‘‘फिर जब बच्ची का जन्म हुआ तो मेरे ही मांबाप उसे अनाथालय में छोड़ गए. वे मुझे यही बताते रहे कि मृतबच्चा पैदा हुआ था.’’
‘‘उस के बाद क्या हुआ?’’ मैं ने धीरे से पूछा.
‘‘उस के बाद क्या होता. मेरी बसीबसाई गृहस्थी उजड़ गई. खाली हाथ रह गई. पति और बच्ची की कोई भी निशानी नहीं रही मेरे पास.’’
‘‘लेकिन आप के मांबाप ने ऐसा क्यों किया?’’ मैं पूछे बिना रह न सका.
‘‘डाक्टर साहब, एक बच्ची की मां की दूसरी शादी कैसे होती. इसलिए उन्होंने शायद यही उचित समझा,’’ कहतेकहते वह रो पड़ी. ‘‘तो क्या आप ने शादी की?’’
‘‘नहीं, बहुत चाहा कि अतीत को काट कर फेंक दूं. परंतु ऐसा नहीं हुआ. अतीत कोई वस्त्र तो नहीं है न, जिसे आप जब चाहें बदल लें,’’ अपने आंसू पोंछ वह बोली, ‘‘अभी कुछ दिनों पहले मेरी मां भी चल बसी. पर मरतमरते मुझ पर एक एहसान कर गई. मुझे बताया कि मेरी बेटी जिंदा है. तब मैं ने सोचा कि मांबेटी साथसाथ रहेंगी तो जीना आसान हो जाएगा. लेकिन यहां आ कर पता चला कि वह भी नहीं बची.’’
मेरा मन भर आया था. मैं हमेशा अपनी मां के स्वार्थ को नियति मान कर उस से समझौता करता रहा. मैं सोचने लगा, क्या मेरी मां अकेले रह मुझे पाल नहीं सकती थी? जो औरत मेरे सामने बैठी थी उसे मैं नहीं जानता था, मगर यह सत्य था कि वह जो भी थी, कम से कम रिश्तों के प्रति ईमानदार तो थी. मेरी मां की तरह स्वार्थी और कठोर नहीं थी.
मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप की बेटी बहुत मासूम थी, बहुत ही प्यारी.’’