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मैं पलंग पर जा लेटी और सोचने लगी, सुधा ठीक कह रही थी कि अकेली स्त्री को यह समाज चैन से जीने नहीं देता. एक दिन मैं अपने डिपार्टमैंट में अकेली थी, तभी वहां मेरा सीनियर प्रोफैसर आया. मु?ो अकेली देख उस ने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश की. मेरे फटकारने पर वह बेहयाई से बोला था, ‘मैं ने सुना है, आप की अपने पति से कुछ अनबन है. मेरे साथ सहयोग करेंगी तो आप को बहुत जल्द रीडर बनवा दूंगा.’ मैं ने प्रिंसिपल से उस की शिकायत करने की धमकी दी थी तब कहीं वह माना था.

मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं. बंद पलकों की कोरों में अतीत के कई दृश्य उभरे. रवि की शराफत, उस की सज्जनता, मेरे मायके के प्रति उस का लगाव, विवाह के बाद के सुनहरे दिन, सभी कुछ मु?ो याद आ रहा था. मैं ने रवि से बात करने का निश्चय किया. दीपक के घर से मेरे लौटने पर रवि को बेहद तकलीफ हुई थी. निराशा के आलम में सारी रात आंखों में ही कट गई थी. उन की जरा सी भूल ने उन के वैवाहिक जीवन को एक मजाक बना डाला था. अपनी मां और बहनों के कहने में आ कर उन्होंने मु?ो स्वयं से दूर तो कर डाला किंतु शांति उन्हें फिर भी न मिली.

जयपुर जाते हुए जिस कातर दृष्टि से मैं ने उन्हें देखा था, मेरी वे निगाहें हर पल उन का पीछा करती थीं. रात्रि के सन्नाटे में जब सब लोग चैन की नींद सो रहे होते, वह बिस्तर पर करवटें बदलते. हर पल उन्हें यही प्रश्न बेचैन किए रहता, आखिर क्यों उन्होंने मु?ो स्वयं से दूर किया? क्या कुसूर था मेरा? यही न कि मैं ने उन के घर वालों के साथ सामंजस्य बिठाने की भरपूर कोशिश की थी और बदले में उन्होंने मु?ो क्या दिया? घर वालों की इच्छा पूरी कर के उन्होंने अपनी और मेरी, दोनों की जिंदगी बरबाद कर डाली, फिर भी घर वाले उन से खुश नहीं हुए.

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