Best Hindi Story :  “एक बार फिर से सोच लो, किशोर. इस उम्र में छोटी सी बच्ची को गोद लेना कहां की समझदारी है? मुझे लगता है कि तुम्हें यह विचार त्याग देना चाहिए,” कमल ने चाय की प्याली को मेज पर रखते हुए कहा.
“मैं ने यह निर्णय सोचविचार करने के बाद ही लिया है, कमल. मैं और सुधा अभी इतने बूढ़े नहीं हुए हैं कि एक बच्ची की परवरिश न कर सकें. मैं अच्छा कमाता हूं. रिटायरमैंट होने में अभी कुछ वर्ष बाकी हैं और उस के बाद भी मैं इतना सक्षम रहूंगा कि बच्ची की देखभाल अच्छी तरह से कर सकूं,” किशोर ने उत्तर दिया.
“मैं रुपएपैसे की बात नहीं कर रहा हूं, किशोर. उस के अलावा भी सौ बातों को दिमाग में रख कर सोचना पड़ता है. तुम्हारे परिवार वाले और रिश्तेदार तुम्हारे इस निर्णय के खिलाफ हैं. और समाज का क्या, तुम ने कभी सोचा है कि लोग क्या कहेंगे? देखो किशोर, मैं केवल सुधा का बड़ा भाई ही नहीं हूं बल्कि तुम्हारा बहुत अच्छा दोस्त भी हूं. इसी नाते तुम्हें समझा रहा हूं. मेरी बात को समझने का प्रयास करो,” कमल ने किशोर पर दबाव बनाते हुए कहा.
“लोग क्या सोचेंगे, समाज क्या कहेगा, मैं ने इस की परवा करनी छोड़ दी है. और जहां तक परिवार व रिश्तेदारों का प्रश्न है, अगर उन्हें हमारी परवा होती तो वे आगे बढ़ कर इस निर्णय में हमारा साथ देते. इस तरह तुम्हें अपना वकील बना कर हमारे पास न भेजते,” किशोर अब क्रोधित होने लगे थे.
“तुम से तो बात करना बेकार है. तुम बात को समझना ही नहीं चाहते हो.”
कमल ने कब अपनी बहन सुधा की ओर देखा जो चुपचाप अपने पति किशोर के पीछे हाथ बांधे खड़ी थी.
“सुधा, कम से कम तुम तो समझदारी से काम लो. इस उम्र में बच्ची को गोद लोगी तो समाज में तरहतरह की बातें होंगी. लोगों के तानों का सामना कर पाओगी तुम?”
“भाईसाहब, आप मुझ से यह पूछ रहे हैं कि मैं लोगों के ताने सुन पाऊंगी या नहीं, शादी के 26 साल बाद भी मेरी गोद सूनी है. आप को क्या लगता है कि मैं ने समाज के ताने नहीं सुने हैं. जिस तरह आज तक सुनती आई हूं, आगे भी सुन लूंगी.”
“देखो सुधा, जो हो चुका है उसे बदला नहीं जा सकता है. उसे भगवान की मरजी समझ कर स्वीकार करो. भावनाओं में बह कर गलत निर्णय मत लो और किशोर को भी समझाने का प्रयास करो. रही बात बच्चों की, तो क्या मेरे बच्चे मेघा और शुभम तुम्हारे बच्चे नहीं हैं?” कमल ने सुधा पर दबाव बनाने की कोशिश की.
“भाईसाहब, आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दीजिए. अगर मेघा और शुभम मेरे बच्चे होते तो क्या भाभी मुझे बांझ होने का ताना देतीं?” सुधा ने कमल से प्रश्न किया तो उन की नजरें शर्म से नीचे झुक गईं.
अब सुधा ने हाथ जोड़ कर आगे कहा, “मैं बरसों से‌ इस सुख से वंचित रही हूं, भाईसाहब. आज 26 सालों के बाद प्रकृति ने मेरी सुनी है. मेरी गोद में मेरी बच्ची आने वाली है. उसे गोद लेना हम दोनों का साझा निर्णय हैं. मेरी आप से विनती है कि हमारी खुशी में हमारा साथ दीजिए.”
“खैर, अब तुम दोनों ने निर्णय ले ही लिया है तो फिर मैं कर भी क्या सकता हूं. आज तुम दोनों किसी की बात नहीं सुन रहे हो. लेकिन याद रखना, अगर भविष्य में तुम्हें अपने इस निर्णय पर पछताना पड़ा तो इस के जिम्मेदार तुम खुद होगे.”
इतना कहने के बाद कमल भी बाकी रिश्तेदारों की तरह हथियार डाल कर वहां से चले गए.
कमल के वहां से जाने के बाद सुधा की हिम्मत जवाब दे गई. वह धम्म से सोफे पर बैठ गई व उस की आंखों से आंसुओं की धार बह निकली. अपनी पत्नी को कमजोर पड़ते देख कर किशोर भावुक हो उठे. उन्होंने अपने जज्बातों पर काबू पाते हुए सुधा के कंधे को थपथपा कर उसे हिम्मत देने का प्रयास किया.
“ये लोग क्यों नहीं समझ रहे हैं, किशोर? आज इतने सालों बाद समय हम पर मेहरबान हुआ है. हमें हमारी औलाद मिलने जा रही है. ये लोग क्यों हम से हमारी खुशी छीनने का प्रयास कर रहे हैं,” सुधा ने बेबसी से किशोर की ओर देखते हुए कहा.
किशोर सुधा की पीड़ा से अपरिचित नहीं थे. अच्छे से अच्छे डाक्टर इलाज और हर जगह सिर झुकाने के बावजूद उस की गोद नहीं भर पाई थी. वे सालों से उसे भीतर से खोखला होते देख रहे थे. मगर चाह कर भी उस के लिए कभी कुछ कर नहीं सके. ऐसा नहीं है कि पहले कभी उन्होंने बच्चा गोद लेने के बारे में नहीं सोचा. उन्होंने कई बार अपनी अम्मा से दबे शब्दों में इस बात का जिक्र किया था. एक बार हिम्मत जुटा कर अम्मा से इस बारे में सीधे बात करने की कोशिश भी की थी. लेकिन अम्मा ने कई दिनों तक घर में ऐसा कुहराम मचाया कि वे घबरा कर पीछे हट गए.
उस के बाद उन की इस बारे में जिक्र करने तक की हिम्मत नहीं हुई. उन की इस बुजदिली का खमियाजा उन की सुधा को आज तक भुगतना पड़ रहा था. सालों से वह सब के ताने सुनती आ रही थी. समाज के लोग तो दूर, अपने खुद के परिवार के लोग उस के निसंतान होने के कारण न जाने कैसेकैसे अंधविश्वास के चलते उस का अपमान कर बैठते थे. परिवार ने तो उन पर दूसरा विवाह करने का दबाव भी बनाया था. लेकिन वे अपनी सुधा से असीम प्रेम करते थे. उन्होंने करारा जवाब दे कर सब का मुंह बंद कर दिया था.
सुधा आज तक उन की खातिर कितनाकुछ सहन करती आ रही थी. अपना पूरा जीवन निस्वार्थ उन पर न्योछावर किया था उस ने. अब उस के लिए कुछ करने की बारी उन की थी. जो खुशी वे उसे आज तक नहीं दे पाए थे, वह अब देने जा रहे थे.
समय भी जैसे उन के इस निर्णय में उन का साथ दे रहा था. यह संयोग था कि थोड़ी ही तलाश के बाद उन्हें एक ऐसी महिला मिली जो अपनी संतान को गोद देने के लिए एक भले दंपती की तलाश में थी. पति की अकस्मात मृत्यु के बाद उस के सिर पर बूढ़े, बीमार सासससुर व 3 छोटे बच्चों की जिम्मेदारी आ गई थी. ऐसे में उस के लिए गरीबी की मार सहते हुए अपनी नवजात बच्ची का लालनपालन कर पाना संभव नहीं था. पहले वह उन के बारे में जान कर थोड़ा हिचक रही थी. लेकिन उन से मिलने के बाद उस की सारी शंकाएं दूर हो गईं.
सुधा से इस बात का जिक्र करने से पहले किशोर ने गोद लेने की प्रक्रिया के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर ली थी. सुधा के मन में कोई भी उम्मीद की किरण जगाने से पहले वे खुद पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते थे. पूरी तसल्ली करने के बाद ही उन्होंने सुधा को यह बात बता कर विमला व उस की नवजात बच्ची से उस का परिचय करवाया. पहलेपहल तो सुधा को यकीन ही नहीं हुआ कि उस के जीवन में कुछ ऐसा घटित होने जा रहा है. फिर उसे आशंकाओं ने घेर लिया. पर आखिर में किशोर की बात समझ कर जब उस ने उस नवजात बच्ची को अपनी गोद में लिया, तो उस की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. जल्दी ही बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हो गई. धीरेधीरे सुधा के मुरझाए चेहरे पर रौनक लौटने लगी थी.
दोनों पक्षों की रजामंदी थी, इसलिए प्रक्रिया में कोई अड़चन तो नहीं थी लेकिन ऐसे कामों में थोड़ा वक्त तो लगता ही है. प्रक्रिया शुरू होने के बाद सब से कठिन कार्य था अपने परिवारों को यह खबर देना. किशोर व सुधा दोनों ने अपनेअपने परिजनों को फोन कर के सूचित कर दिया. किशोर को जिस बात का अंदेशा था, ठीक वैसा ही हुआ. दोनों ओर से विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए. पहले सब फोन करकर के ही उन्हें रोकने का प्रयत्न कर रहे थे. अपनी कोशिशें नाकामयाब होने के बाद उन्होंने आज सुधा के बड़े भाई व किशोर के परममित्र कमल बाबू को अपना प्रतिनिधि बना कर उन के घर भेजा था.

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