“बस भी करो आरोही, मैं तो तुम्हें खुश करने के लिए तुम्हारे साथ चल देता था. मुझे पहले भी यहांवहां भटकना पसंद नहीं था.”
“शायद, तुम्हें याद भी नहीं है कि आज मेरा बर्थडे है. सुबह से मैं तुम्हारे मुंह से 'हैप्पी बर्थडे' सुनने का इंतजार कर रही थी लेकिन छोड़ो, जब तुम्हें कोई इंटरैस्ट नहीं तो अकेला चना कहां तक भाड़ झोंकता रहेगा,” कहती हुई उस ने तेजी से कमरे के दरवाजे को बंद किया और लिफ्ट के अंदर चली गई. आंखों से आंसू बह निकले थे. उस ने अपने आंसू पोंछे और लिफ्ट से बाहर आ कर सोचने लगी कि अब वह कहां जाए?
तभी उस का मोबाइल बज उठा था. उधर उस की बहन अवनी थी, “हैप्पी बर्थडे दी... जीजू को आप का बर्थडे याद था कि नहीं?”
“उन के यहां यह सब चोंचले नहीं होते,” कह कर वह हंस दी.
“दी, क्या सारे आदमी एक ही तरह के होते हैं? यहां रिषभ का भी यही हाल है... उसे भी कुछ नहीं याद रहता... इस बार तो ऐनिवर्सरी भी मैं ने ही याद दिलाई तो महाशय को याद आई थी."
वह जानती थी कि रिषभ इन सब बातों का कितना खयाल रखता है. आज सुबह सब से पहला फोन उसी का आया था. अवनी केवल उस का मूड अच्छा करने के लिए उसे बहलाने के लिए कह रही थी. वह थोड़ी देर तक सोसायटी के लौन में वौक करतेकरते बहन से बात करती रही फिर घर लौट आई.
डिनर का टाइम हो रहा था. श्यामा उन्हें देखते ही बोली,"मैडम, खाना लगाऊं?"
“चलो, मैं हाथ धो कर किचन में आती हूं."
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