उस ने एक नजर अपने फ्लैट को निहारा. छोटा है तो क्या हुआ, अपना तो है. यहां किसी तरह की बंदिश नहीं, न कोई वादविवाद. और यही तो वह चाहती थी. राकेश ने पूरे मन से इस घर को सजाया है. अब चिंता की कोई बात नहीं.
“अब तुम खुश हो न रश्मि. देखो, मैं ने अपना वादा पूरा किया. अब राकेश अपने स्वतंत्र व्यापार में है. और यह तुम्हारा नया किराए का घर है,” राकेश की बड़ी बहन उषा उस से कह रही थी, “अब तुम अपना घर संभालो. बस हमें चिंता है तो बस यही कि तुम अपनी नौकरी और राकेश के बिजनैस के साथ इस घर को कैसे संभाल पाओगी. यह तुम्हारी बड़ी चुनौती है.”
“दीदी, आप ने मुझ पर उपकार नहीं, अहसान किया है,” वह भावुक हो कर बोली, “दरअसल, मैं ने काफी कटाक्ष सहा है. और शादी के बाद मैं और कुछ नकारात्मक सुनना नहीं चाहती थी. इसलिए मैं ने यह कड़ा फैसला लिया.
"मुझे दुख तो हो रहा है कि हम मम्मीपापा के साथ नहीं हैं. फिर भी उन के प्रति मेरे मन में पूरा सम्मान है. आप मेरी स्थिति को समझने की कोशिश करें.”
“मैं सबकुछ समझ रही हूं. तुम चिंता मत करो. कल को उस घर में कुछ बात होती और तब घर छूटता तो ज्यादा बातें बनाई जातीं,” उषा अपनी कार में बैठते हुए बोली, “मैं तुम्हारे विचारों से सहमत हूं. इसलिए तो सदैव तुम्हारे फैसले के साथ रही. बस राकेश को भी खुश रखना.”
“इस के लिए आप निश्चिंत रहें. अब तो वही मेरे लिए सबकुछ हैं.”