रात के 12 बजे फोन की घंटी बजी. उस समय आकाश और संगीता शर्मोहया भूल कर एकदूसरे से लिपट कर शारीरिक संबंध बना रहे थे. दोबारा फोन की घंटी बजी. जब संगीता के कानों में घंटी की आवाज पड़ी, तो वह आकाश से बोली, ‘‘आकाश, तुम्हारा फोन बज रहा है.’’

‘‘बजने दो. मुझे डिस्टर्ब मत करो.’’

इस के बाद वे दोनों अपने काम में बिजी हो गए. कुछ समय बाद आकाश ने कहा, ‘‘बहुत मजा आया संगीता.’’ संगीता कुछ कहती, उस से पहले फोन की घंटी फिर बजी.

‘‘आकाश फोन...’’ संगीता बोली.

‘‘जाओ, तुम ही फोन उठा लो,’’ आकाश ने संगीता से कहा.

‘‘हैलो... कौन हो तुम? इतनी रात को बारबार फोन क्यों कर रहे हो?’’ संगीता ने पूछा.

‘क्यों... तुम दोनों के काम में रुकावट आ गई? मुझे मालूम है कि तुम सावंत की पत्नी हो, जो चंद रुपयों के लिए किसी का भी बिस्तर गरम करती हो,’ फोन पर किसी की आवाज आई.

‘‘क्या बकवास कर रही हो? कौन हो तुम?’’ संगीता ने पूछा.

‘बेशर्म औरत, आधी रात को जिस शादीशुदा मर्द के साथ तुम रंगरलियां मना रही हो, मैं उसी की पत्नी बोल रही हूं.’ यह सुन कर संगीता चौंक गई. ‘‘किस का फोन है? किस से बहस कर रही हो?’’ आकाश ने पूछा.

‘‘तुम्हारी पत्नी का फोन है...’’ संगीता इतना ही बोल पाई.

आकाश ने चौंकते हुए कहा, ‘‘क्या... कल्पना का फोन है? पहले क्यों नहीं बताया. लाओ, फोन दो... हैलो... कल्पना.’’

‘हैलो... मैं कल्पना...’ और कुछ बोलतेबोलते वह चुप हो गई.

आकाश चौंक पड़ा, ‘‘क्या बात है कल्पना? क्या हुआ? घर में सब ठीक है न? प्रतिमा और सुमन की तबीयत... जल्दी बताओ,’’ उस ने कई सवाल एकसाथ पूछ लिए. कल्पना की सांस फूली सी लग रही थी. वह धीरे से बोली, ‘आप जल्दी से घर आइए. अब मुझ में इतनी हिम्मत नहीं कि फोन पर बता सकूं.’ ‘ठीक है कल्पना, मैं सुबह होते ही घर पहुंचता हूं,’’ आकाश फोन रख कर सोच में डूब गया. 3 साल भी नहीं हुए थे आकाश को यहां आए हुए. अच्छीनौकरी और मुंहमांगी तनख्वाह ने आखिर उस के बरसों के बांध को तोड़ दिया था. पुरानी नौकरी के साथ पुराने शहर और घरपरिवार को छोड़ कर वह यहां आ बसा था.

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