जैसे ही मैं अपने कमरे से बाहर निकली, अन्नामां, जो मम्मी के कमरे में उन्हें नाश्ता करा रही थी, कहने लगी, ‘‘मलीहा बेटी, बीबी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्होंने नाश्ता नहीं किया. बस, चाय पी है.’’
मैं जल्दी से मम्मी के कमरे में गई. कल से कमजोर लग रही थीं, पेट में दर्द बता रही थीं, आज तो ज्यादा ही निढाल लग रही थीं. मैं ने अन्नामां से कहा, ‘‘अम्मी के बाल संवारो, उन्हें जल्द तैयार करो. मैं गाड़ी गेट पर लगाती हूं.’’
मम्मी को ले कर हम दोनों अस्पताल पहुंचे. जांच होने पर पता लगा कि हार्ट अटैक है. उन का इलाज शुरू हो गया. इस खबर ने जैसे मेरी जान ही निकाल दी पर अगर मैं हिम्मत हार जाती तो यह सब कौन संभालता. मैं ने खुद को कंट्रोल किया, अपने आंसू पी लिए. इस वक्त पापा बेहद याद आए.
मेरे पापा बहुत मोहब्बत करने वाले, केयरिंग व्यक्ति थे. उन की मृत्यु एक ऐक्सिडैंट में हो गई थी. मुझ से बड़ी बहन अलीना बाजी, जिन की शादी हैदराबाद में हुई थी, का 3 साल का एक बेटा है. मैं ने उन्हें फोन कर के खबर देना जरूरी समझा.
मैं आईसीयू में गई. डाक्टर ने काफी तसल्ली दी, ‘‘इंजैक्शन लग चुके हैं, इलाज शुरू है, खतरे की कोई बात नहीं है. अभी दवाओं के असर में सो रही हैं, आराम उन के लिए जरूरी है, उन्हें डिस्टर्ब न करें.’’
मैं ने बाहर आ कर अन्नामां को घर भेज दिया और खुद वेटिंगरूम में जा कर एक कोने में बैठ गई. अच्छा था वेटिंगरूम, काफी खाली था. सोफे पर आराम से बैठ कर मैं ने अलीना बाजी को फोन लगाया. मेरी आवाज सुन कर बड़े ही रूखे अंदाज में सलाम का जवाब दिया. मैं ने अपने गम समेटते हुए आंसू पी कर उन्हें मम्मी के बारे में बताया. वे परेशान हो गईं, कहां, ‘‘मैं जल्द पहुंचने की कोशिश करती हूं.’’
बिना मुझे तसल्ली का एक शब्द कहे उन्होंने फोन बंद कर दिया. मेरे दिल को बड़ा सदमा लगा. मेरी यह वही बहन थी जो मुझे बेइंतहा प्यार करती थी. मेरी जरा सी उदासी पर दुनिया के जतन कर डालती थी. इतनी चाहत, इतनी मोहब्बत के बाद यह बेरुखी. मेरी आंखें आंसुओं से भर गईं. मैं अतीत में खो गई.
पापा की मौत को थोड़ा समय ही गुजरा था कि मुझ पर एक कयामत टूट पड़ी. पापा ने बहुत देखभाल कर एक अच्छे खानदान में मेरी शादी करवाई थी. शादी काफी शानदार हुई थी. मैं बड़े अरमान ले कर ससुराल गई. मैं ने एमबीए किया था और एक अच्छी कंपनी में जौब कर रही थी. शादी के पहले ही जौब करने के बारे में बात हो गईर् थी. उन लोगों को मेरे जौब करने पर एतराज न था. वे लोग भी मिडिल क्लास के थे. उन की 2 बेटियां थीं, जिन की शादी होनी थी. मुझ नौकरी करने वाली बहू का अच्छा स्वागत हुआ.
मेरी सास अच्छे मिजाज की थीं. मुझ से काफी अच्छा व्यवहार करती थीं. ससुर भी स्नेह रखते थे. मेरे पति देखने में सामान्य थे जबकि मैं खूबसूरत थी. कभीकभी उन की बातों में खुद को ले कर हीनभावना झलकती थी.
शादी के 2-3 महीने के बाद पति का असली रंग खुल कर सामने आ गया. मुझे ले कर नएनए शक उन के दिल में पनपने लगे. पूरे वक्त उन्हें लगता कि मैं उन से बेवफाई कर रही हूं. जराजरा सी बात पर नाराज हो जाते, झगड़ना शुरू कर देते. पर इसे मैं उन का कौंपलैक्स समझ कर टालती रही, निबाह करती रही.
मगर एक दिन तो हद कर दी उन्होंने. मुझे मेरे बौस के साथ एक मीटिंग में जाते देख लिया था. शाम को घर आने पर जबरदस्त हंगामा खड़ा कर दिया. मुझ पर बेवफाई व बदकिरदारी का इलजाम लगाया. कई लोगों के साथ मेरे ताल्लुक जोड़ दिए.
ऐसे वाहियात इलजाम सुन कर मैं गुस्से से पागल हो उठी और फैसला कर लिया कि यहां जिऊंगी तो इज्जत के साथ, वरना जुदाई बेहतर है. मैं ने सख्त लहजे में कहा, ‘नादिर, अगर आप का रवैया ऐसा ही रहा तो मेरा आप के साथ रहना मुश्किल होगा. आप को अपने लगाए इलजामों के सुबूत देने पड़ेंगे. मुझ पर आप ऐसे फालतू इलजाम नहीं लगा सकते.’
सासससुर ने अपने बेटे को समझाने की कोशिश की. लेकिन वे गुस्से से उफनते हुए बोले, ‘मुझे कुछ साबित करने की जरूरत नहीं. मुझे सब पता है. तुम जैसी आवारा औरतों को घर में नहीं रखा जा सकता. मुझे बदलचन औरतों से नफरत है. मैं ऐसी औरत के साथ नहीं रह सकता. मैं तुम्हें तलाक देता हूं, तलाक देता हूं, तलाक देता हूं.’
और सबकुछ पलभर में खत्म हो गया. मैं मम्मी के पास आ गई. उन पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा. मेरे अहं, मेरे चरित्र पर चोट पड़ी थी. मेरे चरित्र पर लांछन लगाए गए थे. मैं ने धीरेधीरे खुद को संभाल लिया क्योंकि मैं कुसूरवार न थी. यह मेरी इज्जत और अस्मिता की लड़ाई थी. 20-25 दिनों की छुट्टी करने के बाद मैं ने जौब पर जाना शुरू कर दिया.
संभल तो गई मैं, पर खामोशी व उदासी मेरे साथी बन गए. मम्मी मेरा बेहद खयाल रखती थीं. बड़ी बहन अलीना भी आ गईं. वे हर तरह से मुझे ढाढ़स बंधातीं. काफी दिन रुकीं. जिंदगी अपने रूटीन पर आ गई. अलीना बाजी ने इस संकट से निकलने में बड़ी मदद दी. मैं काफी हद तक सामान्य हो गई थी.
उस दिन छुट्टी थी. अम्मी ने 2 पुराने गावतकिए (दीवान के गोल तकिए) निकाले और कहा, ‘ये तकिए काफी सख्त हो गए हैं, इन में नई रुई भर देते हैं.’
मैं ने पुरानी रुई निकाल कर नीचे डाल दी. मैं और अलीना बाजी तख्त पर रखी नई रुई साफ कर रहे थे. मम्मी उसी वक्त कमरे से आ कर हमारे पास ही बैठ गईं. उन के हाथ में एक प्यारी सी चांदी की डब्बी थी. मम्मी ने खोल कर दिखाई. उस में बेपनाह खूबसूरत एक जोड़ी जड़ाऊ कर्णफूल थे. जिस पर पन्ना और रूबी की बड़ी खूबसूरत जड़न थी. इतनी चमक और महीन कारीगरी थी कि हम देखते ही रह गए.
अलीना बाजी की आंखें कर्णफूलों की तरह जगमगाने लगीं. उन्होंने बेचैनी से पूछा, ‘मम्मी ये किस के हैं?’ मम्मी बोलीं, बेटा, ये तुम्हारी दादी के हैं. उन्होंने ये कर्णफूल और माथे का जड़ाऊ झूमर मुझे दिया था. माथे का झूमर मैं ने शादी में तुम्हें दे दिया. अब ये कर्णफूल हैं, इन्हें मैं मलीहा को देना चाहती हूं. दादी की यादगार निशानियां तुम दोनों बहनों के पास रहेगीं, ठीक है न.’
अलीना बाजी के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. उन्हें जेवरों का जनून की हद तक शौक था, खासकर एंटीक ज्वैलरी की तो जैसे वे दीवानी थीं. जरा सा गुस्से से वे बोलीं, ‘मम्मी, आप ने ज्यादती की, खूबसूरत और बेमिसाल चीज आप ने मलीहा के लिए रख दी. मैं बड़ी हूं, आप को कर्णफूल मुझे देने चाहिए थे.’
मम्मी ने समझाया, ‘बेटी, तुम बड़ी हो, इसलिए कुंदन का सैट तुम्हें अलग से दिया था, साथ में, दादी का झूमर और एक सोने का सैट दिया था. मलीहा को एक सोने का ही सैट दिया था, उसे मैं ने कर्णफूल (टौप्स) भी उस वक्त नहीं दिए थे. अब दे रही हूं. तुम खुद सोच कर बताओ, क्या गलत किया मैं ने.’
अलीना बाजी अपनी ही बात कहती रहीं. मम्मी के बहुत समझाने पर कहने लगीं, ‘अच्छा, मैं दादी वाला झूमर मलीहा को दे दूंगी, तब आप ये कर्णफूल मुझे दे दीजिएगा. अगली बार मैं आऊंगी, तो झूमर ले कर आऊंगी और कर्णफूल ले जाऊंगी.’