अभी आंख झपकी ही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी.
“उफ, 2 मिनट सो भी नहीं सकती. एक तो मुझे दिन में नींद नहीं आती. थकान के मारे आंख झपकी भी तो यह मुई घंटी बज उठी,” बड़बड़ाते हुए मैं उठी और दरवाजा खोला.
“क्या चाहिए?” सामने खड़ी लड़की से पूछा.
“जी, मैं इस अपार्टमैंट में काम करती हूं. आप नई शिफ्ट हुई हैं तो सोचा पूछ लूं... आप को काम के लिए चाहिए? मैं इस अपार्टमैंट में 2 फ्लैट में काम करती हूं,” वह बोली.
“तुम्हें कैसे पता, मैं नई शिफ्ट हुई हूं इस अपार्टमैंट में?” मैं ने कुछ सोचते हुए पूछा.
मुझे इस अपार्टमैंट में आए 5 दिन हुए हैं और इसे मेरे आने की खबर कैसे हुई, सावधान इंडिया और सीआईडी देखने का कुछ फायदा तो था ही कि मेरे दिमाग में 'कुछ तो गड़बड़ है दया' का अलार्म बज उठा. लेकिन उस के जवाब ने मेरी जासूस बनने की कल्पना को क्षणभर में चकनाचूर कर दिया.
“दीदी, अपार्टमैंट का सैक्रेटरी मुझे बोला था कि टावर ए-111 में नए लोग आए हैं और उन्हें कामवाली की जरूरत पड़ेगी. तो तू जा कर पूछ ले. साहब ने कल उस से कामवाली के लिए पूछा था. उस के कहने पर ही मैं इधर आई,” वह सफाई देते हुए बोली.
मुझे याद आया कि मैं ने ही मनन से इस बारे में पता करने को कहा था और मैं ही भूल गई. दरअसल, मुझे इस नए अपार्टमैंट में शिफ्ट हुए मुश्किल से 5 दिन हुए थे. अभी तक सामान जमाया भी नहीं था. बस किचन को ही आधाअधूरा सैट किया था. 3 दिन से बाहर का खाना खा कर ऊब गई थी. पैकर्स ऐंड मूवर्स द्वारा सामान पुराने अपार्टमैंट से इस नए अपार्टमैंट में ले तो आए, लेकिन यहां आते ही मैं बीमार पड़ गई. किसी तरह 3 दिन बाहर का खाना खा कर निकाला, लेकिन चौथे दिन थोड़ा अच्छा महसूस हुआ तो किचन को थोड़ाबहुत सैट कर लिया.