अब से कोई 25 साल पहले तक भोपाल घूमने आना पर्यटकों के लिए आखिरी 5 विकल्पों में से एक हुआ करता था लेकिन अब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर घूमने आना शुरुआती 5 प्राथमिकताओं में से एक होने लगा है. इस बदलाव की वजह महज यह नहीं है कि देश के किसी भी हिस्से से रेलमार्ग द्वारा आना यहां सुविधाजनक और सहूलियत वाला काम है, बल्कि यह है कि यहां वाकई पर्यटन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य व विकास हुए हैं जिस का श्रेय राज्य के पर्यटन विकास निगम को भी जाता है.

तालतलैयों वाला भोपाल, झीलों वाला भोपाल, नवाबों वाला भोपाल, बाबुओं वाला भोपाल, जरदापरदा और गरदा वाला भोपाल व गैस त्रासदी वाला भोपाल अब काफी बदल गया है. दूसरे शहरों की तरह भोपाल भी चारों तरफ बढ़ा है. लेकिन अच्छी बात यह है कि यहां ऐसा हरियाली खोने या उजाड़ने की शर्त पर नहीं हुआ है. नए भोपाल की चौड़ी सड़कों के इर्दगिर्द झूमती हरियाली, बागबगीचे और जगहजगह बने पार्क पर्यटकों को एहसास कराते हैं कि क्यों और कैसे भोपाल दूसरे शहरों से भिन्न है.

राजा भोज द्वारा बसाए गए शहर भोपाल का नाम पहले भोजपाल था, फिर अपभ्रंश में इसे भोपाल कहा जाने लगा.  मुगल शासकों का यहां लंबे वक्त तक राज रहा, उस में भी दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश वक्त शासन बेगमों ने किया.

आजादी के बाद भोपाल का विकास शुरू हुआ, तब एक नए भोपाल ने आकार लिया. नतीजतन, यह भी 2 हिस्सों में बंट गया. पुराना भोपाल और नया भोपाल.  राजधानी बनने के बाद तो यहां ताबड़तोड़ निर्माण कार्य हुए मगर 70 के दशक में बने न्यू मार्केट ने मानो भोपाल का कायाकल्प कर दिया. न्यू मार्केट न केवल व्यापारिक गतिविधियों का एक बड़ा केंद्र है बल्कि पर्यटकों के लिए शौपिंग का एक अलग अनुभव भी है. दर्जनों तंग और छोटी गलियों से हो कर जब आप बाहर निकलते हैं तो एक भोपाली जज्बा भी आप के साथ होता है. नए और पुराने भोपाल को बांटते न्यू मार्केट की ख्ूबी है कि आप किसी भी तरफ चले जाइए, कोई न कोई पर्यटन स्थल आप का स्वागत कर रहा होगा.

साहित्य और कला में रुचि रखने वालों में से शायद ही कोई भारत भवन के नाम से वाकिफ न होगा. झील के किनारे बसे भारत भवन को कला और संस्कृति प्रेमियों का पसंदीदा अड्डा माना जाता है, जहां हर वक्त कोई न कोई आयोजन हो रहा होता है. यहां शासकीय पुरातत्व संग्रहालय और गांधी भवन भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं. भदभदा रोड पर पर्यटन विकास निगम द्वारा विकसित किया गया पिकनिक स्पौट का सैरसपाटा भी लोगों को अपनी तरफ खीचता है, जहां पार्क, बगीचा, हरियाली और रेस्तरां के अलावा बच्चों के मन बहलाने के तमाम साधन मौजूद हैं.

हवाई अड्डे को शहर से जोड़ती वीआईपी रोड रोज शाम को आबाद होती है तो देररात तक यहां चहलपहल रहती है. हाल ही में तालाब में भोज की विशाल प्रतिमा लगाई गई है. वीआईपी रोड के पुल पर खड़े हो कर तालाब के दूसरी तरफ बोट क्लब के नजारे चाह कर भी लोग नहीं भूल पाते, जहां से तालाब के सीने पर चलती मोटरबोट और क्रूज दिखते हैं. चप्पू वाली नावों या पैडल बोट में बैठ कर नौकायान का लुत्फ भी लोग उठाते नजर आते हैं.

निराली है शान

पुराने भोपाल की भी शान निराली है जहां पर्यटक एशिया की सब से बड़ी मसजिद ताजुल मसाजिद की शान और वास्तु दोनों निहारते हैं. इस के निर्माण में संगमरमर का इफरात से इस्तेमाल हुआ है.  पुराने भोपाल में ही गौथिक शैली में निर्मित शौकत महल भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है. ऐतिहासिक महत्त्व की एक और इमारत गौहर महल भी देखने काबिल है.

मछलीघर, और श्यामला हिल्स स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय सहित ये सभी पर्यटन स्थल एक दिन में आसानी से घूमे जा सकते हैं. किराए की टैक्सी से भोपाल घूमने में लगभग 1,200 रुपए का खर्च आता है. पर्यटकों को खानपान के मामले में भी भोपाल सस्ता या किफायत वाला शहर महसूस होता है.

पर्यटन स्थलों पर घूमतेघूमते बीच में कभी न कभी व्यापारिक क्षेत्र एमपी नगर आता है, जहां ठहरने के लिए सुविधाजनक होटल और घूमने के लिए मौल हैं. भोपाल अगर देश का प्रमुख पर्यटन स्थल बना तो इस की एक वजह इस का एजुकेशन हब बन जाना भी है. 100 से भी ज्यादा इंजीनियरिंग कालेज शायद ही देश के किसी एक शहर में हों.

भोपाल शहर के बाहर होशंगाबाद रोड से होते भोजपुर का शंकर मंदिर भी दर्शनीय है, जहां से 20 किलोमीटर दूर भीमबैठका की गुफाएं हैं. इन गुफाओं के भित्ति और  शैलचित्र आदिम युग और मानव इतिहास की जीतीजागती मिसाल हैं.  पुरातत्वविदों और इतिहास- प्रेमियों को भीमबैठका की गुफाएं जरूर देखना चाहिए. भोपाल से 35 किलोमीटर दूर विश्वविख्यात बौद्ध तीर्थस्थल सांची है जिस के स्तूप सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए थे. बुद्ध के उपदेश, जातक कथाएं और उन से जुड़ी कुछ धरोहरें सांची में सलामत हैं. पिछले 5 सालों में भोपाल में फिल्मी कलाकारों का आनाजाना बढ़ा है. अब यहां सालभर किसी न किसी फिल्म या फिर टीवी सीरियल की शूटिंग चलती रहती है.  मध्य प्रदेश सरकार भी फिल्म निर्माताओं को खूब प्रोत्साहन दे रही है.

भोपाली बटुआ

खरीदारी के लिए हस्तनिर्मित जो आइटम देशभर में मशहूर हैं उन में भोपाली बटुआ प्रमुख है. भोपाल सालभर कभी भी आया जा सकता है लेकिन मई-जून में यहां अब तेज गरमी पड़ने लगी है. नवंबर से मार्च तक का मौसम काफी सुहाना रहता है.  रात में मौसम चाहे कोई भी हो, वीआईपी रोड के पास पुराने भोपाल के चौक बाजार की रौनक शबाब पर होती है.  चौक की गलियों में चाट और खानपान का लुत्फ उठाने के साथ कपड़ों व ज्वैलरी की खरीदारी भी की जा सकती है.

चटोरी गली

पुराने भोपाल के सुल्तानिया रोड स्थित चटोरी गली में आप को सभी प्रकार के नौनवेज आइटम की तरहतरह की वैरायटियां मिल जाएंगी जिन के जायके देशभर में मशहूर हैं. अगर कुछ चटपटा खाने का मन हो तो चटोरी गली उस के लिए एक बेहतर जगह है.

 

 

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