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‘कितने पैसे हुए’ मैं ने पांव से चप्पल निकालते हुए पालिश किए हुए चमकदार जूतों में पैर डालते हुए पूछा.

‘दस रुपए दे दीजिए सर.’ उस ने दूसरे जूते पर फायनली ब्रश मार कर जूता सामने रख दिया.

‘दस रुपए क्यों भाई?’ मैं ने जूते पहल लिए. ‘बाकी सब तो पांच रुपए ही लेते हैं.’

मैं ने जूते पहन लिए व अपना दाहिना पांव उस के सामने रखे बहुत छोटे से फूट स्टैंड पर रख दिया.

‘क्रीम पालिश की है सर.’ उस ने जूते पर एक कपड़े से घिस कर चमकाया. मैं ने दूसरा पांव भी स्टैंड पर रख दिया. ‘आप जो चाहे दे दीजिए.’

‘जो चाहे वो क्यों.’ मैं ने कायदे से पांवों को जूते में सेट किया. ‘तुम्हारा भी तो माल लगता है, मेहनत लगती है.’

‘माल की क्या कीमत है सर.’ अब उसने नजर उठा कर मेरी तरफ देखा. ‘मुश्किल से दो रुपए की क्रीम व पालिश लगती है. और मेहनत का भी क्या है. कौन सी ग्राहकों की भीड़ लगी है.’

‘तुम कहां के हो.’ मैं ने उसे दस रुपए दिए. क्रीम पालिश का सभी जगह दस रुपया ही लेते थे . ‘क्या यही के हो.’

‘नहीं सर. मैं यहां का नहीं हूं.’ उस ने जेब से पर्स निकाल दस रुपए उस में रख लिया. ‘यहां तो मैं काम करने आता हूं.’

मैं ने घड़ी पर निगाह डाली. साढ़े नौ बज रहे थे. दफ्तर का टाइम हो रहा था. मैं बस स्टैंड की तरफ चल दिया.

यह जूता पालिश करने वाला सामान्य जूता पालिश वालों से जरा अलग लगता था. उस का रंग साफ था. उस के बाल कायदे से संवरे रहते थे. जोकि वह पुरानी सी जींस व टीशर्ट ही पहने रहता था पर कपड़े साफ रहते थे. वह बस स्टैंड से थोड़ा पहले सडक़ से थोड़ा पीछे एक मध्यम आकार के नीम के पेड़ के नीचे बैठता था. उस के सामने कोई बोरा नहीं बिछा होता था वरन मेज पर बिछाई जाने वाली प्लास्टिक की सीट को दोहरा कर के बैठाया होता था. इस प्लास्टिक की शीट पर भूरी काली पालिश की तमाम डिब्बियां व क्रीम की कई शीशियां रखी होती थीं. वह जमीन पर नहीं बैठता था बल्कि बैठने के लिए एक प्लास्टिक का नीचा स्टूल रहता था. वह सिर्फ जूता पालिश ही करता था, मरम्मत का काम नहीं  करता था. मैं करीब एक महीने से उसे वहां बैठते देख रहा था. वैसे तो मैं जूतों पर पालिश घर पर खुद ही कर लिया करता था पर दो तीन बार के बाद जूतों की चमक कम हो जाती थी. तब एकाध बार बाहर से पालिश करा लिया करता था. इधर तीन बार से हर दूसरे दिन उस से ही पालिश करा रहा था.

उस ने आज बताया था कि वह वहां का नहीं था. हो सकता है कहीं आसपास के गांव का हो. मैं भी तो यहां का नहीं था. मैं तो यहां से काफी दूर के एक शहर का था. यहां तो नौकरी करने आया था. नौकरी कोई बड़ी नहीं थी. दूर के एक शहर में मेरे रिटायर्र्ड पिता, मां, भाई व भाभी रहते थे.

‘तुम्हारा नाम क्या है.’ अगली बार जब मैं पालिश कराने उस के पास गया तो जूते उतारते हुए पूछा.

‘अनुपम.’ उस ने रबर की दो चप्पलें मेरे सामने रख दीं.

‘बड़ा अच्छा नाम है.’ मैं ने प्रशंसा के स्वर में कहा, ‘अनुपम के आगे क्या है. पूरा नाम बताओ.’

‘अनुपम बस.’ उस ने नजरें झुका कर एक जूता उठा लिया व ब्रश से धूल झाडऩे लगा.

‘अनुपम के आगे कुछ है नहीं या बताना नहीं चाहते.’ मुझे लगा कि वह जानबूछ कर अपनी वास्तविकता छुपा रहा है.

‘है तो…पर जाने दीजिए. बस अनुपम ही मेरा नाम है.’

‘तुम्हारा नाम भी अनुपम ही है या अपना नाम भी सही नहीं बता रहे हो.’

‘नहीं सर. मेरा नाम अनुपम ही है. मेरी सॢटफिकेट पर भी यही नाम लिखा है.’ उस ने एक जूते पर काली पालिश निकाल ली थी व अब शीशी से ढ़ेर सारी क्रीम निकाल कर दोनों को अपनी उंगलियों से अच्छी तरह से मिला रहा था.

‘सॢटफिकेट.’ मैं चौंका, ‘कौन सी सॢटफिकेट. क्या जाति प्रमाणपत्र.’

‘नहीं सर.’ वह नजरें झुकाए काम में लगा रहा, ‘सभी सॢटफिकेट पर. हाई स्कूल की सॢटफिकेट पर.’

‘क्या.’ मैं फिर चौका, ‘क्या तुम हाईस्कूल पास हो.’

उस ने जवाब नहीं दिया व ब्रश से पालिश क्रीम जूते पर फैलाता रहा. फिर दूसरा जूता उठा कर उस पर भी क्रीम पालिश लगाने लगा.

‘क्या तुम अंग्रेजी समझ सकते हो.’

‘यस सर.’ उस के हाथ रुक गए. उस ने निगाहें उठा कर मेरी तरफ देखा.

‘क्या बोल भी सकते हो.’

‘नो सर.’ अब वह जूते पर जोरजोर से ब्रश कर रहा था, ‘मेरी अंग्रेजी कमजोर है.’

आज मुझे जल्दी नहीं थी. मेरा लैब इंचार्ज छुट्टी पर था. उस के पास भी कोई अन्य ग्राहक नहीं था. सामान्यत: जूता पालिश करने वाले लडक़े हाई स्कूल पास नहीं होते. उस की आंखें देख कर ही उस के  आभिजात्य का आभास होता था.

‘तो तुम ये काम क्यों करते हो.’ मेरे मुंह से निकला.

उस ने कुछ कहा नहीं पर ब्रश चलाते हुए एक बार मुझे देखा.

‘मेरा मतलब. कोई नौकरी क्यों नहीं करते.’

‘नौकरी.’ पहली बार अनुपम के चेहरे पर मुस्कराहट आई. ‘नौकरी कौन देगा सर.’

‘क्यों. इतनी वैकेंसी आती है. फिर तुम्हें तो आरक्षण भी मिलेगा.’

‘आरक्षण.’ उस का मुंह टेढ़ा हो गया. पालिश का काम समाप्त हो चुका था. अब वह ब्रश से हल्के हाथ से जूते चमका रहा था.

‘और क्या. तुम्हें रिजर्वेशन मिलेगा. शायद तुम्हें मालूम नहीं है. सरकार ने सारी नौकरियों में आधी सीटें तुम्हीं लोगों के लिए आरक्षित कर दी हैं. मालूम है तुम्हें.’

‘सब मालूम है सर.’ उस ने एक जूता तैयार कर के सामने रख दिया, ‘कुछ नहीं होता है. इस सब से कुछ नहीं होता है. लाइए सर.’ उसने फूट स्टैंड मेरे सामने कर दिया.

‘मैं वो सामने वाले मकान में नीचे वाले कमीे में रहता हूं.’ मैं ने जूते पहन कर दायां पांव स्टैंड पर रख दिया.

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