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लेखक-डा. भारत खुशालानी

लूनर मिशन का मतलब था चंद्रमा तक जाने का मिशन. राजेश बोला, “और सर, जहां तक मेरी जानकारी है, एलएलवी की डिजाइन सिर्फ कागजी है. उस के सभी सिस्टम्स की पूरी तरह से टेस्टिंग नहीं हुई है. अभी तो कम से कम एक साल और लगेगा एलएलवी को पूरी तरह से आपरेशनल होने में.”

सतजीत ने हामी भरी, “बिलकुल सही कहा. एलएलवी तो अभी लांच के लिए कतई तैयार नहीं है.”कांफ्रेंस में, कोने में, जहां अंधेरा था, वहां कुरसी लगा कर टाईकोट पहने हुए एक व्यक्ति बैठा था. उस ने हस्तक्षेप किया, “आप लोग भूल रहे हो कि हम लोग चंद्रयान मिशन द्वारा चंद्रमा तक जा चुके हैं.”

राजेश ने तुरंत कहा, “लेकिन, हमारे सभी चंद्रयान मिशन बिना किसी अंतरिक्ष यात्री को ले कर चंद्रमा तक गए हैं. इस बार हम अंतरिक्ष यात्री वाले मिशन की बात कर रहे हैं, जो हिंदुस्तान का सब से पहला ऐसा मिशन होगा. इस के लिए हम उसी राकेट का इस्तेमाल नहीं कर सकते, जो बिना किसी इनसान के मिशनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है.”

टाईकोट वाले व्यक्ति ने सरलता से कहा, “बिलकुल कर सकते हैं. उसी राकेट में बहुत सारे परिवर्तन कर के,” फिर एक क्षण रुक कर वे बोले, “लेकिन, एलएलवी तो पूरी तरह से नया डिजाइन है. उस के लिए आप लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है.”

पद्मनाभन और भी परेशान था, “लेकिन सर, धरती से सिर्फ 300 किलोमीटर ऊपर जाने के लिए हम इतने भारी एलएलवी का इस्तेमाल क्यों करना चाहते हैं? एलएलवी तो चंद्रमा तक जाने के लिए है, जो धरती से 4 लाख किलोमीटर की दूरी पर है. हमारे 300 किलोमीटर की दूरी के लिए लोअर्थ राकेट ही उपयुक्त है. 4 लाख किलोमीटर वाली शक्ति वाला राकेट तो वैसे भी हमारे लिए बहुत बड़ा और वजनी हो जाएगा.”

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