नजरों का टकराना था कि फिर धड़कनों में तेजी आ गई. उस ने नजरें झुका लीं. सोच लिया कि भाई साहब बड़े जिद्दी हैं. जब उन्होेंने सोच ही लिया है कि तहखाने को जेहादियों के हाथों भाड़े पर देंगे तो इसे भगा कर क्या फायदा? कल को वह किसी और को पकड़ लाएंगे. अपना आगापीछा सोच कर रुखसाना चुपचाप रज्जाक को घर ले आई थी.
बेटे से बिछुड़ने का गम और ढलती उम्र ने अब्बू को बहुत कमजोर बना दिया था. अपने छोटे भाई के खिलाफ जाने की शक्ति अब उन में नहीं थी और फिर वह अकेले किसकिस का विरोध करते. नतीजतन, रज्जाक मियां आराम से तहखाने में रहने लगे और रुखसाना को उन की खिदमत में लगा दिया गया.
रुखसाना खूब समझ रही थी कि उसे भी उस के बचपन की सहेली महजबीन और अफसाना की तरह जेहादियों के हाथों बेच दिया गया है पर उस का किस्सा उस की सहेलियों से कुछ अलग था. न तो वह महजबीन की तरह मजबूर थी और न अफसाना की तरह लालची. उसे तो रज्जाक मियां की खिदमत में बड़ा सुकून मिलता था.
रज्जाक भी उस के साथ बड़ी इज्जत से पेश आता था. हां, कभीकभी आवेश में आ कर मुहब्बत का इजहार जरूर कर बैठता था और रुखसाना को उस का पे्रम इजहार बहुत अच्छा लगता था. अजीब सा मदहोशी का आलम छाया रहता था उस समय तहखाने में, जब दोनों एक दूसरे का हाथ थामे सुखदुख की बातें करते रहते थे.
रज्जाक के व्यक्तित्व का जो भाग रुखसाना को सब से अधिक आकर्षित करता था वह था उस के प्रति रज्जाक का रक्षात्मक रवैया. जब भी किसी जेहादी को रज्जाक से मिलने आना होता वह पहले से ही रुखसाना को सावधान कर देता कि उन के सामने न आए.
उस दिन की बात रुखसाना को आज भी याद है. सुबह से 2-3 जेहादी तहखाने में रज्जाक मियां के पास आए हुए थे. पता नहीं किस तरह की सलाह कर रहे थे…कभीकभी नीचे से जोरों की बहस की आवाज आ रही थी, जिसे सुन कर रुखसाना की बेचैनी हर पल बढ़ रही थी. रज्जाक को वह नाराज नहीं करना चाहती थी इसलिए उस ने खाना भी छोटी के हाथों ही पहुंचाया था. जैसे ही वे लोग गए रुखसाना भागीभागी रज्जाक के पास पहुंची.
रज्जाक घुटने में सिर टिकाए बैठा था. रुखसाना के कंधे पर हाथ रखते ही उस ने सिर उठा कर उस की तरफ देखा. आंखें लाल और सूजीसूजी सी, चेहरा बेहद गंभीर. अनजानी आशंका से रुखसाना कांप उठी. उस ने रज्जाक का यह रूप पहले कभी नहीं देखा था.
‘क्या हुआ? वे लोग कुछ कह गए क्या?’ रुखसाना ने सहमे लहजे में पूछा.
‘रुखसाना, खुदा ने हमारी मुहब्बत को इतने ही दिन दिए थे. जिस मिशन के लिए मुझे यहां भेजा गया था ये लोग उसी का पैगाम ले कर आए थे. अब मुझे जाना होगा,’ कहतेकहते रज्जाक का गला भर आया.
‘आप ने कहा नहीं कि आप यह सब काम अब नहीं करना चाहते. मेरे साथ घर बसा कर वापस अपने गांव फैजलाबाद लौटना चाहते हैं.’
‘अगर यह सब मैं कहता तो कयामत आ जाती. तू इन्हें नहीं जानती रुखी…ये लोग आदमी नहीं हैवान हैं,’ रज्जाक बेबसी के मारे छटपटाने लगा.
‘तो आप ने इन हैवानों का साथ चुन लिया,’ रुखसाना का मासूम चेहरा धीरेधीरे कठोर हो रहा था.
‘मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है रुखी. मैं ने इन लोगों के पास अपनी जिंदगी गिरवी रखी हुई है. बदले में मुझे जो मोटी रकम मिली थी उसे मैं बहन के निकाह में खर्च कर आया हूं और जो बचा था उसे घर से चलते समय अम्मीजान को दे आया था.’
‘जिंदगी कोई गहना नहीं जिसे किसी के भी पास गिरवी रख दिया जाए. मैं मन ही मन आप को अपना शौहर मान चुकी हूं.’
‘इन बातों से मुझे कमजोर मत बनाओ, रुखी.’
‘आप क्यों कमजोर पड़ने लगे भला?’ रुखसाना बोली, ‘कमजोर तो मैं हूं जिस के बारे में सोचने वाला कोई नहीं है. मैं ने आप को सब से अलग समझा था पर आप भी दूसरों की तरह स्वार्थी निकले. एक पल को भी नहीं सोचा कि आप के जाने के बाद मेरा क्या होगा,’ कहतेकहते रुखसाना फफकफफक कर रो पड़ी.
रज्जाक ने उसे प्यार से अपनी बांहों में भर लिया और गुलाबी गालों पर एक चुंबन की मोहर लगा दी.
चढ़ती जवानी का पहला आलिंगन… दोनों जैसे किसी तूफान में बह निकले. जब तूफान ठहरा तो हर हाल में अपनी मुहब्बत को कुर्बान होने से बचाने का दृढ़ निश्चय दोनों के चेहरों पर था.