“क्या चल रहा है भई, हमें भी कुछ बताया जाए लेकिन उस से पहले गरमगरम समोसे खाते हैं,” प्रीति ने कमरे के अंदर आते हुए कहा.
“तुम कुछ जल्दी नहीं आ गईं? टाइम क्या हो रहा है…” प्रीति को सामने देख मालती हड़बड़ाते हुए बोली.
“मैं जल्दी नहीं आई हूं, आप टाइम भूल गईं. 6:30 बज रहे हैं. चलिए सब ड्राइंगरूम में. बुआ अकेली बैठी हैं. मैं फ्रेश हो कर आती हूं फिर सब के लिए चाय बनाऊंगी,” प्रीति ने कहा.
“आप फ्रेश हो जाओ भाभी, चाय मैं बना देती हूं,” नेहा ने कहा तो प्रीति उस के चेहरे पर आंखें गड़ा कर सवाल करने लगी.
“क्यों भई, आज सूरज कहां से निकला है? पढ़ाई से कट्टी कर ली क्या या फिर पढ़ाकू दूल्हा नहीं चाहिए?” नेहा को छेड़ते हुए प्रीति ने कहा और बाथरूम के अंदर घुस गई.
वक्त के थपेड़ों ने प्रीति को इतना सब्र सिखा दिया था कि वह अपने आंसू किसी के सामने नहीं बहाती थी. आईने के सामने खड़ी प्रीति अपनी आंखों से नमी को धोने लगी. मालती और नेहा की बातें उस के कानों में पड़ चुकी थी. जानती थी कि यदि वह रोई तो मां टूट जाएगी.
‘नहीं रोहन, रोऊंगी नहीं मैं. मां और नेहा का खयाल रखूंगी. बस यही तो मांगा था अपने लिए तुम ने. देखो रोती नहीं हूं मैं,’ खुद में बड़बड़ाती प्रीति शौवर के नीचे खुद को भीगोने लगी.
“भाभी, बाहर नहीं आना क्या? मुझ से बरदाश्त नहीं हो रहा, मुझे समोसा खाने का मन है,” नेहा ने दरवाजे को पीटते हुए कहा.
“आई नेहू, बस 2 मिनट,” नेहा की आवाज सुन खुद को संभालते हुए प्रीति बोली.
5 मिनट बाद लोअर और टीशर्ट पहने प्रीति ड्राइंगरूम में सब के सामने थी.
उसे लोअर और टीशर्ट में देख कर सुरेखा की भवें चढ़ गईं.
“ऐसे कपड़े तुम्हें शोभा नहीं देते बिट्टो,” सुरेखा ने कहा. बुआ की बात सुन प्रीति असहज हो गई,”क्यों बुआ? भाभी कोई बुढ़ी अम्मां नहीं हैं.”
“तू चुप कर. दुनियादारी की बातों में न घुसा कर,” नेहा को डपटते हुए सुरेखा ने कहा.
“पर बुआ दिक्कत क्या है इन कपड़ों में? आरामदेह हैं और पूरे हैं,” नेहा ने बुआ को समझाते हुए कहा.
“नहीं नेहा, बुआजी ठीक कह रही हैं, मुझे ध्यान रखना चाहिए. तुम्हारे समोसे ठंडे हो रहे हैं. तुम समोसे खाओ,” नेहा के मुंह में समोसा डालते हुए प्रीति ने कहा. अपने मन की पीड़ा को दबाए वह माहौल को सहज बनाने की कोशिश करने लगी. उस की आंखें रोहन की तसवीर पर जा टिकीं. प्रीति की निगाहों में उतरी नमी मालती से छिप न सकी. एक बार फिर वह तड़प उठी.
समाज और उस की रिवायतों के आगे एक बार फिर एक मासूम की जिंदगी से खिलखिलाहट छीनी जा रही थी और वह चुपचाप ऐसा होते देख रही थी. रसोई के बहाने प्रीति वहां से उठ गई. अब खुद पर नियंत्रण कमजोर हो रहा था. इस से पहले कि कोई उस के आंसुओं को देखे वह छिप जाना चाहती थी.
4 दिन रही सुरेखा लेकिन इन 4 दिनों में मालती के दिल को बारबार खरोंच देती. ऐसा नहीं था कि सुरेखा को मालती और प्रीति की फिक्र नहीं थी लेकिन वह चली आ रही परंपराओं और समाज के बनाए दकियानूसी रिवाजों में जकड़ी पड़ी थी.
प्रीति की दिनचर्या रोहन से किए वादे के अनुसार चल रही थी. उस के होंठों पर दर्द नहीं आता और न ही किसी के सामने आंखों से पानी गिरता. मालती और नेहा का ध्यान रखने का वादा वह वादा था जो प्रीति ने रोहन को पहली रात दिया था. वैसे भी प्रीति को जीवन में पहली बार मालती के रूप में मां मिली थी जिस ने अनाथ प्रीति को रोहन की खुशी समझ अपना लिया था. मामामामी ने तो शादी के बाद से ही उस की खबर नहीं ली. न ही रोहन की मौत की खबर उन्हें प्रीति के दर्द के करीब लाई. उस की दुनिया नेहा और मालती थे. समय रेंग रहा था या चल रहा था यह तो मालूम नहीं लेकिन एकदूसरे से अपने दर्द को छिपाए मालती और प्रीति खुद को चलता जरूर दिखा रहे थे. बदलाव आया तो था जिसे छिपाने की जद्दोजेहद में प्रीति कभीकभी अतिरिक्त मुसकरा देती. मालती ने महसूस किया कि प्रीति किसी बात को ले कर परेशान है लेकिन बता नहीं रही,’बदलाव तो था तभी अभय आजकल उसे लेने नहीं आ रहा था. पूछने पर उस के शहर से बाहर होने बताया. अभय तो शहर में था. दिखा तो था लालगंज चौराहे पर. प्रीति का झगड़ा तो नहीं हो गया अभय से या फिर अभय भी प्रकाश की तरह….’
मालती अपनी सोच में खड़ी थी कि प्रीति की आवाज से चौंक उठी.
“मां, मैं चलती हूं,” प्रीति ने कहा और दरवाजे की ओर बढ़ गई.
“अभय आ गया क्या?” मालती ने सवाल किया.
“नहीं, जरूरत नहीं है उस की. मैं बस से जाऊंगी,” प्रीति ने कहा.
“अब तक शहर से बाहर है वह?” मालती ने पूछा.
“देर हो रही है मां. मैं चलती हूं,” इतना कह कर वह सीढ़ियों से उतर गई. मालती उसे जाते देखती रह गई. अभय के नाम पर प्रीति के चेहरे पर आई नाराजगी मन में शंका पैदा कर गई. कहीं अभय ने कुछ गलत करने की कोशिश तो नहीं की प्रीति के साथ. पर अभय बेहद शरीफ लड़का था. पर प्रीति का चेहरा उस के डर को बता रहा था. मन की उलझन में उलझती मालती सच को जानना चाहती थी लेकिन कैसे समझ नहीं आ रहा था. मालती के अंदर अब और दुख सहने की क्षमता नहीं थी. न ही प्रीति को दुखी देखने का सब्र.
“मां, कहां खोई हो? कब से पूछ रही हूं कि क्या मेरा पिंक दुपट्टा देखा है? बता दो तो कालेज की ओर प्रस्थान करूं,” नेहा नाटकीयता से बोली.
“ध्यान नहीं नेहा, कुछ और पहन ले न,” मालती ने कहा.
“आप को ध्यान नहीं, यह मैं क्या सुन रही हूं, कंप्यूटर से तेज दिमाग वाली मेरी माता की याददाश्त चली गई,” नेहा मालती को छेड़ते हुए बोली.
“नेहा, परेशान न कर बच्चे. मैं पहले ही परेशान हूं.”
“तो बताओ न मां दिक्कत क्या है? किसी ने कुछ कहा आप से,” नेहा ने मालती के कंधे पर हाथ रख कर कहा.
“नहीं रे, किसी ने कुछ नहीं कहा. मैं प्रीति के लिए परेशान हूं. वह कुछ अनमनी सी दिख रही है कुछ दिनों से. पूछो तो बताती नहीं है. डरती हूं कि कहीं किसी मुश्किल में न फंसी हो,” मालती ने अपने डर को बाहर निकाल दिया.
“मां, तुम भी न कुछ भी सोच लेती हो. काम का प्रैशर है भाभी के ऊपर. हमारी जिम्मेदारी है और कुछ नहीं होगा. डरो नहीं.”
“नहीं नेहा, बात बस इतनी नहीं है. जब से टूर से वापस आई है प्रीति तब से अभय भी उसे लेने नहीं आता. मुझे जानना है क्यों?” मालती ने कहा.
“परेशान न हो मां. शाम को भाभी से बात कर लेना. यों सोचसोच कर अपनी तबीयत न बिगाड़ो और आप कब तक छुट्टियां मनाओगी, बुआ चली गई हैं, आप भी औफिस जाओ न,” नेहा ने कहा.
“मेरी छुट्टियां बची हैं अभी. अगले सोमवार से ही शुरू करूंगी. चल दादीमां न बन, कालेज निकल. देर हो जाएगी तुझे,” मालती ने उसे धकियाते हुए कहा.
•••••••
“मैडम, कोई लड़की आप से मिलना चाहती है,” रघु की आवाज सुन कर प्रीति चौंकी.
“मुझ से? कौन है?” प्रीति ने जिज्ञासा जताई.
“पता नहीं, बोल रही थी कि आप की रिश्तेदार है,” रघु की बात सुन प्रीति की उत्सुकता और बढ़ गई.
“ठीक है भेज दो अंदर,” अपने लैपटौप को एक तरफ रख प्रीति ने कहा.
रघु के जाते ही प्रीति की नजरें दरवाजे पर टिक गईं. सामने नेहा को देख प्रीति चौंक उठी. अनेक प्रश्न दिमाग में उमड़ने लगे.
“नेहा, तुम इस समय यहां? कालेज नहीं गईं…मां तो ठीक है न?” प्रीति एक ही सांस में बोली.
“अरे रिलैक्स भाभी. यहां आई थी फ्रैंड्स के साथ तो सोचा आप से भी मिल लूं. चलो न कहीं बाहर चलते हैं. मस्ती करेंगे,” नेहा प्यार से बोली.
“इस समय औफिस टाइम है मैडमजी,” नेहा बोली.
“क्या भाभी, आप मेरे लिए इतना नहीं कर सकतीं. मुझे देखो मैं कितनी दूर से आई हूं आप के लिए,” रोती शक्ल बना कर नेहा ने कुछ इस तरह कहा कि प्रीति को हंसी आ गई.
“हो गई शुरू नौटंकी, करती हूं कोशिश. तुम यहीं बैठो, 2 मिनट में आती हूं,” इतना कह कर प्रीति केबिन से निकल गई.
नेहा उस के केबिन में चहलकदमी करने लगी. नेहा की नजर सामने से आते अभय पर पड़ी. चेहरे पर उग आई दाढ़ी और आंखों में उदासी कुछ बयां कर रही थी. कौरीडोर से होता हुआ अभय नेहा की आंखों से ओझल हो गया. यानि कि अभय शहर में ही है फिर भाभी को लेने क्यों नहीं आता… मां की शंका सही तो नहीं…” नेहा के दिमाग में उमड़ते सवाल प्रीति की आवाज से गायब हो गए.
“चलो भई, तुम्हारी इच्छा पूरी हो गई. आज हमारा हाफ डे है. बोलो कहां चलना है?” प्रीति ने अपना बैग उठाते हुए कहा.
“किसी रेस्तरां में चलते हैं जहां भीड़भाड़ न हो,” नेहा बोली.
“ओके…चलो चलते हैं,” प्रीति ने कहा.
दोनों औफिस से निकल पड़ीं. कुछ देर में प्रीति और नेहा रेस्तरां के टेबल पर व्यंजन का लुत्फ उठा रही थीं. नेहा ने महसूस किया कि प्रीति कुछ ज्यादा ही मुसकराने की कोशिश कर रही थी. नेहा की आंखों में अभय का चेहरा घूम रहा था.
“अभय तो औफिस आए थे आज. फिर सुबह आप को लेने क्यों नहीं आए?” नेहा के सवाल पर प्रीति खामोश हो गई.
“बताओ न भाभी, क्या हुआ है? आप के चेहरे पर अभय के लिए नाराजगी दिख रही है,” नेहा ने कहा.
” नहीं तो, मैं उस से क्यों नाराज होने लगी?” प्रीति ने कहा.
“तो आप को लेने क्यों नहीं आए?” नेहा ने फिर सवाल किया.
“क्योंकि मैं नहीं चाहती कि वह आए. दुनिया को बातें करने का मौका नहीं दे सकती मैं. और वैसे भी मैं बच्ची नहीं हूं जो किसी के सहारे चलूंगी. अब चलो फटाफट अपना खाना खत्म करो. फिर शौपिंग के लिए चलते हैं.”
“ठीक है भाभी,” नेहा ने चुप रहना ही ठीक समझा लेकिन उस की आंखों के सामने अभय का उदास चेहरा घूम रहा था.
शाम हो चुकी थी. बैग से लदी हुई दोनों घर के दरवाजे पर खड़ी हो गईं. उन के नौक करने से पहले ही दरवाजा खुल गया. सामने मालती खड़ी थी,”कहां से तफरीह कर के आ रही हो दोनों?” मालती ने बनावटी गुस्से में कहा.
“तफरीह नहीं, हम शौपिंग कर के आ रही हैं,” नेहा अंदर घुसते हुए बोली.
“क्या खरीद लाए हो जरा मैं भी देखूं,” मालती ने कहा तो प्रीति ने बैग से सामान बाहर निकलना शुरू कर दिया,”यह आप की साड़ी और यह नेहा के लिए शर्ट्स, शूज और कुछ लौंजरी.”
“अपने लिए क्या लाई हो? मालती ने सामान को देख कर कहा.
“मुझे अभी जरूरत नहीं है मां. बहुत कपड़े पड़े हैं,” कह कर प्रीति उठ गई.
“क्यों जरूरत नहीं है? औफिस जाती हो, मीटिंग्स अटैंड करती हो, लोगों से मिलती हो और सभी पुराने कपड़े घसीटे जा रही हो. मैं सब को उठा कर बरतन बदल लूंगी,” मालती ने गुस्से से कहा.
“मां, आप को कौन कहेगा कि आप मेरी सास हो. कभी तो बहू होने का एहसास कराया करो न. इतनी प्यारी क्यों हो आप?” प्रीति ने इस तरह कहा कि मालती हंस पड़ी और बोली,”चलोचलो, ज्यादा मक्खन नहीं लगाओ. खाना तुम ही बनाओगी. मैं नहीं बनाने वाली.”
“डोंट वरी मां, हम खाना और्डर कर चुके हैं तो आज आप की कुकिंग से छुट्टी,” नेहा इतरा कर बोली.
•••••••••••
मालती के औफिस में गहमागहमी थी. कुछ बदलाव दिखाई दे रहा था. हफ्ते भर की छुट्टी ही तो ली थी उस ने लेकिन इस बदलाव की उम्मीद नहीं थी. मालती की नजर फाइल हाथ में दबाए तेजी से जाते मोहन चपरासी पर पड़ी,”मोहन…मोहन, इधर सुनना जरा.”
“क्या हुआ मैडम, जल्दी बताओ, साहब आने वाले होंगे,” मोहन जल्दी से बोला.
“साहब आने वाले हैं, लेकिन अभी तो 10 बजे हैं, बौस तो कभी 11 बजे से पहले आए हैं क्या जो डर रहे हो,” मालती ने आश्चर्य से कहा.
“आप छुट्टी पर थीं, आप को खबर नहीं की गई. राजीव सर की जगह दूसरे साहब आए हैं. इसी औफिस की दूसरी ब्रांच में कभी क्लर्क हुआ करते थे साहब लेकिन आगे पढ़ लिए और तरक्की कर गए…अच्छा चलता हूं मैं,” इतना कह मोहन तेजी से केबिन की ओर बढ़ गया.
मालती के दिमाग में नए बौस की छवि घूमने लगी. 15 साल पहले तो वह भी उसी ब्रांच में थी. फिर यह कौन है जो क्लर्क से बौस बन चुका है. मन में अनेक सवाल थे लेकिन जवाब नदारद. एक बार सोचा कि गौतम बाबू से पूछा जाए लेकिन हिम्मत नहीं की क्योंकि गौतम बाबू की आदत चिपकने की ज्यादा थी.
सुषमा अब तक नहीं आई थी वरना पता चल जाता. मोहन से नाम भी नहीं पूछा. अभी वह अपने खयालों में थी कि औफिस के अंदर किसी के आने की आहट हुई. वह ध्यान से उसी ओर देखने लगी लेकिन उस की टेबल इस तरह लगी थी कि बौस के केबिन के अंदर जाने वाले की पीठ ही नजर आती. मोहन ने आने वाले को सलाम किया.
‘ओह, अच्छा तो यह है नया बौस. चलो पता चल ही जाएगा कि कौन है,’ खुद से बुदबुदाती मालती अपनी फाइल खोल काम में लग गई. लंच हो गया और शाम की चाय भी लेकिन बौस की ओर से उसे अंदर नहीं बुलाया गया. राजीवजी तो दिन में 4-5 बार चक्कर लगवा ही देते थे लेकिन इस बंदे को शायद जरूरत नहीं पड़ी थी. शाम को औफिस से निकलते हुए मालती ने एक नजर बौस के केबिन पर डाली फिर बाहर निकल गई.
“आज का दिन कैसा रहा मां?” प्रीति ने पूछा.
“अच्छा रहा. लंबी छुट्टी के बाद औफिस जाना सिरदर्द कर देता है. नया बौस आया है हमारा, राजीवजी का ट्रांसफर हो गया,” चाय का सिप लेती हुई मालती बोली.
“मतलब राजीव गया. चलो अच्छा हुआ. अब आप के साथ फ्लर्ट नहीं कर सकेगा,” नेहा ने मालती को छेड़ते हुए कहा.
“अरे हमारी मां की सुंदरता पर नया बौस लट्टू न हो जाए, कहीं वह भी मां के साथ फ्लर्टिंग न शुरू कर दे,” नेहा का साथ देते हुए प्रीति ने भी चुहल की.
“रुको तुम दोनों, अभी करती हूं दिमाग ठीक, शर्म नहीं आती मां से मजाक करती हो…” मालती ने नेहा की ओर तकिया फेंक कर कहा. नेहा वहां से भाग गई तो प्रीति भी उठ कर चल दी.
“तुम रुको प्रीति, बात करनी है तुम से,” मालती ने कहा तो प्रीति के कदम ठिठक गए.
“क्या बात करनी है मां?” शंकित हो प्रीति बोली.
“देखो प्रीति, नेहा की पढ़ाई पूरी हो जाएगी. जल्दी जौब भी जौइन कर लेगी वह. उस की शादी के विषय में भी सोचना होगा,” मालती ने प्रीति को अपने नजदीक बैठा कर कहा.
“तो सोचेंगे न मां, धूमधाम से करेंगे शादी, चिंता क्यों करती हो…” प्रीति बोली.
“चिंता तो है न, बड़ी बेटी की शादी से पहले नेहा की शादी नहीं हो सकती. पहले बड़ी को शादी करनी होगी न,” मालती प्रीति की आंखों में देख कर बोली.
“समझी नहीं मैं. आप किस की बात कर रहे हो? केशव चाचा की बेटी की बात तो नहीं कर रहीं? उन की चिंता के लिए चाचाचाची हैं. आप क्यों चिंता कर रही हो?” प्रीति हैरानी से बोली.
“नहीं, मैं अपनी बड़ी बेटी की बात कर रही हूं,” मालती ने प्रीति के गाल को थपथपा कर कहा.
“कौन?” प्रीति का दिल जोरजोर से धड़कने लगा.
“तुम और कौन…पहले तुम्हारी शादी होगी उस के बाद नेहा की,” मालती ने कहा तो प्रीति की आंखों में नमी की धारा बह चली.
“मां, यह क्या कह रही हो. मैं रोहन की जगह किसी को नहीं दे सकती और न ही आप को छोड़ सकती हूं,” सुबकते हुए प्रीति मालती के गले लग गई.
“तो कौन कह रहा है कि रोहन की जगह किसी और को दे. मैं तो खाली जगह भरने की बात कर रही हूं क्योंकि जानती हूं यह खाली जगह दलदली कीचड़ में बदल जाएगी जो समय के बाद दुर्गंध देती रहेगी,” मालती ने समझाते हुए कहा.
“यह कैसी बात कर रही हो मां, रोहन की यादें मेरे जीवन में सुगंध हैं. मैं इसे मिटने नहीं दूंगी,” इतना कह कर प्रीति अपने कमरे में जा कर दरवाजा बंद कर ली.
‘यह सुगंध एक दिन बास मारने लगेगी लेकिन उस से पहले इसे बदलना होगा मेरी बच्ची, तुझे समझना होगा,’ मालती बुदबुदाई.
औफिस में घुसते ही मालती की नजर बौस के केबिन की ओर उठ गई. उस के कदम खुदबखुद उस तरफ चल पड़े. दरवाजे पर नेमप्लेट लगी थी जिस पर लिखा नाम कुछ धुंधला नजर आया. अपने पर्स से चश्मा निकाल अपनी आंखों पर जमा मालती ने नेमप्लेट की ओर देखा.
लिखे हुए नाम को पढ़ कर दिल में जोर से झटका लगा. प्रकाश, एक बार फिर यह नाम उस के सामने था. उस की टांगों में अजीब सी कंपकंपी होने लगी. खुद को संभालते ही मालती अपने टेबल पर जा कर बैठ गई. उंगलियों से जैसे शक्ति निचुड़ कर बाहर आ गई.
अपने दोनों हथेलियों को जांघों पर रख मालती उस की कंपन को रोकने की कोशिश करने लगी. तभी मोबाइल बजा. हड़बड़ा कर उस ने फोन उठाया,”हैलो आंटी, मैं अभय. मैं आप से मिलना चाहता हूं,” अभय की आवाज उस के कानों से टकरा दिमाग तक चली गई लेकिन मालती की आंखें केबिन की ओर ही देख रही थीं.
“आंटी, मैं एक बार मिल सकता हूं क्या आप से? हैलो…हैलो आंटी…आप को आवाज आ रही है मेरी,” अभय की आवाज की बेचैनी ने मालती को उस की ओर खींचा.
“हां…हां …अभय, क्या कह रहे थे बेटा?” धड़कन पर नियंत्रण रख मालती ने पूछा.
“आंटी, मैं आप से मिलना चाहता हूं. ज्यादा समय नहीं लूंगा…आप कब मिल सकती हो?” अभय की आवाज में छिपी बेचैनी मालती से छिप न सकी.
“आज मिलते हैं 6 बजे, मेरे औफिस के बाहर मिलना,” मालती ने कहा और फोन काट दिया. अपनी हथेलियों से चेहरे पर आए पसीने को पोंछा और कुरसी से सिर टिका कर बैठ गई.
“दीदी…दीदी…तबीयत ठीक है न?” मोहन उस के नजदीक आ कर बोला.
“हां, ठीक है बस सिरदर्द हो रहा है,” मालती ने मुसकरा कर कहा.
“सुबहसुबह सिरदर्द…चाय लाऊं?” मोहन ने पूछा.
“नहीं, ठीक हो जाएगा अपनेआप. तुम जाओ,” इतना कह कर मालती सुषमा की ओर चल पड़ी.
“तुम साहब से मिली हो क्या?” सुषमा से सवाल कर मालती उस की मेज पर थोड़ा झुक गई.
“नहीं यार, पता नहीं कैसा आदमी है. एक भी मीटिंग नहीं रखी अब तक,” सुषमा ने मुंह बनाते हुए कहा.
“नाम कुछ पहचाना सा लग रहा है न,” मालती ने कहा.
“भारत में हर तीसरा आदमी प्रकाश नाम लिए घूम रहा है. 2 तो मेरे परिवार में ही है. वैसे, तुम्हें कौन सा प्रकाश याद आया?” सुषमा हंसती हुई बोली.
“मजाक मत कर सुषमा. मुझे यह कुछ अजीब सा लग रहा है. ऐसे कैसे किसी स्टाफ से नहीं मिला,” मालती ने शंका जाहिर की.
“अरे मिला है भई, बस हमारे डिपार्टमैंट से नहीं मिला,” इतना कह सुषमा अपने काम में मसरूफ हो गई.
“मालती फिर से अपनी मेज पर जा कर बैठ गई. लैपटौप से नजरें हटा एक बार प्रकाश के केबिन की ओर देख ली. दिल जोरजोर से धङक रहा था. सामने का केबिन खाली था. सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम के 5 बज चुके थे. बौस एक बार भी औफिस में नजर नहीं आया. मालती की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. धीरेधीरे सब लोग औफिस से निकलने लगे लेकिन मालती अपनी जगह बैठी विचारों में मग्न थी.
“मैडम, चलना नहीं है क्या? साढ़े 5 हो रहे हैं,” गौतम बाबू ने अपनी बत्तीसी दिखा कर कहा.
“बस निकल रही हूं. कुछ काम रह गया था, आप चलिए न,” मालती अपना पीछा छुड़ाते हुए बोली. खुद को व्यस्त दिखाने के लिए फाइलें उलटनेपलटने लगी.
“अच्छा जी, कल मिलते हैं,” गौतम बाबू ने विदा लेते हुए कहा. मालती ने एक मुसकान के साथ हां में सिर हिलाया.
औफिस से निकल कर मालती बाहर आ कर खड़ी हो गई. अभय अभी नहीं आया था. 6 बज चुके थे. मालती ने मोबाइल निकाला और अभय का नंबर डायल कर दिया,
“कहां हो अभय?”
“बस पहुंच गया हूं आंटी, पार्किंग में हूं. 5 मिनट दीजिए बस.”
5 मिनट बाद अभय मालती के सामने था. मालती ने उसे स्नेह से देखा. आज अभय बिलकुल रोहन सा लग रहा था. एक बार तो मालती की आंखों में नमी सी आई लेकिन संभल गई.
“आंटी, सामने कैफे में बैठें?” अभय झिझकते हुए बोला.
“चलो,” बिना सवाल किए मालती सहमति दे औफिस के पास बने कैफे की ओर मुड़ गई. वहां भीड़ थी लेकिन उन्हें एक कोने में टेबल मिल गई.
“कुछ ज्यादा भीड़ है आज,” मालती ने बात शुरू करते हुए कहा.
“आप कौफी के साथ क्या लेंगी, आंटी?” अभय ने वेटर को इशारे से करीब बुला कर मालती से पूछा.
“बस कौफी,” मुसकरा कर वह बोली.
अभय ने कप मालती के सामने किया. मालती उस के चेहरे को देख रही थी. वह कुछ परेशान था. यह तो वह फोन पर ही भांप चुकी थी. वह अभय के बोलने का इंतजार करने लगी. लेकिन अभय आंखें चुराता इधरउधर देख रहा था.
“क्या बात करनी थी, अभय? तुम कुछ परेशान लग रहे हो?” मालती ने आखिर पूछ ही लिया.
“आंटी मैं… प्रीति को ले कर कुछ…लेकिन पहले आप वादा कीजिए कि नाराज नहीं होंगी और मेरी बात शांति से सुनेंगी,” अभय ने कौफी के कप की ओर देख कर कहा.
मालती देख रही थी कि अभय नजरें नहीं मिला रहा था.
“तुम अपनी बात बिना झिझक कहो, मैं सुन रही हूं,” मालती ने उसे तसल्ली देते हुए कहा.
“मैं…मैं… प्रीति से प्यार करता हूं,” अपनी बात कह कर अभय मालती की ओर देखना लगा.
मालती को यही आशंका थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे रिऐक्ट करे. उस की चुप्पी देख अभय के चेहरे पर पसीना छलक आया.