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2-4 दिनों में छुट्टी कर देगें. पर दवा और परहेज का बहुत खयाल रखना पड़ेगा. ऐसी कोई बात न हो जिस से उन्हें स्ट्रैस पहुंचे.’’

शाम तक अलीना बाजी आ गईं. मुझ से सिर्फ सलामदुआ हुई. वे मम्मी के पास रुकीं, मैं घर आ गई. 3 दिनों बाद मम्मी भी घर आ गईं. अब उन की तबीयत अच्छी थी. हम उन्हें खुश रखने की ही कोशिश करते. एक हफ्ता तो मम्मी को देखने आने वालों में गुजर गया. मैं ने भी औफिस जौइन कर लिया. मम्मी के बहुत कहने पर बाजी ज्यादा रुकने को राजी हो गईं. जिंदगी सुकून से गुजरने लगी. अब मम्मी भी हलकेफुलके काम कर लेती थीं.

अलीना बाजी और उन के बेटे की वजह से घर में अच्छी रौनक रहती. उस दिन छुट्टी थी, मैं घर की सफाई में जुट गई. मम्मी कहने लगीं, ‘‘बेटा, गावतकिए फिर बहुत सख्त हो गए हैं, एक बार खोल कर रुई तोड़ कर भर दो.’’ अन्नामां तकिए उठा लाईं. उन्हें खोलने लगी. फिर मैं और अन्नामां रुई तोड़ने लगीं. कुछ सख्त सी चीज हाथ को लगी, मैं ने झुक कर नीचे देखा. मेरी सांस जैसे थम गई. दोनों कर्णफूल रुई के ढेर में पड़े थे. होश जरा ठिकाने आए तो मैं ने कहा, ‘देखिए मम्मी, ये रहे कर्णफूल.’’

बाजी ने कर्णफूल उठा लिए और मम्मी के हाथ पर रख दिए. मम्मी का चेहरा खुशी से चमक उठा. जब दिल को यकीन आ गया कि कर्णफूल मिल गए और खुशी थोड़ी कंट्रोल में आई तो बाजी बोलीं, ‘‘ये कर्णफूल यहां कैसे?’’

मम्मी सोच में पड़ गईं, फिर रुक कर कहने लगीं, ‘‘मुझे याद आता है अलीना, उस दिन भी तुम लोग तकिए की रुई तोड़ रही थीं. तभी मैं कर्णफूल निकाल कर लाई थी. हम उन्हें देख रहे थे जब ही घंटी बजी थी. मैं जल्दी से कर्णफूल डब्बी में रखने गई, पर हड़बड़ी में घबरा कर डब्बी के बजाय रुई में रख दिए और डब्बी तकिए के पीछे रख दी थी. कर्णफूल रुई में दब कर छिप गए. कश्मीरी शौल वाले के जाने के बाद डब्बी मैं ने अलमारी में रखवा दी, लेकिन कर्णफूल रुई में दब कर रुई के साथ तकिए के अंदर चले गए और मलीहा ने तकिए सिल कर कवर चढ़ा कर रख दिए. हम समझते रहे, कर्णफूल डब्बी में अलमारी में सेफ रखे हैं.

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