पूर्वी ने राहत की सांस ली, सामने से महिमा और मयंक चले आ रहे थे. एकसाथ दोनों कितने अच्छे लगते थे. बेटियां ही बहुएं बनती हैं. बदलती डेहरिया है... प्यार की बढ़नी से जीवन की हर नकारात्मक को बुहारते हुए कब चुपके से बहुएं से बेटियां बन जाती है, पता नहीं चलता. नईनवेली बहू महिमा ने लाड़ से पूर्वी का हाथ पकड़ा.
“मां, आइए आप को एक चीज दिखाऊं.”
“क्या बातें हो रही हैं सासबहू में?”
उस अल्हड़ सी लड़की में न जाने क्या जादू था. सब बिना सोचे उस के पीछे चलते चले गए. महिमा के हर कदम के साथ पूर्वी के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी. महिमा उसी गुंबद के सामने खड़ी थी जिस से उस की यादें जुड़ी थीं. गुंबद के दोनों तरफ संकरा सा गलियारा था जो झरोखे पर आ कर मिलता था. उन गलियारों को देख ऐसा लगता मानो वो गुंबद से गलबहियां कर रहे हों. महिमा ने पूर्वी का हाथ पकड़ा और गुंबद के बायीं तरफ संकरे गलियारे की तरफ मुड़ गई. महिमा संग मयंक और एक बड़ा सा दिल दो हजार इक्कीस.
पूर्वी का दिल धक्क से कर गया.
“मां, कालेज से निकलने के बाद मयंक तो आप के पास वापस आ गए और मैं दिल्ली अपने मम्मीपापा के पास चली गई. महीने में एक शनिवार को मैं उस से औफिस के बहाने दिल्ली से मिलने आती थी. शादी के पहले एकदो बार हम यहां आए थे. उस वक़्त मयंक ने मुझ से कहा था कि शादी के बाद तुम्हें यहां जरूर ले कर आऊंगा. आप सुबह पापा से कह रही थीं न कि मयंक से ज्यादा महिमा मां से मिलने को इच्छुक हैं. मैं सिर्फ नानीजी से मिलने नहीं, इस वजह से भी यहां आना चाहती थी.”