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मृदुला ने आगे पढ़ने का लक्ष्य अपने पिता के समक्ष रखा. उन के सहयोग से उस ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की और वहीं एक गर्ल्स कालेज में लैक्चरर बन गई.

धीरेधीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते अपने बेटे अरुण की ओर मृदुला ने इतना ध्यान लगाया कि वह हर कक्षा में प्रथम आता. एमएससी में भी प्रथम आया. वह चाहती थी कि अरुण आईएएस अफसर बने, पर वह यह भूल गई थी कि उस में तो उस के पिता के संस्कार विद्यमान होंगे.

अरुण ने तो एमएससी करते ही कहा कि पीएचडी करने अमेरिका जाना चाहता है. अब मृदुला एक बार फिर उसी चौराहे पर खड़ी थी, पर अब निर्णय स्वयं को ही लेना था. किसी को दोष दिए बिना, काफी सोचने के बाद और देश के हालात नजर में रख उस ने निश्चय कर लिया कि वह अरुण को अमेरिका भेजेगी, पर वह उस गलती को नहीं दोहराएगी जो अविनाश के मातापिता ने की थी.

उस की सहमति की देर थी कि अरुण ने अमेरिका में दाखिला पाने की तैयारियां शुरू कर दीं. मृदुला को तो तब पता लगा जब उस का दाखिला मिशिगन यूनिवर्सिटी में हो गया और उसे एक अच्छी रिसर्च असिस्टैंटशिप भी मिल गई. देखतेदेखते उस के जाने का समय आ गया.

मृदुला कालेज के दाखिलों में इतनी व्यस्त थी कि वह अरुण की विदेश जाने की तैयारी में भी मदद न कर सकी. वह क्या ले जा रहा था क्या नहीं, यह भी उसे पता नहीं था. एअरपोर्ट छोड़ने तो गई पर उस दिन भी पूरा दिन वह उस के साथ नहीं बिता पाई, क्योंकि कालेज में कोई खास मीटिंग थी.

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