‘‘बड़ी खुशी हुई आप से मिल कर. अच्छी बात है वरना अकसर लोग मुझे पसंद नहीं करते.’’

‘‘अरे, ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?’’

‘‘मैं नहीं कह रहा, सिर्फ बता रहा हूं आप को वह सच जो मैं महसूस करता हूं. अकसर लोग मुझे पसंद नहीं करते. आप भी जल्द ही उन की भाषा बोलने लगेंगे. आइए, हमारे औफिस में आप का स्वागत है.’’

शर्माजी ने मेरा स्वागत करते हुए अपने बारे में भी शायद वह सब बता दिया जिसे वे महसूस करते होंगे या जैसा उन्हें महसूस कराया जाता होगा. मुझे तो पहली ही नजर में बहुत अच्छे लगे थे शर्माजी. उन के हावभाव, उन का मुसकराना, उन का अपनी ही दुनिया में मस्त रहना, किसी के मामले में ज्यादा दखल न देना और हर किसी को पूरापूरा स्पेस भी देना.

ये भी पढ़ें-Family Story in Hindi : मेरी मां – आखिर क्या हुआ सुमी के साथ?

हुआ कुछ इस तरह कि मुझे अपनी चचेरी बहन को ले कर डाक्टर के पास जाना पड़ा. संयोग भी ऐसा कि हम लगातार 3 बार गए और तीनों बार ही शर्माजी का मुझ से मिलना हो गया. उन का घर वहीं पास में ही था. हर शाम वे सैर करने जाते हुए मुझ से मिल जाते और औपचारिक लहजे में घर आने को भी कहते. मगर उन्होंने कभी ज्यादा प्रश्न नहीं किए. मुसकरा कर ही निकल जाते. उन्हीं दिनों मुझे एक हफ्ते के लिए टूर पर जाना पड़ा. बहन का कोर्स अभी पूरा नहीं हुआ था. वह अकेली चली तो जाती पर वापसी पर अंधेरा हो जाएगा, यह सोच कर उसे घबराहट होती थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...