लेखिका- प्रेमलता यदु

सुबहसुबह आशीष की ठीक से आंखें भी नहीं खुली थीं कि घर में हो रहे कोलाहल से परेशान हो वह आंखें मलता हुआ हौल में पहुंचा, जहां गुस्से में लालपीली रुक्मिणी अपने सासससुर पर बरस रही थी.

आशीष अपने परिवार के साथ छत्तीसगढ़ की राजधानी, रायपुर शहर के बहुत ही घनी आबादी वाली कालोनी में रहता था, जहां थोड़ी सी ऊंची आवाज में बोलने पर भी पड़ोसी को सारी बातें सुनाई पड़ने लगती थीं। यह जानते हुए भी रुक्मिणी चिल्ला रही थी.

आशीष ऊंघते हुए बोला,"अरे भाई, क्या हो गया, जो तुम सुबह होते ही शब्दों के तीखे बाण चला रही हो. चैन से सोने क्यों नहीं देतीं?"

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"अपने मांबाप से क्यों नहीं पूछते, जिन्हें तुम ने मेरे सिर पर बैठा रखा है? खुद तो समय से पहले काम पर चले जाते हो और देर से घर लौटते हो, ऊपर से तुम्हें चैन से सोना भी है और मेरे चैन का क्या...मैं चैन से कैसे जिऊं?"

"अब ऐसा क्या हुआ... कुछ बताओगी या बस इन्हें यों ही कोसती रहोगी?" आशीष अपने मातापिता की ओर इशारा करते हुए नींद में ही बोला.

"कल ही मैंने मैनीक्योरपैडीक्योर पर इतने पैसे खर्च किए हैं और आज कामवाली कह रही है कि वह नहीं आएगी, आज मेरी किटी पार्टी भी है. अब तुम ही बताओ, मैं तुम्हारे मांबाप के लिए खाना बनाऊं, तुम्हारे लिए टिफिन तैयार करूं, घर के काम करूं या पार्टी में जाऊं?" रुक्मिणी पूरी गुस्से में तिलमिलाती हुई बोली.

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