दुख की छांव में सुख की धूप : बहू की बेरंग जिंदगी में रंग भरती सास
ऐसा समाज जहां जातपात, दकियानूसी परंपराओं के नाम पर औरतों को गुलाम बना कर रखा जाता है, विधवा हो कर मालती तिलतिल कर जीती रही. मगर क्या बहू प्रीति के साथ भी वह ऐसा होने देगी? मालती के अंदर अब विद्रोह की चिनगारी भड़क उठी थी.