Best Story : समय के दरीचे हर दर्रे की कहानी कह रहे हैं. उन्हीं में मैं अपने इश्क़ की निशानी तलाश रहा हूं. लंबे अंतराल के बाद आया हूं. एक पल को भी उसे भूला हूं, ऐसा कभी नहीं हुआ. हर इश्क़ की तरह ही हमारा इश्क़ भी धर्म के नाम पर ही क़ुरबान हुआ था. ठाकुर चाचा के साथ हमारे अब्बा की दांतकाटी रोटी थी. हम सब बच्चे एक ही आंगन में खेलते रहते थे. तब किसी ने नहीं कहा कि बिस्मिल, तुम तारा के साथ मत खेला करो. जब हम घरघर खेलते हुए घर सजाने के सपने संजोने लगे तब तारा की भाभी को न जाने क्या हो गया कि उन्होंने हम दोनों के मिलने पर रोक लगानी शुरू कर दी.
भाभी घर की बड़ी थीं. हम सब की भाभी थीं. मैं तो उन्हें बहुत पसंद भी करता था. बर्फ जैसे सफ़ेद रंग की वे मुझे बहुत सुंदर लगती थीं. ईद में मिली ईदी से शिवालय जा कर मैं उन के लिए गुलाबी चुटीला भी लाया था. ऐसा नहीं कि वे मुझे प्यार नहीं करती थीं, बहुत प्यार करती थीं. फिर उन्हें हमारे इश्क़ से क्यों नफ़रत हुई, उस वक़्त मैं समझ ही नहीं सका था. हमें एकसाथ देख कर वे तुरंत कहतीं- ‘बिस्मिल, आप अपने घर जाइए. बहुत रात हो चुकी है. तारा, आप भी चलिए या तो पढ़ाई करिए या फिर आइए रसोई में हमारा हाथ बंटाइए.’
भाभी लखनऊ की थीं. उन की भाषा हमारे कानपुर की भाषा से थोड़ी अलग थी. अभी मेरी दाढ़ीमूंछों में स्याह रंग फूटना शुरू ही हुआ था. सिर पर टोपी लगाना भी अब मुझे अच्छा लगने लगा था. समझ गया था कि हमारे मज़हब में इस जालीदार टोपी की क्या ख़ासीयत है. दिल में हर वक़्त तारा के नाम के हिलोरे उठते रहते थे. तारा भी मेरे लिए दिन में कईकई बार छत पर आती. वह अब सलवारक़मीज़ के साथ दुपट्टा भी डालने लगी थी.
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