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मैं ने टैंडर भरा और इत्तफाक कहें या सौभाग्य मुझे पहला अवसर मिला. सुगंधा के स्कूल की शाखाएं हमारे राज्य के कुछ अन्य शहरों के अतिरिक्त अन्य राज्यों में भी थीं. उस के प्रिंसिपल इस राज्य के स्कूलों में कंप्यूटर प्रोजैक्ट के इंचार्र्ज थे. सुगंधा ने कहा ‘‘अगर तुम्हारे काम से वे खुश हुए तो अन्य स्कूलों में भी तुम्हें काम मिलने की संभावना है.’’

मैं ने कहा ‘‘मैं टीचर नहीं बनना चाहता हूं. कंप्यूटर इंस्टौल कर नैटवर्किंग आदि एक टीचर और कुछ बच्चों को दोचार दिनां में सिखा दूंगा, इस के बाद उसे आगे बढ़ाना तुम लोगों की जिम्मेदारी होगी.’’

‘‘ठीक है, आप मुझे ही बता देना. मैं ने भी कंप्यूटर का कोर्स किया है.’’

मुझे मेरे पहले काम में ही आशातीत सफलता मिली. प्रिंसिपल बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने बाकी 11 स्कूलों के लिए टैंडर भरने को कहा. मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. सुगंधा, उस की मां और पापा सभी बहुत खुश थे. पापा ने तो यहां तक कहा ‘‘इस लड़की के कदम बहुत शुभ हैं. इन के पड़ते ही तुम्हारी जिंदगी में एक खुशनुमा मोड़ आया है, क्यों न तुम दोनों ही मिल कर काम करो, बल्कि मुझे तो यह लड़की बेहद पसंद है. तुम्हारी जीवनसाथी बनने लायक है.’’

सुगंधा की मां के भी कुछ ऐसे ही विचार थे. मुझे एहसास था कि हम दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे पर हम ने अपनी चाहत को मन में ही दबा कर रखा था, खास कर मैं ने क्योंकि अभी तक मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं था. अब तो बड़ों की इजाजत मिल चुकी थी सो खुल्लमखुल्ला मर्यादित और एक दायरे के अंदर इश्क का सिलसिला शुरू हो गया.

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