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उस दिन रक्षाबंधन था. रवि को अपनी बहन के घर मथुरा जाना था. सुबह से मेरे पेट में दर्द था. मैं ने रवि से कहा, ‘आज तुम मथुरा मत जाओ, मेरी तबीयत काफी खराब है.’  ‘कैसी बेवकूफी की बात करती हो. दीदी ने आज खासतौर पर मु?ो बुलाया है, मैं अवश्य जाऊंगा,’ रवि ने रूखे स्वर में कहा और मथुरा चले गए.

सारा दिन मेरे पेट में दर्द होता रहा. शाम तक दर्द असहनीय हो उठा तो मैं ने दीपक को फोन किया. सास उस समय पड़ोस में बैठी थीं. दीपक कार में बिठा कर मु?ो तुरंत डाक्टर के यहां ले गया. डाक्टर ने मेरी हालत देख फटकारा, ‘पेशेंट को सुबह ही ले कर आते तो बच्चे को बचाया जा सकता था किंतु अब बहुत देर हो चुकी है.’

दूसरी सुबह मु?ो होश आया तो सबकुछ समाप्त हो चुका था. जीवन में हलकी सी जो रोशनी की किरण दिखाई दी थी, नियति के क्रूर चक्र के हाथों वह भी अंधकार में विलीन हो गई. मु?ो पता नहीं, रवि के दिल को कितना सदमा पहुंचा क्योंकि हम दोनों नदी के दो किनारों के समान एकदूसरे से बहुत दूर हो चुके थे. मेरी ननदें आगरा आई हुई थीं. उन की और सास की सलाह पर रवि ने एक रात कहा, ‘स्वाति, तुम शादी से पहले जयपुर डिग्री कालेज में पढ़ाती थीं. मेरे विचार में तुम्हें नौकरी छोड़नी नहीं चाहिए और जयपुर जा कर फिर से सर्विस जौइन कर लेनी चाहिए.’

‘मु?ो सर्विस करने में कोई एतराज नहीं है किंतु विवाह के बाद भाईभाभी के घर रहना ठीक नहीं लगता. तुम आगरा डिग्री कालेज में मेरा स्थानांतरण करवाने का प्रयास करो,’ मैं ने कहा. ‘स्थानांतरण होने में समय लगेगा. तुम इसी जुलाई में जयपुर जा कर सर्विस फिर से जौइन कर लो,’ रवि ने कहा. प्रतिवाद करना व्यर्थ था. जाहिर था, रवि पर अपनी मां और बहनों का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था. जुलाई में जयपुर आ कर मैं ने अपनी पुरानी सर्विस फिर से जौइन कर ली. कालेज में सुधा से मेरी मित्रता हो गई. सुधा विवाहित थी. इत्तफाकन उसका विवाह भी आगरा में हुआ था.

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