मधु और ब्रजमोहन एक पार्टी में मिले तो दोनों को एकदूसरे का साथ खूब भाया. अब वे दोस्ती को आगे बढ़ाना चाहते थे. मगर मधु की एक अजीब सी शर्त थी.

दिल्ली का छतरपुर का इलाका. 23 दिसंबर की शाम. तापमान 7 डिग्री सैंटीग्रेड. 2 पंजाबी परिवारों के लड़केलड़की की शादी. फार्महाउस इस ढंग से सजा हुआ था कि पूछो मत. तरहतरह की रोशनियों से की हुई सजावट इतनी ज्यादा कि देखने वाले देखते रह जाएं. 10 से ज्यादा देशों के व्यंजनों के मेज लगे हुए थे. तरहतरह के पेय पदार्थों के साथसाथ खानेपीने की तगड़ी व्यवस्था थी. मैं पूरे फार्महाउस का चक्कर लगा कर स्वागतद्वार पर पहुंचा जहां बरात दूल्हे के रथ के साथ अभीअभी आई थी. समय था रात के 11 बजे. मुझे मालूम था कि लड़के वाले अभी कम से कम आधा घंटा और नाचगाना करेंगे और उस के बाद ही वरमाला की रस्म हो पाएगी.

मैं कौफी के 3 कप पी चुका था. मैं शोरशराबे से दूर एक कैनोपी (छतरी) की तरफ चल पड़ा जहां सर्दी से बचाव के लिए अंगीठी जल रही थी. वहां पर एक महिला बैठी थी, अकेली. अधेड़ उम्र की. बाल, गाल, होंठ, आंखों वगैरह की तारीफ तो नहीं कर सकता लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि देखते ही लगा कि जवानी में उस ने बहुत से युवकों को हार्टअटैक दिया होगा. अभी भी सुंदर और मनमोहक लग रही थी. पास पहुंच कर मैं ने कहा, ‘‘अगर आप को तकलीफ न हो तो आप के पास बैठ जाऊं?’’

‘‘तकलीफ मुझे नहीं, सोफे को हो सकती है. उस से इजाजत ले लीजिए. रही बात मेरे साथ बैठने की तो माफ कीजिए मैं उस की अनुमति नहीं दे सकती. हां, आप सामने बैठ सकते हैं ताकि बात करते हुए एकदूसरे को ढंग से देखा जा सके,’’ महिला ने कहा.

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