स्कूल के अध्यापकों की इच्छा थी कि दूसरे अध्यापकों व विद्यार्थियों के साथ किसी पर्वतीय स्थल पर घूमने जाएं. वे पर्यटन पर चलने के लिए दूसरे अध्यापकों को तैयार करने लगे, लेकिन ज्यादातर के पास न चलने के कई बहाने थे- ‘मेरा साला आने वाला है, वह नहीं आया तो चलूंगा,’ ‘नाम लिख लो लेकिन पक्का नहीं है’, ‘2 के बजाय 1 दिन का टूर रख लो’ वगैरावगैरा. अध्यापक असद अली सब को समझाने और तैयारियों में लगे रहे. आखिरकार, यात्रा पर रवाना होने का दिन आया. महाराष्ट्र के विदर्भ में सतपुड़ा पहाड़ी शृंखला के मशहूर स्थल चिखलदरा की सैर के लिए हम 12 अध्यापकों को ले कर मिनी बस बारसी टाकली से निकल पड़ी.

सफर के शुरुआती भाग में सभी बातें बहुत करते हैं, शोर होता रहता है. तब सभी के पास बोलने के लिए बहुत कुछ होता है. अकोट आने तक ऐसी ही स्थिति रही. कुछ देर बाद पर्वत दिखाई देने लगे, ठंडी हवाओं के झोंके लगने लगे. जो लोग पहली बार आ रहे थे, खुश हो गए कि प्रवास पहले चरण में ही रोचक होने लगा है. सूर्यनाला जाने वाली सड़क पर मुड़ते ही पहली बार घना जंगल, ऊंचेऊंचे पेड़, गहरी वादियां, खतरनाक मोड़, आसपास और दूरनजदीक बहुत ऊंचेऊंचे पर्वत दिखाई देने लगे. लहलहाते हुए जंगल का नजारा पूरे शबाब पर है. लगता है जंगल अपनी उम्र के 16वें साल में है. जो लोग पहली बार इस तरफ आते हैं, हर्ष और भय दोनों का आनंद उठाते हैं.

हम बेलकुंड के खूबसूरत रैस्टहाउस के लिए ऊपर की ओर जा रहे हैं. सड़क के दायीं ओर एक खूबसूरत नदी नजर आई जो हमारे साथसाथ चलने लगी. हम जितना आगे बढ़ते, नदी उतनी नीचे चली जाती. 1-2 जगह यह नजारा इतना खूबसूरत है कि गाड़ी रोकी गई. हर तरफ खामोशी है. हम भी खामोश हुए और 100 फुट ऊंचे जिस पर्वत के कंधों पर खड़े हैं, उसी के कदमों को देखने लगे.

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