भी तेजतेज हिलने लगीं. ऐसा लग रहा था मानो हम घोड़े पर सवार हों. मकडि़यां, तितलियां आदि फिल्म में दिखाई जा रही थीं लेकिन वे हमें अपनी आंखों के सामने लटकती महसूस हो रही थीं.

इस के बाद हम ‘ऐंशन इजिप्ट’ यानी प्राचीन मिस्र नामक हौल में ‘रिवेंज औफ मसीज’ में प्रविष्ट हुए. भीतर माहौल काफी भयानक लग रहा था. प्रवेशद्वार पर 2 भीमकाय पहरेदारों की मूर्तियां स्थापित थीं. अंदर से भयानक आवाजें आ रही थीं. रोशनी मद्धम थी.

आगे चल कर हमें एक ट्रेन ?ाले में बैठा दिया गया. वह ?ाला धीमी गति के साथ आगे बढ़ा. देखते ही देखते उस की गति बढ़ती चली गई. तेज, तेज, और तेज. धड़ाक, एक दीवार के सामने आ कर वह ?ाटके से रुक गया. इस के साथ ही ‘कड़च’ की आवाज हुई और टूटी दीवार की दरारों में से कीड़ेकौकरोच दोनों ओर दीवारों पर रेंगते प्रतीत हुए. अभी हम सम?ा ही रहे थे कि यह क्या हुआ, हमारा ?ाला खुद ही वापस मुड़ा और तेज रफ्तार से हमें अंधेरी गुफा में ले गया. हम उत्तेजना से चीख रहे थे, चिल्ला रहे थे. चीखने से डर कम होता है, ऐसा मेरा मानना था. हमारी सम?ा में नहीं आ रहा था कि हम कहां हैं और कहां जा रहे हैं. हम अंधेरे के भंवर में थे. थोड़ी ही देर में हमें रोशनी दिखाई दी और इसी के साथ ?ाला रुक गया.

‘आह से आहा तक’. हम ने चैन की सांस ली. वह अद्भुत ?ाला हमें आज भी भुलाए नहीं भूलता.

इस के बाद हम ‘न्यूयार्क’ में प्रविष्ट हुए जहां हौलीवुड स्टाइल में एक से एक दृश्य देखने को मिले.

इसी प्रकार ‘हौलीवुड’ में भी शो दिखाया गया.

इस रोमांचक दिन के विषय में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें मैं अवश्य बताना चाहूंगी. यहां फोटोग्राफर बिना पूछे पर्यटकों की फोटो खींच लेते हैं, फिर ऊंचे दामों पर बेचते हैं. स्टूडियो में खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ साथ ले जाना प्रतिबंधित था. अंदर कार्टून कैरेक्टर बने बहुरुपियों के साथ बच्चे खुशीखुशी फोटो खिंचवा रहे थे. अंदर कैसीनो भी थे और विश्वस्तरीय होटल भी. बूढ़े, बीमार लोगों के लिए व्हीलचेयर उपलब्ध थीं. 7 बजे हमें टैक्सी ड्राइवर लेने आया. हम ने चैन की सांस ली. कल इस चकाचौंध भरे देश से हमारी वापसी होनी थी. हम रास्ते में मार्केट में उतर गए और ड्राइवर ने बच्चों को होटल में छोड़ दिया. 8 जनवरी को हमें वापस भारत लौटना था. नाश्ता कर के हम टैक्सी में बैठे और ड्राइवर ने हमें एअरपोर्ट छोड़ दिया.

डेढ़ घंटे की फ्लाइट के बाद हम बैंकौक एअरपोर्ट पहुंचे. यहां ढाई घंटे का विश्राम था. बैंकौक से दिल्ली साढ़े 3 घंटे का सफर था. यह यात्रा हमारे लिए यादगार साबित हुई.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...