‘मालूम है सर.’ उस ने जूते पर कपड़ा मारा.
‘मेरा नाम कृष्ण कुमार है.’ मैं ने दूसरा पांव रखा.
‘मालूम है सर.’ उस ने दूसरे जूते पर भी कपड़ा फेरा.
‘तुम्हें कैसे मालूम.’ मैं ने आश्चर्य से कहा, ‘तुम्हें मेरा नाम कैसे मालूम.’
‘आप जैक्सन कम्पनी में लैब असिस्टेंट हैं.’ मेरा चेहरा देख कर वह हंस पड़ा, ‘आप के कार्ड पर लिखा है.’
उस ने मेरे गले में लटके कंपनी के आई कार्ड की तरफ इशारा किया. मैं ने झटके से पैर स्टैंड से हटा लिया. लडक़ा न सिर्फ तेज बुद्धि का था वरन तेज दृष्टि का भी था. वह अंगे्रजी पढ़ भी लेता था. दो लोग और पालिश के लिए आ गए थे.
‘तुम कभी कमरे पर आना.’ मैं ने जेब से दस रुपए निकाले, ‘इतवार को समय मिले तो आना. मैं अकेले ही रहता हूं. ये लो.’
‘आऊंगा सर. पर आज रुपए रहने दीजिए.’
‘क्यों. रुपए क्यों रहने दूं. ये तो तुम्हारी मेहनत का है.’
‘आपने आज मुझ से इतनी देर बात कर ली सर. नहीं तो हम से बात कौन करता है. आज रहने दीजिए. कल से दीजिएगा.’
‘ऐसा कैसे हो सकता है अनुपम. रुपया तो तुम्हें लेना ही होगा.’
‘अच्छा ये रुपया आप अपने पास जमा कर लीजिए.’ उस ने दूसरे आदमी की तरफ रबर की चप्पलें बढ़ा दीं व उस का जूता उठा लिया. ‘बल्कि अब से आप पालिश का रुपया जमा कर लिया कीजिए. जब जरूरत होगी मैं आपसे ले लिया करूंगा.’
‘चलो ठीक है.’ मैं ने नोट वापस रख लिया. ‘मैं तुम्हारा बैंक में एकाउंट खुलवा दूंगा. तुम आना. मैं तुम्हारे लिए वैकेंसी ढूढुंगा.’
उस ने मुस्करा कर सर हिला दिया व ध्यान से जूते में पालिश लगाने लगा. धीरेधीरे अनुपम मुझ से खुलने लगा.