Writer- रेणु गुप्त
“हैलो पापा, जल्दी घर आ जाइए. दादी को फिर से अस्थमा अटैक पड़ा है. वे बारबार आप को याद कर रही हैं,” तपन के बड़े बेटे रिदान ने अपने पिता तपन से कहा, जो कंपनी के टूर पर पुणे गए हुए थे.
"बेटा, बहुत जरूरी मीटिंग है परसो, उसे अटेंड कर ही वापस आ पाऊंगा. तब तक ऐसा करो, डाक्टर सेन को बुला लो. उन के इंजैक्शन से दादी को फौरन आराम हो जाएगा. घर मैनेज नहीं हो पा रहा हो, तो मेरे आने तक इनाया आंटी को बुला लो."
"जी पापा, ठीक है. वैसे, दादू की तबीयत भी ठीक नहीं. उन के जोड़ों का दर्द उभर आया है. मेरा पूरा वक्त दादू और दादी की देखभाल में ही बीत जाता है. अगले हफ्ते मेरे टर्म एग्जाम हैं."
"ठीक है बेटा, मैं संडे को आ रहा हूं."
रिदान से बातें कर तपन कुछ परेशान सा हो गया. जब से उस की पत्नी मौनी की सालभर पहले कैंसर से मौत हुई है, घर घर न रहा था. सबकुछ अस्तव्यस्त हो गया था. तभी उस के फोन पर औफिस का कोई मैसेज आया और वह अपने काम में व्यस्त हो गया.
उस के घर पर रिदान और रूद्र उस के 2 बेटे दादी की देखभाल में व्यस्त थे, जिन्हें अस्थमा का गंभीर दौरा पड़ा था. उन के लिए फ़ैमिली डाक्टर बुलाया गया था. कुछ ही देर बाद दादी को देख कर वह जा चुका था. डाक्टर के दिए इंजैक्शन से दादी को आराम आ गया और वे शांत लेटी थीं. लेकिन अब दादू अपने जोड़ों के दर्द से कराहने लगे, रिदान से बोले, "रिदान बेटा, जरा सेंक की बोतल में गरम पानी भर कर ले आ."