"क्या चल रहा है भई, हमें भी कुछ बताया जाए लेकिन उस से पहले गरमगरम समोसे खाते हैं," प्रीति ने कमरे के अंदर आते हुए कहा.
"तुम कुछ जल्दी नहीं आ गईं? टाइम क्या हो रहा है..." प्रीति को सामने देख मालती हड़बड़ाते हुए बोली.
"मैं जल्दी नहीं आई हूं, आप टाइम भूल गईं. 6:30 बज रहे हैं. चलिए सब ड्राइंगरूम में. बुआ अकेली बैठी हैं. मैं फ्रेश हो कर आती हूं फिर सब के लिए चाय बनाऊंगी," प्रीति ने कहा.
"आप फ्रेश हो जाओ भाभी, चाय मैं बना देती हूं," नेहा ने कहा तो प्रीति उस के चेहरे पर आंखें गड़ा कर सवाल करने लगी.
"क्यों भई, आज सूरज कहां से निकला है? पढ़ाई से कट्टी कर ली क्या या फिर पढ़ाकू दूल्हा नहीं चाहिए?" नेहा को छेड़ते हुए प्रीति ने कहा और बाथरूम के अंदर घुस गई.
वक्त के थपेड़ों ने प्रीति को इतना सब्र सिखा दिया था कि वह अपने आंसू किसी के सामने नहीं बहाती थी. आईने के सामने खड़ी प्रीति अपनी आंखों से नमी को धोने लगी. मालती और नेहा की बातें उस के कानों में पड़ चुकी थी. जानती थी कि यदि वह रोई तो मां टूट जाएगी.
'नहीं रोहन, रोऊंगी नहीं मैं. मां और नेहा का खयाल रखूंगी. बस यही तो मांगा था अपने लिए तुम ने. देखो रोती नहीं हूं मैं,' खुद में बड़बड़ाती प्रीति शौवर के नीचे खुद को भीगोने लगी.
"भाभी, बाहर नहीं आना क्या? मुझ से बरदाश्त नहीं हो रहा, मुझे समोसा खाने का मन है," नेहा ने दरवाजे को पीटते हुए कहा.
"आई नेहू, बस 2 मिनट," नेहा की आवाज सुन खुद को संभालते हुए प्रीति बोली.