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हानिया अहाना के पीछेपीछे चल कर उस के रूम में गई, किसी भी युवा के कमरे की तरह ही अहाना का कमरा था. हानिया ने एक नजर रूम में दौड़ाई, बैड पर दो टैडी बियर रखे थे, दीवार पर शाहरुख खान का पोस्टर था, हानिया हंस पड़ी, बोली, “मैं भी इस की फैन हूं.”
“वाह, आंटी, फिर तो मजा आएगा. मम्मी को शाहरुख खान पसंद नहीं है, शाहरुख क्या, कोई भी खान पसंद नहीं है. अब तक तो आप समझ ही गई होंगी, कारण क्या है,” कह कर अहाना जोर से हंसी, हानिया को भी इस बात पर हंसी आ गई, फिर आगे कहा, “मुझे तुम से कुछ बात करनी थी.’’
“कहिए, आंटी.’’
“अब तुम हमारे घर बहू बन कर आ रही हो, हमारे धर्म, रीतिरिवाज एकदूसरे से बिलकुल अलग होंगे. तुम भले ही इस समय हारून के प्रेम में कुछ ज्यादा न सोच रही हो पर कुछ समय बाद कुछ चीजें अलग, नई लग सकती हैं, तुम्हें कोई दुख न हो इसलिए मैं ने सोचा है कि हम घर में, रिश्तों में, धर्म को अहमियत दें ही क्यों? क्यों न प्रेम ही सब से बढ़ कर रहे. जैसे मैं धर्म को एक किनारे करने की सोच रही हूं, तुम भी अपने साथ किसी धर्म की गठरी मत लाना. खुली, नई सोच से जिंदगी का नया सफर शुरू करते हैं जहां प्रेम सर्वोपरि रहे. धर्म की गठरियां सिर पर ढोते हुए चलेंगे तो आगे का सफर मुश्किल सा होगा. मैं ने हमेशा अपने मजहब में कही हर बात मानी है, पर अब मुझे यह ज्यादा जरूरी लग रहा है कि इस शादी के बाद यह सब बातें सोची जाएं. मैं आपसी प्रेम के लिए मजहब से किनारा कर सकती हूं, और तुम?’’
अहाना अभी तक बहुत ध्यान से बुत की तरह हानिया का कहा एकएक शब्द सुन रही थी, अब जैसे होश में आई, हानिया के गले लग गई, “आंटी, यू आर ग्रेट। अब मुझे समझ आया कि हारून मुझे इतना पसंद क्यों आया. आप ने उस की परवरिश की है, उसे ऐसा ही होना था! मैं कितनी लकी हूं, आंटी, अब मुझे जरा भी डाउट नहीं है. हम सब बहुत खुश रहेंगे.”
दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़ कर जब लिविंगरूम में आई तो सब उन्हें देखने लगे. अहाना ने हंसते हुए पीस का साइन बनाते हुए 2 उंगलियां  ऊपर कीं तो सब हंस पड़े. आगे की बातें होती रहीं पर गीता का ध्यान इस बात में अटका हुआ था कि हानिया ने अकेले में अहाना को क्या कहा होगा. आगे की बातें तय होने के बाद जब सब चले गए तो गीता और वेद ने तुरंत पूछा, “अहाना, हारून की मां क्या कह रही थीं? धर्म परिवर्तन के लिए कह रही थीं न?’’
“ओह मम्मी, उन्होंने तो कहा कि किसी भी धर्म के चक्कर में पड़ना ही नहीं है. प्यार बना रहे, बस.’’
“सब शुरूशुरू में ऐसे ही कहते हैं, बाद में देखना तुम.’’
“ठीक है, बाद में देख लूंगी. अभी आप तैयारी शुरू करो, लड़की की मां हो,” शरारत से कह कर अहाना अपने मम्मीपापा से लिपट गई. रूठेरूठे मातापिता को भी अपनी लाड़ली पर प्यार आ ही गया. दोनों ने उस के सिर पर हाथ रखते हुए उसे अपने से लिपटा लिया.
शादी हो गई, वेद और गीता ने हाशिम और हानिया से कहा, “हम लोग तो कोई पार्टी कर नहीं सकते, आप लोग चाहो तो अपने रिश्तेदारों को पार्टी दे दो. हमारे रिश्तेदार तो काफी नाराज हैं, धीरेधीरे ही सब का मूड ठीक होगा.’’ हाशिम ने कहा, “हम सोच रहे हैं कि एक अच्छे होटल में छोटी सी पार्टी कर लेते हैं, आप के सर्किल में भी कुछ लोग तो इस शादी से खुश होंगे ही, आप उन्हें बुला लें, बच्चों को दोस्तों को भी बुलाना है. हम सब देख लेंगे.’’
इस बात पर वेद और गीता ने अपनी सहमति दे दी. दोनों इस बात पर खुश थे कि बेटी की शादी में उन के ऊपर कुछ खर्चा नहीं आया था, हानिया और हाशिम ने साफसाफ कह दिया था कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए, उन्होंने अहाना को कपडे, गहने अपनी मरजी से जो देना था, दिया था. यहां दहेज जैसी किसी चीज की बात ही नहीं थी. आगे आने वाले त्योहारों पर भी कुछ लेन देन की बात नहीं थी, यह बात उन्हें अच्छी लग रही थी.
अहाना को खुश देख कर दिल खुश तो था पर धार्मिक सोच बेड़ी बन कर उन के पैरों में पड़ी रहती. एक ही शहर था, सब आपस में मिलते रहते, गीता जब भी अहाना से मिलने आती, एकएक बात पर ध्यान देती कि कहीं उन की बेटी को जबरदस्ती किसी मुसलिम रीति से तो नहीं बांधा जा रहा.  एक दिन तो सब के सामने पूछ भी लिया, “अहाना, तुम भी नौनवेज खाने लगी हो?”
“चलो, आप को आज बता ही देती हूं. मम्मी, नौनवेज तो मैं कालेज के दिनों से बाहर दोस्तों के साथ खा रही  हूं.” गीता ने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, “तुम पूरी तरह से धर्म भ्रष्ट कर चुकी हो.” हानिया चुपचाप मांबेटी की बात सुन रही थीं. फिर उन से गीता ने पूछ लिया, “आप के यहां वेज और नौनवेज के बरतन एक ही हैं?”
“जी.”
“यस तो परेशानी है.”
हानिया ने दोस्ताना अंदाज से कहा, “नहीं, गीताजी, यह तो अब बड़ी बात नहीं है. हम लोग होटल में भी तो जाते हैं, जाने कैसेकैसे बरतनों में खा लेते हैं, वहां कौन किस से पूछता है कि इन बरतनों में कब क्या सर्व किया गया था. बात साफसफाई की हो, बस, इतना बहुत है.” गीता को जवाब न सूझा, चुप रहीं. ऐसे मौके अकसर आते जब गीता और वेद किसीकिसी बात में उखड़ जाते. हानिया उन्हें अपनी नरम  सी आवाज में जवाब देतीं. बात प्यार से ही कह सुन कर खत्म हो जाए, उन की यही कोशिश रहती.
शादी को 4 महीने हो गए थे. हारून और अहाना साथ ही अपनेअपने औफिस के लिए निकलते, हाउस हैल्प रंजना सालों से यहां काम कर रही थी, उस के साथ मिल कर हानिया सब संभाल लेती. दीवाली आने वाली थी. गीता ने बेटी से कहा, “तुम दीवाली पर घर आ जाना. हमें अच्छा नहीं लगेगा.’’
“ठीक है, मम्मी, आ जाऊंगी.’’
“2 दिन पहले ही आ जाना, लोकल ससुराल हो तो बेटी मायके में ठीक से रह भी नहीं पाती। जब से गई हो, एक रात भी नहीं रुकी.”
''ठीक है, मम्मी, आ जाऊंगी.''
अहाना ने दीवाली का प्रोग्राम सब को बताया, सब ने कहा, “हां, ठीक है। तुम्हें उन के साथ भी कुछ टाइम बिता लेना चाहिए, उन्हें भी अकेला लगता होगा।” दीवाली से 2 दिन पहले अहाना अपना थोड़ा सामान ले कर मायके चली गई, हारून ही उसे छोड़ आया। शादी के बाद उस की पहली दीवाली थी। वह खुश थी, बोली, “हारून, तुम भी यहीं आ जाना, मिल कर सैलिब्रेट करेंगे।’’
“ठीक है, आ जाऊंगा।’’
दीवाली वाले दिन हारून शाम को अच्छी तरह तैयार हो कर ससुराल गया, वेद और गीता ने उस का स्वागत किया, पूछा, “तुम भी हमारे साथ पूजन में बैठना पसंद करोगे?’’
“क्यों नहीं, आंटी?’’
दोनों हैरान हुए, फिर अकेले में गीता वेद से कहने लगी, “यह क्या पूछ लिया हम ने उस से, हमारी पूजा में बैठेगा?’’
“अब तो गलती हो गई, उसे साथ बैठाना ही होगा।’’
जब सब फ्री हो गए, डिनर हो गया, हारुन ने कहा, “मैं कार ले कर आया हूं, चलो, सब आइसक्रीम खाने चलते हैं। शहर की रोशनियां देखते हैं।” अहाना खुश हो गई, सब तैयार थे ही, रास्ते में अहाना चौंकी, “हारून, यह तो तुम अपने घर जाने की रोड पर कार ले आए हो?’’
हारून मुसकरा दिया, कुछ बोला नहीं। सब उस से पूछते रहे, वह हंसता रहा। दूर से अहाना ने देखा, हारून का घर झालरों से, कंदीलों से खूब सजा है, कार का हौर्न सुन कर हानिया और हाशिम घर से बाहर निकल कर आ गए, दोनों बहुत अच्छी तरह से तैयार थे, हारून ने कहा,"आइए, आंटी।’’ हानिया ने बढ़ कर गीता को गले लगाया, "हैप्पी दीवाली,"कह कर वेद को भी विश किया, हाशिम ने भी दोनों को विश किया, अहाना हानिया से लिपट गई, “आंटी, हैप्पी दीवाली। घर इतना सुंदर किस ने सजाया है?”
हारून ने पीछे से कहा, “मुझे नचा रखा है कल से कि मेरी बहू की पहली दीवाली है, उसे थोड़ी देर के लिए ले आओ, वह भी दीवाली पर अपना सजा घर देख ले।”  वेद और गीता हैरान थे। हानिया ने सब को अंदर आने का इशारा करते हुए कहा, “अब सब अहाना की फैवरिट फ्रूट आइसक्रीम खाएंगे, मैं ने उस के लिए बनाई है,’’ फिर हारून को चिढ़ाते हुए बोली, “किसी और का भी मन हो तो खा सकता है, बनाई तो अहाना के लिए है।”  घर में सब के चेहरे खुशियों से दमक रहे थे। वेद और गीता बातबात पर आज मुसकरा रहे थे। दोनों को लग रहा था कि सचमुच धर्म की गठरियां सिर से उतार कर जीवन कुछ ज्यादा खुशहाल हो सकता है।

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